Wednesday, October 31, 2007

पतझड और शीत की लहर + ये है - हालोईन का त्योहार !

ये आलेख हिन्दी की तेज़ी से प्रसिध्ध हो रही सँपादक श्री जयप्रकाश मानस द्वारा स्थापित वेब - पत्रिका, " सृजन गाथा " से साभार " अमेरीकी पाती " स्तँभ के अँतर्गत मेरे द्वारा लिखा गया है

बडे से कद्दू को इस तरह काँट -छाँट कर घर के सामने, ड्योढी पर सजाया जाता है और उसके बीच जलती मोमबत्त्ती भी रखी जाती है
पम्पकीन माने कद्दू की इलेकट्रीक लाइट
नन्हे मुन्नोँ को इस तरह के कपडोँ से सजाया जाता है ताकि बाहर ठँड से सुरक्षा मिले और ये राजकुमार मधुमक्खी बने हुए कितने खुश हैँ ! :)
हाँ वयस्क लोग काफी डरावने या बिलकुल मनमौजी किस्म के परिधान पहनते हैँ --

http://nascarulz.tripod.com/hwpix2.html

पतझड और शीत की लहर ,
साल के अँतिम महीनो की कुदरत प्रदत्त सौगात है हम मनुष्योँ के लिये. सितम्बर माह पूरा हुआ और अक्तूबर भी भागा जा रहा है.
इस वर्ष ठँड का मौसम कहीँ ओझल हुआसा लग रहा है.
अन्यथा, यहाँ तक आते आते तो सारे पेड रँगोँ की चुनरिया ओढे धीरे धीरे
पतोँ कोजमीन पर बिछाते दीखलाई पडते.
मेरे आवास के ठीक सामने एक सुदर्शन पेड है.
पाँच, त्रिकोणाकार की पत्तीयाँ सजाये एक ही पत्ती मेँ,
लाल, कत्थई,मरुन,केसरी,पीला,हरा इतने सारे रँगोँ का सम्मिश्रण लिये,
कुदरत का करिश्मा सा लगता है वो मुझे !
फिर सारे पत्ते, तेज़ हवाओँ के साथ, टूट कर,गिरने लगते हैँ और पेड,
सिर्फ शाखोँ को सम्हाले,खडा ठिठुरने लगता है.
इसी
पतझड के साथ नवरात्र का त्योहार भी आ जाता है.
अमरीका के हर शहर मेँ भारतीय लोग, मिल जुल कर,
माँ जगदम्बा की प्रतिष्ठा करते हैँ.
मिट्टी के कलश मेँ दीप रखा जाता है, जिसके छिद्रोँ से पावन प्रकाश बाहर आता रहता है और सुहागिन की नत काया को आशिष देता है.
माता की चौकी भी सजती है. श्रध्धालु भक्त ९ दिनोँ तक उपवास भी करते हैँ तो स्त्रीयाँ औरबच्चे गरबा मेँ तल्लीनता से, दूर भारत के गुजरात के गाँवोँ मेँ गाये गरबे उसी भक्ति भाव से गाते हुए दीखलायी देते हैँ.
अभी गणेशोत्सव सँपन्न हुआ और अब,
साक्षात
माँ भवानी का आगमन हुआ है.
आरती
के बाद, प्रसाद भी बाँटा जाता है.मँदिरोँ की शोभा देखते ही बनती है. बँगाली कौम के लोग दुर्गोत्सव मेँ माँ दुर्गा के स्वरुप की स्थापना करते हैँ.
यही
तो भारतीय सनातन धर्म की रीत है जो हर जगह अपना अस्तित्व नये सिरे से, बना कर दुबारा पल्लवित हो जाती है.
अमेरीका
मेँ भी इसी ऋतु मेँ अलग किस्म के त्योहार मनाये जाते हैँ.
जिसका नाम भी बडा अजीबोगरीब है !
जी हाँ, ये है,हालोईन का त्योहार !
३१ अक्तूबर , अँतिम रात्रि को आइरीश मूल के लोग, १ नवम्बर से पहले अपने मृतक पूर्वजोँ के लियेमोमबतीयाँ जला कर, प्रार्थना किया करते थे.
उनकी मान्यता थी कि
मृतक आत्माएँ १ नवम्बर के अगली रात्रि को धरती पर लौटतीँ हैँ -
जिसकी नीँव रखी गयी थी,२०००र्षोँ से पहले !
"समहेन" केल्टीक याने आयर्लैन्डके लोगोँ के यम देवता हैँ --
सो, तैयार हुई फसल की कटाई के बाद,
विविध प्रकार के परिधानोँ मेँ सज कर,
जली हुई मोमबतीयाँ रखीँ जातीँ थीँ कि जिससे प्रेतात्मा की बाधा ना हो और दूसरे दिवस की सुबह, हर आत्मा की भलाई के लिये पूजा करके बिताई जाती थी. ७ वीँ शताब्दि के बाद औयरलैन्ड से चल कर समूचे युरोप मेँ ये प्रथा, प्रचलित हुई और जब वहीँ से प्रवासी, अमरीका भूखँड बसाने आये तो अपनी रीति रीवाज, रस्मोँ को त्योहारोँ को भी साथ लेते आये.
आज अमरीका मेँ बीभत्स, भयानक, वेश भूषा, पहन कर लोग एक दूसरे को डराते हैँ तो कई सारे मनोविनोद के लिये, तस्कर, खलासी,नाविक, नर्स,राजकुमारी, कटे सर से झूठ मूठ का रक्त बहता हो ऐसे या डरावने मुखौटे लगा कर, सुफेद, लाल, नीले पीले, हरे ऐसे नकली बाल लगा कर ,विविध रुप धर लेते हैँ और अँधेरी रात मेँ खुद डर कर मजा लेते हैँ या औरोँ को डराने के प्रयास मेँ तरकीब करते हैँ. छोटे बच्चोँ के साथ उनके माता पिता भी रहते हर घर पर दस्तक देकर बच्चे पूछते हैँ," ट्रीक ओर ट्रीट ? "
मतलब, कोई करतब देखोगे या हमेँ खुश करोगे ?
तो घर से लोग बाहर निकल कर, ",

चोकलेट, गोली, बिस्कुट इत्यादी उनकी झोली मेँ डाल देते हैँ.
खूब सारी केन्डी मिल जाती है बच्चोँ को !
कई बुरे सुभाव को लोग, बच्चोँ को परेशान भी करते हैँ
इसलिये टी.वी. पर खूब सारी,हिदायतेँ दीँ जातीँ हैँ -
- खैर ! जैसा देश, वैसे त्योहार !
अब भारतीय लोग नवरात्र के साथ साथ हेलोईन भी मना ही लेते हैँ
और द्वार पर आये बच्चोँ का मन तोडते नहीँ --
आजकल, अमरीका के हर मोल की दुकान पर या घरोँ की सामने हर घर की ड्योढी पर, केसरी रँग के कद्दू,मक्का, और खेत मेँ रखते हैँ वैसा
गुड्डा सजाया दीख जाता है.
और इस तरह परदेस मेँ रहते हुए भी,
अब भारतीय लोग नवरात्र के साथ साथ हेलोईन उत्साह से मनाते हैँ और द्वार पर आये बच्चोँ का मन तोडते नहीँ --
विश्व का सबसे विशालकाय कद्दू !!!

क्या ये बात जानते हैँ आप कि, विश्व का सबसे विशाल कद्दू,१६८९ पाउन्ड का है
जिसे " जो जुत्रास " नामके एक शख्श ने,
सितम्बर २९ , २००७ के दिन, मेसेचुसेट्स प्राँत मेँ दर्ज करवा कर,
विश्व के सबसे विशालकाय कद्दू उगानेवाले का इनाम जीत लिया.

अब चलूँ ......
..माँ की आरती का पावन अवसर है..सभी को, .आप सभी को,
"अमरीका की पाती" " जय माता दी " कहते हुए, विदा लेती है .
.फिर मिलेँगे ..
तब तक, भगवती प्रसन्न रहे !-
- स स्नेह, -- लावण्या -- Lavni :~~


यादोँ की सचित्र झलकियाँ : कलाकार श्री विजयेन्द्र 'विज' व अन्य

सबसे प्रथम चित्र मेरी अम्मा श्रीमती सुशीला नरेन्द्र शर्मा द्वारा बनाया यह तैल चित्र जो मुझे बहुत पसँद है और आज अम्मा के जाने के बाद मेरे लिये अमूल्य निधि बना सुरक्षित है.
यह चित्र रेखा राव जी का है जिसमेँ बना नील रँग का पक्षी देर तक मानस पटल पर अपना रँग छोड कर यादोँ मेँ बस जाता है. अँग्रेज़ी मेँ कहते हैँ, " धी ब्ल्यु बर्ड ओफ हेपीनेस " खुशियोँ के प्रतीक - सा नीलवर्ण पँछी -
ये मेरा पानी के रँगोँ से बना पोर्ट्रेट है जिसके पीछे भी मज़ेदार वाकया है ~~~ एक दिन फोन बजा , सामने से एक युवा लडके का स्वर पूछने लगा, " क्या आप, लावण्या हैँ ? " "हाँ मेरा उत्तर था -कहिये -" " क्या कोई साडी की दुकान होगी आपके शहर मेँ ? मेरी बात पे विश्वास कीजिये, मैँ एक अमरीकन लडकी से मँगनी करना चाहता हूँ और मुझे एक साडी खरीदनी है " वहाँ से उस लडके ने बताया -
खैर! अजनबी अमरीकन युवती और एक भारतीय कलाकार युवक ३० मिन्टोँ मेँ मेरे सामने हाज़िर थे - - पास के शहर की युनीवर्सीटी मेँ कला विषय मेँ स्नातकोत्तर एम्. ए. की शिक्षा के अँतिम वर्ष मेँ पढ रहे थे -
मैंने , दीया, कुमकुम, नारीयल,नयी साडी उस कन्या को पहना कर,भोजन करवाया और उनकी मँगनी मेरे ही ड्राँइग रुम मेँ करवा दी !
सच कह रही हूँ - उस कलाकार युवक का पी.एच डी का शोध ग्रँथ ( थीसीस ) भी , कुछ पृष्ठ तक पढा और उसी ने उपहार स्वरुप, मुझे खिडकी से पड रहे प्रकाश के सामने बिठलाकर ये चित्र बना डाला !
है ना मज़ेदार कहानी ? :)
चित्र मेँ रात्रि के घने साँध्य आकाश पर चाँदनी का फैलाव
दीलकश बन पडा है, नायिका जल के पास, खुले बालोँ मेँ ,
किसी आगँतुक को निहारती कितनी सजीव जान पड रही है , है ना ?-
- और इस चित्र के चित्रकार, दक्षिण भारत के सबसे विख्यात कलाकार,
राजा रवि वर्मा हैँ --
उनके द्वाराबनाये चित्रोँ मेँ से एक है ,
उनकी विलक्षण प्रतिभा की , ये तो ,एक झलक मात्र है --
उनके बारे मेँ अन्य जानकारी के लिये देखेँ --
&

और सबसे बडे चित्रकार "ऊपरवाले" ईश्वर को हम कैसे भूल सकते हैँ ??
जो ऐसी चित्रकारी करते हैँ कि भूरा आकाश, गुलाबी से लाल, स्वर्णमय तपता सा हो जाये तो कभी केसरी आभा से लाल अँगारे से सूरज को आगोश मेँ छिपाता हुआ दमकने लगे और विस्मय से ताकते मानव समुदाय को फिर अचरज मेँ डाल कर स्याह रात के नीले , काले रँग मेँ बदल डाले और वे पल पल परिवर्तित रँगोँ के द्रश्य बदलनेवाले कलाकार को किसी ने देखा तक नही ...
है ना , यही तो , सब से बडा अजूबा ?? :)

कलाकार श्री विजयेन्द्र 'विज'

http://www.vijendrasvij.com/
हिंदी ब्लोग जगत के हमारे युवा साथी तो हैँ ही
http://vijendrasvij.blogspot.com/2007/10/blog-post.html
पर, अनेकानेक हिन्दी जाल - मासिक, पाक्षिक
जैसे
http://groups.yahoo.com/group/anubhuti-hindi/
कृत्या : www.kritya.in
अनूभूति, अभिव्यक्ति ,
आनेस्ट इंटरटेनमेंट , एक शार्ट फिल्म..
इत्यादी मेँ लगातार,अपना योगदान देते रहे हैँ
हाल ही मेँ उन्होँने,मशहूर शायर मुनव्वर राणा जी पर एक बेमिसाल लघु चित्रपट बनाकर अपनी प्रतिभा की झलक को नई दिशा देते हुए,
महत्त्वपूर्ण कार्य का आरँभ किया है -
उनकी जीवन सँगिनी भी हिन्दी ब्लोग जगत की सक्रीय सदस्य हैँ
कवियत्री भी हैँ और विज की कला की प्रेरणा दायिनी,
उर्जा भी हैँ जिनका नाम है सौभाग्यवती सँगीता बिटिया
http://behind-thelens.blogspot.com/
(जो प्रमवश मुझे "मौसी" बुलाती है )--
http://www.sangeetamanral.blogspot.com/

आशा है आपको यह चित्रमय झलकियाँ पसँद आयीँ होँगीँ -
-इन चित्रोँ को , देखने आनेवालोँ का शुक्रिया --

Wednesday, October 24, 2007

कपूर, नँदा, बच्चन * ३ परिवार * ताने * बाने

कोमेडीयन राजेन्द्र नाथ श्रीमती कृष्णा राज कपूर के सगे ,छोटे भाई हैँ और उनसे बडे भाई हैँ प्रेम नाथ जो बीना राय के पति देव हैँ
कृष्णा भाभी जी बडी शालीन, सुशील और सुसँस्कृत महिला हैँ जिन्हेँ मैँ आज भी बडे आदर व स्नेह से याद करती हूँ और वे भी जबलपुर की बेटी हैँ - राजेन्द्र नाथ और प्रेम नाथ की सगी बहन हैँ वे. इस फोटो मेँ भाई बहन का प्यार साफ दीखाई दे रहा है.
"शो - मेन" के नाम से विख्यात अमर कलाकार राज कपूर जी की सफलता के पीछे उनकी पत्नी का योगदान, हमेशा सुनहले पर्दे के पीछे, छिपा ही रह गया. उनका आतिथ्य जिसने भी, भोगा, वो भाभी जी के उदार माँ स्वरुप को कभी भूल नहीँ पाया.ऋषि कपूर, नीतू सिँह ,पुत्र व बहू ,रणधीर, बबीता और सफल अदाकाराएँ करिश्मा व करीना, राजीव कपूर, और २ पुत्रियाँ बडी रीतू और छोटी रीमा तथा उनके नाती, पोते सब की प्यारी हैँ कृष्णा जी -- मेरी अम्मा सुशीला को वे बडा स्नेह देतीँ थीँ." जाने कहाँ गये वो दिन " इस गीत से ..विदा ..
श्रीमती रीतू राजन नँदा
सबसे छोटे राजीव कपूर, बडी बहन रीतू सबसे बडे भाई रणधीर के साथ-

मुझे याद है कि एक बारी, अम्मा ने बाजरे की मोटी रोटी पर गुजराती सब्जी =ऊँधिया रखकर कृष्णा भाभी जी को दी वे अपनी गाडी मेँ बैठ कर चेम्बूर , अपने घर जाने को उतावलीँ थीँ -
- राजीव जो उस समय ५ साल के होँगेँ , उन्हेँ भी भाभी जी ने कहा, "ले खा देख तो कितनी स्वाद है ये " तो राजीव अपने मुँह पे हाथ रख के बोले, " नहीँ मम्मी, मैँ प्लेट नहीँ खाता " और हम सभी खूब हँसे थे --
कि राजीव बाजरे की मोटी रोटी जिसे गुजरात मेँ "रोटला" कहते हैँ
उसे "प्लेट" सलझ कर मना कर रहा था !! ;-)
बचपन की यादेँ और बातेँ, आज भी याद आतीँ हैँ तो मुस्कुराहट छा जाती है चेहरे पे !
अमिताभ बच्चन - रीतु राजन नँदा के समधी हैँ --
अब इसी कपूर खानदान से , बच्चन परिवार का रिश्ता जुड गया है -- रूतू राजन नँदा के उध्योगपति पुत्र निखिल नँदा से,जया व अमिताभ बच्चन की सबसे बडी सँतान,श्वेयाम्बरा ब्याहीँ हैँ और "१ बिटिया, नव्य नवेली " और छोटे बेटे "अगस्त्य " की मम्मी भी हैँ श्वेता और भाई अभिषेक की बडी दीदी हैँ तो ऐश्वर्या की नन्द भी !

श्रीमती तेजी हरिवँशराय बच्चन अपने बडे
पुत्र अमिताभ के साथ बैठी हुई हैँ --

तेजी आँटी जी कई महीनोँ से बीमार अस्पताल मेँ हैँ
- ईश्वर उन्हेँ आराम से रखेँ ये प्रार्थना है मेरी --
मेरी कोलेज का नाम था मीठी बाई आर्ट्स्` कोलेज .
......जो जुहु स्कीम के इलाके मे,विले - पार्ले, बँबई शहर मेँ है.
इसी जुहु स्कीम को 'सितारोँ की नगरी" भी कहा जाता है.
रास्ता नँबर -१ से क्रम शुरु होता है और हर रास्ते पे,
कोई ना कोई फिल्मी हस्ती का घर भी दीख जाता है.
सहेलियोँ के साथ कार से सैर करते वक्त कईयोँ के घर देखेथे..
.जो आज भी याद हैँ .
.सँगीतकार लक्ष्मीकाँत का घर, बिहारी बाबू शत्रिघ्न सिन्हा का घर, स्वप्न सुँदरी हेमा मालिनी, धर्मेन्द्र जी का अलग अलग बँगला,यश चोपरा,जे. ओम प्रकाश, आत्माराम ( गुरुदत्त के भाई ) और जी हाँ, सबसे प्रख्यात, अमिताभ का बँगला - "प्रतीक्षा " और जी. पी. सिप्पी जी का पुराना घर जिसे उन्होँने अमिताभ को दे दिया वह बँगला "जलसा" ....इत्यादी, इत्यादी ...
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Thursday, October 18, 2007

लौ लगाती गीत गाती, दीप हूँ मैँ, प्रीत बाती

शुभ : हल्दी / लाभ : कुमकुम
लौ लगाती गीत गाती,
दीप हूँ मैँ, प्रीत बाती
नयनोँ की कामना,
प्राणोँ की भावना.
पूजा की ज्योति बन कर,
चरणोँ मेँ मुस्कुराती
आशा की पाँखुरी,
श्वासोँ की बाँसुरी ,
थाली ह्र्दय की ले,
नित आरती सजाती
कुमकुम प्रसाद है,
प्रभू धन्यवाद है
हर घर में हर सुहागन,
मँगल रहे मनाती
सँगीत : स्व. श्री सुधीर फडके
स्वर: लता मँगेशकर
कविता: स्व.पँ.नरेन्द्र शर्मा
फिल्म: भाभी की चूडियाँ
नायिका: स्व. मीना कुमारी

Thursday, October 11, 2007

जोधा - अकबर ..मरह..बा, मरहबा




लगान फिल्म की सफलता का सेहरा बहुत अँशोँ मेँ आशुतोष गवारीकर के सर पर शोभा देता है. हाँ आमीर खान की उत्कृष्ट अदायगी, पटकथा की अनोखी विधा, क्रीकेट् प्रेमी भारत की प्रजा की अँग्रेजोँ को दी गई वह करारी हार .
.अँग्रेज मेम का ग्रामीण किसानोँ का हिमायती होना और नायक से प्रेम कर बैठना सब के साथ ए. आररहमान का बेमिसाल सँगीत लिये सुँदर गाने, ये सभी एक यादगार छवि दे गये.
अब फिर ए. आर. रहमान के गीत
" मरहब्बा मरहबा .." की पहली सुरावली लेकर ,
आशुतोष गोवारीकर नयी कथा लेकर आये हैँ ~
राजपुत सँगठन का विरोध देर्ज हुआ है इस कथा के विरोध मेँ !
उनका कहना है कि "जोधा बाई " शाहजहाँ की माँ थीँ ! !!!
( हाँ हाँ वही, जिसने "ताज महल " बनवा के
सारी दुनिया को , मुहोब्बत की निशानी दी थी :) -
- या किसी और शायर के कहने से,
"हम गरीबोँ का उडाया है मज़ाक " ..
खैर ! ताज महल तो बन चुका !
दुनिया के लोगोँ की आँख का तारा भी बन चुका !
पर ये झगडा अब भी रह गया कि,
"राज कुँवरी जोधा " सलीम ,
माने हींदूस्तान के बादशाह जहाँगीर की पत्नी थीँ या अकबर की ?
जहाँगीर के साथ नूरजहाँ का नाम भी तवारीख मेँ अमर है -
****************
- फिल्मी दुनिया का एक खास रँग ढँग है.
वो अलग - सी दुनिया है.
सच को झूठ, झूठ को सच बनाती तिलिस्मी दुनिया है ये !
जहाँ, कला, यथार्थ और यथार्थ, कला के पर्याय बन जाते हैँ
पारी पारी, अपनी अपनी जगह बदल, बदल कर !
के. आसिफ साहिब की अविस्मरणीय पेशकश मेँ ,
"जोधा - अकबर " साथ , साथ दीखे थे.
अब फिर आ रहे हैँ ये दोनोँ पात्र ~
~ इतिहास के पन्नोँ से निकल कर,....
हाँ श्री पृथ्वीराज कपूर की जगह ले ली है ऋतिक रोशन ने
और दुर्गा बाई खोटे की जगह ,
ऐश्वर्या बच्चन जोधा का भेस धर कर
आपका दील लुभाने शीघ्र बडे सुनहले पर्दे पर आ रहीँ हैँ ~~
~ तो उत्सुकता जाग रही है कि, " आखिर जोधा बाई कौन थीँ ?"

Wednesday, October 3, 2007

विविध भारती से जुडे हरेक व्यक्ति को मेरे सस्नेह अभिवादन !





कौन जानता था कि,एक नन्हा सा पौधा इतना घटादार,घना,हरा भरा बरगद सा फैला विशाल वृक्ष बन जायेगा ?
मेरे पूज्य पापा जी स्व.पँडित नरेन्द्र शर्मा तथा

अन्य कर्मठ साथियोँ की मेहनत से लगाया ये

नन्हा बिरवा,

"विविध ~ भारती"

आज स्वर्ण जयँती उत्सव मना रहा है...

भारत सरकार द्वारा आरँभ किया गया, भारत की जनता के प्रति पूरी ततह समर्पित,आधुनिक वायु सँचार माध्यम का यशस्वी रेडियो कार्यक्रम,
अबाध सुचारु रुप से चलता रहे, ये मेरी शुभकामना है और विविध भारती से जुडे हरेक व्यक्ति को मेरे सस्नेह अभिवादन !

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स्वर्ण जयँती सु -अवसर आया,
जन जन के मन उमँग छाया



नव सँशोधन, स्वर लहर मधुर


विविध भारती बन,मधुराकर्षण


भारत के गौरव सा, ही हो पूरण


शत वरष,भावी के कर गुँजारित


प्रेम वारिधि छलका कर ,अविरत


जन जन का बन समन्वय -सेतु


फहराता रहे, यशस्वी, हर्ष -केतु



-- लावण्या