Friday, October 3, 2008

विविध ~ भारती ~~~ स्वर्ण जयँती उत्सव मना रहा है...


स्ट्युडियो मेँ चिँतन की मुद्रा मेँ पापा जी स्व. पँडित नरेन्द्र शर्मा


कौन जानता था कि, एक नन्हा सा पौधा इतना घटादार,घना, हरा भरा बरगद सा फैला विशाल वृक्ष बन जायेगा ?

मेरे पूज्य पापा जी स्व.पँडित नरेन्द्र शर्मा तथा अन्य कर्मठ साथियोँ की मेहनत से लगाया ये नन्हा बिरवा, "विविध ~ भारती" स्वर्ण जयँती उत्सव मना रहा है...
भारत सरकार द्वारा आरँभ किया गया, भारत की जनता के प्रति पूरी ततह समर्पित, आधुनिक वायु सँचार माध्यम का यशस्वी रेडियो कार्यक्रम, अबाध, सुचारु रुप से चलता रहे, ये मेरी शुभकामना है और विविध भारती से जुडे हरेक व्यक्ति को मेरे सस्नेह अभिवादन !
स्वर्ण जयँती सु -अवसर आया,

जन जन के मन उमँग छाया
नव सँशोधन, स्वर लहर मधुर
विविध भारती बन,मधुराकर्षण
भारत के गौरव सा, ही हो पूरण
शत वरष,भावी के कर गुँजारित
प्रेम वारिधि छलका कर ,अविरत
जन जन का बन समन्वय -सेतु
फहराता रहे, यशस्वी, हर्ष - केतु
-- लावण्या

जोगलिखी संजय पटेल की said...

पचासवाँ शुभ जन्म दिवस मनाओ विविध भारती,

हम श्रोताओं की भावनाएँ उतारे तुम्हारी आरती

नाच रहा है मन - मयूरा ; जगमगाए दीपक सरस

लावण्य बढ़े प्रतिपल तुम्हारा पल पल रहे अति सरस

Prem Piyush said...
लावण्या,

आपके पापाजी की यह सारी संकल्पना समय के धारा के साथ आज भी बह रही है विविध भारती का नाम, इसकी संकल्पना, अनेक कार्यक्रमों की रुपरेखा जो समय के साथ अपनी मौलिकता लेकर आज भी वैसी ही मनोरंजक और ज्ञानवर्धक है ।शैशवावस्था से पाल पोसकर बड़ा किया गया विविध भारती का सदा युवा रहने वाला इस रुप का श्रेय पंडित जी को जाता है । अपनी सारी कृतियों और रेडियो मनोरंजन के उन नामों में पंडितजी अमर हैं ।

m.p. said...
lavanya ji ,aapki panktiyon mein chhupa aashirwad man ko chhoo gaya. humare poorvaj the panditji aur aap unki santaan hain ,hamare liye garv ka vishay hai ki aapka aashirvad hamen mila hai.hamne seemit saadhnon ke saath jo prayas kiya,aapko kaisa laga agar aap do panktiyan likhengi to mahati kripa hogi.mere paas hindi font nahin hai,roman mein likh raha hoon kshamaprarthi hoon........ mahendra modi,

sahayak kendra nideshak,vividh bharati,mumbai mpmodi@gmail.com

(यहाँ ऊपर दी हुई सारी सामग्री पुनः प्रकाशित कर रही हूँ )

..और अब आगे

http://radionama.blogspot.com/ " रेडियोनामा "

देखिये ये लिंक्स :

http://radionamaa.blogspot.com/2007/10/blog-post_25.html

http://radionama.blogspot.com/2008/02/blog-post.html

http://radionama.blogspot.com/2007/09/blog-post_8214.html

प्रकाशित आलेख को मेरे जाल घर पर भी दे रही हूँ ~~~

आप अवश्य पढेँ और आपकी शुभकामना व आशीर्वाद

विविध भारती के लिए अवश्य दीजिये ~~~

धन्यवाद !

" बधाई हो जी बधाई ..
आप सारे श्रोताओँ को और दूर परदेस मेँ बसे या भारत मेँ विविध भारती के रंगारंग कार्यक्रमोँ को सुन रहे अनगिनत रसिक श्रोताओँ को विविध भारती के स्‍वर्ण जयँती के उपलक्ष्य मेँ अनेकोँ बधाईयाँ ! आशा है आपकी ईद बढिया मनी होगी और नवरात्र के उत्सव का आप भरपूर आनँद ले रहे होँगेँ ...आज आपके सामने विविध भारती की शिशु अवस्था की यादेँ लेकर लौटी हूँ ..

जनाब रिफत सरोश जी ने हमेँ यह बतलाया था कि, कैसे पहले इन्डियन पीपल्स थियेटर यानी इप्टा रंगमंच की दुनिया में सक्रिय था ॥

वहीँ किसी कार्यक्रम मेँ रि‍फत साहब ने नाटक के सूत्रधार की आवाज़ सुनी और ये भी जान लिया कि श्रोता जिस आवाज़ के जादू से बँधे हुए से थे वह हिन्दी कविता से नाता रखते कवि नरेन्द्र शर्मा थे.

भारत की स्वतँत्रता के बाद आकाशवाणी की नीति मेँ परिवर्तन आया और रेडियो के लिये हिन्दी लेखकोँ और कवियोँ की तलाश जारी हुई. नीलकँठ तिवारी, रतन लाल जोशी, सरस्वती कुमार दीपक, सत्यकाम विध्यालँकार, वीरेन्द्र कुमार जैन, किशोरी रमन टँडन,डा. शशि शेखर नैथानी, सी. एल्. प्रभात, के. सी. शर्मा भिक्खु, भीष्म साहनी जैसे हिन्दी के अच्छे खासे लोग रेडियो प्रोग्रामोँ मेँ हिस्सा लेने लगे.
अब रि‍फत सरोश जी के शब्दोँ मेँ आगे की कथा सुनिये ..

" उन्हीँ दिनोँ हम लोगोँ ने पँ. नरेन्द्र शर्मा को भी आमादा किया- एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया- " कवि और कलाकार" उसमेँ सँगीत निर्देशक अनिल बिस्वास, एस्. डी. बर्मन, नौशाद और शैलेश मुखर्जी ने गीतोँ ,गज़लोँ की धुनेँ बनाई । शकील, साहिर और डाक्टर सफदर "आह" के अलावा नरेन्द्र जी भी इस प्रोग्राम के लिये राजी हो गये - नरेन्द्र जी के एक अनूठे गीत की धुन अनिल बिस्वास ने बनाई थी, जिसे लता मँगेशकर ने गाया था -

" युग की सँध्या कृषक वधू -सी, किसका पँथ निहार रही "

पहले यह गीत कवि ने स्वयँ पढा, फिर इसे गायिका ने गाया उन दिनोँ आम चलते हुए गीतोँ का रिवाज हो गया था और गज़ल के चकते दमकते लफ्ज़ोँ को गीतोँ मेँ पिरो कर अनगिनत फिल्मी गीत लिखे जा रहे थे - ऐसे माहौल मेँ नरेन्द्र जी का यह गीत सभी को अच्छा लगा, जिसमेँ साहित्य के रँग के साथ भारत भूमि की सुगँध भी बसी हुई थी - और फिर नरेन्द्र जी हमारे हिन्दी विभाग के कार्यक्रमोँ मेँ स्वेच्छा से आने लगे - एक बार नरेन्द्र जी ने एक रुपक लिखा -

" चाँद मेरा साथी " उन्होँने चाँद के बारे मेँ अपनी कई कवितायेँ जो विभिन्न मूड की थीँ एक रुपक लडी मेँ इस प्रकार पिरोई थी कि मनुष्य की मनोस्थिति सामने आ जाती थी - वह सूत्र रुपक की जान था - मुझे रुपक रचने का यह विचित्र ढँग बहुत पसँद आया और आगे का प्रयोग किया -मैँ बम्बई रेडियो पर हिन्दी विभाग मेँ स्टाफ आर्टिस्ट था और अब्दुल गनी फारुकी प्रोग्राम असिस्टेँट ! फारुकी साहब नरेन्द्र जी से किसी प्रोग्राम के लिये कहते , वे फौरन आमादा हो जाते - आते , और अपनी मुलायम मुस्कुराहट और शान्त भाव से हम सब का मन मोह लेते !

समय ने एक और करवट बदली उस समय के सूचना तथा प्रसारण मँत्री डा. बी.वी. केसकर फिल्मी गानोँ से आज़िज थे मगर पब्लिक गाना सुनना चाहते थे - केसकर साहब ने एक व्यापक कार्यक्रम बनाया कि आकाशवाणी के बडे बडे केन्द्रोँ पर लाइट म्युजिक यूनिट ( प्रसारण गीत विभाग ) बनायेँ जायेँ, परन्तु उनमेँ फिल्मी गानोँ जैसा छोछोरापन और बाजारुपन न हो ! बम्बई मेँ इस भाग के प्रोड्युसर नरेन्द्र जी नियुक्त किये गये - कल तक नरेन्द्र शर्मा हमारे अतिथि बनकर आया करते थे , अब वे, जिम्मेदार और प्रभावशाली अफसर बन गये जिनकी डायरेक्ट पहुँच मँत्री महोदय तक थी और हमने देखा कि बी. पी. भट्ट जैसे स्टेशन डायरेक्टर उनके आग पीछे घूमने लगे परन्तु नरेन्द्र जी की मुस्कुराहट मेँ वही मुलायमियत और वही रेशमीपन था ! वह सहज भाव से हम लोगोँ से बातेँ करते -

उनको एक अलग कमरा दे दिया गया था प्रसार गीत विभाग भारतीय सँगीत का एक अँग नहीँ, बल्कि हमारे हिन्दी सेक्शन का एक हिस्सा था और नरेन्द्र जी की वजह से सेक्शन चलाने मेँ हमेँ बडी आसानी थी - कहीँ गाडी नहीँ रुकती थी , चाहे आर्टिस्‍टों का मामला हो या टेपोँ और स्टुडियो का ! उन्होँने हिन्दी सेक्शन के अन्य कामोँ मेँ हस्तक्षेप करना उचित नहीँ समझा उन्हेँ प्रसार गीत से ही सरोकार था आधे दिन के लिये दफ्तर आते थे - या तो सुबह से लँच तक या लँच के बाद शाम तक ! अपने ताल्लुकात की वजह से उन्होँने फिल्मी दुनिया के मशहूर सँगीतकारोँ से प्रसार गीतोँ की धुनेँ बनवाईँ जैसे नौशाद , एस. डी बर्मन, सी. रामचन्द्र, राम गांगुली, अनिल बिस्वास, उस्ताद अली अकबर खाँ और कोई ऐसा फिल्मी गायक न था जिसने प्रसार गीत न गाये होँ - लता मँगेशकर, आशा भोँसले, गीता राय, सुमन कल्याणपुर, मुकेश, मन्ना डे, एच. डी. बातिश, जी. एम्. दुर्रानी, मुहम्मद रफी, तलत महमूद, सुधा मल्होत्रा - सब लोग हमारे बुलावे पर शौक से आते थे - यह नरेन्द्र जी के व्यक्तित्त्व का जादू था - एक सप्ताह मेँ एक दो गाने जरुर रिकार्ड हो जाते, जो तमाम केन्द्रोँ को भेजे जाते आज मैँ अनुभव करता हूँ कि, नरेन्द्र जी का एक यही कितना बडा एहसान है आकाशवाणी पर कि उन्होँने उच्चकोटि के असँख्य गीत प्रसार विभाग द्वारा इस सँस्था को दिये !

आकाशवाणी को बदनामी के दलदल से निकालने और प्रोग्रामोँ को लोकप्रिय बनाने मेँ नरेन्द्र जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है " प्रसार -गीत " तो उसकी एक मिसाल है परन्तु जो अद्वितीय कार्य उन्होँने किया वह था, " विविध भारती " की रुपरेखा की तैयारी तथा प्रस्तुति ! अपने मित्र तथा आकाशवाणी के महानिर्देशक श्री जे. सी. माथुर के साथ मिलकर नरेन्द्र जी ने आल इँडीया वेरायटी प्रोग्राम का खाका बनाया जिसका अति सुँदर नाम रखा " विविध भारती " आकाशवाणी का ऐसा इन्कलाबी कदम था जिसने न सिर्फ उस की खोई हुई साख वापस दिलाई, बल्कि आकाशवाणी के श्रोताओँ मेँ नई रुचि पैदा की और उसमेँ हलके -फुलके प्रोग्रामोँ द्वारा राष्ट्रीयता और देश प्रेम का एहसास जगाया और आगे चलकर यह कार्यक्रम आकाशवाणी के लिये " लक्ष्मी का अवतार " साबित हुआ - इस तमाम आकाशवाणी के इतिहास मेँ उनका नाम सुनहरे अक्षरोँ मेँ लिखा जायेगा -

मेरे फरिश्तोँ को भी पता न था कि नरेन्द्र जी जैसे विद्वान मेरे बारे मेँ इतनी अच्छी राय रखते हैँ कि जब "विविध भारती " विभाग की स्थपना होने लगी तो उन्होँने अपने असिस्टँट प्रोद्युसरोँ के लिये जहाँ दिल्ली से बी. एस्. भटनागरजी, विनोद शर्मा, सत्येन्द्र शरत्` और नागपुर से भृँग तुपकरी को चयन किया तो बम्बई से मुझे योग्य समझा और मेरा नाम हिन्दी प्रोड्युसरोँ की सूची मेँ रखा इस प्रकार मेरी ज़िन्दगी मेँ एक नया मोड लाने मेँ नरेन्द्र जी का एह्सान है - उन दिनोँ आकाशवाणी मेँ " आसिस्टेँट प्रोड्यूसर " बनना बडे गौरव की बात समझी जाती थी

जब विविध भारती के लिये नमूने के प्रोग्राम तैयार किये जाते थे, तो मैँने नरेन्द्र जी की " चाँद मेरा साथी " वाली टेकनीक को अपनाकर गज़लोँ और गीतोँ का मिलाजुला प्रोग्राम " गजरा " बनाया जिसमेँ हल्की फुल्की चटाखेदार हिन्दुस्तानी जबान की कम्पेयरिँग मेँ पिरोया - यह पहला प्रोग्राम था जो श्री जे. सी. माथुर को सुनाया गया था और उन्हेँ पसँद आया " यह आकाशवाणी का पँचरँगी प्रोग्राम है - विविध भारती, गजरा ! गीत के रँग -बिरँगे फूलोँ से बनाया गया - गजरा "

बीच मेँ एक बात याद आ गई - नरेन्द्र जी अच्छे खासे ज्योतीषी भी थे -


" विविध भारती " प्रोग्राम पहली जुलाई को शुरु होने वाला था - फिर तारीख बदली आखिर पँडित नरेन्द्र शर्मा ने अपनी ज्योतिष विध्या की रोशनी मेँ तय किया कि यह प्रोग्राम ३ अक्तूबर १९५७ के शुभ दिन से शुरु होगा और प्रोग्राम का शुभारँभ हुआ तो " विविध भारती " का डँका हर तरफ बजने लगा -


लेखक: ज़नाब रीफत सरोश साहब ....
( आगे की कथा ..फिर कभी सुनाऊँगी ..आज इतना ही ..कहते हुए आपसे आज्ञा ले रही हूँ ...और मेरे पापा जी के लगाये इस पवित्र बिरवे को आज हरा भरा सघन पेड़ बना हुआ देखकर विविध भारती व आकाशवाणी सँस्था को सच्चे ह्र्दय से शुभकामनाएँ दे रही हूँ !

ईश्वर करेँ कि हर इन्सान जो इनसे जुडा हुआ है कार्यक्रम प्रस्‍तुतकर्ता या श्रोता के रुप मेँ, चाहे देशवासी होँ या परदेसी श्रोता, मित्र व साथी, सभी को बधाई देते अपार हर्ष हो रहा है ! शुभम्-भवति ..स-स्नेह सादर-- लावण्या

14 comments:

राज भाटिय़ा said...

लावण्यम् जी, बहुत ही सुंदर लगा आप का यह लेख,
ओर हमारे तो बचपन का साथी रहा हे *विविध भारती* हमारे साथ ही धीरे धीरे बढा हुआ हे अपने बडे भाई की तरह से लगता हे, बहुत सी याद जुडी हे इस बडे भाई के साथ,इस के कई प्रोग्राम अभी भी याद हे हवा महल, गीतो भरी कहानी, ओर इतवार को पुरी फ़िल्म की कहानी....आप का धन्यवाद
मेरी शुभकामना है विविध भारती दिन रात तरक्की करे ओर खुब फ़ले फ़ुले.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर आलेख ! इतनी सहजता से इतनी उपयोगी जानकारी मिल गई ! विविध भारती के लिए शुभकामनाएं ! शायद इसकी
शुरुआत से ही इसको सुनने का शौक लग गया था ! मुझे याद है बिनाका गीतमाला रेडियो सीलोन से अमीन सयानी साहब बुधवार को दिया करते थे और कई बार वो साफ़ नही सुनाई दिया करता था! और जब विविध भारती आया तो धीरे २ रेडियो सीलोन भी सुनना बंद हो गया था ! और बाद में तो बंद ही हो गया ! सभी की अनेको यादे हैं इसके साथ ! बहुत शुभकामनाएं !

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप विविध-भारती को एक बहिन की तरह प्यार करती होंगी। आदरणीय पंडित जी उस के पिता जो थे।

Abhivyakti said...

vividh bharti ! naam hi sirf chaar maheene purani smiritiyan dohra gya hai
vanadanvaar se le bela ke fool
tak mera sathi rahata tha yah bharat me..
itna ki apne blogs me bhi yada kada ubhar aata hai
jan manas ko saath le chalta yah pryaas mera bachpan ka sathi hai ..
is vishesh jaankaari bhare lekh ko
hum tak pahunchane ke liye lakh lakh shukriya!
vividh bharti , fale foole !
shubh kamnaaen !

सचिन मिश्रा said...

bahut badiya.

Gyan Dutt Pandey said...

विविध भारती तो उस जमाने से आम जन को रस मधुर्य देता रहा है, जब जीवन की आपाधापी बढ़नी शुरू ही हुई थी और यह उपाय न होता रसास्वादन का तो न जाने कितने अवसाद ग्रस्त हो जाते।
इस रेडियो चैनल की उपयोगिता उस प्रकार से देखनी चाहिये।

रंजू भाटिया said...

विविध भारती कभी बहुत सुना करते थे ..बहुत अच्छा लगा यह लेख आपका .शुक्रिया

makrand said...

bahut sunder lekh
hum aaj bhi vividh bharti ke diwane hen
regards

डॉ .अनुराग said...

विविध भारती ओर कुछ ख़ास आवाजे ...जब छोटे से थे तो जसदेव सिंह की कमेंट्री ....ओर कुछ फिल्मी सितारों से मुलाकात .अमीन सयानी ...क्या दिन थे वो

Smart Indian said...

विविध भारती की स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर हम भी आपकी खुशी में शामिल हैं. विविध-भारती ने अल्प-समय में भारतीय जन-मानस में अपना अलग ही स्थान बना लिया. आपके व्यक्तिगत जुडाव के बारे में पढ़कर अच्छा लगता है. पंडितजी जैसे सहज और अति-सरल व्यक्तित्व वाले (सुपर-अचीवर होने के बावजूद) महापुरुष भारत-भूमि के रत्न हैं और उनके काम और तरीके आज की पीढी के लिए अनुकरणीय हैं.

BrijmohanShrivastava said...

विविध भारती से रिश्ता पुराना है =एक जमाने में हम विविध भारती और रेडियो सीलोन सुना करते थे रेडियो सीलोन व विविध भारती दोनों से प्रेम था आज भी नियमित सुनते है /स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर वधाई ,जानकारी के लिए आभार

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आप सभी की टीप्पणीयोँ का बहुत बहुत आभार !

Abhishek Ojha said...

पंडित जी के सपने और विविधभारती की सफलता और पचासवी साल सबके लिए बधाई !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आपने देरी से आकर भी टिप्पणी तो की है :)
उसके लिये आभार अभिषेक भाई
स स्नेह्,
- लावण्या