सँस्मरण : भारतीय हिंदी और अमरीका :
प्रश्न : भारतीय जन - उत्तर अमरीका कब पहुंचे ?
उत्तर : सं. १७९० मेँ, सबसे पहले, काला सागर पार कर के, भारतवर्ष के दक्षिण पूर्व में बसे मद्रास शहर जिसे आज चेन्नई नाम से पहचाना जाता है वहाँ से चले के एक अनाम व्यक्ति, उत्तर अमरीकी धरा के उत्तर पूर्वीय दिशा में स्थित अटलांटिक महासागर किनारे पर बसे मेसेच्य्सेट्स प्रांत के सेलम शहर की गलियोँ मेँ पहली बार पहुँचे थे।
समय की धारा आगे बढती रही और सं. १८२० से १८९८ तक ५२३ और भारतीय लोग अमरीका तक आये। सं. १९१३ तक ७००० और भारतीय भी अमरीका आ पहुंचे।
सं. १९७१ मेँ, अमरीका में स्थापित केंद्र सरकार जिसे ' कोन्ग्रेस ' कहते हैं इस कॉंग्रेस समिति ने भारतीयों के अमरीका आगमन पर रोक लगाई ।
समय आगे बढ़ा। सं. १९४३ मेँ जब चीन के अमरीका में आये अप्रवासीयोँ पर से रोक हटाई गई तब प्रेसीडेन्ट रुज़वेल्ट के बाद प्रेसीडेंट ट्रूमेन का शासन काल था।
३ जुलाई १९४६ मेँ " एशियन अमेरीकन सिटीज़नशीप एक्ट " पारित किया गया। भारतभूमि पर सं. १९४३ में, ब्रिटिश हुकूमत की पकड़ इस समय कायम थी। विश्व युद्ध से सम्पूर्ण विश्व में अशाँति का वातावरण फैला हुआ था।
उत्तर अमरीका के पश्चिमी छोर पर, उस वक्त "हिन्दी असोशीयेन ओफ पसेफिक कोस्ट " सँस्था की स्थापना हो चुकी थी। इस सँस्था ने तारीख १ नवम्बर १९१३ में अपनी मुख पत्रिका "गदर" मेँ निम्न घोषणा प्रकाशित की थी ~
" हम आज विदेशी भूमि पर अपनी भाषा मेँ,
ब्रिटीश सरकार के विरुध्ध युध्ध की घोषणा करते हैँ " इस सँस्था से सँबध्ध रखनेवाले भारतीय व्यक्ति थे ~ लाला हरदयाल, दलित श्रमिक मँगूराम और १७ वर्षीय इँजीनीयर करतार सिँह सरापा जैसे साहसी कार्यकर्ता ।
'स्वातंत्र्यवीर सरापा ' का नाम इतिहास की विशाल पोथी में कहीं खो गया है किन्तु आज हम श्रद्धा से नमन करते हुए, वीर सरापा को कर बद्ध श्रद्धांजलि देते हैं।
१६ नवम्बर १९१५ के अपयशी दिन, ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपने स्वतन्त्र विचार प्रकट करने के जुर्म में - १९ वर्षीय सरापा को भारत मेँ, फाँसी की सज़ा देते हुए मौत की सज़ा हुई । शहीद भगत सिँह -वीर सरापा को अपना गुरु मानते थे ।
वीर सरापा का अँतिम गीत था,
" यही पाओगे, मशहर मेँ जबाँ मेरी बयाँ मेरा,
मैँ बँदा हिन्दीवालोँ का हूँ खून हिन्दी, जात हिन्दी,
यही मज़हब, यही फिरका,यही है, खानदाँ मेरा !
मैँ इस उजडे हुए भारत के खँडहर का ही ज़र्रा हूँ
यही बस पता मेरा, यही बस नामोनिशाँ मेरा !"
ना जाने सरापा की अस्थियाँ गँगा मेँ मिलीँ या नहीँ ?? :-((
सँत विनोबा भावे जी का कहना है कि " हिन्दी भाषा भारती, सँस्कृत की ज्येष्ठ पुत्री है ! आज हिन्दी भाषा की भागीरथी ~ विश्व के हर भूखँड मेँ बह रही है !जहाँ कहीँ एक भारतीय बसता है। हिँदी बोलनेवाला जहां कहीं भी रहता है, हिंदी भाषा वहां आबाद है। मेरी कविता ने कहा है, हम भारतीय जन मन मेँ कहीँ गँगा छिपी हुई है
" गँगा आये कहाँ से रे गँगा जाये कहाँ रे, लहराये पानी मेँ जैसे धूप ~ छाँव रे "
गायक श्री हेमँत दा की सौम्य स्वर लहरी जब भी सुनतीँ हूँ तब हिन्दी भाषा का मनोमुग्धकारी विन्यास, मन को ठीठका देता है, स्तँभित कर देता है !
यादें ~~
केलेन्डर के पन्ने सरसर्राते हुए, सालोँ की समँदर सी फैली धारा को पार करते
सं. २००७ मई माह के समापन पर रुकी है। जून माह के बाद जुलाई मेँ, अँतराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन न्यु -योर्क शहर मेँ सम्पन्न हुआ था ।
यह हिन्दी का " परदेस " की भूमि पर हो रहा "महायज्ञ "ही था। पिछले कई इसी तरह के सम्मेलनोँ मेँ- हिन्दी की महान कवियत्री आदरणीया श्री महादेवी वर्मा जी ने भी समापन भाषण दिया था।
भाषा - भारती "हिन्दी" को युनाइटेड नेशन्स मेँ स्थान मिले ये कई सारे भारतीय मूल के भारतीयोँ की एक महती इच्छा है। यह स्वप्न सत्य हो यह आशा आज बलवती हुई जा रही है। इस दिशा मेँ बहुयामी प्रयास यथासँभव जारी हैँ। देखना यह है कि उत्तर अमरीका के न्यु -योर्क शहर मेँ स्थित - अन्तर्राष्ट्रीय सँस्था U.N.O. = ( यु.एन्.ओ. )कितनी शीघ्रता बरतता है "हिन्दी" को स्वीकार करने मेँ !
न्यु योर्क शहर का इलाका जो मुख्य है उसे "मेनहेट्टन " कहा जाता है।
इस का बृहद प्रदेश " न्यु -योर्क " कहा जाता है। न्यु -योर्क का चहेता नाम है, 'बीग ऐपल" या फिर "गोथम सीटी '
भौगोलिक स्तर पर यह भूभाग पाँच खँडो मेँ बँटा हुआ है। जिन्हें "बरोज़" कह्ते हैँ नाम हैँ ~ ब्रोन्क्स, ब्रूकलीन,मनहट्टन, क्वीन्स और स्टेटन आइलेन्ड।
इस भूभाग को ' डच ' मूल के लोगोँ ने सं. १६२५ मेँ बसाया। कुल ३२२ क्षेत्रफल या ८३० किलोमीटर मेँ फैला यह विश्व का बृहदतम शहरी इलाका है जिसकी आबादी
१८ .८ कोटि जन से अधिक है। यहाँ विश्व के हर देश व भूखंड से आये लोग आपको दिखाई देंगें।
ऐसे महानगर मेँ भारतीय दूतावास के सौजन्य से व भारतीय विध्या भवन के सँयोजन से (जिसके कर्णधार श्रध्धेय डो.जयरामन जी हैँ ), हिन्दी भाषा अंतर राष्ट्रीय सम्मेलन होने जा रहा है। इस सम्मेलन मेँ कई सारे लोग, कमिटी मेँ काम कर रहे हैँ। स्वेच्छा से कार्य भार उठाये अपने रोजमर्रा के बहुयामी, व्यस्त जीवन से समय प्रदान करते हुए सहर्ष - सारी गतिविधियोँ मेँ हिस्सा ले रहे हैँ।
ऐसे महानगर मेँ भारतीय दूतावास के सौजन्य से व भारतीय विध्या भवन के सँयोजन से (जिसके कर्णधार श्रध्धेय डो.जयरामन जी हैँ ), हिन्दी भाषा अंतर राष्ट्रीय सम्मेलन होने जा रहा है। इस सम्मेलन मेँ कई सारे लोग, कमिटी मेँ काम कर रहे हैँ। स्वेच्छा से कार्य भार उठाये अपने रोजमर्रा के बहुयामी, व्यस्त जीवन से समय प्रदान करते हुए सहर्ष - सारी गतिविधियोँ मेँ हिस्सा ले रहे हैँ।
जाहिर है कि जो सारे हिन्दीवाले न्यु योर्क शहर के आस पास रहते हैँ वे श्रमदान देने मेँ सक्षम हैँ। मेरी तरह हज़ारोँ मील दूरी के शहर मेँ रहनेवाले हिन्दी प्रेमीयोँ को इस समय बेसब्री से इँतज़ार करना ही नसीब है और सोचना कि, ' कब हम इस भव्य कार्यक्रम मेँ शामिल होंगें ! 'उत्साह इस बात का भी है और एक तरह की उत्कँठा भी है कि, " क्या होगा वहाँ पर ?"
आयोजन की सफलता पर सँदेह नहीं। परँतु यह आशँका है कि, इस सम्मेलन के बाद अँतराष्ट्रीय स्तर पर क्या हिन्दी को सम्मानित दर्जा, मिल सकेगा ?? या सिर्फ बुध्धीजीवी वर्ग की चेतना से जुडी हिन्दी भाषा -महज सीमित दायरोँ मेँ बध्ध होकर प्रबुद्ध या ईलीट वर्ग की भाषा ही रह जायेगी?
हिन्दी के उत्थान मेँ कार्यरत अनेक हिन्दी प्रेमीयोँ से वहाँ मुलाकात होगी ये तथ्य उत्साह दे रहा है। "अभिव्यक्ति " व अनुभूति " की सँपादीक कवियत्री श्रीमती पूर्णिमा बर्मन जी सुना है शारजाह ( यु.ए.ई.) से पधार रहीँ हैँ। जिन से मेरी मुलाकात "काव्यालय" जाल घर के सौजन्य से करीब सं. १९९३ के करीब हुई थी। जब मैँने उन के लिखे कुछ दोहे उनकी वेब - पत्रिका पर पढे और "ई- मेल" से सम्पर्क किया था। जालघर ' काव्यालय ' = जिसे वाणी मुरारका जी ने स्थापित किया है और वे कलकत्ता से संचालित करतीँ हैँ काव्यालय पर कई सारी हिन्दी काव्य रचनाओं का अनूठा सँग्रह उपस्थित है।सुश्री वाणी मुरारका ने प्रोध्योगिकी विषय का सफ़ल उपयोग करते हुए व विश्वजाल मेँ हिन्दी के बढते कदम की नीँव रखी है और अपने जालघर पर अथक परिश्रम किया है। वे खुद भी अच्छी कविताएँ लिखतीँ हैँ और अपने वेब -मगेज़ीन मेँ निश्पक्षता से कई हिन्दी लिखनेवालोँ को स्थान देतीँ आयीँ हैँ और हिन्दी के लिये गहरी सँवेदना रखतीँ हैँ।
ख्यातनामा हास्य रस के सम्राट श्रीमान अशोक चक्रधर जी का आगमन भी सँभाव्य है ! अनुमान है कि, वे कवि सम्मेलन मेँ हमेशा की तरह छा जायेँगे और एक बार फिर, अपना लोहा मनवाते हुए सुननेवालोँ को हँसाते हुए लोट पोट करेँगे।
उनकी हास्य कविता मे समाज की विषम परिस्थितीयोँ को परखने की तीव्र द्र्ष्टि है जो हल्के से बात कह जाती है और बाद मेँ श्रोतागण देर तक सोचते रह जाते हैँ !
" सृजनगाथा " के भीष्म पितामह श्रीमान जयप्रकाश मानस जी के आगमन से हिन्दी के कार्य को बल मिलेगा। उनकी पैनी निगाह से विश्वजाल की कोई भी प्रगति, दिशा या आविष्कार अछूता नहीँ ! वे बहुआयामी पत्रिका के सफल सँपादक ही नही है, अपितु बडे धैर्य से छत्तीसगढ जैसे भारत के एक ग्रामीण व शहरी अँचलोँ की दोहरी सँस्कृति को समेटे, अपने निबँधो मेँ सँयत भाषा प्रयोग करते हुए, कम शब्दोँ मेँ बहुत कुछ कह जाते हैँ।
" सृजनगाथा " के भीष्म पितामह श्रीमान जयप्रकाश मानस जी के आगमन से हिन्दी के कार्य को बल मिलेगा। उनकी पैनी निगाह से विश्वजाल की कोई भी प्रगति, दिशा या आविष्कार अछूता नहीँ ! वे बहुआयामी पत्रिका के सफल सँपादक ही नही है, अपितु बडे धैर्य से छत्तीसगढ जैसे भारत के एक ग्रामीण व शहरी अँचलोँ की दोहरी सँस्कृति को समेटे, अपने निबँधो मेँ सँयत भाषा प्रयोग करते हुए, कम शब्दोँ मेँ बहुत कुछ कह जाते हैँ।
हिन्दी के इस महायज्ञ मेँ इन सारे महानुभावोँ की " आहुति", " यज्ञ ज्वाला " को परिमार्जित करते हुए यशस्वी बनायेगी ये मेरा विश्वास है।
यहाँ अमरीका मेँ बसे, श्री अनूप भार्गव जी, डो. अँजना सँधीर जी,रससिध्ध कवि श्रीमान राकेश जी खँडेलवाल, कनाडा से कवियत्री श्रीमती मानोशी चटर्जी,श्री समीर लाल जी इत्यादी कई सारे लोगोँ के आने की सँभावना है।
भारत सरकार के बाहरी गतिविधियोँ के मँत्री मँडल ने ( External Affairs Ministry ) यह आँठवा -८वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन, १३, १४ और १५ जुलाई के तीन दिनोँ मेँ न्यु योर्क शहर मेँ आयोजित करना तय किया तब उस स्थल का भी चुनाव हुआ जहां सभागार होगा। " फेशन इन्स्टीट्य्ट ओफ टेक्नोलोज़ी " (जो कि २७ वीँ गली - ७ वेँ एवेन्यु पर स्थित है ), वहाँ सम्पन्न होना निस्चित्त किया गया है।
भारत सरकार के बाहरी गतिविधियोँ के मँत्री मँडल ने ( External Affairs Ministry ) यह आँठवा -८वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन, १३, १४ और १५ जुलाई के तीन दिनोँ मेँ न्यु योर्क शहर मेँ आयोजित करना तय किया तब उस स्थल का भी चुनाव हुआ जहां सभागार होगा। " फेशन इन्स्टीट्य्ट ओफ टेक्नोलोज़ी " (जो कि २७ वीँ गली - ७ वेँ एवेन्यु पर स्थित है ), वहाँ सम्पन्न होना निस्चित्त किया गया है।
उत्तर अमेरीका के प्रमुख सँघ जैसे कि, " अँतराष्ट्रीय हिन्दी समिती" "विश्व हिन्दी न्यास " - "विश्व हिन्दी समिती " इत्यादी को भारतीय विध्या भवन के अँतर्गत, इस कार्यक्रम को सफल बनाने की जिम्मेदारी सौँपी गयी है।
हर हिन्दी भाषा के चाहनेवालोँ की दुआएँ, प्रार्थनाएँ इस अंतर राष्ट्रीय सम्मेलन से साथ सँलग्न हैँ। सभी की इच्छा यही है कि आगे, हिन्दी का मार्ग प्रशस्त हो !
सँभावनाएँ कई हैँ ! किन्तु, आगे, मार्ग सर्वथा अनदेखा व अन्चिन्हा है ! परँतु हिंदी भाषा के प्रति प्रेम उत्साह व समर्पण एक निस्वार्थ परिश्रम से जुड़ा हुआ है व हिन्दी प्रेम के सम्बल में लिपटा हुआ है।
सँभावनाएँ कई हैँ ! किन्तु, आगे, मार्ग सर्वथा अनदेखा व अन्चिन्हा है ! परँतु हिंदी भाषा के प्रति प्रेम उत्साह व समर्पण एक निस्वार्थ परिश्रम से जुड़ा हुआ है व हिन्दी प्रेम के सम्बल में लिपटा हुआ है।
यदि हिन्दी भाषा जीवित रहेगी, फूलेगी - फलेगी तभी तो हमारी भारतीय सँस्कृति, हमारा वाङमय, हमारी धरोहर इत्यादि भी सुरक्षित रह पाएंगें व् आगामी पाढ़ी तक आगे जायेंगें !
जीवन यापन की आपाधपी मेँ, भारतमाता के बालक, दुनिया के सात सँमँदर पार कर के, विभिन्न प्रेदेशोँ मेँ जा बसे हैँ ! परन्तु भारतीय जन जहां कहीं भी रहें हों अपने त्योहारोँ को मनाते समय, वे भारत भूमि से सीधा सँबँध स्थापित कर लेते हैँ।
जीवन यापन की आपाधपी मेँ, भारतमाता के बालक, दुनिया के सात सँमँदर पार कर के, विभिन्न प्रेदेशोँ मेँ जा बसे हैँ ! परन्तु भारतीय जन जहां कहीं भी रहें हों अपने त्योहारोँ को मनाते समय, वे भारत भूमि से सीधा सँबँध स्थापित कर लेते हैँ।
गहरे महासागर के जल के ठीक बीचोँबीच एक शाँत, द्वीप की भाँति हमारी सभ्यता का दीप प्रज्वलित है।भारतीय अस्मिता का प्रतीक " भारतीय सभ्यता स्वरूप माटी का एक नन्हा दीप " भारत वर्ष की अखँड महा ज्योति का प्रकाश फैलाता, विश्व के कोने कोने में अहर्निश ~ अकँपित जलता रहा है। इस दीप की ज्योति, भारतीय मानस की ज्योति है। हमारे पुरखोँ के पुण्यबल की आस्था का प्रतीक है यह माटी का दीपक !
परमात्मा श्री कृष्ण से यही माँगती हूँ कि इस " दिये " का तेल कभी ना घटे !
सं. २००७ से इस दीप का प्रकाश और भी प्रखर होकर विश्व की पीडित, दमित, थकी हुई प्रजा को भौगोलिक परिस्थितीयोँ से परे ले जाकर, आत्म विश्लेक्षण का अवसर दे भारत वर्ष के तपः पूत ऋषियों के उदगार ॐ शान्तिः शान्तिः का चिर शाँति पाठ पुनः दोहराया जाये। जिस से "विश्व - शाँति " का बीज, पल्लवित हो !
भारत के विशाल वटवृक्ष - बरगद की तरह भारतीय सभ्यता विश्व में बसे प्रत्येक प्राणी को छाँव देने की क्षमता पुनः स्थापित करे और विश्व शाँति चिर स्थायी हो ! अस्तु .........आइये, हम और आप, हर प्रकार की पूर्व ग्रँथि को खोलकर, एक जुट हों। हम यथासँभव योगदान करेँ ताकि भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का परचम विश्व पर माँ के आँचल की सी सुखद छाया बन कर फहराए और भारत भारती - अँतराष्ट्रीय स्तर पर अपना गौरवपूर्ण स्थान ग्रहण कर सके।
हिन्दी भाषा की गरिमा फिर एक बार, भारतेन्दु हरिस्चन्द्र जी के शब्दोँ को चरितार्थ करे " निज भाषा उन्नति ही उन्नति का मूल है "
आओ, प्रण करेँ हिन्दी सेवा का, हिन्दी प्रेम का !
" जननी जन्मभूमिस्च स्वर्गादपि गरीयसी".
" जननी जन्मभूमिस्च स्वर्गादपि गरीयसी".
...........सत्यमेव जयते !