Wednesday, December 31, 2008

स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष, है अपार हर्ष !

स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष , है अपार हर्ष !

बीते
दुख भरी निशा , प्रात : हो प्रतीत,
जन
जन के भग्न ह्र्दय, होँ पुनः पुनीत

स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष, है अपार हर्ष !
भेद कर तिमिराँचल फैले आलोकवरण,
भावी का स्वप्न जिये, हो धरा सुरभित

स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष, है अपार हर्ष !

कोटी जन मनोकामना, हो पुनः विस्तिर्ण,
निर्मल मन शीतल हो , प्रेमानँद प्रमुदित

स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष, है अपार हर्ष !

ज्योति कण फहरा दो, सुख स्वर्णिम बिखरा दो,
है भावना पुनीत, सदा कृपा करेँ ईश

स्वागत नव वर्ष, है अपार हर्ष, है अपार हर्ष !
*****
- लावण्या
राष्ट्रकवि श्रध्धेय दीनकर जी की डायरी से सँस्मरण :
अक्तूबर २००८ विश्वा अँतराष्ट्रीय हिन्दी पत्रिका उत्तर अमरीकी हिन्दी सँस्था मेँ प्रकाशित दीनकर जी एवँ आचार्य हज़ारी प्रसाद जन्म शताब्दी विशेषाँक से
गणितज्ञ समझते हैँ कि देश और काल , ये बिँदुओँ और क्षणोँसे बने हैँ, किँतु उनका गुण सातत्य है, जो केवल अनुभव किया जा सकता है।
देश की अपेक्षा काल अधिक सूक्ष्म है देश की धारणा फिर भी स्थूल लगती है क्योँकि देश बाहर है काल की धारणा सूक्ष्म है क्योँकि वह मानसिक है समय की सीधी और त्वरित अनुभूति जो मन मेँ होती है, वह
भीतरी अनुभूति है।
एक सामाजिक या सार्वजनिक काल है, जो उस काल से भिन्न है,
जिसका अनुभव हमेँ मन के भीतर होता है,
आगस्टीनने कहा था,
" समय क्या है यह मैँ जानता हूँ, किँतु, कोई समझाने को कहे,
तो कहूँगा, मुझे मालूम नहीँ है "
काल का हमारा दैनिक ज्ञान लचीला है
सुख उसे छोटा बनाता है, दुख उसे लँबा कर देता है
कभी एक घँटा पचास घँटोँ के बराबर होता है, कभी एक घँटा क्षण भर मेँ खतम हो जाता है ।
बाहर की घडी और भीतर की घडी बराबर एक साथ नहीँ चलती ।
हमारे मन की अवस्था काल को छोटा या बडा बना देती है ।-
काल की अनुभूति हमेँ सतत प्रवाह के रुप मेँ होती है । लेकिन
भौतिकी काल के सातत्य से काम नहीँ लेती, वह उसे बिँदुओँ मेँ बाँटती है
सँभव है, देश और काल , भौतिकी मेँ दोनोँ कभी परमाणु निर्मित घोषित कर दिये जायँ । मगर हमारा मन काल के सातत्य को ही मानता है ।
काल की तुलना नदी और समुद्र से
- समुद्र बाहरी काल, नदी भीतरी काल -
नदी हमारे भीतर है समुद्र हमारे चारोँ ओर
रहस्यवादी अनुभूति जिस लोक को छूती है, उसमेँ काल नहीँ है ,वह कालातीत है
इलियट ने कहा था,
" काल से ही काल पर विजय होती है "
और
तुलसीदास का दोहा,
" पल निमेष परमानु जुग बरस कलप सर चँड,
भजसि न मन तेहि राम कहँ काल जासु कोदँड !
२९ नवँबर , १९७२ पटना
श्री अरविँद मानते थे कि कवि मनीषी नहीँ होता है ।
लोजिकल थिँकर नहीँ होता है ।
उसका ज्ञान विचारोँ मेँ नहीँ, आत्मा मेँ बसता है कवि वह वीर है, जो समर मेँ गरजता है, वह माता है, जो अपने बेटे के लिये रोती है, वह वृक्ष है, जो तूफान से काँपता है, वह पुष्प है जो सूर्य के प्रकाश मेँ हँसता है।
इन सारी स्थितियोँ को कवि अक्ल से नहीँ समझता, आत्मा से अनुभव करता है । इसीलिये, बुध्धि से लिखी गयी कविताएँ उन कविताओँ से हीन होतीँ हैँ जो सीधे, आत्मा से निकलती है।
- दिनकर

Sunday, December 28, 2008

" शांति यहीँ मिलेगी !" जी हाँ , सिर्फ़ ,कला की साधना से ...

अनुराग शर्मा :
हमारी अपनी पारुल
डा। मृदुल कीर्ति जी :
जिनके योगदान को आप यहाँ क्लिक करके देखिये --

http://www.mridulkirti.com/about.html

उपनिषदो के हिन्दी काव्यानुवाद हिन्दी साहित्य जगत को देकर
मृदुल जी ने शाश्वत काव्य का पृष्ठ ,
हिन्दी साहित्य के संग जोड़ने का अभूतपूर्व कार्य किया है --
हिन्दी साहित्य की प्रगति , आज संजाल पर भी हुई है
और यह मृदुल जी का पवित्रतम योगदान है ......
कालजयी कृतियाँ अब विश्व के कोने कोने में व्याप्त होकर
अपनी पवित्रता फैलाने को , उद्यत है .....
आज के अशांति व असमंजस के दौर में , पुनः एक बार,
भारतीय वांग्मय की गरिमा ,
हमारे , मार्गदर्शन हेतु , आगे बढ़ कह रही है ,
" शांति यहीँ मिलेगी !"
जी हाँ , सिर्फ़ ,कला की साधना से ...
हमारे अमूल्य साहित्य द्वारा पुनः स्थापित हो रही है
इस बार , सरल भाषा में , ताकि , इनका बोध सुगम बने -
और यह कठिन कार्य
एक माता और गृहिणी विदुषी सन्नारी की कृपा का
अमृत फल है जिसे वे हम सभी को सौंप रहीं है ,
इतनी सरलता से .....ये उनका बड़प्पन है।
उपनिषदो मेँ प्रयुक्त क्लिष्ट, भाषा एवँ उपदेश को ,
हमारी बोलचाल की भाषा द्वारा समझाते हुए
गेय छँदोबध्ध व कलात्मक काव्य स्वरुप मेँ प्रतुत करने का कठिन कार्य
डा। मृदुल कीर्ति जी ने किया है
इस तरह हिन्दी साहित्य की प्रगति आधुनिक युग की देन
संजाल पर भी यह धरोहर पुनर्स्थापित हुई है
और यह मृदुल जी का अभूतपूर्व योगदान है कला व साहित्य के प्रति
कालजयी कृतियाँ संवर कर सदा के लिए संजोए जाने लायक हो गईं हैं
जिसका श्रेय , मृदुल जी को देना चाहती हूँ --
****************************************************************
अब मिलिए, स्वरों की जादूगरी से !
मन मोहने की विधा में सिध्ध हस्त ,
कवियत्री तथा एक बेहतरीन गायिका से
हमारी अपनी , पारुल जी से ...

http://kushkikalam.blogspot.com/2008/06/blog-post_17.html
पारुल बड़ा सुंदर गातीं हैं और आप उन्हें सुन पायेंगें उन्हीं के हिन्दी ब्लॉग पर

http://parulchaandpukhraajkaa.blogspot.com/
इसका लिंक यहाँ ऊपर दिया है --
अबा आगे बढ़ते हैं , कवि सम्मलेन की ओर ...
ये सारे हिन्दी कवि सम्मलेन हैं।
जिन्हें " हिन्दी युग्म " ने अपनी वेब साईट " आवाज़" पर प्रस्तुत किया है --
पॉडकास्ट कवि सम्मेलन :
सदा की भांति , लाजवाब तथा सिध्ध हस्त व मधुर शैली में ,
कवि सम्मलेन का संचालन किया है -- मृदुल कीर्ति जी ने
पाँचवाँ अंक
चौथा अंक
तीसरा अंक
दूसरा अंक
पहला अंक
हाल ही में पारुल ने मुझे मेरी एक कविता सस्वर गा कर भेजी ,
आप भी सुनिए , और अवश्य बतायें, आपको यह प्रयास कैसा लगा।
हिन्दी साहित्य की प्रगति का यशस्वी सोपान देखिये ~~
यह मृदुल जी द्वारा रचित
ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्ति
कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति" कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
प्रश्नोपनिषद / मृदुल कीर्ति" प्रश्नोपनिषद / मृदुल कीर्ति
***************************************************************
और अब मिलिए , अनुराग भाई से........

जिन्हें "पित्स्बर्गिया" भी बुलाया जाता है
परन्तु उनका नाम है अनुराग शर्मा --
वे स्वयं कहते हैं,
" आपको अनुराग शर्मा का नमस्कार!
ज़्यादा कुछ नहीं है अपने बारे में बताने को।
पिट्सबर्ग में बैठकर हिन्दी में रोज़मर्रा की बातें लिखता हूँ।
शायद उनमें से कुछ आपके काम आयेंगी और कुछ आपका दिन सार्थक करेंगी."

वे पेंस्ल्वेनिया प्रांत के पित्ज्बर्ग शहर में रहते हैं और वहीं से
रेडियो प्रोग्रामका सफलता पूर्वक संचालन कर चुके हैं।
"सृजन गाथा " हिन्दी पत्रिका में उनका ये आलेख भी अवश्य देखियेगा

http://www.srijangatha.com/2008-09/nov/pitsvarg%20se.htm

Pitt Audio - पिट ऑडियो

http://pittpat.blogspot.com/

अनुराग भाई ने , अपनी स्वयं की तथा
आदरणीय श्री 'कमल' जी की कविता को स्वर दिया है ॥
अंत में स्व। मुकेश जी से सुनिये " मानस " से यह अजर अमर दोहे ....
कवि सम्मलेन अवश्य सुनियेगा --
लिंक ये रहे --
और बताएं कैसा रहा ये प्रयास -
पाँचवाँ अंक

http://podcast.hindyugm.com/2008/12/podcast-kavi-sammelan-december-2008.html

Wednesday, December 24, 2008

TLC - ये क्या है जी ? - " TLC " ??????

ये क्या है जी ? - " TLC " ?????? ( चित्र में बिन्दु भाभी जी अपनी धेवती के साथ मुस्कुराती हुईं )
ये क्या है जी ? - " TLC " ??????
SMS - युग है ना और सारे शब्द सिमट गए हैं !
...छोटे हो गए हैं ..घनता लिए पर अपने अर्थ आज भी ,
अपने में लिए हुए हैं ..यही भाषा का गुण है।
अभिव्यक्ति और इंसान से दूजे के मन तक अपनी बात समझाने की क्षमता भाषा का सबसे बड़ा गुण है -- तो शब्द किसी भी भाषा के क्यों न हों , वे क्या संदेस लेकर आते हैं और क्या कह जाते हैं यही सबसे महत्वपूर्ण बात है जो भाषा करती है - अब इत्ती लम्बी चौड़ी भूमिका लिखना इसीलिए वाजिब है क्यूंकि ऐसे ही एक एब्रीवीएटेड शब्द को चुना है आज मैंने और शीर्षक भी वही है आप में से जो लोग ऐसे आजके कम्प्यूटराइज़्ड एब्रीवीयेशन्ज़ इस्तेमाल करते हैं वे अवश्य परिचित होंगें ॥
ऐसे कई शब्दों से और " :-) .... स्माइली से भी !!

ये " TLC " भी ऐसा ही आज के चलन का शब्दों का समूह है --

" टेन्डर लविँग केर " की जगह, आजकल यही उपयुक्त होता है " TLC " !
और आज की पोस्ट ऐसे ही मानव अनुभूति के लम्हों को समर्पित है
...छुट्टी है , त्योहार है !!
भले ही क्रिसमस को कई लोग ख्रिस्ती धर्म से जुडा समझते होँ पर नये साल के पहले की यह सार्वजनिक बैन्क होलीडे का आनँद हरेक
देश मेँ, सब लोग, सुस्ता कर, रीलेक्स होकर, अपने परिवार और मित्रोँ के साथ बितायेँगेँ और हमारी यही शुभकामना है कि,
आप को भी ये टेन्डर लविँग केर मिले !! भरपूर मिले जी !!
ये मेरा बेटा सोपान नोआ के साथ
दो बहने
हमारी समधन जी , अनीता जी धेवती माया बिटिया के साथ
मेरी सहेली मारिया बदानी अल्मास और मुफज्ज़ल के साथ
नाना जी दीपक , नोआ बेटे के साथ :)
अनेक नन जीसस क्राइस्ट को भक्तिभाव से पूजतीँ हुईँ
माँ मरियम शिशु इशु के साथ
और ये माधुरी जी उनके पुत्र के साथ !!
अंत में , यशोदा का नन्द लाला , वात्सल्य , प्रेम, अपनापन, मृदुता , करुणा, सौहार्द्र,सहानुभूति , प्यार, सेवा सुश्रुषा जैसे कितने सारे रूप हैं जो इस शब्द में समाहित हैं : " TLC " !
इंसान सदा इन `सद्`गुणों की अनुभूति पाकर,
सही मायने में इंसानियत क्या होती है उसे महसूस करता है -
जिन व्यक्तियों के जीवन में इन मृदु भावनाओं का अभूव होता है
ऐसा सुनते हैं , वैसे लोग , कठोर ह्रदय के, हताश , निराश , मनोरोगी या विकृत इन्सान बन जाते हैं -
इस कारन से भी इस नन्हे शब्द की महत्ता , बहुत बड़ी है -
इंसान की स्वानुभूति सिध्ध सिद्धियों के पीछे ,
इस नन्हे शब्द " टेन्डर लविँग केर " का बहुत अहम् योगदान है --
समाज में , हम सभी अपनी अपनी जगह और मुकाम पाना चाहते हैं -
चाहे वह आभासी जगत हो या असल जीवन -
कोई अछुता नही अगर आप इंसान हो तब ,
आप दूजे से मानवीय सद्`व्यवहार की अपेक्षा करते हैं -
इसीलिए कहागया है ना ,
" Man is a Social animal "
बड़े बड़े जोगी भी माँ के दुलार से ही , युवा हुए और अपने अपने आत्मा से प्रेरित पथ पे चलकर सिध्ध और बुध्ध हुए
चाहे शंकराचार्य हों या सिद्धार्थ बुध्ध या रमन महर्षि हों या गांधी या ईशु ,
माँ के दुलार से सभी का जनम संवरा है !
पिता बहन, भाई, बहन मौसी, मामा बुआ नाना नानी दादा दादी परिवार का विस्तार ही समाज की बुनियाद बना है और समाज का फैलाव
पूरा विश्व है और सिमटे तो व्यक्ति और घर !
काश कोई इंसान ,
इस " टेन्डर लविँग केर " से वंचित ना रह जाये
ताकि वह एक अच्छा इंसान बन पाये !!
-- लावण्या






Monday, December 22, 2008

५* तापमान कैसा होगा ? देखना चाहेंगें ?

ये महिला न्यू यार्क के पार्क में थक कर सुस्ता रहीं हैं ...
सभी टेबल व कुर्सियां बर्फ से भरी हुईं हैं ऐसे में वेटर महाशय भी नदारद हैं :)
...कल , मेरे शहर में ५ * तापमान था !
कडाके की ठण्ड पडी !
...बाहर कार में बैठने जाओ , तब भी लगे की कब , घर के भीतर जाएँ ! बाबा रे !
अब देखिए कुछ चित्र , जो अमरीका के विविध शहरों से लिए गए हैं ....
जहाँ , हमारे शहर से भी नीचे तक तापमान गया था ...
शिकागो, विस्कांसिन , बफेलो, मीनेसोटा, न्यु हेम्पशायर , मिल्वोकी , बोस्टन, न्यू जर्सी , न्यू यार्क, आईओवा , पेन्सिल्वेनिया , कनेटिकट , वोशिंग्टन, मेरी लैंड , ये सारे उत्तर पूर्वी इलाके के बड़े बड़े प्रांत , कल , बेहद ठण्ड का सामना कर रहे थे।
पश्चिमी प्रान्तों में भी काफी ठण्ड रही ...
अमरीकी जीवन शैली की ये एक ख़ास बात है
यहाँ हर तरह के बदलाव के साथ ,
जन जीवन यूँ ही , अबाध गति से , व्यस्तता से , जारी रहता है।
काम चलता ही रहता है।
जैसी भी परिस्थितियाँ हों , उनसे झूझने के उपाय फ़ौरन लागू किए जाते हैं
और जन - जीवन को सामान्य बनाने के उपाय , शीघ्र लागू करना हरेक प्रांत की नगर निगम सेवा का जिम्मा है ... और जनता से लिया गया " कर " माने " टैक्स" , इस्तेमाल होता हुआ , आप , हर जगह पर देख सकते हैं।
सबसे पहले ये देखिये,
बाहर क्रेब एप्पल के पेड़ पर , " फिंच " नामक पक्षी बैठा है ...सुंदर है ना ?
बिल्कुल hallmark कार्ड के जैसा ....
और जब जब स्नो गिरती है , लोग अपने घरों के बाहर एकत्रित हुई स्नो को इस तरह स्नो शवल से , दूर करते हैं ....
बहुत कड़े परिश्रम का काम होता है ये ॥
स्नो वजनी होता है और जिन्हें कमजोर दिल की आरोग्य की समस्या हो
उनके लिए ये काम खतरनाक भी साबित होता है -
और ये एक रास्ता क्रोस करते हुए जनाब हैं ,
उनका चेहरा दीखता ही नहीं इतना स्नो गिरा है -
- गाडियां रास्तों पे आ - जा रहीं है - यातायात , इस हालत में भी , जारी है -- काम पे जो जाना है ! जहाँ बिल भरने हों वहां , विपरीत परिस्थिति हो , फ़िर भी रोना कैसा ? रुकना कैसा ?
अमेरीकी नगर निगम ऐसे ट्रेक्टर नुमा मशीन का इस्तेमाल करती है जो रास्तों पर से , स्नो को हटाते हैं और रास्तों पर नमक भी छिड़का जाता है जिससे बर्फ पिघल जाती है !

रास्ते साफ़ किए जाते हैं और हवाई जहाजों को भी स्नो रहित किया जाता है इस तरह , मशीन से , ऊपर जा कर , केमिकल स्प्रे किया जाता है
जिससे बर्फ पिघल जाती है -
इस प्रक्रिया को , " di -icing " कहते हैं --
जब कंट्रोल रूम से , पायलट को स्वीकृति मिल जाती है
उसके बाद ही उड़ान के लिए यात्री विमान में , सवारी के लिए आमंत्रित किए जाते हैं -- यहाँ एक कर्मचारी यही काम कर रहा है --
तब तक सारे यात्री , इन्तेजार करते हैं , प्रतीक्षा लाउंज के विशाल कमरे में लगे विशाल शीशे से बाहर की गतिविधि का निरिक्षण करते हैं।
अमेरीका में आर्थिक मंदी के रहते हुए भी , क्रिसमस के सबसे बड़े त्यौहार के आने से , असंख्य नागरिक , एक हिस्से से दुसरे तक यात्रा करेंगे
अपने परिवार के लोगों के साथ मिलकर , छुट्टी बिताना पसंद करेंगे।
स्नो गिरे या बरखा , गरमी हो या लू चले, काम काज चलता ही रहता है
शायद यही आज के अत्यन्त व्यस्त जीवन शैली की देन है समाज को !
अब क्या भारत या क्या विदेश ? सभी व्यस्त हैं ! अपने अपने कार्यों में !
२००८ का ये साल कई विभिन्न तथ्यों को लेकर सामने आया ......
और अब समापन की और अग्रसर हो रहा है।
रह गए , शेष ५ दिवस ।
आशा है ये सभी के लिए सुख शान्ति सुकून लेकर आएं
और आनेवाले नव -वर्ष में भी सुख शान्ति और अमनो चैन कायम रहे।
विश्व प्रगति के पथ पर आगे बढे और दुखी गरीब और हताश मन को
नई आशा और उमंग का तोहफा मिले ....
***************************************************
नव वर्ष मंगल मय हो !






Monday, December 15, 2008

लाल कोट और लाल टोपी पहने , ये महाशय

आहा ! देखिये , आसमामें पंछी उड़ रहे हैं और ऐसा द्रश्य बना हुआ है मानो , आसमान मुस्कुरा रहा है :-) ....
हो सकता है शायद , लाल कोट और लाल टोपी पहने
इन महाशय को देख कर खुशी का माहौल बना हो !
( आज की पोस्ट , उन सभी के लिए है जो ,
बचपन को भूले नहीं और जिन्हें बच्चों से प्यार है )

" जीन्गल बेल , जीन्गल बेल , जीन्गल ओल ध वे ....सान्ता क्लोज इस कमिंग अलोंग , इन एन ओपन स्ले ..हे ... जीन्गल बेल , जीन्गल बेल ...."
http://www.youtube.com/watch?v=8hY85lqDvmw&feature=related


जी हाँ , ये सान्ता क्लोज़ हैं !! आप उन्हें किसी भी नाम से पुकारो
हम्म ...संत निकोलस , क्रिस क्रींगल, क्रिसमस पिता
ये ऐसे कई नाम से पहचाने जाते हैं और दुनिया भर के बच्चे
इनका बेसब्री से इंतज़ार करते हैं !

http://www.youtube.com/watch?v=pmuJDmjq-xQ&feature=related
अब, बच्चों का मन तोडा तो नही जाता ना !
और क्यूं ना आप भी बच्चे बन जाएँ ?? :)

बड़ी बड़ी उम्म्मीदें लगीं होतीं हैं सान्ता क्लोज़ जी से !!
और सान्ता की मदद करने के लिए एक पूरी टीम एल्फ की
भी तैयार रहती है ...
और मिसिज क्लोज़ रसोई घर में , कुकी, केक, पाई , बिस्कुट , केंडी
भी तैयार करा रहीं हैं .... बच्चों को देने के लिए ..
साल भर सान्ता क्लोज़ और मिसिज क्लोज़ बच्चों के लिए,
खिलौने तैयार करवाते हैं और जादूई थैले में उन सारे गिफ्ट को भर कर ,
नॉर्थ पोल से बर्फ से घिरी गलियों से, सान्ता क्लोज़ आवाज़ लगाते हैं,
अपने प्यारे और वफादार स्ले खींचनेवाले पालतू रेँडीयरोँ को ~
~~ जिनके नाम हैं,

रुडोल्फ़, डेशर, डांसर , प्रेन्सर, विक्सन, डेँडर, ब्लिटज़न, क्युपिड और कोमेट।


सान्ता क्लोज़ ख़ास तौर से क्रिसमस के त्यौहार में ,
बच्चों को खिलौने और तोहफे बाँटने ही तो उत्तरी ध्रुव पर आते हैँ
बाकि का समय वे लेप लैन्ड , फीनलैन्ड में रहते हैं --

बहुत बरसोँ पहले की बात है जब साँता क्लोज और उनके साथी
और मददगार एल्फोँ की टोली ने जादू की झिलमिलाती धूल,
रेँडीयरोँ पर डाली थी उसी के कारण रेँडीयरोँ को उडना आ गया !!


सिर्फ क्रिसमस की रात के लिये ही इस मैजिक डस्ट का उपयोग होता है
और सान्ता क्लोज़ अपना सफर शुरू करे उसके बस ,
कुछ लम्होँ पहले मैजिक डस्ट छिड़क कर , शाम को ,
यात्रा का आरम्भ किया जाता है !
और बस ! फुर्र से रेँडीयरोँ को उडना आ जाता है और
वे क्रिसमस लाईट की स्पीड से उड़ते हैं ...बहुत तेज !


http://www.youtube.com/watch?v=E3vQUx14Lcs&feature=related


संत निक के बच्चे उनका इन्तजार जो कर रहे होते हैं ...
हर बच्चा, दूध का गिलास और ३, ४ बिस्कुट सान्ता के लिए
घर के एक कमरे में रख देता है ...
और जब बच्चे गहरी नींद में सो जाते हैं और परियां उन्हें ,
परियों के देस में ले चलती हैं , उसी समय, सान्ता जी की ,
रेँडीयर से उडनेवाली स्ले हर बच्चे के घर पहुँच कर
तोहफा रख फिर अगले बच्चे के घर निकल लेती है ................
आप सान्ता का सफर यहाँ देख सकते हैं
ताकि आपके घर पर वे कब तक पधारेंगें उसका सही सही अंदाज़ ,
आप लगा सकें ....क्लीक करें ....
.http://www.noradsanta.org/en/home.html

Wednesday, December 10, 2008

मातृभूमि पर शीश चढाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक

कहते हैँ सच्चा बहादुर वही होता है जो दूसरोँ के प्रति मृदु व्यवहार करना जानता हो !
ईश्वर की ओर उठा हुआ हाथ
मनुष्य की आत्मा से उठती पुकार है .....प्रभू , थाम लो हाथ !
मुम्बई शहर को आतंक से मुक्ति दिलवा कर , बस पे सवार हो , वहाँ से , जाते हुए वीर बहादुर सैनिक , दबी हुई मुस्कान लिए, गुलाब के फूल थामे, विक्टरी या विजय की निशानी दिखाते हुए , हाथ हिलाते चले गए .....वही कविता याद दिलाते हुए,
" उस पथ पर तुम देना फेंक
मातृभूमि पर शीश चढाने,
जिस पथ जाएँ वीर अनेक,
चाह नहीं मैं, सुर बाला के,
गहनों में गूंथा जाऊं "
श्री। माखन लाल चतुर्वेदी जी की अमर पंक्तियाँ ही सही भाव प्रकट करने में सक्षम हुई हैं !
हम भारत के जाँबाज सिपाहीयों को सलाम करते हैं ..

"शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा "

"कुछ याद उन्हें भी कर लो,
जो लौट के घर ना आए ....
जो लौट के घर ना आए ......."
कृपया क्लीक करें नाम पढने के लिए
अमर शहीदों को सलाम कीजिये ......

वंदे मातरम !!

"अब कोई गुलशन ना उजडे , अब वतन आजाद है .....
हरेक भारत माँ के सपूत को भारत माँ की रक्षा करने का प्राण पण से निश्चय करना होगा .....देश की भूमि आपको पुकार रही है ,
आगे बढो ,
भारत माता तुझे , शत शत नमन है !





Friday, December 5, 2008

मुठ्ठी बँद रहस्य से

महाराणा प्रताप मुठ्ठी बँद रहस्य से
आत्मदानी, आत्ममानी, आन का हिम्मतवान
वह सीँचता है वह जगत का खेत जीवन धार से !
अपने स्वयँ के पुरुषार्थ से इस जगत की हरियाली को सीँचने वाले वीर पुरुष विरले होते हैँ -यह नीर प्रेम की धारा है जो आज के स्वार्थ, ईर्ष्या, कटुता, धृणा, मज़हब के नासमझ ज़ुनुनी , छोटे दायरोँ मेँ कैद , ऐसे बौने ह्र्दयी मनुष्य भूला चुके हैँ -प्रेम ऐसी पवित्र धारा है जिसे सिर्फ "महावीर " ही लूटा पाता है --

जगत के लिये, दूजोँ के लिये, परायोँ के लिये, अपने से अलग ,हर इन्सान के लिये !

ऐसे वीर ही जग की दलदल से उपर उठ पाते हैँ कीचड मेँ खिले अकँप कँवल की तरह -हर गँदगी से उपर , ईश्वर की पवित्र सूर्य किरणोँ मेँ वे अपनी सुँदरत बिखेरते , अपने ह्र्दय कँवल की हर पँखुडी खोले, पवित्रता व सौँदर्य के ईश्वरी प्रसाद की तरह खिले हुए ईश्वर के शाँति दूत , श्वेत खग की तरह अमर सँदेसा देते हैँ

- कवि श्री नरेन्द्र शर्मा की कविता उनकी पुस्तक

" मुठ्ठी बँद रहस्य से ~~~ "
" सच्चा वीर "
वही सच्चा वीर है, जो हार कर हारा नहीँ

आत्म विक्रेता नहीँ जो, बिरुद बन्जारा नहीँ !

जीत का ही आसरा है, जिन्ह के लिये,

जीत जाये वह भले ही, वीर बेचारा नहीँ !

निहत्था रण मेँ अकेला, निराग्रह सत्याग्रही,
ह्र्दय मेँ उसके अभय, भयभीत,
हत्यारा नहीँ ,

कौन है वह वीर ?

मेरा देश भारत -वर्ष है !

प्यार जिसने किया सबको, किसी का प्यारा नहीँ !-

- स्व नरेन्द्र शर्मा





Wednesday, December 3, 2008

मदर इंडिया




आज थॉमस फ्रीडमेन का आलेख पढ़ कर " मदर इंडिया " फ़िल्म की याद हो आई -- आप भी इसे देखें : ~~~
जी हाँ येही फ़िल्म याद आ रही है आज मुझे ...
और नर्गिस जी का रोल ॥
जहाँ वे अपने पति के जाने के बाद , ३ बेटों को जातां से, कड़ी मेहनत कर के बड़ा करतीं है ...
और जैसा की समाज में हमेशा होता है अच्छाई और बुराई हमेशा साथ दीखाई देती है, वहाँ जमींदारों के जुल्म किसान पर कहर बरपाते हैं। खेत में उगा अनाज, ब्याज देने में छीन लिया जाता है -
सुनील दत्त जी सबसे छोटे पुत्र को माँ , गोली मार देती है क्यूँकि वे डाकू बन जाते हैँ और निर्दोषोँ पर जुल्म ढाते हैँ !
ये फ़िल्म का क्लाइमेक्स है --
अगर बच्चे बुराई की पराकाष्टा पर पहुँच जाएँ , तब , एक माँ के सामने दूसरा विकल्प नहीं रहता --
और माँ , चंडिका का रूप भी धर लेती है -
ये मधर इँडिया फिल्म का सबलीमल मेसेज था !
आज अगर इस्लाम धर्म के अनुयायी , मासूम और निर्दोष के खून की होली खेलने लगे हैं तब क्या जो सही अर्थ में , खुदा की बंदगी करते हैं , उन्हें , अपने ही लोगों में से , जो सच्चे खुदा के अनुयायी हैं , उन्हें , जो मासूमोँ का खून बहाते हैँ उनका , विरोध नही करना चाहीये ?
बेजी के ब्लॉग पर , आतंकी इमरान की जर्नलिस्ट से हुई बातचीत पहली बार सुन कर इतना अवश्य पता चला के, आतंकी बनते हैं उन्हें , क्या क्या भारत के विरोध में सीखाया जाता है और कैसे कैसे , मुद्दे इन आतंकियों के जहाँ में , बारूद की तरह जल रहे हैं --
(१) एक मुद्दा है बाबरी मस्जिद का -
अब उन्हें ये भी पूछिए के बाबर हिन्दुस्तान आया था और मस्जिद बना ने के लिए , कई मंदिरों को तोड़ कर ही मन्दिर की जगह मस्जिदें बनाईं गईं --
क्यूं ना इन विवादीत जगहों पर , अस्पताल बनाए ?
जहाँ हर कॉम के इंसानों का एक सा इलाज हो ?
विवाद की जड़ों को ही मिटा दिया जाए ?
मुझे लगता है ये मेरा मासूम तर्क है
-- क्यूंकि अगर किसी को मज़हब का नाम लेकर सिर्फ़ नफरत ही फैलानी है और शांति और अमन चैन की बात को खून की होली में तब्दील करना है उन्हें बाबरी मस्जिद का मुद्ददा ख़तम होते ही और कोई , तकलीफ शुरू हो जायेगी ! है ना ?
( २ ) दूसरी बात ये आतंकी इमरान कहे जा रहा था के उनकी मतलब मुस्लिम कौम के लोगों के साथ हो भेदभाव और बुरा सलूक हो रहा है - उनके बच्चे भूखे हैं !
नौजवानोँ को रोजगार नहीँ मिल रहा इत्यादी --
ये अशाँति और क्रोध युवा पीढी मेँ आक्रोश की हद्द तक शायद हर कौम के नवयुवकोँ मेँ देखा जा सकता है जिसका ये तो मतलब नहीँ कि आप A.K. ४७ राईफलेँ लेकर के और बम लेकर के निर्दोष आम जनता के सभी को भून दो !
गुस्से की आग मेँ हर किसी को जला कर राख कर दो ! :-(((((
बदलाव लाने के लिये शिक्षित होना भी जरुरी है -
हुनर सीखना जरुरी
है कायदे का पालन करना जरुरी है
ना के मनमानी और खून खराबा करना और सिर्फ आपके धर्म ग्रँथ को ही श्रेष्ठ मानते हुए , गलत मतलब निकालना !
- भगवद गीता हिन्दूओँ के लिये पवित्र ग्रँथ है
- वह आपको सत्कर्म की प्रेरणा देता है -
अगर हिन्दू युवा ऐसी तबाही पाकिस्तान या कोई ईस्लाम पालन करने वाले प्रदेश मेँ घुसकर ऐसी खूनखराबी और तबाही करेँ तब मैँ उसका भी ऐसे ही कडे शब्दोँ मेँ विरोध करुँगी -
क्या पूरा पाकिस्तान और हरेक ईस्लाम धर्म का अनुयायी ऐसे आतँकी हमले को सही मानता है ? -
- ईस्लाम पाक है - खुदा का करम है -
तब जो स्मगलीँग करते हैँ, व्याभिचारी हैँ शराब, वेश्यावृति करते हैँ -
ऐसे लोग कैसे सच्चे ईस्लाम के रहनुमा कहलाते हैँ ?
बुरा काम खुदा की नज़रोँ मेँ बुरा ही रहेगा -
चाहे जो भी इन्सान उसे करेगा -
खुदा के कहर से डरो --
मासूम ज़िँदगी से खेल बँद करो -
आज के इसी "मुँबई" शहर मेँ सलमान खान, आमीर खान और शाहरुख खान करोडोँ के मालिक हैँ !
- शबाना आज़मी, प्रेम आज़मी जग विख्यात हैँ और आराम से रहते हैँ जावेद अख्तर साहब के गाने हिन्दुस्तान का हरेक बच्चा गाता है !
उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ साहब की शहनाई को हरेक भारतवासी कृष्ण कनैया की मुरली की तरह दीव्य मानता है !
उन्हेँ सभी भारतवासी प्यार करते हैँ -
आतँकीयोँ को इनकी " सक्सेस स्टोरी " क्यूँ नहीँ दीखाई देती ?
वे भी भारत के सफल नागरिक हैँ - जो अपने बलबूते पर सफल हुए हैँ -
अब्दुल कलाम जैसे वैज्ञानिक राष्ट्रपति बने हैँ भारत मेँ !
-- उनकी सफलता का श्रेय किसे देँ ?
कश्मीर का एक और हिस्सा अगर इन आतँकीयोँ को मिल जायेगा तब क्या वे सँतुष्ट हो जायेँगेँ ? जी नहीँ !!!
जिन्हेँ अपना राज ही चलाना है और अपनी मरजी चलानी है उन्हेँ किसी करवट चैन नहीँ आता -
अमनो चैन उन्हेँ नहीँ चाहीये -
सिर्फ लडना झघडना और खून खराबा और तबाही करना ही उन्हेँ पसँद है -
धर्म की आड लेकर या और कोई ऊसूल को आगे कर फ़िर जंग !!
- इन्सान इन्सान के साथ शाँति से रहना सीखे तभी एक सभ्य और सुसँकृत समाज की नीँव पडती है
- अन्यथा मानव का इतिहास , प्रगति नहीँ अधोगति की ओर अग्रसर होता है जहाँ हम उसे जाने नहीँ देँग़ेँ --
ध स्पिरीट ओफ मुम्बई अन्ड इन्डिया वील बी स्ट्रोँगर !!!

Monday, December 1, 2008

वंदे मातरम !

मोशे नाम है इस सुनहरे भूरे बालोँ वाले प्यारे नन्हे मुन्ने बच्चे का -
यहूदी माता, रीवाक और रबाइ गवीरल नोष होल्ज़्बर्ग का पुत्र है ये अनाथ मोशे ! मम्मी ....मम्मी ...मम्मी ...के आक्रंद से गूँज रहा था वातावरण और पूजा हो रही थी ॥अन्तिम सम्मान दिया जा रहा था मृतक युगल को ...
और मोशे बिलख रहा था ...
वंदे मातरम !
भारत माता स्वतन्त्र और सुरक्षित रहतीं हैं जब् उसके बहादुर सपूत , माता की रक्षा करते हुए जान की बाजी लगाते हुए अपना सर्वस्व अर्पण कर देते हैं। ये तस्वीर देशभक्त अमर शहीद सँदीप उन्नीकृशणन की है --
( उनकी बिलखती माँ धनलक्ष्मी जी उन्हेँ अँतिम बार दुलारते हुए :-((
धनलक्ष्मी जी के इस दुःख का, कोइ उपाय है क्या आज, किसी के पास ???
मोशे के इस दुःख का, कोइ उपाय है क्या आज, किसी के पास ???

मोशे इज्राईके लिए रवाना हो चुका है इतिहास का यह् खूनी पन्ना फडफडाता हुआ गिर कर खून के धब्बों से गंदा होकर गिर पडा है और ये खून आंसुओं के सैलाब से अभी तक धुल नही पाया।

नीचे की तस्वीर में पुजारी जिस रबाई कहते हैं यहूदी धार्मिक विधि से एक दम्पति का विवाह करवाते नज़र आ रहे हैं - गवीरल नोष - और उनकी पत्नी रिवाक भी नव वधु के बगल में खडी हैं --
और अंत में .................जितने , आतंकवादी मार गिराए गए , ९ , आतंकी , उनके शव कहाँ दफनाये जायेंगें ? क्या पाकिस्तान उन्हें , जगह देगा ? उनकी माताएं , रास्ता देख रही होंगीं ? शायद , उनके घर भी कोइ बहन हो ...क्या ये खूनी आतंकी , इन बहनों के साथ भी इसी तरह का नृशंश व्यवहार करते होंगें ? जैसे अफ़ग़ानिस्तान की स्कुल जाती लड़कियों पे उन्हीं के लोगों ने , तेजाब फैका और मुंह जला दिए थे ?
आख़िर क्यूं ? क्या चाहते हैं ये आतंकी ? और क्या , उनका दीनो धर्म उन्हें ऐसे नापाक काम करना सिखलाता है ? या , धर्म का नाम बदनाम करनेवाले , इनका दीमाग , अधकचरे उसूलों से , जहर लिपटे , अमानवीय तौर तरीके सीखलाता है जिसके असर में आकर , ये कम उमर के लड़के , खूंखार आतंकी बन कर मौत का तांडव रचते हैं ? ................
हे परम कृपालु ईश्वर, आप सर्व शक्तिमान हो ....
ऐसे अमानवीय विचारों को , नेस्त नाबूद कर दो ....
आप , ही हरेक धर्म के ईश्वर हो !
....कृपा कर दो ! अब बस बहुत हुआ .......
भारत माता की जय ! अमर शहीदों की जय !!