Sunday, October 5, 2008

पतझड और शीत की लहर .......,

" जो जुत्रास " नामके एक शख्श ने, सितम्बर २९ , २००७ के दिन, मेसेचुसेट्स प्राँत मेँ दर्ज करवा कर, विश्व के सबसे विशालकाय कद्दू उगानेवाले का इनाम जीत लिया सबसे विशाल कद्दू,१६८९ पाउन्ड का है !!
पतझड और शीत की लहर ,
साल के अँतिम महीनो की कुदरत प्रदत्त सौगात है हम मनुष्योँ के लिये.सितम्बर माह पूरा हुआ और अक्तूबर भी भागा जा रहा है.
इस वर्ष ठँड का मौसम कहीँ ओझल हुआसा लग रहा है. अन्यथा, यहाँ
तक आते आते तो सारे पेड रँगोँ की चुनरिया ओढे धीरे धीरे पतोँ कोजमीन पर बिछाते दीखलाई पडते.
मेरे आवास के ठीक सामने एक सुदर्शन पेड है.
पाँच, त्रिकोणाकार की पत्तियाँ सजाये एक ही पत्ती मेँ,
लाल, कत्थई, मरुन, केसरी, पीला, हरा इतने सारे रँगोँ का सम्मिश्रण लिये,
कुदरत का करिश्मा सा लगता है वो मुझे ! फिर सारे पत्ते, तेज़ हवाओँ के साथ, टूट कर,गिरने लगते हैँ और पेड, सिर्फ शाखोँ को सम्हाले
,खडा ठिठुरने लगता है। इसी पतझड के साथ नवरात्र का त्योहार भी आ जाता है.
अमरीका के हर शहर मेँ भारतीय लोग, मिल जुल कर, माँ जगदम्बा की प्रतिष्ठा करते हैँ। मिट्टी के कलश मेँ दीप रखा जाता है, जिसके छिद्रोँ से पावन प्रकाश बाहर आता रहता है और सुहागिन की नत काया को आशिष देता है।

माता की चौकी भी सजती है. श्रध्धालु भक्त ९ दिनोँ तक उपवास भी करते हैँ तो स्त्रियाँ औरबच्चे गरबा मेँ तल्लीनता से, दूर भारत के गुजरात के गाँवोँ मेँ गाये गरबे वैसी ही पुरानी शैली से, पूर्ण भक्ति भाव से गाते हुए दीखलायी देते हैँ.
अभी गणेशोत्सव सँपन्न हुआ और अब, माँ भवानी का आगमन हुआ है. आरती के बाद, प्रसाद भी बाँटा जाता है। मँदिरोँ की शोभा देखते ही बनती है.
बँगाली कौम के लोग दुर्गोत्सव मेँ माँ दुर्गा के स्वरुप की स्थापना करते हैँ।

यही तो भारतीय सनातन धर्म की रीत है जो हर जगह अपना अस्तित्व नये सिरे से, बना कर दुबारा पल्लवित हो जाती है।

अमेरीका मेँ भी इसी ऋतु मेँ अलग किस्म के त्योहार मनाये जाते हैँ.
जिसका नाम भी बडा अजीओगरीब है !
जी हाँ, ये है, हालोईन का त्योहार ! (The Festival of Halloween )--
३१ अक्तूबर , अँतिम रात्रि को आइरीश मूल के लोग, १ नवम्बर से पहले अपने मृतक पूर्वजोँ के लिये मोमबत्तियाँ जला कर, प्रार्थना किया करते थे।

जिसकी नीँव रखी गयी थी, २००० साल से पहले !
"समहेन" केल्टीक याने आयर्लैन्डके लोगोँ के यम देवता हैँ --
औरु उनकी मान्यता थी कि मृतक आत्माएँ १ नवम्बर के अगली रात्रि को धरती पर लौटतीँ हैँ -
सो, तैयार हुई फसल की कटाई के बाद,
विविध प्रकार के परिधानोँ मेँ सज कर,
बडे कद्दूओँ को काट कर, उस के भीतर जगह करने के बाद,
जली हुई मोमबतीयाँ रखीँ जातीँ थीँ कि जिससे प्रेतात्मा की बाधा ना होऔर दूसरे दिवस की सुबह, हर आत्मा की भलाई के लिये पूजा करके बिताई जाती थी.
७ वीँ शताब्दि के बाद औयरलैन्ड से चल कर समूचे युरोप मेँ ये प्रथा, प्रचलित हुईऔर जब वहीँ से प्रवासी, अमरीका भूखँड बसाने आये
तो अपनी रीति रीवाज, रस्मोँ को त्योहारोँ को भी साथ लेते आये।

आज अमरीका मेँ बीभत्स, भयानक, वेश भूषा, पहन कर लोग एक दूसरे को डराते हैँ
तो कई सारे मनोविनोद के लिये, तस्कर, खलासी,नाविक, नर्स,राजकुमारी, कटे सर से झूठ मूठ का रक्त बहता हो ऐसे या डरावने मुखौटे लगा कर,
सुफेद, लाल, नीले पीले, हरे ऐसे नकली बाल लगा कर ,
विविध रुप धर लेते हैँ और अँधेरी रात मेँ खुद डर कर मजा लेते हैँ
या औरोँ को डराने के प्रयास मेँ तरकीब करते हैँ.
छोटे बच्चोँ के साथ उनके माता पिता भी रहते हैँ
हर घर पर दस्तक देकर बच्चे पूछते हैँ,
" ट्रीक ओर ट्रीट ? "
मतलब, कोई करतब देखोगे या हमेँ खुश करोगे ?
तो घर से लोग बाहर निकल कर,
चोकलेट, गोली, बिस्कुट इत्यादी उनकी झोली मेँ डाल देते हैँ.
खूब सारी केन्डी मिल जाती है बच्चोँ को !
कई बुरे सुभाव को लोग, बच्चोँ को परेशान भी करते हैँ
इसलिये टी.वी. पर खूब सारी,हिदायतेँ दीँ जातीँ हैँ -- खैर !जैसा देश, वैसे त्योहार !
अब भारतीय लोग नवरात्र के साथ साथ हेलोईन भी मना ही लेते हैँ
और द्वार पर आये बच्चोँ का मन तोडते नहीँ --
विश्व का सबसे विशालकाय कद्दू
जानते हैँ आप कि सबसे विशाल कद्दू,१६८९ पाउन्ड का है
जिसे " जो जुत्रास " नामके एक शख्श ने,
सितम्बर २९ , २००७ के दिन, मेसेचुसेट्स प्राँत मेँ दर्ज करवा कर,
विश्व के सबसे विशालकाय कद्दू उगानेवाले का इनाम जीत लिया.
आजकल, अमरीका के हर मोल की दुकान पर
या घरोँ की सामने हर घर की ड्योढी पर,
केसरी रँग के कद्दू, मक्का, और खेत मेँ रखते हैँ वैसा गुड्डा सजाया दीख जाता है. और, इस तरह परदेस मेँ रहते हुए भी,
धरती माता और जगजन्नी अम्बिका का प्रसाद मिल जाता है.
अब चलूँ ..
माँ की आरती का पावन अवसर है..
आप सभी को,
"अमरीका की पाती" " जय माता दी " कहते हुए, विदा लेती है।

http://www.youtube.com/watch?v=oZA66kG5UEc.
.फिर मिलेँगे ..
तब तक, भगवती प्रसन्न रहे !-

( सृजन गाथा से साभार )


- स स्नेह, -- लावण्या

22 comments:

योगेन्द्र मौदगिल said...

विषय से परिपूर्ण पाती
फायदा ये हुआ
कि हमें भी पता लग गई
अमेरिकन परिपाटी
और हां लावण्या जी
ये युरोपियन यदि लगातार मुटियाते जाएंगे
तो फिर केले या घीया थोड़े
पट्ठे कद्दू ही उगाएंगे
बहरहाल
आपने बढ़िया पाती पढ़ाई
इसके लिये आपको बधाई

प्रदीप मानोरिया said...

सार्थक और अदभुत जानकारी सहित आपकी चिठ्ठी पढी . धन्यबाद
नैनो की विदाई नामक मेरी नई रचना पढने हेतु आपको सादर आमंत्रण है .आपके आगमन हेतु धन्यबाद नियमित आगमन बनाए रखें

mamta said...

जय माता दी ।
सबसे विशाल कद्दू,१६८९ पाउन्ड का है । बाप रे !

Gyan Dutt Pandey said...

हालोईन भी प्रकृति के समीप जाने क पर्व है। आपकी पोस्ट में मिली जानकारी के बहुत धन्यवाद।

और इतना बड़ा कद्दू!:)

Unknown said...

अजूबे जैसा लगा देख कर । धन्यवाद जी

कंचन सिंह चौहान said...

jai mata di

ताऊ रामपुरिया said...

नवरात्र के पावन अवसर पर सुंदर पाती और अत्यन्त सुंदर जानकारी !
शुभकामनाएं !

Manish Kumar said...

sachmuch kaphi bada hai :)

नीरज गोस्वामी said...

कद्दू को देख कर आँखें फटी की फटी रह गयीं...ये अमेरिकन हर काम विशाल स्तर पर करते हैं...बहुत रोचक जानकारी दी आपने...मजा आया...
नीरज

makrand said...

bahut good kaddu
great effort
edited well
combination of lines are really impressive
regards

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया जानकारी, आभार!

नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनाऐं.

डॉ .अनुराग said...

आहा ...आज आपके पेड़ के बार में जानकर ईष्या सी हुई .अगली बार एक फोटो उसका भी डाल दे ...यहाँ अभी सर्दिया बस दरवाजे पर सुबह -ओर रात को कुछ देर के लिए आकर लौट जाती है....एक अच्छा लेख...

दिनेशराय द्विवेदी said...

सर्दियाँ यहाँ सिरे से गायब हैं। जयपुर का तापमान कल 38 डिग्री था। कोटा में चालीस से ऊपर रहा होगा। नवरात्र का रंग यहाँ भी जोरों पर है। गरबा, डांडिया हो रहे हैं। डांडिया के लिए एक निमंत्रण मिला है। उन्हों ने समारोह का नाम रखा है 'धंमाल'मैं सोचता रह गया दीपावली के स्थान पर पहले होली कहाँ से आ गई।

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुन्दर, इतना बडा कद्दु तो नही देखा, लेकिन एक बार हमारे बगीचे मे ३४ किलो का कद्दु हुआ था, कभी चित्र दुगां अपने बलांग पर, अब तो बगीचे का समय यहाः बीत जाता है.
धन्यवाद

Smart Indian said...

बहुत अच्छा लेख है, विशालकाय कद्दू से परिचय कराने का धन्यवाद!

Ashok Pandey said...

इतना बड़ा कद्दू.. बाप रे.. कभी सपने में भी नहीं देखा था.. इस तरह के पौधों का कुछ बीज भेजने का इंतजाम कीजिए ना लावण्‍या दी :)
आपको भी नवरात्र व दशहरा की शुभकामनाएं.. मां भवानी आप व आपके परिवार पर कृपा बनाएं रखें।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Ashok bhai,
Aap ka postal address mujhe e mail se likh bhejiye --
the E mail Add is :
lavnis@gmail.com
&
lavanyashah@yahoo.com

Harshad Jangla said...

Lavanyaji

Very interesting info with great pic.
Thanx.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आप सभी की टीप्पणीयोँ का बहुत बहुत आभार !

Satish Saxena said...

अच्छी मनोरंजक जानकारी !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सतीश जी आपकी टीप्पणी का शुक्रिया
- लावण्या

Arvind Mishra said...

हैलोवीन त्योहार पर जानकारी भरा आलेख