क्रिसमस की अग्रिम शुभकामनाएँ – लावण्या शाह
अमरीकी जीवन शैली की ये एक ख़ास बात है यहाँ हर तरह के बदलाव के साथ, जन जीवन यूँ ही, अबाध गति से, व्यस्तता से, जारी रहता है। काम चलता ही रहता है। विषम या अनुकूल, जैसी भी परिस्थितियाँ हों, उनसे जूझने के उपाय फ़ौरन लागू किए जाते हैं और जन – जीवन को सामान्य बनाने के उपाय, शीघ्र लागू करना हरेक प्रांत की नगर निगम सेवा का जिम्मा है। यातायात हर हालत में, जारी रहता है क्यूंकि, सभी को काम पे जो जाना होता है ! जहाँ बिल भरने हों वहां विपरीत परिस्थिति हो, फ़िर रोना कैसा ? रुकना कैसा ? सरकार द्वारा , जनता से लिया गया ” कर ” माने ” टैक्स” , जनता की सुविधा के लिए इस्तेमाल होता हुआ, आप अमरीका में हर जगह पर देख सकते हैं और यही बात शीत ऋतु में भी दिख पडती है । जब बर्फ गिरती है तब लोग अपने घरों के बाहर एकत्रित हुई स्नो को स्नो शवल से दूर करते हैं । ‘ बर्फ हटाना ‘ यह काम बहुत कड़े परिश्रम से ही संभव हो पाता है । चूंकि बर्फ का वजन अधिक होता है और जिन्हें कमजोर दिल की आरोग्य की समस्या हो उनके लिए ये काम खतरनाक भी साबित होता है । इस बात की सूचना टेलीविजन द्वारा प्रसारित की जाती है।
अमेरीकी नगर निगम, ट्रैक्टर नुमा मशीन का इस्तेमाल करती है जो रास्तों पर से स्नो को हटाती हैं और रास्तों पर नमक भी छिड़का जाता है जिससे बर्फ शीघ्र पिघल जाती है। रास्ते साफ़ किए जाते हैं और हवाई जहाजों को भी स्नो रहित किया जाता है। मशीन से केमिकल स्प्रे किया जाता है जिससे बर्फ पिघल जाती है और इस प्रक्रिया को, ” di -icing ” कहते हैं। जब कंट्रोल रूम से,पायलट को उड़ान भरने की स्वीकृति मिल जाती है उसके बाद ही उड़ान के लिए यात्री विमान में सवारी के लिए आमंत्रित किए जाते हैं अन्यथा यात्रीगण प्रतीक्षा कक्ष में इंतज़ार करते हैं।
अमेरीका में आर्थिक मंदी के रहते हुए भी क्रिसमस के सबसे बड़े त्यौहार के आने से असंख्य नागरिक एक हिस्से से दुसरे तक यात्रा करेंगे और अपने-अपने परिवार के लोगों के साथ मिलकर छुट्टी बिताना पसंद करेंगे। स्नो गिरे या बरखा,गरमी हो या लू चले, काम काज चलता ही रहता है ना ! शायद यही आज के अत्यन्त व्यस्त जीवन शैली की देन है समाज को।
अब क्या भारत या क्या विदेश? सभी व्यस्त हैं! अपने अपने कार्यों में! दिसम्बर माह सन २०११ का आख़िरी महीना आने के साथ काल की तुलना नदी और समुद्र से समुद्र बाहरी काल, नदी भीतरी काल नदी हमारे भीतर है समुद्र हमारे चारों ओर रहस्यवादी अनुभूति जिस लोक को छूती है उसमें काल नहीं है वह कालातीत है इलियट ने कहा था, ” काल से ही काल पर विजय होती है ” और बाबा श्री तुलसीदास का दोहा, कहता है,
” पल निमेष परमानु जुग बरस कलप सर चँड,
भजसि न मन तेहि राम कहं काल जासु कोदँड।
दिसम्बर के मध्य में आते ही क्रिसमस से जुडी शख्शियत ‘‘संता क्लोज़’’ का भी इंतज़ार हर बच्चे को रहता है ।
ये हमारे ‘‘सान्ता क्लोज़’’ हैं। संता केवल एक धर्म विशेष के नहीं बल्कि पूरी मानवता के जीवन्त प्रतीक हैं। संता की सफ़ेद बर्फ के बीच में सफ़ेद दाढी की शोभा ही अलग है। आप उन्हें किसी भी नाम से पुकार लीजिये ‘‘संत निकोलस’’, क्रिस क्रींगल, क्रिसमस पिता ऐसे कई नाम से ये पहचाने जाते हैं और दुनिया भर के बच्चे इनका बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। बच्चों को बड़ी उम्म्मीदें लगीं होतीं हैं सान्ता क्लोज़ जी से। चूंकि, वे तोहफे लेकर आते हैं। सान्ता की मदद करने के लिए एक पूरी टीम एल्फ की भी तैयार रहती है। मिसिज क्लोज़ बच्चों को देने के लिए कुकी, केक, पाई, बिस्कुट, केंडी भी तैयार करतीं हैं। साल भर सान्ता क्लोज़ और मिसिज क्लोज़ बच्चों के लिए, खिलौने तैयार करवाते हैं और जादूई थैले में उन सारे गिफ्ट को भर कर ‘‘नॉर्थ पोल’’की बर्फ से घिरी गलियों से सान्ता क्लोज़ आवाज़ लगाते हैं अपने प्यारे और वफादार ‘स्ले’ खींचनेवाले पालतू रेंडीयरों को जिन के नाम हैं, ‘‘रुडोल्फ़, डेशर, डांसर, प्रेन्सर, विक्सन, डेंडर, ब्लिटज़न, क्युपिड और कोमेट’’। सान्ता क्लोज़ ख़ास तौर से क्रिसमस के त्यौहार में बच्चों को खिलौने और तोहफे बांटने ही तो उत्तरी ध्रुव पर आते हैं बाकि का समय वे लेप लैन्ड, फीनलैन्ड में रहते हैं। बहुत बरसों पहले की बात है जब साँता क्लोज और उनके साथी और मददगार एल्फों की टोली ने जादू की झिलमिलाती धूल, रेंडीयरों पर डाली थी उसी के कारण रेंडीयरों को उडना आ गया !! सिर्फ क्रिसमस की रात के लिये ही इस मैजिक डस्ट का उपयोग होता है और सान्ता क्लोज़ अपना सफर शुरू करे उसके बस कुछ लम्होँ पहले मैजिक डस्ट छिड़क कर, शाम को यात्रा का आरम्भ किया जाता है। और बस फुर्र से रेंडीयरों को उडना आ जाता है और वे क्रिसमस लाईट की स्पीड से उड़ते हैं। बहुत तेज।
संत निक के बच्चे उनका इन्तजार जो कर रहे होते हैं। हर बच्चा, दूध का गिलास और ३-४ बिस्कुट सान्ता के लिए घर के एक कमरे में रख देता है । जब बच्चे गहरी नींद में सो जाते हैं और परियां उन्हें परियों के देश में ले चलती हैं, उसी समय सान्ता जी की रेंडीयर से उडनेवाली स्ले हर बच्चे के घर पहुँच कर तोहफा रख फिर अगले बच्चे के घर निकल लेती है । आप सान्ता का सफर यहाँ देख सकते हैं ताकि आपके घर पर वे कब तक पधारेंगें उसका सही सही अंदाज़ , आप लगा सकें।
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- क्रेब एप्पल के पेड़ पर , ” फिंच ” नामक पक्षी -
- लावण्या दीपक शाह
[ देखें ' प्रवासी दुनिया ' पे भी ]
http://www.pravasiduniya.com/christmas-ki-advance-best-wishes-lavanya-shah