लेकिन भीष्म पितामह की आत्मा से अगर मुझे किसीने मिलाया तो वे पँडित नरेन्द्र शर्मा ही थे !
उनके पास मैँ जितनी बार बैठा, कुछ ज्ञान अर्जित करके ही उठा । वैसे तो इत्तफाकन मैँने "महाभारत " बचपन से ही पढी है, जिसकी वजह से मुझे "महाभारत " के सभी किरदारोँ के बारे मेँ काफी कुछ पता है , लेकिन जब पँडितजी बोलते, तो मुझे पता चलता कि , " महाभारत " कितना विशाल है, उसमेँ जानजे जैसा कितना कुछ है !
कई बार वे कुछ गूढ बातेँ बोल जाते कि मैँ उसे समझना छोडकर उनका मुँह ताकता रह जाता और मेरे दिमाग मेँ उस वक्त यही बात टेप की तरह चलती रहती कि कितना ज्ञान है इनमेँ ! जैसे एक बार वे मुझे कालिया मर्दन का तत्व समझा रहे थे और दस मिनट तक मैँ उनका मुँह ताकता रह गया बातेँ इतनी गूढ थीँ कि मेरे तुच्छ दिमाग को क्या समझ आतीँ !
मैँ पूरी तरह आत्म विभोर होकर उनका दिया ज्ञानग्रहण करने की कोशिश करता रहा भले वह बात पूरी तरह मेरे भेजे मेँ गयी नहीँ लेकिन उस दिन मुझे अहसास हुआ की ज्ञान की कोई सीमा नहीँ होती, उस वक्त मुझे पता चला कि पढने और समझने मेँ क्या फर्क है !
भीष्म प्रतिज्ञा : लिंक :
http://www.youtube.com/watch?v=H6dpP0OdlBE&feature=related
और गीत : दिन पर दिन बीत गए :
http://www.youtube.com/watch?v=4gY_3vNZigA&feature=related
" उनकी भविष्यवाणी अक्षरश:सत्य हुई उन्होँने कहा था कि " .and now you wait for a terrific boost in coming weeks " ......" और सचमुच कुछ ही हफ्तोँ मेँ भीष्म पितामह का किरदार पूरे भारत वर्ष मेँ छा गया - यह सारा श्रेय मैँ उन्हीँ को देता हूँ जिन्होँने मुझे भीष्म पितामह की आत्मा के दर्शन करवाये इस तरह से महाभारत बनती रही और हर कदम पर अपने मार्गदर्शन लेते रहे - हर कलाकार एक बार उनसे मिलकर, अपना किरदार जान लेना, समझ लेना, जरुरी समझता था।
अक्सर लोग उनके घर भी पहुँच जाते थे, पता नहीँ ये सँयोग था कि मैँ चाहकर भी उनके घर नहीँ जा पाया ! एक बार जब आखिरकार उनके घर पहुँचा भी तो उनसे मिल नहीँ पाया ! उनकी तबियत उस दिन कुछ ठीक नहीँ थी उनकी धर्मपत्नी मुझसे बडी आत्मीयता से मिलीँ और मुझसे कहा,
" बेटे , उनकी तबियत कुछ खराब थी इस्लिये अभी लेटे हैँ, कहो तो उन्हेँ उठा दूँ ? " मैँने कहा, ;
" नहीँ , मैँ तो सिर्फ मिठाई देने आया हूँ "
मैँने नई मारुति गाडी ली थी और उसीकी मिठाई देने गया था पँडित जी को !
उन्हेँ ये जानकर बहुत खुशी हुई वे बोलीँ,
" पँडितजी अक्सर तुन्हेँ याद करते हैँ तुम्हेँ बहुत चाहते हैँ वो ! "
जब मुझे बाहर छोडने आयीँ तो बोलीँ,
" तुम और भी तरक्की करो और अगली बार इससे भी बडी गाडी मेँ आओ ! " लेकिन विधाता का खेल कि मैँ पँडित जी को उनके घर पर कभी नहीँ मिल पाया ! :-(
अगली बार जब उनके घर पर गया तब मिला उनके पार्थिव शरीर से !
मुझे जब गुफी ने उनके निधन की खबर दी तो मैँ चकरा गया !
यह कैसे हो गया ? ऐसा लगा मानोँ सर पर से पिता का साया चला गया हो !
कुछ पल फोन पकडकर सुन्न यूँ ही बैठा रहा ! ऐसा लगा, जैसे हम अनाथ हो गये हैँ ! महाभारत से जुडे सभी के मन मेँ पहला प्रश्न यही आया कि अब " महाभारत " कैसे बनेगी ?
उनके घरवालोँ के लिये यह बहुत बडा नुकसान है ही पर महाभारत से जुडे सभी के साथ ऐसा हुआ मानोँ कोई रेगिस्तान मेँ अकेला छोडकर चला गया जहाँ मीलोँ कहीँ पानी ही न हो ! हम सबके सर से एक बुजुर्ग का हाथ उठ गया था - वह हाथ जो हर कदम पर सहारा देने को तत्पर था, एक ज्ञानी पुरुष जो ज्ञान बाँटने के लिये तैयार खडा रहता था वही आज हमारे सामने से अचानक चला गया था, हमेँ अज्ञान के मरुस्थल मेँ अकेला छोडकर !
मैँ जब उनके घर पहुँचा तब सारा समाँ शोक मेँ डूबा हुआ था - हर कोने मेँ लोग स्तब्ध खडे थे - मुझे उनकी बेटी उनके पार्थिव शरीर की ओर ले गई मैँने वहाँ उनके अँतिम दर्शन किये - चरण छुए - उनकी बेटीने कहा,
" आपको बहुत याद करते थे , तीन दिनोँ से आपके बारे मेँ ही पूछ रहे थे ! "
उनकी पत्नी से मिलने भीतर घर मेँ गया तो आँसू भरी आँखोँ से बोलीँ,
" वे कल से तुम्हारे बारे मेँ परेशान थे कि मुकेश कैसा है ? वो तो मैसुर गया होगा फिर मैँने ही बताया कि आप ठीक हो और परसोँ नई गाडी की मिठाई देने आप आये थे "
मुझे "टीपू सुल्तान " की शूटीँग के लिये मैसूर जाना था !
भगवान कृपासे वो टल गया था - और मैँ, वहाँ शूटीँग सेट पर लगी भयानक आग के हादसे से बच गया था !
- जब से उन्होँने उस भीषण आग की खबर पढी थी वे मेरी चिँता मेँ पड गये थे - उनकी बेटीने बताया कि ३ दिनोँ से उनकी तबियत ठीक न थी फिर भी वे मेरे बारे मेँ चिँतित थे !
मेरी आँखोँ मेँ आँसू उमड आये - मेरे मन मेँ यह टीस और भी जोर से उभरी कि तीन दिन पहले उनके घर गया था फिर भी आखिरी पलोँ मेँ उनसे न मिल पाया ! काश, वे जागे होते तो उनसे मिल पाता !
मुझे पता है, ज़िँदगी भर मुझे इस बात का अफसोस रहेगा !
प्रभु के खेल निराले हैँ जिस आत्मीयता और तन्मयता से पँडितजी "महाभारत " के प्रोजेक्ट से जुडे हुए थे और कमाल का योगदान था उसे के पूर्ण होने तक वे नहीँ रहे ! इसके पहले भी सभी जानते हैँ उन्होँने कई प्रोजेक्टोँ को उन्होँने बुलँदियोँ ता पहुँचाया था मैँ समझता हूँ कि महाभारत जैसे विशाल ग्रँथ को " गीता " जैसे गूढ ज्ञान को साकार रुप देने के मिशन को जिसमेँ वे पूरी तन्मयता से जुडे थे। -
उनके बिछुडने का जितना अफसोस हमेँ है, किसी को न होगा ! जाते जाते भी वे इतना कुछ बता गये हैँ महाभारत लेखन मँडली को कि उस लौ को अँत तक ले जाने मेँ वे सफल ही होँगेँ पँडितजी की दिव्यात्मा वैकुँठ से जब महाभारत के पूरे स्वरुप को देखेगी तो उन्हेँ पूर्ण सँतोष ही होगा ।
आखिर मेँ यही कहना चाहूँगा कि जिस तरह से भीष्म को "इच्छा मृत्यु " का वरदान मिला था, वैसे ही काश, हमारे पँडितजी को भी इच्छामृत्यु का वरदान मिला होता तो वे इस तरह द्वापर युग मे महाभारत को कलियुग मेँ पूरा किये बिना न जाते !
मैँ उनकी दीव्यात्मा को कोटि कोटि प्रणाम करता हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि उनकी आत्मा को शाँति प्रदान करे *
( प्रस्तुति : - लावण्या " शेष ~ अशेष से साभार )