इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम ..."
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
आँधी में भी जलती रही गाँधी तेरी मशाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी ..."...और
इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के
तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के "
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है
वक़्त आने पर बता देंगे तुझे ओ आसमाँ
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है "
श्री राम प्रसाद "बिस्मिल " के त्याग और बलिदान के रंग में रंगे ये अक्षर समय के दरिया से भी ना धुन्धलायेंगें !
मुगलिया सल्तन के शाही तख्तो ताज के उजड़ने कि कहानी अगर कोइ चाँद लफ्जों में बयान करे तब यही कहेगा
" उम्र-ए-दराज़ माँग के लाये थे चार दिन
लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये दो इंतज़ार में
दो आरज़ू में कट गये
कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिये
दफ़्न के लिये
दो ग़ज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में -
लगता नहीं है जी ..."
और ये बेनूरानी के सबब से ख्यालात थे हिन्दोस्तान के अंतिम मुगलिया बादशाह ,
बहादुर शाह जफर के --
गीत और गज़लों की यही तो खूबी है जो महज चाँद लफ्जों से वे हमारे जहन में उभार देते हैं
एक सदी का पूरा इतिहास !
दरिया की रवानी सी बहती गीत की तर्ज पे हम डूबते उतरते हुए सिन्धु से गंगा
और वोल्गा से नाईल पार करते हुए , अमेजोन और मिसिसिपी या तैग्रीस और होआन्ग्हो भी घूम आते हैं !
और श्री भारत व्यास और हिंदी संगीत निर्देशकों के पितामह श्री अनिल बिस्वास द्वारा रचा ये गीत भी
नदी किनारे पर सुन लें
"घबराए जब मन अनमोल,
और ह्ऱिदय हो डँवाडोल,
तब मानव तू मुख से बोल,
बुद्धम सरणम गच्छामी.....
बुद्धम सरणम गच्छामी,
धम्मम सरणम गच्छामी,
संघम सरणम गच्छामी." फिल्म थी ' अंगुलीमाल "
और संत ज्ञानेश्वर फिल्म में ये गीत था -
"ज्योत से ज्योत जगाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आए जो दीन दुखी, सबको गले से लगाते चलो "
" हरी भरी वसुंधरा पर नीला नीला ये गगन
के जिसपे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
दिशाएं देखो रंग भरी
दिशाएं देखो रंग भरी चमक रहीं उमंग भरी
ये किसने फूल फूल से किया श्रृंगार है
ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार"
फिल्म : " बूँद जो बन गयी मोती " से प्रकृति के सौन्दर्य की पूजा का गीत है और भारत व्यास जी की लेखनी राजस्थान की रंगोली परोसते हैं ऐसे उत्कृष्ट प्रणय गीत से
फिल्म थी "दुर्गादास " और गीत के शब्द हैं,
" थाणे काजळियो बणालयूं म्हारे नैणा में रमाल्यूं -२
राज पळकां में बन्द कर राखूँली
हो हो हो, राज पळकां में बन्द कर राखूँली "
और फिल्म नवरंग का ये सदाबहार गीत
"आधा है चंद्रमा रात आधी
रह न जाए तेरी मेरी बात आधी, मुलाक़ात आधी
आधा है चंद्रमा..."
और तब नयी " परिणीता "( यही शीर्षक भी था )का मनभावन रूप इन शब्दों में ढलता है
" गोरे-गोरे हाथों में मेहंदी रचा के
नयनों में कजरा डाल के
चली दुल्हनिया पिया से मिलने
छोटा सा घूँघट निकाल के -२
गोरे-गोरे हाथों ..में."
फैज़ अहमद फैज़ के लफ्जों पे गौर करें --
" ज्योत से ज्योत जगाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आए जो दीन दुखी, सबको गले से लगाते चलो "
और नूरजहाँ की आवाज़ में "कैदी " फिल्म की ये ग़ज़ल क्या खूब है,
अल्फाज़ फिर फैज़ साहब के हैं
" लौट जाती है इधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न, मग़र क्या कीजे - २
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझ से पहली सी मोहब्बत, मेरे महबूब, न माँग "
" ख़ूँरेज़ करिश्मा नाज़ सितम
ग़मज़ों की झुकावट वैसी ही
पलकों की झपक पुतली की फिरत
सूरमे की घुलावट वैसी ही" -
"हुस्ने ए जाना " प्राइवेट आल्बम से जिस गाया छाया गांगुली ने और तैयार किया मुज़फ्फर अली ने शायरी नजीर अकबराबादीसाहब के कमाल का ये नमूना क्या खूब है !
अब आगे चलें , सुनते हुए,
" मुझपे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई है
ऐ मुहब्बत तेरी दुहाई है
मुझपे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई है ."
इस ग़ज़ल .के बोल दीये थे, जां निसार अख्तर साहब ने 'यास्मीन" फिल्म में और संगीत से सजाया
सी . रामचन्द्रने और आवाज़ दी स्वर साम्राग्नी लता जी ने !
उनके साहबजादे जावेद अख्तर साहब , अपने अजीम तरीम वालीद से भी ज्यादा मशहूर हुए और कई खूबसूरत नगमे उन्होंने हिंदी सिनेमा को देते हुए आज भी वे मसरूफ हैं अपने लेखन में,
" ऐ जाते हुए लम्हों ज़रा ठहरो ज़रा ठहरो
मैं भी तो चलता हूँ ज़रा उनसे मिलता हूँ
जो एक बात दिल में है उनसे कहूं
तो चलूं तो चलूं हूं हूं हूं हूं
ऐ जाते हुए लम्हों ..."
रूप कुमार राठोड के स्वर, फिल्म बॉर्डर, संगीत अनु मल्लिक का और
" सिलसिला" का ये लोकप्रिय गीत
" देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए
दूर तक निगाहों में हैं गुल खिले हुए
ये ग़िला है आप की निगाहों में
फूल भी हों दर्मियां तो फ़ासले हुए "
जगजीत सिंह जी की आवाज़ में "साथ साथ फिल्म का ये गीत,
संगीत कुलदीप सिंह का , एक अलग सा माहौल उभारता है
" तुम को देखा तो ये ख़याल आया
ज़िंदगी धूप तुम घना साया
तुम को..."
राजा मेहेंदी अली खान साहब के इन दोनों गीतों को जब् लता जी का स्वर मिला तो मानो सोने में सुगंध मिली संगीत मदन मोहन का था और फिल्म थी " वह कौन थी ? "
" नैना बरसें, रिमझिम रिमझिम
नैना बरसें, रिमझिम रिमझिम
पिया तोरे आवन की आस
नैना बरसें, रिमझिम रिमझिम
नैना बरसें, बरसें, बरसें "
और अनपढ़ का ये गीत ,
" आप की नज़रों ने समझा, प्यार के काबिल मुझे
दिल की ऐ धड़कन ठहर जा, मिल गई मंज़िल मुझे
आप की नज़रों ने समझा .."
फिल्मों में उर्दू ग़ज़लों की बात चले और शकील बदायूनी और साहीर लुधियानवी साहब का नाम ना आये ये भी कहीं हो सकता है ? साहीर ने कितनी बढिया बात कही ,
" तू हिन्दु बनेगा ना मुसलमान बनेगा
इन्सान की औलाद है इन्सान बनगा "
संगीत एन . दता, फिल्म "धर्मपुत्र " गायक मुहम्मद रफी -
गीता दत्त का गाया पुरानी देवदास का गीत जिसे संगीत में ढाला सचिन दा ने इस भजन में ,
" आन मिलो आन मिलो श्याम सांवरे ... आन मिलो " भी साहीर का लिखा था और " वक्त " का ये रवि के संगीत से सजा सदाबहार नगमा
" ऐ मेरी ज़ोहरा-ज़बीं
तुझे मालूम नहीं
तू अभी तक है हंसीं
और मैं जवाँ
तुझपे क़ुरबान मेरी जान मेरी जान
ऐ मेरी ..."
" साधना " फिल्म का लता जी के स्वर में , ये नारी शोषण के लिए लिखा गीत
" औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा कुचला मसला, जब जी चाहा दुत्कार दिया "
और
' रेलवे प्लेटफोर्म' का गीत : मनमोहन कृष्ण और रफी के स्वर में मदन मोहन का संगीत
" बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत गाता जाए बंजारा
ले कर दिल का इकतारा
बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत ..." ये सारे गीत और गज़लें ,
साहीर साहब की अनोखी प्रतिभा के बस , नन्हे से नमूने हैं -
शकील बदायूनी की ये पाक इल्तजा फिल्म "मुगल ए आज़म " में लता जी की आवाज़ में सदीयों गूंजती रहेगी
" ऐ मेरे मुश्किल-कुशा, फ़रियाद है, फ़रियाद है
आपके होते हुए दुनिया मेरी बरबाद है
बेकस पे करम कीजिये, सर्कार-ए-मदीना
बेकस पे करम कीजिये
गर्दिश में है तक़दीर भँवर में है सफ़ीन -२
बेकस पे करम कीजिये, सर्कार-ए-मदीना
बेकस पे करम कीजिये "
और उमा देवी ( टुनटुन ) का स्वर और नौशाद का संगीत "दर्द" फिल्म में सुरैया जी की अदाकारी से सजा
" अफ़सान लिख रही हूँ (२) दिल-ए-बेक़रार का
आँखोँ में रंग भर के तेरे इंतज़ार का
अफ़साना लिख रही हूँ "
" मन तड़पत हरि दरसन को आज
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज
आ, विनती करत, हूँ, रखियो लाज, मन तड़पत..."
" बैजू बावरा " फिल्म के संगीतकार, नौशाद , शायर शकील ,और गायक रफी ने ये सिध्ध कर दिया की कला और संगीत किसी भी मुल्क , कॉम या जाति बिरादरी में बंधे नहीं रहते -
वे आजाद हैं - हवा और बादल की तरह और पूरी इंसानियत पे एक सा नेह लुटाते हैं !
आशा भोसले का स्वर और जयदेव का संगीत,
हिंदी कविता की साक्षात सरस्वती महादेवी जी के गीतों को
नॉन फिल्म गीत देकर , अमर करने का काम कर गयी है -
" मधुर मधुर मेरे दीपक जल !
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर !
सौरभ फैला विपुल धूप बन,
मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन;
दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु अणु गल !
पुलक पुलक मेरे दीपक जल ! "
डाक्टर राही मासूम रजा ने कहा जगजीत ने गाया नॉन फिल्म गीत
" हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चांद - २
अपनी रातकी छत पर कितना, तनहा होगा चांद हो ओ ओ
हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चांद ..."
और निदा फाजली का लिखा जगजीत का गाया ये भी नॉन फिल्म गीत
" ओ मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की, बिन चिठ्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये, जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है, बाहों भर संसार "
तलत का गाया गालिब का कलाम, भी नॉन फिल्म गीत
" देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाये है
मैं उसे देखूँ भला कब मुझसे देखा जाये है "
ये भी एक स्वस्थ परिपाटी की और इशारा करते हैं और हमें ये बतलाते हैं कि ,
जरुरी नहीं है के हरेक गीत सिनेमा में हो !
परंतु फिल्म से जुड़े कलाकोरों ने, ऐसे कई सुन्दर गीत और कलामों को संजोया है
जो हम श्रोताओं के लिए ये नायाब तोहफा ही तो है !
इन्टरनेट पर हिंदी फिल्म में गीत और ग़ज़ल , लिखनेवालों पर , पिछले कुछ समय में ,
स - विस्तार और काफी महत्वपूर्ण सामग्री दर्ज की गयी है -
- लावण्या