Tuesday, June 10, 2008

है ये मुम्बई नगरिया , तू देख बबुआ

गेटवे ऑफ़ इंडीया
ये क्या ? परदेसी के लिए ज्यादा रुपये ? ये
प्रिन्स ऑफ़ वेल्स म्यूज़ियम के प्रवेश द्वार पे लगी सूचना है ... हुतात्मा चौक : फ्लोरा फाउंटेन
मुम्बई : आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार राज्य सरकार ने गत ३१ मई को जारी अधिसूचना में निर्देश दिए हैं कि सभी दुकानों, प्रतिष्ठानों, व्यवसायिक संगठनों, होटलों, थियेटरों और रेस्तरां की नामपट्टिका मराठी भाषा में होनी चाहिए।
मुम्बई मेरे जन्म स्थली होने के साथ , मेरे शैशव से होश संभालने तक की जीवन यात्रा का एक महत्तवपूर्ण पड़ाव रहा है। जीवन के सफर में , इंसान अपना सम्बन्ध , मित्रों के साथ बनाते हैं और परिवार के साथ कुदरती जुडाव भी रहता ही है । इसलिए , बंबई या मुम्बई नगरी सदा मेरे मन में , एक विशिष्ट स्थान बनाए आज भी विराजमान है। हम कहीं भी जाएं , शैशव के घर को कभी भूलते नही.......पहला प्यार , कोई भूला है भला ?
आज इस मुम्बई शहर की तासीर बदली बदली सी देख रही हूँ , उदासी छा जाती है दिल मेँ ! ये सोच के कि, अब मेरे बचपन की ये निशानी भी पहचानी जायेगी या नहीं , जब फिर वहाँ लौटकर जाऊँगी ?
जीवन गतिशील है ,बदलाव आते हैँ, जिन्हेँ स्वीकारना ही पडता है -
मुम्बई मेँ सुना है कि, छत्रपति शिवाजी महाराज की एक विशालकाय मूर्ति, स्थापित की जायेगी जिसकी अरबी समुँदर मेँ नीँव रखी जायेगी और न्यू योर्क शहर के मेनहेट्टन टापु के बाहर, हर आनेवाले का स्वागत करती, स्वतँत्रता की देवी , मशाल थामे खडी "स्टेच्यु ओफ लिबर्टी" की मूर्ति जितनी विशाल प्रतिमा मराठा शूर राजवी शिवाजी महाराज की बनायी जाने की योजना तैयार की जा रही है - और ये ख़बर भी देखी ..अमरीकी सरकार , बंबई की सडकों पे खुले मेन्होल के बारे में , चेतावनी दे रही है -- जिस से एक भूली हुई बात याद आयी .... स्कूल में एक लड़की थी वो भी ऐसे ही , एक खुले ढक्कन वाले , गटर में गिरकर , भारी वर्षा होने से डूब कर मर गयी थी :-(
..... स्कूल में, सुबह की प्रार्थना सभा में जब् भी " एक जे दे चिंगारी ..महानल, एक जे दे चिंगारी " ये गुजराती में रचा भजन, हमारे संगीत के अद्यापक गाने लगते , हमें अंदेशा हो जाता के कोई बुरी ख़बर आज सुनेंगें ! शायद हर स्कूल में , इस तरह के गीत - भजन प्रात: सभा का हिस्सा राहे होंगें ...
..फ़िर आधे दिन के बाद सब को घर भेज दिया जाता था , ऐसी ही बरसती हुई , बंबई की गलियों पे चलते हुए, रेनकोट पहने , बस्ता थामे हम घर पहुँचते जहां अम्मा हमें देख अचरज करतीं , फ़िर मुस्कुराके कहतीं, ' जल्दी से जाकर गीले कपड़े बदल लो, मैं गरम गरम नाश्ता लाती हूँ ' ..और स्टील के बड़े गिलास में गरम दूध के साथ अम्मा के हाथ की बनी आलू भरी कचौड़ी और खट्टी मीठी इमली की चटनी का स्वाद लेकर हम , बाकी बचे दिन में, कागज़ की कश्ती किस नाले में बहायेंगे और फ़िर कहाँ कहाँ गीले होते घुमेंगें इसकी योजना बनाने में मग्न हो जाते थे ...भूलाये नहीं भूलते वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी और वो बंबई .. और ...सबसे मीठी मेरी अम्मा की मुस्कान .....
http://www.ndtvkhabar.com/MoreVideos.aspx?video=31019&status=true

28 comments:

Udan Tashtari said...

वो शहर जहाँ बचपन बीता हो, स्कूल, अम्मा की मुस्कान आदि तो सब जीवन भर साथ चलने वाली यादें हैं, इन्हें कौन भूल सकता है. बहुत बढ़िया.

दिनेशराय द्विवेदी said...

किसी को नहीं भुलाता बचपन,
चाहे मुम्बई हो,
या कि बाराँ।
हर जगह थीं
एक सी बारिश,
कागज की नावें एक सी
तेजी से बहते नाले बनतीं
एक से बाजार
एक से भीगते लड़के-लड़कियाँ
सब जगह
एक सी अम्माँ।

mehek said...

bahut hi khubsurat yaadein hai aapke bachpan ki,khas kar barish ke baad garam nashta sundar

G Vishwanath said...

आज पहली बार आप का ब्लॉग साईट पर आया हूँ।
बहुत अच्छा लगा।
हाल ही में छपे लेखों और टिप्पणियों को पढा।
फ़िर आऊँगा।
अभी एक एक करके सभी मित्रों के ब्लॉग साईट पर जाने का प्रोग्राम है।
आगे चलकर टिप्पणी भी करूँगा।
शुभकामनाएं
गोपालकॄष्ण विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरु
gvshwnth AT yahoo DOT com
geevishwanath AT gmail DOT com

मीनाक्षी said...

लावण्या जी , यादों का पिटारा तो जीवन भर साथ रहता है.... जब जी चाहा खोल कर खेल लिया....और आनंद पा लिया....विदेशी मेहमानों से बोम्बे ही नही ...देश के लगभग सारे शहर दुगुना चौगुना पैसा लेते हैं...
.

मीनाक्षी said...

लावण्या जी , यादों का पिटारा तो जीवन भर साथ रहता है.... जब जी चाहा खोल कर खेल लिया....और आनंद पा लिया....विदेशी मेहमानों से बोम्बे ही नही ...देश के लगभग सारे शहर दुगुना चौगुना पैसा लेते हैं...
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Gyan Dutt Pandey said...

जल्दी से जाकर गीले कपड़े बदल लो, मैं गरम गरम नाश्ता लाती हूं
----------------
मम्मियों का यह रूप तो अत्यन्त प्रिय है, और भावुक कर देने वाला।

अनूप शुक्ल said...

बहुत सुन्दर! फोटो और यादें भी।

Rajesh Roshan said...

अच्छा संस्मरण, साथ ही रोचक भी

sanjay patel said...

तीन बरस की नन्हीं लावण्या को देखकर
मन अभिभूत है.
कैसी सहजता और पवित्रता से भरा होता है
बचपन लावण्या बेन.

कुश said...

अपने घर की याद हमेशा सुंदर होती है.. यू कहु अति सुंदर

रंजू भाटिया said...

सुंदर लगी बचपन की यादे आपकी ..यह यादे ही ज़िंदगी के गुजरते पलों की खुशनुमा बना जाती है

Abhishek Ojha said...

बचपन की यादें.. होती ही ऐसी हैं, और मुम्बई तो है ही मायानगरी.

mamta said...

यादें , बारिश और अम्मा का प्यार और उनके हाथ का नाश्ता ऐसा लगा कि हम भी कहीं अपने बचपन मे पहुँच गए ।

समय चक्र said...

बचपन की यादे सदैव स्म्रतिपटल मे अंकित रहती है . पोस्ट मे चित्रण बहुत अच्छा लगा . धन्यवाद

Harshad Jangla said...

Lavanyaji
You have unfolded my young memories for a great city where I have lived for more than half a century.When this kind of blog comes, I keep reading it again and again. Bambai jaisi bhi ho/rahe, it will remain as a great city in my mind.
Thanks a lot. Rgds.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

Jay said...

बम्बई की पुरानी यादें फीर ताजी हो गई आपका ये बहोत ही सुंदर लेख पढकर..
मेरे गुजराती ब्लोग 'बंसीनाद'में bansinaad.wordpress.com कभी कभी मेरे अनुभव कंडारे हैं
http://bansinaad.wordpress.com/2008/03/30/aathamu-dhoran/

जय

Ila's world, in and out said...

बारिश के मौसम में बचपन की ओर लौटाने जैसे स्तुत्य कार्य के लिये लावण्याजी को बधाई.बारिश के दिनों में हमारे घर के सामने बरसाती पानी का गड्ढा भर जाता था,उसमें हम तीनों भाई बहन खाये हुई भुट्टे की नाव तैराया करते थे.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

समीर भाई, आभार आप आये और मेरी बातोँ को पढा -आते रहियेगा, स्नेह,
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

जी दिनेश भाई जी ,
अम्मा सभी की ऐसी होतीँ हैँ है ना ?

-- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Shukriya aapka Mahek ji , yahan aaker mere likhe ko padh ker tippani rakhne ka bhee - aabhaar
- Lavanya

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

G Vishwanath ji,
Thank you for visiting & commenting here. You are most welcome. Do come again, take your time &
share your valuable thoughts with us.
warm rgds,
Lavanya

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

मीनाक्षी जी,
हाँ, बचपन की यादेँ अब,
खेल ही रह गयीँ हैँ ! -
यहाँ अमरीका मेँ,
विदेशीयोँ से
ज्यादा पैसा या शुल्क नहीँ लेते -
जैसे ऐम्पायर स्टट बील्डीँग हो या नायगरा का प्रपात या स्मीथसोनीयम म्युझियम --
मैँने ऐसा देखा नहीँ था इस्लिये ये नयी बात लगी - So I put up that sign as a curiosity & novelty ! Do they charge more in UAE also ?
I'm surprised to hear this --
स्नेह,
-- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Dhanyawaad Gyan Bhai sahab :)
Rgds,
L

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

शुक्रिया अनूप भाई आप जब भी टिप्पणी करते हैँ खुशी होती है -आते रहियेगा
स्नेह,
-- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

शुक्रिया राजेश जी -- -- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अरे सँजय भाई,
आपका बहुत आभार - स्नेह :)
-- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

कुश भाई,
ममता जी,
अभिषेक जी,
रँजू जी,
महेन्द्र जी,
हर्षद भाई,
इलाजी ,
जय भाई
आप सभी का आभार !
स्नेह,
-- लावण्या