Friday, February 25, 2011

अमर युगल पात्र – भाग - २ : कुरु वंश का प्रारंभ :

अमर युगल पात्र – संवरण-तपती :

आकाश में सर्वश्रेष्ठ ज्योति भगवान सूर्य हैं। उनकी प्रभा स्वर्ग तक व्याप्त है।
उन्हीं सूर्यदेव की पुत्री का नाम था ‘तपती’।
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वह भी सूर्य के समान ज्योति से परिपूर्ण थी। अपनी तपस्या के कारण वह तीनों लोकों में तपती के नाम से पहचानी जाती थी। तपती सावित्री की छोटी बहन थी। तपती के जैसी सुंदर, सुशील कन्या, असुर, नाग, यक्ष, गंधर्व किसी में भी नहीं थी। उसके योग्य पुरुष पति ढूँढना , सूर्यदेव को भी भारी पड़ रहा था। सो वे हमेशा चिंतित रहते थे कि अब ऐसी रूपवती कन्या का विवाह करें भी तो किससे करें?
धरती पर , पुरुवंश में , राजा ऋक्ष के पुत्र ‘संवरण’ गवान सूर्य के बड़े भक्त थे। वे बड़े ही बलवान थे। वे प्रतिदिन सूर्योदय के समय अर्ध्य, पाद्य, पुष्प, उपहार, सुगंध से , बड़े पवित्र मन से, सूर्य देवता की पूजा किया करते थे। नियम, उपवास तथा तपस्या से सूर्यदेव को संतुष्ट करते और बिना अहंकार के पूजा करते।
धीरे-धीरे सूर्यदेवता के मन में यह बात आने लगी कि , यही राजपुरुष मेरी पुत्री ‘तपती’ के योग्य पति हैं।
एक दिन की बात है–
संवरण अपना उम्‍दा घोड़ा लेकर जंगल की तराइयों में शिकार खेलने निकल पड़े। बहुत देर तक घुड़सवारी करने पर उनका घोड़ा भूख, प्यास के कारण, वहीं जमीन पर गिरकर मर गया। अचानक उनकी दृष्टि , निर्जन वन में घूमती , एक अकेली कन्या पर पड़ी।
एकटक वे उसकी ओर निहारने लगे। उन्हें ऐसा लगा मानो सूर्य की प्रभा ही पृथ्वी पर विचरण कर रही हो।
उनके मन में विचार आया,
‘‘ओहो। इस युवती कन्या का स्वरूप दैवी है। ऐसा रूप मैंने नहीं देखा।’’
राजा की आँखें और मन कन्या में गड़ गए। वे सारी सुधबुध भूल गए। हिलना-डुलना भी भूल गए। जब वह कन्या एक वृक्ष के पीछे ओझल हुई तब उन्हें फिर चेतना आई। उन्होंने मन-ही-मन निश्चय किया कि ब्रह्माजी ने त्रिलोक के सौंदर्य को एकत्र करके इस मूर्ति को बनाया है।
उन्होंने उस कन्‍या के पीछे जाकर कहा,
‘‘हे त्रिलोक सुंदरि। तुम किसकी पुत्री हो? इस निर्जन वन प्रांत में अकेले क्यों भ्रमण कर रही हो? तुम्हारी अनुपम काँति से, ये स्‍वर्णाभूषण और भी ज्यादा देदीप्यमान हो रहे हैं। तुम्हारे केशों में गूँथे लाल कमल की सुरभि से वातावरण सुगं‌धित हो उठा है। तुम अवश्य कोई अप्सरा या देवी हो।
कहो तुम कौन हो? मैं तुम पर मेरा मन हार चुका हूँ। मैं , तुम्हारे प्रेम-पाश में बंध गया हूँ। कृपया , मेरा प्रणय-प्रस्ताव स्वीकार करो।’’

वह कन्या सूर्यकुमारी ‘तपती’ थीं। वह कुछ बोली ही नहीं और बिजली कड़क उठे उसी तरह तत्क्षण अंतर्धान हो गई।
अब ‘संवरण’ अत्यंत व्याकुल हो गए और असफल रह जाने पर विलाप करते-करते वे बेहोश हो गए। जब ‘तपती’ ने व्योम से देखा कि राजा निश्चेष्ट हैं तब वह दयावश फिर प्रकट हुई और मीठी वाणी (बोलकर) से कहने लगी,
‘‘राजन् उठिए। आप तो सत्पुरुष हैं, फिर इस तरह दयनीय स्थिति में क्यों जमीन पर लोट रहे हैं ?’’
तपती की अमृतमयी वाणी सुनकर संवरण की चेतना लौट आई। उन्होंने बड़े अनुनय से कहा,
‘‘अब मेरे प्राण तुम्हारे हाथों में हैं। मैं इस क्षण के पश्चात् तुम्‍हारे बगैर जी नहीं सकता। हे सुंदरी! तुम मेरी इस अवस्था से व्यथित होकर यहाँ आई हो। अब मुझे छोड़कर कभी मत जाना। मुझ पर दया करो और मेरे साथ विवाह कर मेरा स्वीकार करो।’’

तपती ने कहा,
‘‘मेरे पिता जीवित हैं। आप उन्हीं से मेरे बारे में पूछें, यही योग्य है। आप जैसे धर्मज्ञ तथा विश्वविदित पुरुवंशीय सम्राट को पति रूप में पाने से मुझे कोई आपत्ति नहीं है। मैं भगवान् सूर्य की कन्या हूँ। विश्ववन्ध्य ‘सावित्री देवी’ की छोटी बहन हूँ।’’
इतना कहकर तपती आकाशमार्ग से अंतर्धान हो गई। और संवरण फिर मूर्छित हो गए।

उसी बीच राजा संवरण के बहुत सारे सैनिक उन्हें ढूँढते-ढ़ूँढते वहीं आ पहुँचे। उन्‍होंने राजा को फिर जाग्रत किया। राजा ने पूरे सैन्य को लौटा दिया। और वे स्वयं अपने कुलगुरु वशिष्ठजी को याद करके मन को पवित्र करके एकाग्रता के साथ सूर्य देव की उपासना करने में जुट गए।
ठीक बारह दिनों के पश्‍चात् महर्षि वशिष्‍ठ वहाँ पधारे। उन्होंने संवरण को आश्वासन दिया, ढाँढस बँधाया और फिर सूर्यदेव के सम्मुख जाकर अपना परिचय दिया। प्रणामपूर्वक उन्होंने कहा कि,

" आपकी पुत्री यशस्विनी तपती के लिए , मैं , मेरे राजा संवरण को पति होने का सौभाग्य चाहता हूँ। हमारी प्रार्थना स्वीकारिए।’’


सूर्य देव ने प्रार्थना सुन ली और गुरु वशिष्ठ के साथ अपनी सर्वांग सुंदरी कन्या को भेज दिया।
गुरु वशिष्ठ के साथ आती हुई तपती को देखकर राजा संवरण अपने आनंद का संवरण न कर सके। इस प्रकार सूर्य की अटल आराधना तथा अपने गुरु की शक्ति के प्रभाव से , राजा संवरण ने , तपती जैसी नारी रत्न को प्राप्त किया।
विधिपूर्वक उनका पाणिग्रहण संपन्न हुआ और कुछ काल तक उसी शैल शिखर पर राजा ने विहार किया। बारहवर्ष पर्यंत वे वहीं रहे। राजकाज मंत्रियों के द्वारा चलने लगा। तब इंद्र देव ने जो वर्षा ऋतु के स्वामी हैं, उनके राज्य में पानी बरसाना बंद कर दिया। सर्वत्र सूखा-अकाल पड़ गया। लोग मरने लगे। इतना कि ओस तक न पड़ी। प्रजा मर्यादाहीन होकर एक दूसरे को लूटने लगी। तब वशिष्ठ मुनि ने अपनी तपस्या के प्रभाव से
वर्षा करवाई। तपती-संवरण प्रजा पालन हेतु अपनी राजधानी लौटे। फिर से पैदावार शुरू हो गई। राज दंपत्ति ने सहस्रों वर्षों तक सुख भोगा।
इसी तपती के गर्भ से राजा ‘कुरु’ का जन्म हुआ और इसी से कुरु वंश का प्रारंभ हुआ।
- लावण्‍या शाह
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Thursday, February 10, 2011

" आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगें "


Pt. Narendra Sharma ji:
Some people come in this world only to impart.

No words are enough to describe what I received from this literary giant.
My first album 'Diwali Diwali' was written by Panditji.
My pranams!
.

सुप्रसिध्ध निर्माता श्री बी .आर . चोप्रा जी व रवि चोप्रा जी ने
हमारे परिवार के लिए ,
यह चित्र श्रध्धांजलि


स्वरूप , ११ फरवरी के बाद भेजा था.......
११ फरवरी की रात मेरे जीवन की सबसे कठिन रात्रि थी - काल रात्रि थी ! जब् साक्षात महाकाल आकर
मेरे पापा जी की आत्मा को , वैकुण्ठ धाम लिवा ले गये ...
उस रात , पडौस के एक घर मे देवी माँ का जगराता था और रात भर भजन धुन सुनाई देती रही ..
मेरी उनींदी आँखों से न जाने कितनी गंगा जमुना बह चुकीं थीं ...अम्मा को सहारा देती हुईं मैं , अपने आपको
अनाथ निराधार और असहाय महसूस कर रही थी ..और सूर्य किरणें प्राची से निकल रहीं थीं जब् मैंने यह समझ लिया
कि हमारे परिवार के ' ज्योति कलश " मेरे पापा जी अब फिर कभी ; लावणी या लावण्या कह कर कभी नहीं
पुकारेंगें ......
[nana.jpg]
- लावण्या

सुश्री शुब्बा लक्ष्मी जी ~~ भारत कोकिला


कहतीं हैं ....




Here is what She & her Husband sent as their MEMORY / TRIBUTE after my father's demise in 1989 when the TV series MAHABHARAT was telecast & he was involved in that proces


SAVANT : by
T.Sadashivam
M.S. Subbulaxmi
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The name Pandit Narendra Sharma is dear to us for nearly half a century. When a few years ago, someone suggested that Smt. Subbulaxmi should sing the Hindi renderings of the Tamil song of the Maha Kavi Subramanyam Bharti, we , spontaneously thought of Pandit Narendra Sharma to translate a few songs of poet Bharti into Hindi.

During the production of my " Meera " in which Smt. Subbulaxmi was featured as Bhakta Meera, Shri Narendra Sharma's association was of immense help to us. While we admired him as a great poet and a " Savant " in Hindi Literature we admired him as he was just simple and lovable.
His fragile image with a beauty and friendly smile present all the time on his face could never be forgotten.

कवियों मे सौम्य संत कवि श्री सौमित्र पन्त पन्त जी दादा जी पापा जी को विवाह के अवसर पर साथ मंडप मे लिवा ले जा रहे हैं


श्री सुमित्रा नँदन पँत ने लिखा है --
" वह ( नरेन्द्र ) क्रान्तिकारियोँ की वर्दी पहन कर एक दो वर्ष के लिए शायद देवली कैँप मे भी नजरबँद रहा, वहाँ के कठोर अनुशासन की पाषाण -शिला से उसके कवि के भीतर "कामिनी " नामक खँड - काव्य का मर्म मधुर प्रणय स्त्रोत फूटा तथा उसने "मिट्टी और फूल " शीर्षक अपने काव्यसँग्रह की रचना की."बैरक " से कविता मे जेल मे रहते हुए भी कवि का प्रकृति के प्रति व्यक्त आकर्षण द्रष्टव्य है.
कवि का " साँझ " का यह चित्र , ग्राम - प्राँत को कितनी शांति प्रदान करता है --
" बछडे सा बिछुडा था दिन भर जो ग्राम -प्राँत,
श्याम धेनु सँध्या के आते ही हुआ शाँत "
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' माता भूमि पुत्रोहँ पृथिव्याँ ' राष्ट्रीय चेतना की सबसे बडी कसौटी है. धरती माता सबसे महान होती है. स्वर्ग से भी ! इसीलिये कहा गया है - " जननी जन्मभूमिस्च स्वर्गादपि गरीयसी " -- कवि " कामिनी " कविता मे इसी धरती माता के लिए आशीर्वाद माँगता है.
" धरित्री पुत्री तुम्हारी हे अमित आलोक,
जन्मदा मेरी वही है, स्वर्ण गर्भा कोख !"
कवि की "सुवीरा " काव्य सँग्रह मे ऐसे अनेक प्रसँग आये हैँ जहाँ भारत के उद्दाम वर्णन मे देशप्रेम मुखर हुआ है एक उदाहरण प्रस्तुत है -
" धर्म भूमि यह, कर्मभूमि यह, ज्योतिर्मय की मर्मभूमि यह,चार पदार्ठोँ से परिपूरित , धरती कँचन थाल है "
नील लहरोँ के पार लगी है चीन देश मे आग, जाग रे हिन्दुस्तानी जाग
उन दिनोँ बहुत लोकप्रिय हुई थी.
वही कवि अपने १९६० मे प्रकाशित "द्रौपदी:" खँडकाव्य की भूमिका मे स्वाकार करता है कि "राष्ट्रीय चेतना के निर्माण मे पुराण कथाओँ का बडा हाथ होता है. भारतीय जन मानस पर इनका गहरा प्रभाव है. सुधार, प्रगति या आधुनिकता के नाम पर अचेतन जनमानस और पुराण कथाओँ से आज का काव्य अछूता , असँपृक्त रहे , यह उचित नहीँ : "
" विश्व को वामन पगोँ से नापने की कामना है "
कवि के लिये गाँधी जी राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक रहे हैँ अत: उनके काव्य मे गाँधी दर्शन अथवा गाँधी प्रशस्ति प्रचुर मात्रा मे मिलती है. " रक्त -छँदन " की सभी रचनाएँ गाँधी जी के बलिदान से सँबँध हैँ किन्तु अन्य बलिगानियोँ की कवि ने उपेक्षा नहीँ की है. ग्राम जहाँगीरपुर से प्रयाग , काशी होता हुआ कवि बम्बई के सागर तट पर आ बसता है, पर, कृषि प्रधान गाँव की धरती से उसका नाता अटूट बना रहता है. गाँव की धरती का ये शब्द चित्र देखिये -
" पक रही फसल, लद रहे चना से बूट पडी है हरी मटर "
डा. हरिवँशराय बच्चन जी, श्री सुमित्रा नँदन पँत जी व श्री नरेन्द्र शर्मा
( इलाहाबाद मेँ ली गई एक पुरानी श्याम / श्वेत छवि
)

MS Subbalaxmiji -- Bharat Kokila
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MS Subbalaxmiji , made MEERA - a Bilingual Film -- In the HINDI version, all the songs werre written
by my Late Father Pt. Narendra Sharma. Who also visited her during the Production of MEERA

फिल्म : मीरा : स्वर : सुब्बालक्षमी जी शब्द : पण्डित नरेंद्र शर्मा
http://www.youtube.com/watch?v=QH3YvwL_B64&feature=related
MS Subbulaxmiji sang the "Mangal - Geetam " when my mother Smt. Susheela Narendra Sharma entered as a newly married bride and Sri Amrutlal Nagarji's wife Pratibhaji made Susheela stand on huge brass platter, filled with Kumkum filled water and she stepped like a ' Laxmi ' entering a home.
Suraiyaji , the famous songstress also sang songs to welcome the Bride !

मन मोर हुआ मतवाला ये किसने जादू डाला : फिल्म अफसर : शब्द प्. नरेंद्र शर्मा स्वर : सुरैया
http://www.youtube.com/watch?v=o1lU_gqF3fs


Other Guests in Baraat were famous Cine - stars like Sri Ashok Kumar, Dilip Kumar, music director Sri Anil Biswas, Bansuree vadak Sri Panna Lal Ghosh, director brothers Sri Chetanananda & Vijay Anand ji , The famous Chhayawadi poet Sri Sumitra Nandan Pantji , Sri Ramananda Sagar ji , Urdu poet Safdar " Aah " sahab amd many other from Bombay Talkies and Hindi literrarry & Film circle.
Art fraternity, also was represented in large number as my mother Susheela was a Fine Arts graduate from Haldenker's Institute .
Their wedding card had an Easel shaped like a Lotus Leaf & a PEN was inserted in the middle in form of a brush !


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Hope you enjoy this page, sent from my Memory album !
with warm regards to all,
- Lavanya
श्री केदारनाथ अग्रवाल जी ने पापा जी के लिए लिखा है जो पापाजी पर उनके मित्रों के लिखे संस्मरण रूपी पुस्तक " शेष - अशेष " में है I
शेष - अशेष " की सिर्फ कुछ प्रतियां छापीं गयीं थीं

मेरी बड़ी बहन स्व. वासवी बकुल मोदी ने ,
अथक परिश्रम से , हस्त - शिल्प की वस्तुएं तैयार कर कर के,
पैसा इकट्ठा किया और
संस्मरण रूपी पुस्तक
को
छपवाया था ...
अब तो वासवी के गये भी ६, ७ साल हो गये ! समय तेजी से बीत जाता है -
एकाध बार तो कोइ बदमाश पब्लिशर , उसका एडवांस , लेकर चम्पत भी हो गया था ! :(
पर वासवी ने हीम्मत न हारी और पू. पा जी के असंख्य मित्रों , परिजनों को पत्र लिखकर, सारे संस्मरण मंगवाए थे !
दिलीप कुमार सा'ब ने हम दोनों को , अपने आवास पर बुलवाकर , स्वयं बोलते हुए अपनी यादें , लिखवाईं थीं ! जिसे मैंने मेरे ब्लॉग पे रखा है -- शायद देखा हो ...
सुश्री दिलीप कुमार उर्फ युसुफ खाँ....
Link :
1 ) http://www.lavanyashah.com/2007/06/blog-post_2792.html
2 ) http://www.lavanyashah.com/2007/06/blog-post_6575.html
अब तो वासवी के गये भी ६, ७ साल हो गये ! समय तेजी से बीत जाता है ...

( Sushree Lata Mangeshker garlanding
Pt. Narendra Sharma )
स्व. पँडित नरेन्द्र शर्मा

प्रेषक : लावण्या
भारत रत्न स्वर साम्राग्नी सुश्री लता मंगेशकर जी ने पापा जी के लिए लिखा है
http://www.abhivyakti-hindi.org/sansmaran/2001/papa.htm

केदारनाथ जी ने शमशेर जी व पापाजी की घनिष्ठता पर ये लिखा है --

" एक खिलंदरा जादूगर "

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" हम दोनों के एक आत्मीय मित्र शमशेर बहादुर सिंह रहे -
वह भी सहपाठी थे और उसी हॉस्टल में रहते थे I
वह तो नरेंद्र जी की कवितायेँ सुनते ही ऐसे भाव - विभोर हो जाते कि
कुछ भी सुध - बुध न रहती और कविता की गूँज में ही डूबे रहते !
वह चित्र भी बनाते थे I
नरेंद्र का इतना प्रभाव उनके मन पर पडा कि वह जो चित्र बनाते ,
नरेंद्र की आकृति का होता हम लोग खूब हँसते I
यह भ्रम काफी दिनों तक चला बहुत दिनों बाद बंद हुआ --
नरेंद्र की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी I
वह अपनी परीक्शावाली फीस जमा न कर पा रहे थे चिंतित थे
शमशेर साहब को पता चला तो नरेंद्र की फीस जमा कर आये और अपनी फीस जमा न कर सके !
वही नहीं , बिना बताये, बनारस चले गये !
इससे स्पष्ट हो जाता है कि,
नरेंद्र की तबकी प्रेम कवितायेँ कितनी प्रिय और प्रभावशाली होतीं थीं I
वैसे मैंने नरेंद्र को कवि - सम्मेलनों में जाते और कविता पाठ करते कभी देखा नहीं -
घरों की , मित्रों की गोष्ठियों में वह गये तो खूब तन्मय होकर
सबको रस - विभोर कर देते थे इलाहाबाद की हिन्दी प्रेमी जनता में वे सम्माननीय
कवि, मान जाते थे - सरस्वती में भी छपते थे " रूपाभ " में भी छपते थे
" रूपाभ " पंतजी ने निकाला था --
प्रयाग के दीक्षित प्रेस से छपता था
संपादक , पंतजी थे - नरेंद्र और शमशेर भी सम्पादकीय मंडलों में थे -
ऐसा कोइ न मिलेगा , जिसने नरेंद्र की कविता पढी या सुनी हो और उन्हें भूल गया हो ! "
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एक हमारा साथी था, जो चला गया" ...( श्री अमृतलाल नागर ) - भाग -- १

http://antarman-antarman.blogspot.com/2007/05/blog-post_10.html
जिसे मेरे आदरणीय चाचा जी श्री अमृतलाल नागर जी ने लिखा है जिसे आप यहां पढ़ पायेंगें
http://antarman-antarman.blogspot.com/2007/05/blog-post_1748.html
क्यूँ प्याला छलकता है , क्यूँ दीपक जलता है

दोनों के मन में कहीं , अनहोनी विकलता है
पत्थर में फूल खिला , दिल को एक ख्वाब मिला
क्यूँ टूट गये दोनों , इस का न जवाब मिला

दिल नींद से उठ -उठ कर , क्यूँ आंखें मलता है
हैं राख की रेखाएं , लिखती हैं चिंगारी
हैं कहते मौत जिसे , जीने की तैय्यारी

जीवन फिर भी जीवन , जीने को मचलता है
क्यूँ प्याला छलकता है , क्यूँ दीपक जलता है
( listen to the song sung by Manna Dey )
http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=aDU4U51HLg0
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