Monday, September 18, 2017

एक पल : सर्वनाश से पहले (अंतरिक्ष नाटक) - लावण्या शाह

एक पल : सर्वनाश से पहले(अंतरिक्ष नाटक) - लावण्या शाह
पात्र: 
सूत्रधार
तीन साहसी बच्चे- 
तूफान टक्कर (तूफान)
लाल लगाम (लाली)
छोटा राजा
खलनायक-
पाताल पापी
तीन वैज्ञानिक-
डा शिव
डा गिरधर
डा बूमक
एक सिपाही
(धरती की भीतरी सतह का दृश्य)
(सूत्रधार) - तूफान टक्कर, विल स्कारलेट और छोटा राजा धरती के भीतरी कोर में कैद हैं और एक बम, इस उपग्रह को विनाश के रास्ते ढकेलने के लिये आगे बढ रहा हैं।

पाताल पापी : "होशियार! यह छोटा विमान।

लाल लगाम : एक बात पक्की है, जिस किसीने भी हमें यहाँ पर बुलवाया है, वो हमसे मिलने नहीं आया। अरे! यहाँ पर तो सारा वीराना ही वीराना है।

तूफान टक्कर : (चौंक कर) "मैं सोच रहा हूँ कि कैसे..." (फिर चौंकता है) "अरे! संभलो।"
पाताल पापी : इस भूगर्भ में, आपका स्वागत है! (बात जारी रखते हुये) आशा है कि आपकी यात्रा सफल रही!"

तूफान टक्कर : आप कौन हैं?"

पाताल पापी: मैं, इस भूगर्भ का मालिक कहलाता हूँ!"

तूफान टक्कर: (स्वत: सोच में) भूगर्भ का मालिक?? यह नाम तो कुछ जाना-पहचाना सा लगता है!

पाताल पापी: "आप खामखाँ मेरी तारीफ कर रहे हैं!"

तूफान टक्कर: "याद आया! तुम्ही तो वे छाँटे हुए पागल इन्सान हो, जिसने, इस पृथ्वी को हथियाना चाहा था! पर जब तुम्हारी क्रान्ति निष्फल हो गयी तब तुम नदारद हो गये! अच्छा, अब यहाँ डेरा जमाये हो!"

पाताल पापी: (गुस्से से आवाज ऊँची हो जाती है) पागल, और मैं? सब मेरी जान के पीछे पड़ गये थे और मुझे इस भूगर्भ में आना पडा। पर मैं बदला लेकर ही रहूँगा।"

तूफान टक्कर : "अच्छा, यह बात है। बदला किस तरह से लोगे भला?"

पाताल पापी : (दुष्ट सी मुस्कान लिये) "आओ! बतलाता हूँ तुमने मॅग्नियम धातु का नाम तो सुना होगा? चम्मच भर मग्नियम एक पूरे शहर का विनाश कर सकता है। इस ग्रह से, एक छोर पर, मैंने, इस धातु का एक विशाल जत्था मौजूद पाया है हाँ इतना सारा है कि यह पूरा सौर मंडल धूल में मिल जाएगा। मुझे इस खनिज मग्नियम से धमाका लगाने भर की देर थी "

तूफान टक्कर : "और वे गुमशुदा वैज्ञानिक! एक एक अणु शक्ति विस्फोट के क्षेत्र में, कमाल हासिल किये हुये "

पाताल पापी: "बिलकुल सही याद किया। वे मेरी बात मानने पर राजी ही नहीं थे। इसीलिए, उनका सारा ज्ञान, इस कम्प्यूटर में, कैद कर लिया है। बस अब मुझे इसे तोड देने की शृंखला को, बटन दबाकर कर, शुरू करना पडेगा ! और सब खत्म और जब यह सुइयाँ, १२ के आँकडे पर पहुँचेंगी, तब इस धरती का विनाश हो जायेगा...हा...हा...हा...हा..."

तूफान टक्कर : "और साथ-साथ, तुम्हारा भी।"

पाताल पापी: "क्यों क्या मुझे सौ प्रतिशत पागल समझ रखा है? यह छोटी रेल देख रहे हो ना, वह मुझे धरती की ऊपरी सतह तक और वहाँ से ऊपर अंतरिक्ष की ओर ले चलेगी।"

तूफान टक्कर : ( अपने साथियों से) "हमें किसी भी तरह बच निकलना है!"

लाल लगाम : तुम्हारे दिमाग में कोई तरकीब सूझ रही है क्या?"

तूफान टक्कर : "जब छत गिरने लगे, तब भाग निकलो..."

लाल लगाम : (न समझते हुये) "क्या कहा?"

पाताल पापी: "मैंने सब सोच रखा है! बस घंटे भर में, यह दुनिया जिसने मेरा तिरस्कार किया था, वह मेरे बदले की आग में जल उठेगी। और मैं? मैं सही सलामत अंतरिक्ष की ओर उड चलूँगा। अरे क्या कर रहे हो...कौन?"

छोटा राजा : "माफ करना मैं सह-यात्रियों को अपने संग नहीं ले चलता।"

सूत्रधार : तूफान टक्कर, लाल लगाम और छोटा राज एक रहस्यमय घटना में घिरे हैं - - तीन, तीन महान विज्ञानिकों के लापता होने की रोमांचक घटना की छान-बीन कर रहे थे कि अचानक वे एक भूकम्प के चंगुल में फँस गये और धरती के भीतर धँस गये -- अब आगे सुनिये,"

लाल लगाम : "कोई फायदा नहीं! हम इस खड्ड के ऊपर नहीं जा पाएँगे।"

तूफान टक्कर : "लगता है कि किसी प्रकार के चुंबकीय क्षेत्र में हम लोग फँस गये हैं। होशियार! अपने आप को सँभाले रहो। हम पानी में छलाँग लगाने वाले ही हैं अब!

(लाल लगाम की आवाज पानी की सतह से ऊपर चीखती हुयी पुकार सी सुनायी देती है) - "अरे यार, यह तो कोई भूगर्भ नदी है, और हम तेज धारा में बहे जा रहे हैं।"

तूफान टक्कर : तैरने के लिये तैयार हो जाओ। हमारा यान और थपेड़े सह न पायेगा। यह यान बस अब टूटने वाला है।

लाल लगाम : जब छोटा था तब सोचा करता था कि तैरने में बडा मजा है!"

तूफान टक्कर : वे भूकम्प के झटके, धक्के, किसी दुर्घटना की वजह से पैदा नहीं हुए थे। जिस किसी ने भी उन तीन वैज्ञानिकों का अपहरण किया था, उसी ने अब हम लोगों के लिये भी, बुलावा भेजा है।"

छोटा राजा : "एक बार पता कर लूँ कि वो कौन पाजी है, फिर तो उसकी गर्दन होगी और मेरे हाथ।"

तूफान टक्कर : "मेरा अंदेशा यह है कि वही हमें ढूँढ लेगा।"

लाल लगाम : "मैं पहले कभी, किसी उपग्रह की भीतरी सतह तक गया नहीं।"

तूफान टक्कर : "तो बस यही आरजू रखो कि हम उपग्रह के भीतर नहीं, बाहर ही रहें।"

छोटा राजा : "यह जगह देख कर, मुझे तो कँपकँपी आ रही है। तूफान, सम्भलो!"

पाताल पापी: "कोई बात नहीं। यह लोग और कहीं नहीं जायेंगे।"

तूफान टक्कर : "अहा! रास्ता खत्म!"

लाल लगाम : "मैं जानता हूँ छोटे राजा कि तुम्हारा इरादा नेक था पर तुमने यह गलत सुरंग चुनी।"

पाताल पापी: "मेरे दोस्तों! तुम्हारी कामयाबी बस इसी बात में है कि तुमने तमाम दुनिया के सर्वनाश को तेजी दे दी। अल्विदा!"

(पागलों की तरह हँसता है)

छोटा राजा : "अब क्या करें तूफान?"

तूफान टक्कर : "काश मैं इस सवाल का जवाब दे पाता।"

सूत्रधार : "सच है, अब क्या हो? क्या तूफान, लाल लगाम और छोटा राजा इस भूगर्भ - कैद खाने से निकल पाएँगे? क्या वे इस पृथ्वी को सर्वनाश से बचा पाएँगे?"

तूफान टक्कर : ऊपर लाल लगाम! ऊपर खींचो!

लाल लगाम : "नहीं खींच पा रहा। मैं पूरी ताकत आजमा रहा हूँ पर यह हिल भी नहीं रहा।"

सूत्रधार : "क्या लाल लगाम, छोटा राजा और तूफान टक्कर इस भूकम्प के बाद भी बच निकलेंगे? और अगर बच भी गये तब क्या वे भूगर्भ के मालिक के हाथों पकड़े जायेंगे?"

तूफान टक्कर : "जी हाँ जनरल साहब! मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ और इस मामले में अवश्य कुछ करना चाहूँगा। छोटे राजा, एक अंतरिक्ष यान तैयार करो। पृथ्वी हमारा लक्ष्य रहेगी, चलने की तैयारी करो।"

छोटा राजा : (खुशी में मुस्कुराते हुए) मैं जानता था कि तुम यही कहनेवाले हो।

लाल लगाम : एक सवाल है - हम पृथ्वी पर जासूसी करने चलेंगे तो क्या हम गिरफ्तार नहीं हो जाएँगे?

तूफान टक्कर : "याद करो, जब छोटे राजा को जबरदस्त चोट लगी थी - - (अपना अँगूठा और उँगली दिखाते हुए) मौत से बस इतनी सी दूरी थी। और तब, तो डॉ. बूमक ने कोई सवाल नहीं किया था। (वही वैज्ञानिक, जो आज लापता है) उन्होंने एक गैर-कानूनी मुजरिम की जान बचाने के लिये अपने जान की बाजी लगा दी थी। और उसी वक्त हमने यह कसम खायी थी कि उनकी अच्छाइयों का बदला हम अवश्य देंगे।"

लाल लगाम : मैं तुम्हारी बात समझता हूँ, तब चलो, चलें

पाताल पापी: "अब बोलो मुझसे बात करो " (तभी कम्प्यूटर की आवाज बीच में सुनाई देती है )

कम्प्यूटर का स्वर : "यह कार्य पूरा हुआ। सुझाव है, दुबारा सारी प्रणाली की जाँच करें।"

पाताल पापी: बहुत बढिया मेरी जान! धन्यवाद! और सज्जनों आपका भी शुक्रिया। आपने अपने, वैज्ञानिक दिमाग का इस्तेमाल किया, उसका भी शुक्रिया।

(भयानक, भद्दी हँसी हँसते हुए उसकी आवाज विलीन हो जाती है)

लाल लगाम : "हम पृथ्वी के वातावरण में, प्रवेश कर रहे हैं।"

तूफान टक्कर : "इस नक्शे के हिसाब से, बम-विस्फोट-प्रयोग का स्थान है - - शून्य तीन शून्य! सौ फिसदी सच है लाली। जितनी ताकत हो लगा दो।"

एक पुरूष स्वर : "मेरे मालिक, एक अनजाना अंतरिक्ष-यान, आधुनिक-बम-विस्फोट के स्थान के करीब पहुँच गया है।"

पाताल पापी: "अच्छा! एक्स-रे, स्कैनर और रडार से सम्पर्क करो।"

छोटा राजा : "काश डॉ.बूमक और दूसरे दोनों इन्सान अब भी जीवित हों!"

तूफान टक्कर : "अगर जिंदा हुए तो मैं अवश्य उन्हें खोज निकालूँगा।"

पाताल पापी: (दुष्टता से मुस्कराते हुए) "हाँ, हाँ, अवश्य खोज निकालोगे तुम, उन्हें मेरे यार! मैं वही तो कोशिश करूँगा! मुझे भी बखूबी आता है उनसे किस तरह पेश आना चाहिए जो दूसरों के कामों में टाँग अड़ाता है।"

पाताल पापी: (अपने आदमी को आज्ञा देते हुए) "अंतरिक्ष यान का पीछा करो और भूकम्प के झटके देनेवाली मशीन को तैयार करो! साथ-साथ, चुम्बकीय खिंचाव के प्रवाह को भी शुरू करो। (मुस्कुराते हुए) हमारे घर, मेहमान आने ही वाले हैं!"

तूफान टक्कर : "लाली, देखो तो, वहाँ सामने क्या दिखलायी दे रहा है अरे जरा नजदीक ले चलो, पास से देखना चाहता हूँ।"

लाल लगाम : "ठीक है!

तूफान टक्कर : "मुझे तो यहाँ, भूकम्प का कोई निशान दिखाई नहीं दे रहा।"

लाल लगाम : "ना ही मुझे दिखलायी दे रहा।यहाँ पर तो कुछ ऐसा लग रहा है मानो।"

तूफान टक्कर : "एक पल रूको तो! यह कैसी आवाज है? लाली, ऊपर उठा लो यान को यह तो दूसरे झटके जैसा रे... अरे..."

पाताल पापी: "होशियार! यह छोटा विमान! यह बम, कुछ ही पलों में तितर-बितर हो जाएगा।"

तूफान टक्कर : "वो उड़ा हमें यहाँ से भाग निकलना होगा।"

छोटा राजा : "पर कैसे?"

तूफान टक्कर : "ओ छोटे राजा, अपनी माप की छड़ी दो तो जल्दी से!"

छोटा राजा : "तुम इस मापदंड से क्या करोगे?

तूफान टक्कर : "थोडा सा इंर्धन इस्तेमाल करूँगा।

तूफान टक्कर : "पीछे हटो बस यही आशा करूँगा कि रेल-इकाई पाताल पापी से, तुरन्त आ मिले किसी भी सूरत में तुम्हें इसे रोकना है-

लाल लगाम : 'बहुत ठीक!

तूफान टक्कर : "हम यहाँ, प्रज्वलन चाबी (डिटेक्टर फ्यूज) को जाँचते रहेंगे, चलो छोटे राजा।

छोटा राजा : "वाह क्या खूब निशाना मारा है! और वह भी सही वक्त पर!"

सूत्रधार : इस धरती पर कुछ विचित्र और भयानक दुर्घटनाएँ बस अब घटने ही वाली है।

डॉ. शिव : "डॉ. गिरधर, देखिये, बडा रोचक व सनसनीखेज यंत्र क्रियाशील है। यह क्या किस्सा खुल रहा है?"

दोनो डॉ. : "आहा! समझ लो भूकम्प..."

डॉ. शिव : "अरे मैं पकड़ नहीं पाऊँगा।"

एक सिपाही : "हम यहाँ से प्रस्थान करने को बिलकुल तैयार हैं डाक्टर।"

डॉ. बूमक : "अच्छी बात है क्रमिक गिनती आरम्भ हो जाये!"

सिपाही : "जी बहुत अच्छा।"

डॉ. बूमबाक : "अरे! अरे! भूचाल गिनती रोक दो... अरे... अरे... बचाओ "

(टी वी पर समाचार वाचक की तस्वीर और स्वर : "और इस भांति डॉ. बूमक के लापता होने की दु:खद घटना, जो, "आधुनिक विस्फोटक प्रयोग संस्थान" के इलाके के पास घटित हुयी, उससे सभी उद्विग्न हैं। इस दुर्घटना से कुल तीसरे महीने वैज्ञानिक के गायब होने का कुदरती हादसा घट गया है जिससे सभी परेशान हैं।")

सेनापति : "(नाराजगी भरा स्वर) कुदरती घटना खाक घटी है! पहले डॉ. गिरधर और फिर डॉ. शिव गायब हुये। और अब डॉ.बूमाक भी गए। सबसे शक्तिशाली, तेज दिमाग विज्ञान के क्षेत्र के, इस पृथ्वी के काबिल इन्सान गुम हो गये और एक के बाद एक, यह भूचाल के झटके और हम उनके शिकार! यह तो बड़ा विचित्र सा संयोग है! मैं नहीं मानता जरूर इस के पीछे कोई बडा भारी रहस्य है!"

डॉ. बूम्बाक : "मैं, अंतरिक्ष ग्रह कक्ष की पुलिस से सम्पर्क करने में, सफल हुआ! वे लोग जब हमें लेने आयेंगे तभी पाताल पापी और उसके साथियों को भी पकड लेंगे।"

तूफान टक्कर : "माफी चाहता हूँ डॉक्टर साहब! आपको फिलहाल, यही छोड़े जा रहा हूँ, पर हमें यहाँ से अब रफूचक्कर हो जाना चाहिये। इस के पहले कि वो लोग यहाँ आ पहुँचें।"

डॉ.बूमाक : "सही फर्मा रहे हो बरखुरदार, पर मैं आपका कर्ज किस तरह अदा कर पाऊँगा? कुछ तो ऐसा जरूर होगा जो मैं कर पाऊँगा।"

छोटा राजा : "ऐसी बात है! तब तो में गर्दन बाहर को किए देता हूँ, फिर गोलियों से घायल हो जाता हूँ और बाद में, आप फिर मेरी जान बचा लीजिएगा डॉक्टर।"

डॉ बूमाक और सभी हँसने लगते हैं छोटे राजा की बात पर।

१ मई २००३

Thursday, September 14, 2017

संवरण-तपती : अमर युगल पात्र

अमर युगल पात्र – संवरण-तपती : 

महाभारत, आदिपर्व

गंधर्वराज चित्ररथ ने अर्जुन को तपतीनंदन कहकर संबोधित किया। अर्जुन ने उनसे पूछा कि वे तो कुन्ती के पुत्र हैं, फिर तपतीनंदन कैसे हुए। इस पर गंधर्वराज ने सूर्यपुत्री तपती की कथा सुनाई।
आकाश में सर्वश्रेष्ठ ज्योति भगवान सूर्य हैं। उनकी प्रभा स्वर्ग तक व्याप्त है।
उन्हीं सूर्यदेव की पुत्री का नाम था ‘तपती’ !
 तपती अपने पिता  सूर्य के समान ज्योति से परिपूर्ण थी। अपनी तपस्या के कारण वह तीनों लोकों में तपती के नाम से पहचानी जाती थी। तपती सावित्री की छोटी बहन थी। तपती के जैसी सुंदर, सुशील कन्या, असुर योनि, नाग वंश,यक्ष समुदाय, या गंधर्व प्रजा - किसी में भी नहीं थी। उसके योग्य पुरुष पति ढूँढना, सूर्यदेव को भी भारी पड़ रहा था। सो वे हमेशा चिंतित रहते थे कि अब ऐसी रूपवती कन्या का विवाह करें भी तो किससे करें?
      उस समय पृथ्वी पर, पुरुवंश के राजा ऋक्ष के पुत्र ‘संवरण’ राज कर रहे थे। गवान सूर्य के परम् भक्त थे। वे बड़े ही बलवान थे। वे प्रतिदिन सूर्योदय के समय अर्ध्य, पाद्य, पुष्प, उपहार, सुगंध, लेकर , अत्यंत पवित्र ह्रदय से, सूर्य देवता की पूजा किया करते थे। नियम, उपवास तथा तपस्या से सूर्यदेव को संतुष्ट करते और बिना अहंकार के पूजा करते। संवरण की भक्ति देख धीरे-धीरे सूर्यदेवता के मन में यह बात आई कि, यही राजपुरुष मेरी पुत्री ‘तपती’ के योग्य पति हैं।
        एक दिन की बात है – संवरण अपना उम्दा  घोड़ा लेकर जंगल की तराइयों में शिकार खेलने निकल पड़े। बहुत देर तक घुड़सवारी करने पर उनका घोड़ा भूख, प्यास के कारण, वहीं जमीन पर गिरकर मर गया। अचानक उनकी दृष्टि निर्जन वन में निर्भय होकर विचरण करती, एक अकेली कन्या पर पड़ी।  वे उसकी ओर अनिमेष नयनों से निहारने लगे। उन्हें ऐसा लगा मानो साक्षात सूर्य की प्रभा ही पृथ्वी पर विचरण कर रही हो ! 

          उनके मन में विचार आया, ‘‘ओहो। इस युवती कन्या का स्वरूप दैवी है। ऐसा रूप मैंने नहीं देखा।’’ 
     राजा के नयन और मन कन्या में गड़ गए। वे सारी सुधबुध भूल गए। हिलना-डुलना भी भूल गए। जब वह कन्या एक वृक्ष के पीछे ओझल हुई तब उन्हें  चेतना आई। उन्होंने मन-ही-मन निश्चय किया कि ब्रह्माजी ने त्रिलोक के सौंदर्य को एकत्र करके इस मूर्ति को बनाया है। उन्होंने उस कन्या  के पीछे जाकर कहा,
‘‘हे त्रिलोक सुंदरि, तुम कौन हो ? किसकी पुत्री हो? इस निर्जन वन प्रांत में अकेले क्यों भ्रमण कर रही हो? तुम्हारी अनुपम काँति से, ये स्वर्णाभूषण  और भी अधिक  देदीप्यमान हो रहे हैं। तुम्हारे केशों में गूँथे लाल कमल की सुरभि से वातावरण सुगं‌धित हो उठा है। तुम अवश्य कोई अप्सरा या देवी हो। कहो तुम कौन हो? मैं तुम पर मेरा मन हार चुका हूँ। मैं, तुम्हारे प्रेम-पाश में बंध गया हूँ। कृपया, मेरा प्रणय-प्रस्ताव स्वीकार करो।’’
       कन्या सूर्यकुमारी ‘तपती’ राजा संवरण के ऐसे बोल सुनते ही लजा गईं।  वह कुछ बोली ही नहीं और बिजली कड़क उठे उसी तरह तत्क्षण अंतर्धान हो गई।
       अब ‘संवरण’ अत्यंत व्याकुल हो उठे  और असफल रह जाने पर विलाप करते-करते, बेहोश हो गए। जब ‘तपती’ ने व्योम से देखा कि राजा निश्चेष्ट हैं तब वह दयावश पुनः  प्रकट हुई और मीठी वाणी से कहने लगी,
‘‘राजन् उठिए। आप तो सत्पुरुष हैं, फिर इस तरह दयनीय स्थिति में क्यों जमीन पर लोट रहे हैं ?’’
तपती की अमृतमयी वाणी सुनकर संवरण की चेतना लौट आई। उन्होंने बड़े अनुनय से कहा, ‘‘अब मेरे प्राण तुम्हारे हाथों में हैं। मैं इस क्षण के पश्चात् तुम्‍हारे बगैर जी नहीं सकता। हे सुंदरी ! तुम मेरी इस अवस्था से व्यथित होकर यहाँ आई हो। अब मुझे छोड़कर कभी मत जाना। मुझ पर दया करो और मेरे साथ विवाह कर मुझे  स्वीकार करो।’’तपती ने कहा,
‘‘मेरे पिता जीवित हैं। आप उन्हीं से मेरे बारे में पूछें, यही योग्य है। आप जैसे धर्मज्ञ तथा विश्वविदित पुरुवंशीय सम्राट को पति रूप में पाने से मुझे कोई आपत्ति नहीं है। मैं भगवान् सूर्य की कन्या हूँ। विश्ववन्ध्य ‘सावित्री देवी’ की छोटी बहन हूँ।’’ इतना कहकर तपती आकाशमार्ग से अंतर्धान हो गई और संवरण फिर मूर्छित हो गए।
        उसी बीच राजा संवरण के बहुत सारे सैनिक उन्हें ढूँढते-ढ़ूँढते वहीं आ पहुँचे। उन्‍होंने राजा को फिर जाग्रत किया। राजा ने पूरे सैन्य को लौटा दिया और वे स्वयं अपने कुलगुरु वशिष्ठजी को याद करके मन को पवित्र करके एकाग्रता के साथ सूर्य देव की उपासना करने में जुट गए।
          ठीक बारह दिनों के पश्‍चात् महर्षि वशिष्ठ  वहाँ पधारे। उन्होंने संवरण को आश्वासन दिया, ढाँढस बँधाया और फिर सूर्यदेव के सम्मुख जाकर अपना परिचय दिया। प्रणामपूर्वक उन्होंने कहा कि, " आपकी पुत्री यशस्विनी तपती के लिए, मैं  अपने राजा संवरण को पति होने का सौभाग्य चाहता हूँ। हमारी प्रार्थना स्वीकारिए।’’ 
          सूर्य देव ने प्रार्थना सुन ली और गुरु वशिष्ठ के साथ अपनी सर्वांग सुंदरी कन्या को भेज दिया। गुरु वशिष्ठ के साथ आती हुई तपती को देखकर राजा संवरण अपने आनंद का संवरण न कर सके। इस प्रकार सूर्य की अटल आराधना तथा अपने गुरु की शक्ति के प्रभाव से, राजा संवरण ने, तपती जैसी नारी रत्न को प्राप्त किया।
       विधिपूर्वक उनका पाणिग्रहण संपन्न हुआ।

तद्पश्चात  कुछ काल तक उसी शैल शिखर पर राजा ने विहार किया। बारह वर्ष पर्यंत वे वहीं रहे। राजकाज मंत्रियों के द्वारा चलने लगा। तब इंद्र देव ने जो वर्षा ऋतु के स्वामी हैं, उनके राज्य में पानी बरसाना बंद कर दिया। सर्वत्र सूखा-अकाल पड़ गया। लोग मरने लगे। इतना कि ओस तक न पड़ी। प्रजा मर्यादाहीन होकर एक दूसरे को लूटने लगी। तब वशिष्ठ मुनि ने अपनी तपस्या के प्रभाव से वर्षा करवाई।
       तपती-संवरण प्रजा पालन हेतु अपनी राजधानी लौटे। फिर से पैदावार शुरू हो गई। राज दंपत्ति ने सहस्रों वर्षों तक सुख भोगा। इसी तपती के गर्भ से राजा ‘कुरु’ का जन्म हुआ और इसी से कुरु वंश का प्रारंभ हुआ।
- लावण्‍या शाह