Thursday, November 29, 2007

"डा. हरिवँश राय बच्चन " / Dr.Hariwansh Rai " Bachchan "



देखेँ लिन्क : ~~~

ख़जाना !!!!

ये ४० लख रुपये से बनी, असली रेशम और ज़री की कारीगरी से बनी साडी है जिस पर राजा रवि वर्मा की कलाकृति को हुबहु उकेरा गया है - दक्षिण भारत की सिने तारिका इसे थामे मुस्कुरा रहीँ हैँ
अब ये विश्व के सुप्रसिध्ध नगीनोँ की दमकती हुई झलक है !
यहाँ पर दर्शाया गया एक ,एक रत्न बेशकिमती है -
1) ऊपर की पँक्ति मेँ जो पीले रँग का चौकोर हीरा है उसका नाम "टीफनी डायमँड" है --
जिसे न्यु -योर्क शहर मेँ , फीफ्थ ऐवेन्यु पर स्थित उनकी दुकान मेँ प्रमुख आकर्षण के तौर पर रखा गया है और वो मैँने वहीँ पे रखा हुआ देखा है -
जो लीफ्ट -मेन था उसने मज़ाक मेँ हमसे इस रत्न की ओर इशारा करते हुए कहा कि " अगर मैँ एक बढिया चीज़ आपको दीखलाऊँ तो वादा करिये कि आप उसे यहाँ से ले नहीँ जायेँगेँ ! " -
और ऊँगली इस हीरे के शो केस की तरफ उठाई थी
और हम इस बेशकिमती,रत्न की चकाचौँध देखते ही रह गये ...


और ये हैद्राबाद के निज़ाम की शाही साफे पे बाँधीजानेवाली "कलगी" है - जिसमें दुर्लभ रत्न पन्नोँ का हरा रँग व हीरे इसे एक बेनमून कालाकृति बना रहे हैँ

ओहो ये है $100,000 अमेरीकन डालर का नोट !! * Click on the image for a larger view.

A link on the Federal Reserve Bank of San Francisco Web site shows the front and reverse of the $100,000 note.

You're not likely to get one of these as a tip.

Only 42,000 of these $100,000 bills were ever printed, and none have been created since January of 1935.
"The largest note ever printed by the Bureau of Engraving and Printing was the $100,000 Gold Certificate, Series 1934.
इन नोटोँ को अमरीकी मुद्रण प्रणाली से बनाया गया Dec. 18, 1934 से Jan. 9, 1935 की कालावधि के बीच ..
(They were issued by the Treasurer of the United States to Federal Reserve Banks only against an equal amount of gold bullion held by the Treasury.)
इन नोटोँ का चलन केन्द्रीय रीझर्व बेन्कोँ के बीच आदान -प्रदान के लिये ही किया जाता रहा और आम जनता के लिये इनका उपयोग कभी नहीँ हुआ "

http://www.ustreas.gov/education/fact-sheets/currency/fort-knox.html

द्वीतीय विश्व युध्ध के समय अमरीकी सुवर्ण भँडार : 649.6 million troy ounces (20,205 metric tons). वर्तमान सुवर्ण मात्रा अनुमानत्: 147.3 million ounces[1]

Wednesday, November 28, 2007

(" पँडित नरेन्द्र शर्मा की " षष्ठिपूर्ति " के अवसर पर डा. हरिवँश राय बच्चन के भाषण से साभार उद्`धृत )

स्वर कोकिला सुश्री लता मंगेशकर
पँडित नरेन्द्र शर्मा की " षष्ठिपूर्ति " के अवसर पर , माल्यार्पण करते हुए
कविवर श्री सुमित्रानँदन पँत ,पँडित नरेन्द्र शर्मा ,डा. हरिवँश राय बच्चन

" छायावाद के जितने कवि थे वे हमारे लिये एक प्रकार से आदर्श रहे और इस समय मैँ बडे आदर के साथ श्री सुमित्रानँदन पँत का नाम लेना चाहूँगा,बल्कि हम दोनोँ ही नरेन्द्रजी और मैँ, दोनोँ ही ...हम दोनोँ ही पँतजी की कविता के बडे प्रेमी थे. वे हमारे आदर्श थे.कविके रुप मेँ भी वे हमारे आदर्श थे और उनको आदर्श बनाकर उनसे कुछ सीख कर हम लोग कुछ आगे बढे! ..जब हम लोग आये, तो हमे ऐसा मालूम हुआ, शायद हिन्दी कविता को मनीषा की आवश्यकता थी, कि हम इस कविता मेँ जीवन के सँपर्क को लायेँ और मैँ इस समय स्मरण करता हूँ कि नरेन्द्र और अँचल ये दो, ऐसे कवि हमारे समकालीन हैँ....हम लोगोँने कविता को एक नयी भूमि पर, जीवन के अधिक निकट लाने का प्रयत्न किया. योँ तो नरेन्द्र जी इन चालीस वर्षोँ मेँ हमारी हिन्दी कविता जितने सोपानोँ से होकर निकली है, उन सब पर बराबर पाँव रखते हुए चले हैँ. शायद प्रारम्भिक छायावादी, उसके बाद जीवन के सँपर्क माँसलता लेते हुए ऐसी कविताएँ, प्रगतिशील कविताएँ, दार्शनिक कविताएँ, सब सोपानोँ मेँ इनकी अपनी छाप है. ...मैँ आपसे यह कहना चाहता हूँ कि प्रेमानुभूति के कवि के रुप मेँ नरेँद्रजी मेँ जितनी सूक्षमताएँ हैँ और जितना उद्`बोधन है , मैँ कोई एक्जाज़्रेशन ( अतिशयोक्ति ) नहीँ कर रहा हूँ , वह आपको हिन्दी के किसी कवि मेँ नहीँ मिलेँगीँ उस समय को जब मैँ याद करता हूँ , तो मुझे ऐसा लगता है , भाषाओँ से हमारी कविता ने एक ऐसी भूमि छूई थी और एक ऐसा साहस दिखलाया था, जो साहस छायावादी कवियोँ मेँ नहीँ है ! वह जीवन से निकट अनुभूतियोँ से ऊपर उठकर ऊपर चला जाता था, यानी उसको छिपाने के लिये , छिपाने के लिये तो नहँ, कमसे कम शायद वह परम्परा नहीँ थी ! इस वास्ते उस भूमि को वे छूते ही नहीँ थे , लेकिन जन नरेन्द्र आये, तो उन्होँने जीवन की ऐसी अनुभूतियोँ को वाणी दी, जिनको छूने का साहस, जिनको कहने का साहस, लोगोँमेँ नहीँ था. यह केवल अभिव्यक्ति नहीँ थी, यह केवल प्रेषण नहीँ था, यह उद्`बोधन यानी जिन अनुभूतोयोँ से कवि गुजरा था, उहेँ औरोँ से अनुभूत करा देना था ! नरेन्द्र जी की कविताएँ प्रकृति - सँबँधी भी हैँ ..एक बात मेँ मुझे नरेन्द्रजी से ईर्ष्या थी, वह यह कि जब मैँ केवल गीत ही लिख सका, ये खँडकाव्य भी लिखते रहे और कथाकाव्य मेँ भी इनकी रुचि प्रारम्भ से रही है. मैँ अपनी शुभकामनाएँ इनको देता हूँ , आशीर्वाद देता हूँ और उनसे स्वयम्` , ब्राह्मण ठहरे, आशीर्वाद चाहता हूँ कि भई, मुझे भी ऐसी उम्र दो कि तुम्हारा वैभव और तुम्हारी उन्नति देखता रहूँ !

(" पँडित नरेन्द्र शर्मा की " षष्ठिपूर्ति " के अवसर पर

डा. हरिवँश राय बच्चन के भाषण से साभार उद्`धृत )

Sunday, November 25, 2007

डा. हरिवँश राय बच्चन जी' को आज बरबस याद कर रही हूँ +उनकी धर्मपत्नी "तेजी आँटी जी



डा. हरिवँश राय बच्चन को आज बरबस याद कर रही हूँ -
- मैँ उन्हेँ कभी 'ताऊजी " तो कभी " चाचाजी " कहा करती थी.हाँ उनकी धर्मपत्नी "तेजी आँटी जी' हीँ थीँ

-बचपन के दिनोँ मेँ जब जब हम सब देहली ,पापा जी के पास जाया करते थे तब या तो गर्मीयोँ की २ महीने से कुछ दिन उपर,तक की लँबी छुट्टियाँ हुआ करतीँ थीँ या फिर
दीपावली की जाडोँ के दिनोँ की २०, दिनोँ की छोटी अवधि की छुट्टियाँ....

देहली की उमस व लू हम बँबईवालोँ को परेशान कर के,फिर बँबई के सागर किनारोँ की याद दीलाती थी और हम जैसे तैसे दिन गुजार ही लेते थे.यदाकदा,शाम को किसी के घर भोजन का निमँत्रण मिल जाता उस दिन,देहली शहर के विभिन्न, दूर दराज़ के इलाके देखनेका सौभाग्य भी मिल जाता था.
बिड़ला मँदिर, कुतुब मिनार, लाल किल्ला, चाँदनी चौक,कनोट प्लेस, गाँधी बापू जी की समाधि,तीन मूर्ति भवन जो मारत के प्रथम प्रधान मँत्री श्री जवाहरलाल नेहरु जी का आवास था ये सारे ऐतिहासिक और देहली के प्रमुख आकर्षण सदा के लिये दीलोदीमाग के पन्नोँ मेँ,दबे फूलोँ की तरह कैद हें !

तीनमूर्ति भवन के ठीक सामने,"वेलीँग्डन क्रेसेन्ट"के विशाल, हवादार, सुँदर बागीचे के बीच हमारे "बच्चन चाचाजी व तेजी आँटी जी का "घर था. इस घर मेँ वे तभी से रहने लगे थे जब से "राज्य सभा " के मानोनीत सदस्य 'हिन्दी निर्देशक" के पद पर वे आये थे.

"वेलीँग्डन क्रेसेन्ट"मेँ रहने से कुछ वर्ष पूर्व,वे राष्ट्रपति भवन के नजदीक ग्राओन्ड फ्लोर के एक मकान मेँ रहते थे ऐसा मुझे याद है.
दददा राष्ट्रकवि श्री मैथिली शरण गुप्त जी के घर हम एक गर्मीयोँ की छुट्टी मेँ ठहरे थे जिसके करीब ही एक नीचे के मँजिलवाले एक घर मेँ तेजी आँटी से मिलने हम बच्चे झूला झूलने के बाद, रास्ते मेँ तेजी आँटी का घर पडता था वहाँ रुक जाया करते थे.
मुझसे छोटी मेरी बहन जिसे हम "मोँघी" के प्यारभरे घर के नामसे बुलाते हैँ उसे खाने की चीज वस्तुओँ से, बचपन से बडा गहरा लगाव है ! ( मोँघी की इसी आदत को, कई सहेलियाँ "पेटू" कहकर उसे चिढाती थीँ )

जब भी तेजी आँटी जी हमेँ उनके घर आया देखतीँ तो पुकार के कहतीँ, " अरे महाराजिन, चीकू लाओ ...देखो बच्चे आये हैँ .."
और हम उन्हेँ ताकते रह जाते क्यूँकि तेजी आँटी जी ड्रेसीँग टेबल के सामने रखे एक छोटे से स्टूल पर बैठ कर उसी वक्त अपने बाल सँवारती, बडे से शीशे मेँ, अपने आपको निहारती भी जातीँ थीँ ...आज भी उनकी ये छवि मुझे याद है !

एक दिन , हम फिर उनके द्वार पर खडे थे और तेजी आँटी किसी विचारोँ मेँ,उलझी हुईँ होँगीँ तो रोज की तरह उन्होँने आवाज नहीँ दी ...
अब तो हमारी मोँघी रानी जिसे खेलकूद के बाद , भूख लगी थी उससे रहा नही गया, तो तपाक - से पूछ ही लिया मोघी ने,
" आँटी जी , क्या आज आप महाराजिन को चीकू लाने के लिये आवाज़ नहीँ देँगीँ " ? :-))

- अब तो तेजी आँटी की भी हँसी छूट पडी .
.वे खूब खिलखिलाकर हँसीँ और मेरी अम्मा सुशीला से भी ये सारी बात तेजी आँटी जी ने बतलायी थी

-तो बचपन के ऐसे किस्से, सच मेँ भूलाये नही भूलते हैँ और यादगार बन जाते हैँ

खैर ! उसके बाद की यादेँ,बच्चन परिवार के तीनमूर्ति भवन के सामनेवाले,"वेलीँग्डन क्रेसेन्ट" से जुडी हैँ. उस घर पर जब कभी "कवि सम्मेलन " का आयोजन किया जाता या " काव्य -सँध्या " के बाद रात्रि भोज का न्योता मिलता तब पापा और अम्मा के सँग हम बच्चे भी किन्ही, गिने चुने, प्रसँगोँ मेँ हाजिर रहे हैँ.
तेजी आँटी जी बडी शानदार पार्टीयाँ आयोजित किया करतीँ थी.उनके खाने के कमरे मेँ बडे टेबल के कोनोँ मेँ जलती हुई मोमबतीयाँ, पहली बार ज़िँदगी मेँ देखीँ थी औररोमाँचक -सी लगीँ थीँ

तेजी आँटी जी को एक होबी या शौक था - वे अपनी हर यात्रा की याद मेँ जहाँ कहीँ गयीँ होँ, वहाँ से सुँदर आकार या रँगवाले पत्थर,चुनकर ले आया करतीँ थीँ और वे कई, सारे पत्थर इस ,"वेलीँग्डन क्रेसेन्ट"के बारामदे मेँ सजाकर रखा करतीँ थीँ -- ऐसा भी मुझे याद है -
- वो बचपन के दिन थे और उस वक्त हम इतने समझदार नहीँ थे कि जो महान व्यक्तियोँ से, उस दौरान, हम मिले थे उनका मूल्य जान सकेँ -
बच्चों
के लिये तो पूरा विश्व एक हर रोज कुछ नया खेल एक नया तमाशा ही रहता है !हमेँ थोडे ना सूझ बूझ थी कि जिन्हेँ हम "चाचाजी " कहते थे वे कभी "डा. हरिवँश राय बच्चन " जैसे प्रतिभाशाली और सबसे ज्यादा मशहूर "मधुशाला" के रचनाकार हिन्दी कविता को एक नये आयाम तक ले जानेवाले अविस्मरणीय कवि हैँ !
तो कभी हम जिन्हेँ "चाचाजी " बुलाते थे वे हिन्दी साहित्य को "चित्र लेखा" जैसी कथा कहानी सौँपने वाले शख्स श्री भगवती चरण वर्मा जैसे महान कहानीकार थे -
या श्री अमृतलाल नागर जी चाचाजी हुआ करते थे !
http://antarman-antarman.blogspot.com/ Link : श्री अमृतलाल नागर - संस्मरण - भाग -- ५
आज काल के बेरहम हाथोँ ने ऐसी अनेकानेक प्रतिभाओँ को ,विश्वपटल के मँच पर से उठा लिया है और नये कलाकार, नई पीढी, ने जगह ले ली है जोकि सृष्टि का क्रम है --
आज यहाँ विदा लेती हूँ
- दुबारा उन्हीँ के दीये , पापाजी की षष्ठिपूर्ति पर दीये सम्भाषण के साथ हम फिर एक नई प्रविष्टी के सँग, फिर हाज़िर हो जायेँगे -
- २७ तारीख को मेरे "बच्चन चाचाजी की " तारीख पड रही है -
उन्हेँ मेरे शत्` शत्` नमन !

Wednesday, November 21, 2007

भविष्य की मुँबई नगरी को जोडता हुआ ये ब्रिज - इन्जीनीयरीँग के विषय पर आधारित आलेख

बान्द्रा वरली ब्रिज जो अभी बन रहा है
बान्द्रा वरली ब्रिज पर एक विहँगम दृष्टि
हिन्दुस्तान अखबार से मिली एक खबर ने, मन मेँ , BRIDGE = "ब्रीज" याने "पुल" के प्रति दुबारा विस्मय व श्रध्धा को भर दिया -- ये खबर दे रहीँ थीँ - madhurimaa nandee -- देखेँ लिन्क http://www.hindustantimes.com/news/specials/bombay/index.shtml
देवेन्द्र शर्मा इस कार्य के प्रमुख इन्जीनीयर हैं --

कई दिनोँ से मन मेँ आधुनिक स्थापत्यकला के ये बेमिसाल नमूने ,और उन पर मेरे विचार , आप के लिये प्रस्तुत करने का मन था जिसे आज रोक नहीँ पाई -
विश्व मेँ रोज इस्तेमाल हो रहे यातायात विभाग के, दो भूखँडोँ, या जल राशि को जोडने वाले , अचरज पैदा करने वाले, ये इन्जीनीयरीँग क्षेत्र के बेजोड उदाहरण तो हैं ही साथ, साथ, मनुष्य की हर प्राकृतिक अवरोध से जुझने की अदम्य लालसा और आँतरिक मनोबल के ज्वलँत उदाहरण भी हैँ ~~
और ये " COVERED BRIDGES = कवर्ड ब्रिज या ढँक़े हुए पूल " कहलाते हैँ और उत्तर अमरीका मेँ प्राय: पाये जाते हैं और बहुत खूबसुरत होते हैँ -इन्हीँ पर एक प्रसिध्ध पुस्तक " ब्रीजीस ओफ मेडीसन काऊँटी " नामक लिखी गयी है जो एक सफल होलीवुड़ फिल्म भी बनी जिस मेँ क्लीँट इस्टवूड और मेरीलीन स्ट्रीप की बेहतरीन अदाकारी है -
(1 ) http://en.wikipedia.org/wiki/Covered_bridge
( 2 )
http://www.800padutch.com/covbrdg.shtml

अब देखिये सूची - विश्व के सब्से प्रमुख प्रसिध्धि पाये ब्रिजोँ की

( १ ) आकाशी केक्यो ब्रिज : Akashi Kaikyo Bridge
http://www.hsba.go.jp/bridge/e-akasi.htm
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/akashi_kaikyo.html

( २ ) ब्रुक्लीन ब्रिज : Brooklyn Bridge
http://www.nycroads.com/crossings/brooklyn/
http://www.discovery.com/stories/technology/buildings/panoramas/brdg_java1.html
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/brooklyn.html

(३ ) चीज़ पेक बे ब्रिज टनल : Chesapeake Bay Bridge-Tunnel
http://www.cbbt.com/
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/chesapeake_bay_brdg.html

( ४ ) फ्र्थ ओफ फोर्थ ब्रिज : Frth of Forth Bridge
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/firth_of_forth.html

( ५ ) जोर्ज पी. कोल्मेन ब्रिज : Gorge P. Coleman Bridge
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/george_p_coleman.html

( ६ ) गोल्डन गेट ब्रिज : Golden Gate Bridge
http://www.goldengate.org/
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/golden_gate.html

( ७ ) लोहे का ब्रिज: Iron Bridge
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/iron.html

( ८ ) सन शाइन स्काय वे फ्लोरिडा : Sunshine Skyway (Florida)
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/sunshine_skyway.html

( ९ ) टाकोमा सँकरा ब्रिज : Tacoma Narrows Bridge
http://www.me.utexas.edu/~uer/papers/paper_jk.html
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/tacoma_narrows.html
http://instruction.ferris.edu/loub/media/BRIDGE/Bridge.htm

( १० ) टावर ब्रिज : Tower Bridge
http://www.pbs.org/wgbh/buildingbig/wonder/structure/tower.html
http://www.discovery.com/stories/technology/buildings/panoramas/brdg_ipix2.html

( ११ ) Sydney Bridge ( See Video link )

http://media.howstuffworks.com/reuters/video/75th-anniversary-for-sydn-1063.htm?

और ये वीडीयो और येड्रो ब्रिज की कार्य प्रणाली के बारे मेँ

- http://www.howstuffworks.com/bridge.htm


http://www.800padutch.com/covbrdg.shtml

इतना सब देख लेने के बाद एक छोटी सी बात याद दिलाना चाहूँगी - और वो बस्स इतना ही कि इन्सान स्वयँम की बुध्धि और सामर्थ्य के बल बूते पर ये ब्रिज बना लेते हैँ पर कई दफे, हम एक दूस्रे के ह्र्दय तक प्रेम भरा ब्रिज नहीँ बना पाते -
ऐसा क्योँ ?
क्या मनुष्य के मन को जोड़ने वाला पुल हम, नहीँ बना पायेँगेँ ?
कि, जिसकी बदौलत दुनिया भर मेँ अमन चैन कायम हो और युध्ध और विनाश लीला का अँत हो?? -

Sunday, November 18, 2007

Ll`adro = यार्ड्रो / ये क्या है ? जानना चाहेँगेँ आप ?

First LL`adro GANESH

Bansuri Ganesh ji
Radha KrishnaBal Krishna
LL`adro LAXMI Devi
ल्लार्दो = यार्द्रो ये क्या है ? जानना चाहेँगेँ आप ?
जी हाँ , अँग्रेज़ी अक्षर कई बार, इस तरह लिखे जाते हैँ कि जिससे उन्हेँ बोलते वक्त,
कुछ जगहोँ पे, दूसरी ध्वनि से बोला जाता है .Or they r "silent "
.सबसे प्रसिध्ध शब्द है KNIFE = नाइफ या छुरा या छुरी ,जिसके स्पेलीँग मेँ, सबसे आगे, "क्" आता है -
NO - "नो " एनओ भी लिखा जाता है और " केएनओ " = नो का मतलब होता है,पता करना या पता होना .....इत्यादी ..

अब ज्यादा विस्तार से, उपर दीये गये लिन्क पर पढ लेँ .

तो हम इस लार्डो जैसे शब्द के बारे मेँ " KNOW " केएनओ " करेँ ? :-)
In short, "LL`adro pieces are
"Collectors' Item + they are decorative, porceleain Figurines


स्पेन देश के,अल्मासेरा कस्बे मेँ जो खेती प्रधान है उसके वेलेँसीया प्राँत मेँ,पूर्वी मेडीटरेरीयन समुद्र के किनारे, २ भाइयोँ ने जिनके नाम थ जुआन जोस व वीन्सान्ज़ेउन्होँने,चित्रकला तथा शिल्पकला सीखकर, अपने उज्ज्वल भविष्य को हासिल करने के हेतु से,
मूरीश किस्म की भट्टी, उनके माता, पिता के घर के अहाते मेँ ही बनवा कर,
१९५० मेँ इस कारखाने की नीँव रखी थी ---

( ज्यादा विस्तार से, लिन्क पर पढ लेँ )


Lladro, the renowned porcelain company that entered the Indian market with its Ganesha idol at Rs 64,000 has resale value of nearly Rs 300,000 today.



Saturday, November 17, 2007

कोई कोयल गाये रे ,जपा कुसुम का फूल ,वेणी के फूल



" प्रवासी के गीत"
कविता की पुस्तक के अमर गीतकार पँडित नरेन्द्र शर्मा को मेरी श्रध्धाँजली स्वरुप ,
काव्य पुस्तक " फिर गा उठा प्रवासी " छप चुकी है."
" प्रवासी के गीत"
की ये पँक्तियाँ बरबस ध्यान आकृष्ट करतीं हैं

" साँझ होते ही न जाने छा गई, कैसी उदासी ?
क्या फिर किसी की याद आयी
ओ विरह व्याकुल प्रवासी ? "
और ~~~

" क्या तुमको भी कभी, आता है हमारा ध्यान ?
नाम लेकर हमारा, खीँचता आँचल तुम्हारा,क्या कभी सुनसान ? "
और ये मेरी पँक्तियाँ या कहूँ कि "श्रध्धा ~ सुमन हैँ "
" तुम चले जाते हो, नीरव रह जातीँ हैं जीवन की राहें,
अलसाई डालीयोँ से,
तब, रात सरक आती है !"
१ ) ज्योति ~ पर्व http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/diye_jalao/sets/21_11_04.html
( २ ) जपा कुसुम का फूल http://www.anubhuti-hindi.org/dishantar/l/lavanyashah/japakusum.htm
( ३ ) कोकिला http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/vasanti_hava/kokila.htm
( ४ ) वेणी के फूल ( जिसे अनुभूति वेब पत्रिका ने " आषाढ की रात " शीर्षक दे कर छापा है http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/varshamangal/sets/22aug.htm
( ५ ) प्रेम - मूर्ति http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/premgeet/premurti.htm
( ६ ) कोई कोयल गाये रे ! http://www.anubhuti-hindi.org/dishantar/l/lavanyashah/pal.htm
(७ ) मेरा मेहमान http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/mausam/mausam3.htm#lavanya

Tuesday, November 13, 2007

स्त्री,साडी ..और परदेसी ललना गोपी के भेस मेँ ?

विदेश मेँ रहनेवाली लडकीयाँ, जब भारतीय लोगोँ के परिचय मेँ आतीँ हैँ, मित्रता करतीँ हैँ तो भारतीय स्त्री का रहन सहन,वेश भूषा भी अपना लेतीँ हैँ ..शुरु शुरु मेँ उन्हेँ कठिनाई भी आती है ..साडी सम्हलती नहीँ ..फिर भी प्रयत्न करके, वे साडी पहनना, पसँद करतीँ हैँ ऐसी ही एक सुँदर कन्या से मेरी मुलाकात हुई जिसने बडे सलीके से मेँहदी के रँग की रेशमी साडी, बडे जतन से पहन रखी थी ..मुझे उसपर गर्व हुआ और प्यार भी आया
..और एक अजीब बात भी इसी शादी के दौरान देखने को मिली थी ..
.कन्या की ४,५ सहेलियाँ,जो अमरीकी थीँ, उन्हेँ भी साडियाँ दी गयीँ थीँ
कि वे भी दुल्हन को लेकर विवाह मँडपे में, साडीयाँ पहन कर दाखिल होँ -
-अब, शादी के पहले, लन्च का प्रबँध किया गया था, खुले लोन मेँ,स्वीमीँग पुल के पास
..तो ये दुल्हन की सखीयाँ जिन्हेँ अमरीकन शैली मेँ "ब्राइडसमेड " कहते हैँ,
वे पाँचोँ , ब्लाउज़ और पेटीकोट पहने, साडीको दुशालाया खेस बनाकर, कँधे पे डाल कर, ऐसे ही , अर्ध - वस्त्र अवस्था मेँ खाना खाने आ पहुँचीँ .!!
..बेचारीयोँ को क्या मालूम कि, ये "अशोभनीय " लग रहा है ?
अमरीकी , तो तैराकी के कपडोँ मेँ आराम से, शर्म के बिना घुमते हैँ
तो उन्हेँ ६ वार की साडी तो ... " भूल भूलैया " ही लगेगी ना !
उन बेचारीयोँ का क्या दोष ?
पर, तभी कन्या की माँ ने उन्हेँ प्यार से समझाते हुए कहा कि,
आप सब, भीतर कमरे मेँ चलो, वहीँ पे खाना पहुँचा दिया जायेगा ...

परदेसी ललना गोपी के भेस मेँ ,सर पर कान्हा को रीझाने के लिये दुग्ध भरी माटी की, रँगोँ से सजायी हँडिया लिये मुस्कुराती हुई भारत की सडकोँ पर चल रहीँ हैँ जिसे देखकर ये विचार आ रहा है कि भारतीय सँस्कृति व्यापक हो रही है ! भारत के शहरोँ की अत्याधुनिक महिलाएँ,पेन्ट टी शर्ट,बाँह बिना के, खुले कपडोँ मँ दीखने लगीँ हैँ और कोलिज जाती लडकियोँ के परिधान,अब, पास्चात्त्य पध्धति के , आम तौर पर दीखने लगे हैँ,भारत की सडकोँ पर, ये नजारा, आम होता जा रहा है


छवि , तो भारतीय नारी की है ...
कितने कष्ट से, इतनी दूर , परदेस मेँ,नवरात्र के दाँडिया उत्सव मेँ पहनने के चाव से,
भारत के किसी शहर से खरीद कर ये लेँघा ओढना और चुनरी,लायी जाती है .
.जब,भारतीयता से लगाव हो तब ये सारे कष्ट, मामूली लगते हैँ

और ये अँतिम छवि है ...सुप्रसिध्ध सिने कलाकार श्री सशि कपूर जी की ब्रिटीश पत्नी जनीफर केन्डल की बिटियासँजना कपूर की जो , भारत मेँ ही जन्मी, पलीँ, बडी हुईँ हैँ..

ब्रिटेन की आधी + आधी हिन्दुस्तानी विरासत लिये, साडी बाँधे कितनी सहज व प्यारी दीख रहीँ हैँ ...

ये भी कह दूँ कि, इतने बरस विदेश मेँ रहते हुए भी मैँ यही मानती हूँ कि साडी जैसा सुँदर पहनावा, स्त्री के लिये दूजा कोई नहीँ .

.हर तरह की साडी से नारी आकृति की शोभा को गरिमा व असीम सौँदर्य मिलता है ..साडी सदीयोँ से चला आ रहा ऐसा पहनावा है ..जो स्त्री को अधिकाधिक मोहक बनाता है , हर ऐब को ढँकने मेँ सक्षम,साडी, हर नारी के बाह्य सौँदर्य को निखार कर, आकर्षक रुप प्रदान करती है ..यही नहीँ..आँचल की ओट किये, जलता दीपक ले जाती नारी आकृति ने कई मनमोहक छवियाँ प्रस्तुत कीँ हैँ ..और हर बच्चे की स्मृतियोँ मेँ उसके माँ के आँचल को, कस कर थाम ने की छाप अमिट, बसी हुई होती है. , ये मेरा निजी मत हो ...परँतु,साडी सच मेँ मेरा सर्वप्रिय परिधान है और रहेगा

-- लावण्या



Tuesday, November 6, 2007

ज्योति पर्व : ज्योति वंदना



ज्योति पर्व : ज्योति वंदना

जीवन की अँधियारी रात हो उजारी !
धरती पर धरो चरण तिमिर-तमहारीपरम व्योमचारी!
चरण धरो, दीपंकर, जाए कट तिमिर-पाश!
दिशि-दिशि में चरण धूलि छाए बन कर-प्रकाश!
आओ, नक्षत्र-पुरुष,गगन-वन-विहारीपरम व्योमचारी!
आओ तुम, दीपों कोनिरावरण करे निशा!
चरणों में स्वर्ण-हासबिखरा दे दिशा-दिशा!
पा कर आलोक, मृत्यु-लोक हो सुखारीनयन हों पुजारी!*****************************************************************

सुख सुहाग की दीव्य ~ ज्योति से, घर आँगन मुस्काये, ज्योति चरण धर कर दीवाली, घर आँगन नित आये" *****************************************************************
-- रचना : पँ.नरेद्र शर्मा --सँकलन : लावण्या
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ज्योति पर्वसंकलन दीप ज्योति नमोस्तुते
दीप शिखा की लौ कहती है,व्यथा कथा हर घर रहती है!
कभी छुपी तो कभी मुखर होअश्रु-हास बन बन बहती है!
हां, व्यथा सखी, हर घर रहती है!
बिछुड़े स्वजन की याद कभीनिर्धन की लालसा ज्यों, थकी-थकी
हारी ममता की आँखों में नमीबन कर, बह कर, चुप-सी रहती है!
हाँ व्यथा सखी, हर घर बहती है!
नत मस्तक, मैं दिवला बार नमूँ,
आरती माँ महा-लक्ष्मी, मैं तेरी करूँ,
आओ घर घर माँ, यही आज कहूं,
दुखियों को सुख दो, यह बिनती करूँ,माँ!
देख दिया अब प्रज्वलित कर दूँ!
दीपावली आई फिर आँगन,बन्दनवार रंगोली रची सुहावन!
किलकारी से गूँजा रे, प्रांगनमिष्टान-अन्न-धृत-मेवा, मन भावन!
देख सखी यहाँ, फुलझड़ी मुस्कावन!
जीवन बीता जाता ऋतुओं के संग-संग ,
हो सब को, दीपावली का अभिनंदन!
नये वर्ष की बधाई - हो, नित नव-रस !
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डॉ. मनस्वी श्रीविद्यालंकार : वेब दुनिया से साभार
धनतेरस के दिन क्या करें?
इस दिन धन्वंतरिजी का पूजन करें
दीपक प्रज्वलित कर घर, दुकान आदि को श्रृंगारित करें।
मंदिर, गोशाला, नदी के घाट, कुआँ, तालाब, बगीचों में भी दीपक लगाएँ।यथाशक्ति तांबे, पीतल, चाँदी के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन व आभूषण क्रय करें।
स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, बावड़ी, कुआँ, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाएँ।
भगवान कुबेर पर फूल चढ़ाएँ -
श्रेष्ठ विमान पर विराजमान, गरुड़मणि के समान आभावाले, दोनों हाथों में गदा एवं वर धारण करने वाले, सिर पर श्रेष्ठ मुकुट से अलंकृत तुंदिल शरीर वाले, भगवान शिव के प्रिय मित्र
निधीश्वर कुबेर का मैं ध्यान करता हूँ।
इसके पश्चात निम्न मंत्र द्वारा चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें
-'यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य
अधिपतयेधन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा ।'
-लावण्या शाह

Friday, November 2, 2007

हवाई जहाज और लक्ज़री कार ( मर्सीडीज़ ) ...वर्षगाँठ की भेँट हैँ ये ??

श्रीमती नीता मुकेश अँबानी
( भारतीय उध्योगपति परिवार की बडी बहूरानी )
ये हैँ छोटी बहूरानी टीना
( असल नाम है निवृति ) अनिल अंबानी
जिनके हवाई जहाअज मेँ ऐश्वर्या व अभिषेक
तिरुपती देवस्थानम दर्शन के लिए
उनकी शादी के दूसरे दिन यात्रा करते हुए
देवी - दर्शन ? ;-)
ऐश्वर्या को बीग -बी ( अमिताभ जी ) व जया जी व परिवार "परी" के नाम से बुलाते हैँ - ३४ वीँ साल गिरह पर अपने तोहफे नीली ( मर्सीडीज़ )लक्ज़री कार के साथ खुश होकर खडीं ऐश्वर्या बच्चन राय
और ये खडाऊँ हैँ भारत के सँत महात्मा , हमारे सबके दुलारे गाँधी बापू जी की --- जिन्हेँ देखकर ये विचार आ रहा है कि, भारत का आज का सच, बहुत बदल गया है उन्नतिशील, प्रगति के पथ पर चलते,भारत के प्रति मुझे गर्व है, सद्` भावनाएँ हैँ परँतु .....ये भी सोचती हूँ कि, हमारे असँख्य बलिदानी, शूरवीर देश भक्तोँ के बलिदान, उनकी कुरबानीयाँ आज का २१ वीँ सदी का भारत, भूल न जाये तो ही अच्छा होगा ...