Saturday, December 12, 2015

योगवासिष्ठ संस्कृत सहित्य ~ अद्वैत वेदान्त का अति महत्वपूर्ण ग्रन्थ

ॐ 
दशरथ राजा ने पुत्र प्राप्ति हेतु ' पुत्र कामेष्टी यज्ञ ऋष्यश्रृंग ऋषि से अयोध्या नगरी में करवाया था। उस यज्ञ में सिद्ध किये चरू का आधा भाग पटरानी कौसल्या ने भक्षण किया। एक साल पश्चात राम दाशरथि का जन्म हुआ। चैत्र शुक्ल नवमी, दोपहर के १२ बजे पांच गृह उच्च स्थिति में थे उस समय पुनर्वसु नक्षत्र , कर्क लग्न में गुरु चन्द्र योग था। 
राम का नामकरण दशरथ राजा के कुल गुरु वसिष्ठ द्वारा हुआ।  ' रामस्य लोक रामस्य ' इस श्लोक से राम और लघु भ्राता ' लक्षमण ' का नाम रखा गया। वसिष्ठ ऋषि ने दशरथ पुत्रों को  शास्त्रों की विधिवत शिक्षा दी। यजुर्वेद का सम्पूर्ण ज्ञान , राम को प्राप्त हुआ। सोलह वर्ष  के राम शिक्षा समाप्त कर तीर्थयात्रा भर्मण को निकले। तदुपरांत राम के मन में वैराग्य [ विरक्ति भाव ] भाव उत्पन्न हुआ। धन, राज्य, माता इत्यादी का त्याग कर, प्राण त्याग करने के विचार १६ वर्षीय राम के मन में आने लगे। 
' किं धनेन किंम्बाभिहि: किं राज्येन किमीह्या। 
आ निसचयापन्नः प्रान्त्यागपर : स्थित।।' 
राम की यह विलक्षण वैराग्यवृत्ति देखकर वसिष्ठ ने उन्हें ज्ञान कर्म समुच्चयात्मक उपदेश प्रदान किया। यही संवाद ' योग वसिष्ठ ' ग्रन्थ में समाहित है। 
ध्यान मनुष्य को स्वयं से मिलने अर्थात् आत्मा का साक्षात्कार कराने का सहज पथ है।
वसिष्ठ ने राम से कहा , ' आत्मज्ञान एवं मोक्षप्राप्ति के लिए अपना दैनंदिन व्यवहार एवं कर्तव्य छोड़ने की आवश्यकता नहीं है । जीवन सफल बनाने के लिए कर्तव्य निभाना उतना ही आवश्यक है जितना आत्मज्ञान ! 
' उभाभ्यामेव पक्षाभ्याम् यथा कहे पक्षिणाम गति : 
तथैव ज्ञानकर्मभ्याम्  जायते परमं पदम। 
केवलात्कर्मणो ज्ञानानन्ही मोक्षोभिजायते। 
किन्तुभाभ्याम् भवेन्मोक्ष : साधनम् तुभयम विदुः। 
  योगवासिष्ठ  
अर्थात - आकाश में घूमनेवाला पंछी जिस तरह अपने दो पंखों पर तैरता है , उसी भांति ज्ञान और कर्म के समुच्चय से मनुष्य जीवन को परमपद प्राप्ति होती है। केवल ज्ञान, या केवल कर्म की उपासना करने से मोक्ष प्राप्ति असंभव है। इस कारण दोनों प्रवृत्ति का समन्वय कर ही मोक्ष प्राप्ति संभव है। ' 
महारामायण में योग वसिष्ठ या वसिष्ठ रामायण ग्रन्थकर्ता वसिष्ठ ऋषि का उल्लेख है। ८ वीं और ११ वीं शताब्दी तक इसे संगृहीत किया गया। 
श्लोक संख्या ३२ हज़ार हैं जिनमे अध्यात्म का विस्तृत एवं प्रासादिक विवेचन प्राप्त है। 
योगवासिष्ठ संस्कृत सहित्य में अद्वैत वेदान्त का अति महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें ऋषि वसिष्ठ भगवान राम को निर्गुण ब्रह्म का ज्ञान देते हैं। 
आदिकवि वाल्मीकि परम्परानुसार योगवासिष्ठ के रचयिता माने जाते हैं।
महाभारत के बाद संस्कृत का यह दूसरा सबसे बड़ा ग्रन्थ है। यह योग का भी महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। 'महारामायण', 'योगवासिष्ठ-रामायण', 'आर्ष रामायण', 'वासिष्ठ-रामायण' तथा 'ज्ञानवासिष्ठ' आदि नामों से भी इसे जाना जाता है।
विद्वत्जनों का मत है कि सुख और दुख, जरा और मृत्यु, जीवन और जगत, जड़ और चेतन, लोक और परलोक, बंधन और मोक्ष, ब्रह्म और जीव, आत्मा और परमात्मा, आत्मज्ञान और अज्ञान, सत् और असत्, मन और इंद्रियाँ, धारणा और वासना आदि विषयों पर कदाचित् ही कोई ग्रंथ हो जिसमें ‘योग वासिष्ठ’ की अपेक्षा अधिक गंभीर चिंतन तथा सूक्ष्म विश्लेषण हुआ हो। अनेक ऋषि-मुनियों के अनुभवों के साथ साथ अनगिनत मनोहारी कथाओं के संयोजन से इस ग्रंथ का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। मोक्ष प्राप्त करने का एक ही मार्ग है आत्मानुसंधान। आत्मानुसंधान में लगे अनेक संतों तथा महापुरुषों के क्रियाकलापों का विलक्षण वर्णन इस ग्रंथ में दिया गया हैं। योगवासिष्ठ में जग की असत्ता और परमात्मसत्ता का विभिन्न दृष्टान्तों के माध्यम से प्रतिपादन है। पुरुषार्थ एवं तत्त्व-ज्ञान के निरूपण के साथ-साथ इसमें शास्त्रोक्त सदाचार, त्याग-वैराग्ययुक्त सत्कर्म और आदर्श व्यवहार आदि पर भी सूक्ष्म विवेचन है।
इसमें बौद्धों के विज्ञानवादी, शून्यवादी, माध्यमिक इत्यादि मतों का तथा काश्मीरी शैव, त्रिक प्रत्यभिज्ञा तथा स्पन्द इत्यादि तत्वज्ञानों का निर्देश होने के कारण इसके रचयिता उसी (वाल्मीकि) नाम के अन्य कवि माने जाते हैं। अतः इस ग्रन्थ के वास्तविक रचियता के संबंध में मतभेद है। यह ग्रन्थ आर्षरामायण, महारामायण, वसिष्ठरामायण, ज्ञानवासिष्ठ और केवल वासिष्ठ के अभियान से भी प्रसिद्ध है। योगवासिष्ठ की श्लोक संख्या ३२ हजार है। विद्वानों के मतानुसार महाभारत के समान इसका भी तीन अवस्थाओं में विकास हुआ। 
  1. वसिष्ठकवच
  2. मोक्षोपाय (अथवा वसिष्ठ-रामसंवाद)
  3. वसिष्ठरामायण (या बृहद्योगवासिष्ठ)
  4. योगवासिष्ठ ग्रन्थ छः प्रकरणों (४५८ सर्गों) में पूर्ण है।
    1. वैराग्यप्रकरण (३३ सर्ग),
    2. मुमुक्षु व्यवहार प्रकरण (२० सर्ग),
    3. उत्पत्ति प्रकरण (१२२ सर्ग),
    4. स्थिति प्रकरण (६२ सर्ग),
    5. उपशम प्रकरण (९३ सर्ग), तथा
    6. निर्वाण प्रकरण (पूर्वार्ध १२८ सर्ग और उत्तरार्ध २१६ सर्ग)।
    इसमें श्लोकों की कुल संख्या २७६८७ है। वाल्मीकि रामायण से लगभग चार हजार अधिक श्लोक होने के कारण इसका 'महारामायण' अभिधान सर्वथा सार्थक है। इसमें रामचन्द्रजी की जीवनी न होकर महर्षि वसिष्ठ द्वारा दिए गए आध्यात्मिक उपदेश हैं।
    प्रथम वैराग्य प्रकरण में उपनयन संस्कार के बाद प्रभु रामचन्द्र अपने भाइयों के साथ गुरुकुल में अध्ययनार्थ गए। अध्ययन समाप्ति के बाद तीर्थयात्रा से वापस लौटने पर रामचन्द्रजी विरक्त हुए। महाराज दशरथ की सभा में वे कहते हैं कि वैभव, राज्य, देह और आकांक्षा का क्या उपयोग है। कुछ ही दिनों में काल इन सब का नाश करने वाला है। अपनी मनोव्यथा का निरावण करने की प्रार्थना उन्होंने अपने गुरु वसिष्ठ और विश्वामित्र से की। दूसरे मुमुक्षुव्यवहार प्रकरण में विश्वामित्र की सूचना के अनुसार वशिष्ठ ऋषि ने उपदेश दिया है। ३-४ और ५ वें प्रकरणों में संसार की उत्पत्ति, स्थिति और लय की उत्पत्ति वार्णित है। इन प्रकारणों में अनेक दृष्टान्तात्मक आख्यान और उपाख्यान निवेदन किये गए हैं। छठे प्रकरण का पूर्वार्ध और उत्तरार्ध में विभाजन किया गया है। इसमें संसारचक्र में फँसे हुए जीवात्मा को निर्वाण अर्थात निरतिशय आनन्द की प्राप्ति का उपाय प्रतिपादित किया गया है। इस महान ग्रन्थ में विषयों एवं विचारों की पुनरुक्ति के कारण रोचकता कम हुई है। परन्तु अध्यात्मज्ञान सुबोध तथा काव्यात्मक शैली में सर्वत्र प्रतिपादन किया है।
  5. स्वयं योगवासिष्ठकार ने इस ग्रथ की उपर्युक्त विशेषता का कथन किया है । वे कहते हैं कि- शास्त्रं सुबोधमेवेदं सालंकारविभूषितम् ।
    अर्थात् यह शास्त्र सुबोध है, अच्छी प्रकार से समझ में आने योग्य है, अलंकारों से विभूषित है, रसों से युक्त सुन्दर काव्य है । इसके सिद्धान्त दृष्टान्तों द्वारा प्रतिपादित हैं ।
    दृष्टान्तों और कथा-कहानियों का प्रयोग विषय-बोध को सरल बनाता है । हमारे देश में कथा-कहानियाँ, आख्यान-उपाख्यान शताब्दियों से ज्ञान-प्रवाह के साधन रहे हैं । यही कारण है कि श्रुति परम्परा का अवलम्बन लेकर पुष्पित-पल्लवित-प्रवाहित हमारी संस्कृति इसके ज्ञान-सम्पदा से आप्लावित रही है। यहाँ साधारण जन से लेकर राजप्रासादों तक ज्ञानियों का अभाव कभी नहीं रहा ।
    योगवासिष्ठकार स्वयं कठिन एवं दुरूह भाषा के सन्दर्भ में अपनी अरुचि को व्यक्त करते हुये कहते हैं  कि कठिन और रसहीन भाषा श्रोता के हृदय में न प्रवेश कर पाती है न ही उसे आह्लादित कर पाने की क्षमता उसमें होती है । इस सन्दर्भ में योगवासिष्ठकार कहते हैं-
    यत्कथ्यते हि हृदयंगमयोपमान-
    युक्त्या गिरा मधुरयुक्तपदार्थया च ।
    श्रोतुस्तदंग हृदयं परितो विसारि
    व्याप्नोति तैलमिव वारिणि वार्य शंकाम् ॥, योगवासिष्ठ, ३ .८४ .४५ 
    अर्थात् जो कुछ ज्ञान ऐसी भाषा में कहा जाता है जो मधुर शब्दों से युक्त है एवं जिसमें समझ में आने वाली उपमाओं, दृष्टान्तों एवं युक्तियों का प्रयोग किया गया है, वह भाषा सुनने वाले के हृदय-प्रदेश में प्रवेश करके वहाँ पर इस प्रकार फैल जाती है जैसे तेल की बूँद जल के ऊपर फैल जाती है । जल पर तेल के समान फैलकर मधुर दृष्टान्तों से युक्त भाषा श्रोताओं के हृदय को प्रकाशित करती है एवं उनकी शंकाओं का समाधान करती है । योगवासिष्ठकार ने कठिन, शुष्क एवं दुरूह भाषा को राख में पड़े हुये घी के समान बताया है-
    त्यक्तोपमानममनोग्यपदं दुरापं
     क्षुब्धं धराविधुरितं विनिगीर्णवर्णम् ।
    श्रोतुर्न याति हृदयं प्रविनाशमेति
     वाक्यं किलाज्यमिव भस्मानि हूयमान् ॥, योगवासिष्ठ, ३ .८४ .४६ 
    अर्थात् जो भाषा कठिन, कठोर एवं कठिनाई से उच्चारण किये जाने वाले शब्दों से युक्त एवं दृष्टान्तों से रहित है, वह श्रोता के हृदय में प्रवेश नही कर सकती और वैसे ही नष्ट हो जाती है जैसे राख में पड़ा हुआ घृत ।
    योगवासिष्ठकार का विचार था की भाषा की दुरूहता ज्ञानप्राप्ति में बाधक नहीं बननी चाहिये । सरल भाषा एवं सम्यक् दृष्टान्तों के प्रयोग द्वारा सामान्यजनों को भी ज्ञानियों के समान ज्ञान प्रदान किया जा सकता है । इसके लिये उन्होंने मञ्जुल भाषा, दृष्टान्तों, उपमाओं एवं सूक्तियों का प्रचुर प्रयोग करके दार्शनिक ज्ञानराशि को सर्वजनबोधगम्य बनाने का प्रयास किया । दार्शनिक ज्ञान को सरलतम माध्यम से सर्वजनग्राह्य बनाने के अपने इस विचार का उन्होंने इस ग्रन्थ में कथन एवं समर्थन भी किया –
    आख्यानकानि भुवि यानि कथाश्च या या
     यद्यत्प्रमेयमुचितं परिपेलवं वा ।
    दृष्टान्तदृष्टिकथनेन तदेति साधो
     प्रकाश्यमाशु भुवनं सितरश्मिनेव ॥, योगवासिष्ठ, 3.84.47
    अर्थात् इस संसार में जितनी भी कथायें और आख्यान हैं और जितने भी उचित और गूढ़ विषय हैं, वे सब दृष्टान्तों के माध्यम से कहने से वैसे ही प्रकाशित होते हैं जैसे कि यह संसार सूर्य की किरणों द्वारा प्रकाशित होता है ।
  6. काव्यं रसमयं चारु दृष्टान्तैः प्रतिपादितम् ॥योगवासिष्ठ, २. १८ .३३ 
  7. कथा शैली की इसी ऋजुता को देखते हुये योगवासिष्ठकार ने ब्रह्मविद्या को काव्यमयी मधुरता के साथ संसार के समक्ष रखा । वैराग्य से निर्वाण तक की यात्रा करने वाला, पथ-प्रदर्शन करने वाला यह ग्रन्थ समान रूप से साहित्यप्रेमियों के मध्य समादृत है । डॉ. आत्रेय ने इस अनुपम ग्रन्थ के महात्म्य को रेखांकित करते हुये लिखा है कि यह ग्रन्थ “काव्य, दर्शन एवं आख्यायिका का सुन्दर संगम-त्रिवेणी के समान महत्व वाला है। तीर्थराज जिस प्रकार पापों का विनाश करता है उसी प्रकार योगवासिष्ठ भी अविद्या का विनाश करता है । इसका पाठ करने वाला यह अनुभव करता है कि वह किसी जीते जागते आत्मानुभव वाले महान् व्यक्ति के स्पर्श में आ गया है, और उसके मन में उठने वाली सभी शंकाओं का उत्तर बालोचित सुबोध, सुन्दर और सरस भाषा में मिलता जा रहा है, दृष्टान्तों द्वारा कठिन से कठिन विचारों और सिद्धान्तों का मन में प्रवेश होता जा रहा है, और कहानियों द्वारा यह दृढ़ निश्चय होता जा रहा है कि वे सिद्धान्त, जिनका प्रतिपादन किया गया है, केवल सिद्धान्त मात्र और कल्पना मात्र ही नहीं हैं बल्कि जगत् और जीवन में अनुभूत होने वाली सच्ची घटनायें हैं ।” योगवासिष्ठ को योगवासिष्ठ महारामायण, महारामायण, आर्षरामायण, वासिष्ठरामायण, ज्ञानवासिष्ठ, वासिष्ठ एवं मोक्षोपाय आदि विभिन्न नामों से भी जाना जाता है । ग्रन्थ के महात्म्य का प्रतिपादन करते हुये स्वयं योगवासिष्ठकार कहते हैं कि, 
  8. अस्मिंन्श्रुते मते ज्ञाते तपोध्यानजपादिकम् ।
  9. मोक्षप्राप्तौ नरस्येह न किंचिदुपयुज्यते ॥, योगवासिष्ठ, 2.18.34
    सर्वदुःखक्षयकरं परमाश्वासनं धियः ।
    सर्वदुःखक्षयकरं महानन्दैककारणम् ॥, योगवासिष्ठ, 2.10.9, 2.10.7
    य इदं शृणुयान्नित्यं तस्योदारचमत्कृतेः ।
    बोधस्यापि परं बोधं बुद्धिरेति न संशयः ॥ , योगवासिष्ठ, 3.8.13
    अर्थात् मोक्ष प्राप्ति के लिये इस ग्रन्थ का श्रवण, मनन एवं निदिध्यासन कर लेने पर तप, ध्यान और जप आदि किसी साधन की आवश्यकता नहीं रहती । यह ग्रन्थ सब दुःखों का क्षरण करने वाला, बुद्धि को अत्यन्त आश्वस्त करने वाला, विश्वास प्रदान करने वाला और परमानन्द की प्राप्ति का एकमात्र साधन है । जो इसका नित्य श्रवण करता है उस प्रकाशमयी बुद्धि वाले को बोध से भी परे का बोध हो जाता है, इसमें कोई संशय नहीं है । योगवासिष्ठ के इसी महत्त्व के विषय में लाला बैजनाथ जी ने योगवासिष्ठ भाषानुवाद के भूमिका में लिखा है , जिसे डॉ. आत्रेय ने अपनी पुस्तक में उद्धृत किया है “वेदान्त में कोई ग्रन्थ ऐसा विस्तृत और अद्वैत सिद्धान्त को इतने आख्यानों और दृष्टान्तों और युक्तियों से ऐसा दृढ़ प्रतिपादन करने वाला आज तक नहीं लिखा गया, इस विषय से सभी सहमत हैं कि इस ग्रन्थ के विचार से ही कैसा ही विषयासक्त और संसार में मग्न पुरुष हो वह भी वैराग्य-सम्पन्न होकर क्रमशः आत्मपथ में विश्रान्ति पाता है । यह बात प्रत्यक्ष देखने में आयी है कि इस ग्रन्थ का सम्यक् विचार करने वाला यथेच्छाचारी होने के स्थान में अपने कार्य को लोकोपकारार्थ, उसी दृष्टि से कि जिस दृष्टि से श्रीरामचन्द्र जी करते थे, करते हुये उनकी नाईं स्व-स्वरूप में जागते हैं ।”
    बत्तीस हजार श्लोकों वाला यह ग्रन्थ जो अपने कलेवर में रामायण से भी बड़ा है, अपने अन्दर पचपन आख्यानों-उपाख्यानों को समाहित किये हुये है । इनमें से दो दीर्घ उपाख्यान लीलोपाख्यान और चूडालोपाख्यान बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं, एक ओर जहाँ ये गूढ़ दार्शनिक ज्ञान प्रदान करते हैं दूसरी ओर ये स्त्री-सशक्तिकरण का एक मानदण्ड भी प्रस्तुत करते हैं । डॉ. आत्रेय ने इन दोनों उपाख्यानों को ’योगवासिष्ठ के हृदय’ कहा है ।
  10.  डॉ. आत्रेय ने पं. भगवान दास जी की पुस्तक ’Mystic Experiences’ से उद्धृत करते हुये लिखा है कि “वेदान्तियों में तो यह उक्ति प्रचलित है कि यह ग्रन्थ सिद्धावस्था में अध्ययन करने के योग्य है और दूसरे ग्रन्थ भगवद्गीता, उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र साधनावस्था में अध्ययन किये जाने योग्य हैं ।”
संकलन 
- लावण्या 
 

Sunday, November 15, 2015

भारतीय लोक मानस २१ वीं सदी में हिन्दी चित्रपट पर

ॐ 

' पिंगा ग पोरी पिंगा ग पोरी पिंगा ' लोक गीत कोंकण एवं महाराष्ट्र प्रांत में सुविख्यात है।
 पवित्र श्रावण मास  में , देवी अन्नपूर्णा जिसे '  मंगळागौरी ' कहते हैं उन के व्रत पूजन में गाया जाने 

वाला यह  एक प्राचीन लोक गीत है। इस व्रत को कोंकण , महाराष्ट्र  प्रांतों में  बसनेवाले 

परिणीता  या कहें , नववधुएँ  किया  करती हैं । 




पवित्र श्रावण मास के चारों मंगलवार के दिन, नववधुएं , देवी अन्नपूर्णा माँ की पूजा 

करतीं  हैं। 

 देवी माँ का श्रृंगार इत्र , काजल , सुन्दर सजावट , गहने , चन्दन एवं गुलाब का तेल, 

सुगन्धित द्रव्य मिश्रित उबटन से देवी का षोडशोपचार कर, सुगन्धित फूल जैसे जाइ , 

जूही, गुलाब मोगरा जैसे सुगन्धित पुष्पों से देवी अन्नपूर्णा को प्रसन्न कर सजाया 

जाता है।  

आघाडामधुमालतीदूर्वाचम्पा ,कण्हेरबोररुईतुळसी आंबाडाळिंबधोतराजाईमरवा,

बकुळअशोक इन का प्रयोग उपयुक्त है। 

पूजन श्लोक : ध्यान : 

कुंकुमागरुलिप्तांगां सर्वाभरणभूषिताम् । नीलकंठप्रियां गौरीं ध्यायेऽहंमंगलाह्वयाम् ॥
श्रीशिवमंगलागौर्ये नम: । ध्यायामि । ध्यानार्थे बिल्वाक्षतान् समर्पयामि ॥
अक्षत व बिल्वपत्र : 
अत्रागच्छ महादेवि सर्वलोकसुखप्रदे । यावद् व्रतमहं कुर्वेपुत्रपौत्रादिवृद्धये ॥
श्रीशिवमंगलागौर्ये नम: । आवाहनार्थे अक्षतान् समर्पयामि ॥
अक्षत : 
रौप्येण चासनं दिव्यं रत्‍नमाणिक्यशोभितम् । मयानीतं गृहाण त्वं गौरिकामारिवल्लभे ॥
 श्रीशिवमंगलागौर्ये नमः । आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि ॥
पुष्प गंध पूजा : 
गंधपुष्पाक्षतैर् युक्‍तं पाद्यं संपादितं मया । गृहाण पुत्रपौत्रादीन्सर्वान् कामांश्च पूरय ॥
 श्रीशिवमंगलागौर्ये नम: । पादयो: पाद्यं समर्पयामि ॥

पवित्र जलाभिषेकम :
गंधपुष्पाक्षतैर् युक्‍तमर्घ्यं संपादितं मया । गृहाण मंगलागौरि प्रसन्ना भवसर्वदा ॥
 श्रीशिवमंगलागौर्ये नम: । हस्तयो: अर्घ्यं समर्पयामि ॥
गंधअक्षतफूल : 
कामारिवल्लभे देवि कुर्वाचमनमंबिके । निरंतरमहं वदे चरणौ तव पार्वति ॥
 श्रीशिवमंगलागौर्ये नम: । आचमनीयं समर्पयामि ॥
शुद्धोदक : 
जाह्नीवीतोयमानीतं शुभं कर्पूरसंयुतम् । स्नापयामि सुरश्रेष्ठे त्वांपुत्रादिफलप्रदाम् ॥
 श्रीशिवमंगलगौर्ये नम: । स्नानीयं समर्पयामि ॥
पयो दधि घृतं चैव शर्करामधुसंयुतम् । पंचामृतं मया दत्तं स्नानार्थं परमेश्‍वरि॥
 श्रीशिवामंगलागौर्ये नम: । स्नानार्थे पंचामृतस्नानं समरपयामि ।
पंचामृत :
षष्ठं गंधोदकस्नानं समर्पयामि । शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ॥
सकलपूजार्थे गंधाक्षतपुष्पं हरिद्राकुंकुमं धूपदीपौ पंचामृतनैवेद्यं चसमर्पयामि ॥ नमस्करोमि ॥
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तद्पश्चात दीप आरती, नैवैद्य और प्रसाद ग्रहण किया जाता है। रात भर जागरण  करती स्त्रियां , गीत 

संगीत से फुगड्या, झिम्मा, पिंगा, बसफुगडी, टिपऱ्या जैसे  प्राचीन लोक रंग में रंगे, खेल खेलतीं हैं। 


महाराष्ट्र सिनेमा निर्माण की प्रस्तुति है यह लोक गीत - देखें - 
https://www.youtube.com/watch?v=n-z6IT3EE5Y#t=10


हिन्दी सिनेमा + संगीत ने बरसों से , सुनहरे चित्रपट पर  कई चलचित्रों में , 

प्राचीन लोक गीतों को नए कलेवर में प्रस्तुत करते हुए , लोक संगीत की धरोहर 

को मनभावन नृत्य, गीत संगीत में संजोकर प्रस्तुत किया है। 

प्रस्तुत है एक पुराना श्वेत श्याम गीत -- 




और इसी श्रृंखला में अब ' बाजीराव मस्तानी ' का यह गीत भी है।


' Pinga Ga Poree, Pinga ga Poree Pinga '

   श्री मंगळागौरी आरती :-

जय देवी मंगळागौरी। ओंवाळीन सोनियाताटीं।।
रत्नांचे दिवे। माणिकांच्या वाती। हिरेया ज्योती।।धृ।।
मंगळमूर्ती उपजली कार्या। प्रसन्न झाली अल्पायुषी राया।। 
तिष्ठली राज्यबाळी । अयोषण द्यावया। ।1।।
पूजेला ग आणिती जाईजुईच्या कळ्या । सोळा तिकटीं सोळा दूर्वा।।
सोळा परींची पत्री । जाई जुई आबुल्या शेवंती नागचांफे।।
पारिजातकें मनोहरें । नंदेटें तगरें । पूजेला ग आणिली।।2।। 
साळीचे तांदुळ मुगाची डाळ। आळणीं खिचडी रांधिती नारी।।
आपुल्या पतीलागीं सेवा करिती फार ।।3।।
डुमडुमें डुमडुमें वाजंत्री वाजती। कळावी कांगणें गौरीला शोभती।।
शोभली बाजुबंद। कानीं कापांचे गवे। ल्यायिली अंबा शोभे।।4।।
न्हाउनी माखुनी मौनी बैसली। पाटाबाची चोळी क्षीरोदक नेसली।।
स्वच्छ बहुत होउनी अंबा पुजूं लागली ।।5।।
सोनिया ताटीं घातिल्या पंचारती। मध्यें उजळती कापुराच्या वाती।।
करा धूप दीप। आतां नैवेद्य षड्रस पक्वानें । तटीं भरा बोनें ।।6।।
लवलाहें तिघें काशीसी निघाली। माउली मंगळागौर भिजवूं विसरली।।
मागुती परतु‍नीयां आली। अंबा स्वयंभू देखिली।।
देउळ सोनियाचे । खांब हिरेयांचे। कळस वरती मोतियांचा ।।7।।


संकलन - लावण्या दीपक शाह 

Sunday, July 26, 2015

“ आमने-सामनेः लावण्या बनाम घुघूती बासुती ”


July 11, 2008 | Tarun

आमने-सामने के एपिसोड ३ में आज सवालों के जवाब देने के लिये आमने सामने हैं - लावण्या जी और घुघूती बासुती जी। आज से एक परिवर्तन ये किया है कि नो मोर वोटिंग, सिर्फ और सिर्फ चिट्ठाकारों के मजेदार जवाबों का लुत्फ।
अगर आप पहली बार इसे पढ़ने आये हैं तो जरूर सोच रहे होंगे ये भला क्या है? तो आपको ये सब इन लिंकों से पता चल जायेगा। आमने-सामने के बार में जानने के लिये यहाँ क्लिक कीजिये
आमने-सामने एपिसोड 1: फुरसतिया बनाम उड़नतश्तरी
आमने-सामने एपिसोड 2: पंगेबाज बनाम दुर्योधन की डायरी
अब शुरू करते हैं सवाल-जवाबों का सिलसिला, जवाब थोड़ा लंबे जरूर हैं, लेकिन हैं मजेदार।
प्रश्न १: आपकी नजर में नारी के सौलह श्रृंगार क्या होने चाहिये?
लावण्याः अब पूरे सोलह गिनवाने पडेँगे क्या !! :-)) अच्छा चलिये, इन्हेँ एक पँक्ति मेँ खडा हुआ देखेँ ..ना कि कौन सा गुण पहले हो और कौन सा बाद मेँ -
१) नारी का सबसे प्रथम आभूषण मृदुता लिये मिठास
२) कोमलता
३) लज्जा
४) शील
५) विनय
६) सौम्यता
७) सादगी
८) शालीनता
९) व्यवहार कुशलता
१०) स्वछता
११) बडा दिल
१२) मुस्कान
१३) खाना बनाने मेँ कुशलता
१४) सँगीत प्रेम
१५) श्रध्धा (अँध श्रध्धा नहीँ! )
१६) सर से पैर तक का सारा बनाव सिँगार :)
घुघूती बासुतीः सोलह ! कुछ अधिक नहीं हैं क्या ? मुझे तो केवल स्नान,बाल एक चुटिया में गूँथना व उन्हें एक जूड़े में खोंस देना,टैल्क,कोई भी वस्त्र पहन लेना, घर से बाहर जाना है तो साड़ी अपने गिर्द घुमाकर उसमें कैसे तो भी समाना, बिन्दी व बहुत हुआ तो लिपस्टिक लगा लेने का पता है। हाँ कानों व गले में कुछ स्थाई या अस्थाई रूप से टाँगा भी जा सकता है। कितने हो गए ? शेष के बारे में तो आप ही मुझे बताएँ।
हाँ, मैं पुरुष के श्रृंगार के बारे में अधिक बता सकती हूँ। तो भाई, नाक, कान में छेद करवाकर कुछ भी पहन डालिए। मैंने सेफ्टीपिन भी पहने देखा है। बाल कुछ चिपकाऊ तत्व से चिपकाकर उन्हें किसी मॉडर्न आर्ट की शक्ल दे डालिए। शेविंग क्रीम, आफ्टर शेव, पावडर, सुगन्धी, (यह पुरुषों के लिए आवश्यक है,cause they sweat and stink easily !deodourant too will do) टाई आदि से सुसज्जित होइए। यदि युवा हैं तो एक बाइक व हैल्मेट को भी बाहर निकलते समय अपने श्रृंगार का हिस्सा बनाइए। हाँ स्नान को मत भूलिए।
प्रश्न २: “साड़ी बिच नारी है कि नारी बिच साड़ी है, साड़ी ही की नारी है कि नारी ही कि साड़ी है”, स्कूल के दौरान हम क्या समझे थे याद नही, आज आप अपने तरीके से समझायें आखिर ये पहेली क्या है?
लावण्याः अरे ये किसीने गीत की तुकबँदी रच डाली है ..बेचारे मर्द क्या जानेँ ६ वार की साडी या कभी ९ वारी साडी को लपेटना क्या होता है!
” सारी इज़ अन आर्ट , व्हेर अ फीमेल बीकम्ज़ एन आर्ट व्हेन शी वेयरज़ साडी ! ”
पर सच कहूँ तो नारी की शोभा सबसे ज्यादा साडी मेँ ही निखरती है ! कहाँ से स्त्री की शारिरीक सुँदरता शुरु होती है और कहाँ साडी उस सौँदर्य को उभारती है उसे पृथक्क करना कठिन है इसिलिये तो आँचल जैसे शब्दोँ का अन्य भाषाओँ मेँ पर्याय ही नहीँ मिलता !
दिये को साडी की ओट मेँ छिपाये ले जाती साँध्य सुँदरी हो या शिशु को आँचल से ढाँपे दूध पिलाती माँ या माँ का आँचल कसके थामे, स्कूल जाते नन्हे बहादुर बच्चे, या दीदी के आँचल से भोजन के बाद हाथ पोँछता भैया या बीमार देवर को अपने आँचल से पँखा झलती भाभी …है किसी अन्य तहजीब मेँ ऐसे द्रश्य ?
ये तो बस भारतीय स्त्री गरिमा की जीती जागती यशोगाथा है और समाज का इतिहास भी…. जहाँ किसी द्रौपदी के चीर हरण को सिर्फ श्री कृष्ण ही रोक पाते हैँ और बची रहती है नारी की अस्मिता अक्षुण्ण् .. और ..तब, बस गीत याद रह जाते हैँ ….
घुघूती बासुतीः यह भी क्या स्कूल में पढ़ाया जाता था? हमें तो सस्ते में निपटा दिया हमारे अध्यापकों,अध्यापिकाओं ने!किसी ने यह पढ़ाया ही नहीं। मैं स्कूल से फीस वापिस करने को कहूँगी।
वैसे यह साड़ी और नारी की समस्या में कौन किससे अधिक परेशान है, नारी साड़ी से या साड़ी नारी से पता नहीं। अपनी कहूँ तो मैं साड़ियों से व साड़ियाँ मुझसे परेशान हैं और हम दोनों से परेशान है हमारा धोबी। उसे ६ मीटर को इस्तरी करना पड़ता है, मुझे उसे लपेटना पड़ता है और उन्हें मुझे अपने में लपेटना पड़ता है। सो सभी इस साड़ी की लपेट में आ जाते हैं। हाँ मुझ जैसी गृहणी के साड़ी पुराण के लपेटे में पति भी आ जाते हैं, उन्हें साड़ियाँ खरीदनी व उपहार देनी पड़ती हैं। यदि आप यह अंग्रेजी वाली बिच की बात कर रहे हैं तो साफ बता दूँ कि हमारी अंग्रेजी वाली बिच को साड़ी से कोई प्यार नहीं था। प्यार तो मुझे भी नहीं है। यह तो एक बिनसिला कपड़ा उस जमाने की निशानी है जब सिलाई मशीन का आविष्कार नहीं हुआ था और न ही जिम का। उस जिम नामक पुरुष की बात नहीं कर रही मैं। वह वजन घटाकर साड़ी के अलावा भी किसी भी सिले वस्त्र में समाने में सहायता करने वाला जिम। सो साड़ी का सबसे बड़ा लाभ यह है कि ४० किलो से कम वजन वाली बिटिया या प्रियतमा के लिए खरीदो और वह ७० किलो की होकर भी पहनकर इतरा सकती है। क्या धोती (जो साड़ी का ही गरीब चचेरा भाई है)के सिवाय कोई और वस्त्र आप ३० या ४० किलो वजन बढ़ाकर भी पहन सकते हैं?
हमारी टिप्पणीः घुघूती जी, हमारे ख्याल से ये किसी अलंकार का उदाहरण था, उस अलंकार का हिन्दी नाम तो याद नही लेकिन वो कन्फ्यूजन या भ्रम टाईप के लिये होता है। हिन्दी के मास्टर मास्टरनी शायद सही नाम बता पायें, अगर वो इसे पढ़ेंगे तब।
प्रश्न ३: दूसरे एपिसोड के खिलाड़ी पंगेबाज, पंगा लेना चाहते हैं ये पूछकर कि “सिंदूर का रंग लाल कयो होता है हरा क्यो नही?”
लावण्याः शुक्रिया पँगेबाज जी :) ,सिँदुर का रँग लाल होता है क्यूँकि अन्य सारे पुरुष, उसे देखेँ तो सही पर दूर ही रुक जायेँ - वो भी अदब से !:) और सिँदुर बनता है गँधक जो कि स्त्री तत्त्व है , पार्वती का स्वरुप है उसके पारे यानि कि शिव तत्त्व के पौरुषेय से मिलन को सिँदुर कहते हैँ और यही सुहागिन का प्रतीक बना हमारे समझदार ऋषि मुनियोँ का सार — और हर नारी के लिये प्रसाद !आज २१ वीँ सदी मेँ, नारी सिँदुर लगाये या ना लगाना चाहे ये सर्वथा दूसरी बातेँ हैँ ..पर आशीर्वाद , आज नहीँ सदियोँ पहले मिल चुका है
घुघूती बासुतीः अब पंगेबाज हैं तो पंगा तो लेंगे ही ! वैसे आपको हम यह बता दें कि हमने उन्हें नेट पर जहाँ जहाँ नाम बँटते हैं हर उस जगह पर जाकर पंगेबाज नाम को हथिया लेने की बढ़िया सलाह दी थी। शायद उन्हें याद हो। अरे, मुझपर गुस्सा होकर आलू प्याज फेंकने ही हैं तो बड़े साइज के फेंको। मैंने तो केवल नाम हथियाने की सलाह दी थी, पंगे, वह भी हमसे,लेने की सलाह नहीं दी थी।
भाई पंगेबाज,यह सिन्दूर के रंग का रहस्य तो हमें भी पता नहीं। सिन्दूर लाल तो कतई नहीं होना चाहिए। आपने क्या कभी सिन्दूरी रंग नहीं देखा? वह लाल नहीं हनुमान जी के रंग का होता है। बिहार में मैंने बहुत सी स्त्रियों को उस रंग का असली सिन्दूर लगाते देखा है। यह लाल रंग का सिन्दूर तो मुझे बंगालिनों की कोई चाल नज़र आता है। शायद कुछ अधिक ही राजनीति से प्रभावित होकर उन्होंने लाल रंग का सिन्दूर प्रचलित कर दिया। क्या नाम है वह बड़ी बिंदी वाली कम्यूनिस्ट बहन का(वृंदा कारत),उनसे पूछना पड़ेगा।
वैसे यह पुरुषों की कोई गहरी चाल ही मुझे लगती है जो स्त्रियों पर लाल सिंदूर थोप दिया। देखिये ना कितने होशियार है। लाल सिन्दूर देखकर कोई भी भाई किसी विवाहिता पर अपना समय बर्बाद न करे,इसलिए लाल झँडी सा हमारे सिर पर रख दिया। पुरुषों के भाईचारे की इससे बड़ी मिसाल कोई नहीं मिल सकती। अब यदि हरा होता तो सभी सोचते कि हरी बत्ती जल रही है और अपना अमूल्य समय अविवाहिताओं पर ही ना लगाकर विवाहिताओं पर भी बर्बाद करते।
मेरा वश चले तो मैं तो चाहती कि पुरुष भी सिन्दूर से मांग भरें। परन्तु इसमें कुछ प्रैक्टिकल कठिनाइयाँ हैं। विवाह तक तो जैसे तैसे पुरुष अपने बाल किसी तरह दवा आदि खाकर,बत्रा क्लिनिक जाकर, सहेज कर रखते हैं, परन्तु एक बार शादी हुई नहीं कि फिर गंजेपन से कोई परहेज नहीं। सो जिनका सारा सिर ही एक मांग में परिवर्तित हो गया हो वह सिन्दूर भला कहाँ भरेगा?
प्रश्न ४: अच्छी ही नही बल्कि लंबी लंबी बातें (पोस्ट) बनाने वाले फुरसतिया यानि अनुप जी का सवाल है कि “आपको कैसे पति/आदमी /पसन्द हैं अच्छा खाना बना लेने वाले या अच्छी बातें बना लेने वाले?”
लावण्याः अनुप जी - शुक्रिया, अगर इन दो बातोँ को ध्यान मेँ रखती तब तो दीपक , जो मेरे पति हैँ , उनको कैसे पसँद करती ? :-) ना ही वे खाना बनाते हैँ नाही लँबी बातेँ ही बनाते हैँ :) एक अच्छे पति का, मेरे मत मेँ , सबसे पहले, एक अच्छा और सँवेदनाशील इन्सान होना ज्यादा जरुरी है।
घुघूती बासुतीः अरे,यह भी कोई पूछने की बात है। बिल्कुल अच्छी बातें बना लेने वाले ही पसन्द हैं। खाना बनवाने के लिए तो हम अच्छी बातें बना लेने वाले से अच्छी बातें बनाकर खानसामा भी रखवा सकते हैं परन्तु अच्छा खाना बनाने वाले से अच्छी बात बनाने वाला तो नहीं रखवा सकते न!
प्रश्न ५: उड़नतश्तरी यानि समीर जी को तो अभी तक नही मिला लेकिन ये जानना चाहते हैं, “यदि आपको जिन्न मिल जाये और एक वर (वरदान) मांगना हो, तो क्या मांगियेगा और क्यूँ?”
लावण्याः शुक्रिया समीर भाई - भई व्व्वाह!! …कमसे कम..इस एपिसोड खेलने मेँ ऐसा प्रश्न मिला जिससे कुछ पल के लिये ही सही, ऐसी दुनिया मेँ खो गयी जहाँ कोयी दुखी, भूखा, प्यासा या लाचार नहीँ ..सब तरफ बस खुशियाँ ही खुशियाँ हैँ ..बिलकुल जैसे आप हँसानेवाली पोस्ट लिखते हैँ उसे पढकर खुलकर हँसी आती है वैसे! मैँ जिन्न से ऐसी दुनिया का सच होना माँगूँगी ….” वो सुबहा कभी तो आयेगी ………वो सुबहा कभी तो आयेगी “………………
घुघूती बासुतीः ‘मिल जाए तो’ का क्या मतलब? हमें तो यह जिन्न ३० साल पहले ही मिल गया था। जब हमारा कन्यादान हुआ था तो आप क्या सोचते हैं हम बस दान ही हुए चले जा रहे थे ? अरे भाई मेरे, हमें जब ‘वर’ दान मिला तभी तो हम दान हो गए। अन्यथा क्या ऐसे ही दान में अपना बलिदान कर देते? अब देखिए ना उस जिन्न ने कैसा वर दिया कि आज तक हम मांगे चले जा रहे हैं और ‘वर’ हमें देता ही चले जा रहा है। यह कम्प्यूटर जिसपर हम ठकाठक अक्षरों को टंकणाएँ जा रहे हैं, यह नेट का कनैक्शन, कोई जिन्न थोड़े ही दे गया है, वह तो बस ‘वर’ दे गया था और हम वर माँगते जा रहे हैं उस ‘वर’ से जिससे हमने स्वयंवर रचाया था। अब ऐसे ‘वर’ के होते और क्या वरदान चाहिए?
तो ये था इन दो धुरंधरों महिला चिट्ठाकारों के सवाल जवाब का सिलसिला, आशा है आपको मजा आया होगा।
अब आप भी अगर इसमें हिस्सा लेना चाहते हैं तो टिप्पणी में वही ईमेल छोड़िये जिसे आप रेगुलर चेक करते हैं और उसके बाद हमारी मेल का करिये इंतजार क्या पता अगले एपिसोड में आप का ही नंबर हो।

“आमने-सामनेः लावण्या बनाम घुघूती बासुती”

Tuesday, March 10, 2015

नोर्थ केरोलाईना, साउथ कैरोलाईना : यात्रा / भाग - १

 यात्रा : नोर्थ केरोलाईना, साउथ कैरोलाईना : भाग - १ 
अमरीका के पहले कभी न देखे हुए प्रांत नोर्थ केरोलाईना  और साउथ कैरोलाइना को देखा। अटलांटिक महासागर के किनारे ~~ 

 साउथ कैरोलाईना और नार्थ कैरोलाइना प्रांत की यात्रा पर हम २९ लोग अपनी अपनी गाड़ी से अमरीका की दक्षिण पूर्वीय दिशा में बसे इलाके की और बढ़ते जा रहे थे। मेरे पति दीपक जी की मित्र मंडली के सारे साथी  एवं उनके परिवार के सदस्य हमारे  संग थे। ये सभी मित्र हर इतवार को टेनिस खेलते हैं।  एक बार इन्होने सुझाया कि ' क्यों न हम लोग इकठ्ठे यात्रा पर चलें ? ' जब सब ने सहमति जताई की अब की गर्मियों की छुट्टी होगी तब अवश्य जायेंगें तो यात्रा का कार्यक्रम निश्चित हो गया। तो बस , उन्हीं सब के संग हम लोग यहां आये हुए थे।
इस ग्रूप में  ३, या ४ डाकटर हैं और सभी, उच्च शिक्षा प्राप्त नौकरीपेशा लोग हैं।                                        अधिकाँश दक्षिण भारत के भिन्न भिन्न प्रांतों से हैं ! कोई बेंगलूर से है तो कोई चैन्नई से ! कोई विशाखापटटनम से तो कोई पॉन्डिचेरी से ! कोई तिरुपत्तनम से तो कोई त्रिवेंद्रम से तो कोई केरल से है ! इनमे से कुछ ' हिन्दी भाषा ' बोल , समझ लेते हैं और कुछ बिलकुल नहीं जानते !इसी तरह , अमरीका में भारत के हरेक इलाके से आया व्यक्ति आपको मिल जाएगा। 

               हम जहां रहते हैं उस ओहायो प्रांत से,  दक्षिण पूर्व अमरीका की दिशा में यात्रा करते हुए हम लोग यहाँ पहुँचे तो देखा कि अमरीका में हरेक प्रांत में उगे हुए पेड़ ,पौधे सर्वथा अलग किस्म के होते हैं।
           दक्षिण अमेरिका की आबोहवा में भी काफी फर्क महसूस हुआ। अमरीका के ५२ प्रांतों में कुछ के नाम एक समान हैं। नाम एक सा है जिनके आगे ' साउथ ' और ' नार्थ ' जोड़ दिया गया है। उदाहरणार्थ - साउथ डकोटा और नार्थ डकोटा  ! यह दोनों डकोटा  प्रांत ,  विशाल अमरीकी भूखंड के उत्तर मध्य दिशा में स्थित प्रांतों के नाम हैं।
        हमें , नार्थ कैरोलाइना प्रांत की हवा में हमारे ओहायो प्रांत से अधिक नमी महसूस हुई और मौसम भी ज्यादह तापमान लिए ज्यादह गरम लगा । सूर्य की किरणें भी यहाँ अत्यंत प्रखर थीं ऐसा लगा  ! नार्थ कैरोलाइना प्रांत , साउथ कैरोलाइना से उत्तर दिशा में है।  
 यह प्रांत हमारे प्रांत से जो काफी उत्तर दिशा में स्थित है , ग्रीष्म ऋतु में बहुत अधिक गर्म हो जाता है और उमस भरे दिन के बाद जोरों की बरखा भी यहां अक्सर होती है। 

अट्लाण्टिक महासागर के किनारे, मुख्य प्रदेश से बाहर निकला हुआ एक  द्वीप है जिसका  नाम है ' हिल्टन हेड आइलैंड ' वह हमारी यात्रा का लक्ष्य था।  हम लोगों ने ६ , ७ परिवारों ने अटलांटिक महासागर के किनारे बसे इस पर्यटन स्थल पर किनारे से सटे हुए ' रिज़ॉर्ट ' में ६ दिनों के लिए एक कॉटेज रिज़र्व कर रखा था। वहीं हमे आगे जाकर पहुंचना था। एक पुल या  ब्रिज पार करते ही एक अलग दुनिया में ये मार्ग ले चलता है।  सागर का जल हिल्टन हैड में मटमैला है और सागर के साहिल पे बिखरी रेत भी हमारे जुहू / बंबई जैसी ही लगी। पूर्व के मुकाबले पश्चिम अमरीका और पेसेफिक महासागर अधिक स्वच्छ , गहरे पारदर्शक फिरोजी फेनिल जल से प्लावित हैं और एक  अलग किस्म के रंग की  आभा लिए सुदूर पश्चिम में धूप में चमकते रहते हैं ।
      अमरीका के दक्षिणतम भूभाग में स्थित ' गल्फ ऑफ़ मेक्सिको ' और  करेबीयन समुद्र भी अलग रंगत लिए अटलांटिक और पेसेफिक महासागरों से छोटे होने से उन्हें समद्र और ज़मीन से घेरे हुए सागर को ' गल्फ ' कहा जाता है। मन और नयन ये सारे विलक्षण और अद्भुत नजारे कैद करने में व्यस्त है। साथ है सेल फोन कैमरा ! जी हाँ ! अब तो सेल फोन में भी कैमरा है तब चित्र लिए बिना  यात्रा अधूरी न रह जाएगी ? इसलिए हमने भी जी भर कर चित्र लिए। 
             खैर ! अभी तो हम नार्थ कैरोलाइना तक ही सफर में पहुंचे थे।  इसी नार्थ कैरोलाइना प्रांत के ' एशविल ' नामक सुन्दर शहर में हमें रूकना था।  यह हमारी यात्रा का प्रथम चरण था।              अमरीका के अत्यंत धनाढ्य वेंडरबिल्ट परिवार का  ८,००० एकड़ ज़मीन पर फैला हुआ भव्य , ग्रीष्म कालीन आवास है जिसका नाम है '  बिल्टमोर एस्टेट  ' ! यह  उत्तर अमरीकी भूखंड का, सब से विशालतम, नीजी आवास है।
3 people horseback riding on grounds
Walled Garden

कुछ वर्ष पूर्व बाहर से इस आलीशान आवास की बस एक झलक देखकर, हम अपनी एक यात्रा के दौरान आगे बढ़ गए थे।  परन्तु इस बार हमने, बाकायदा , टिकट खरीद कर इस विशेष आवास को जी भर कर देखना निश्चित क्या था। जिन पहाड़ियों पर ' बिल्टमोर ' बसा हुआ है उन पहाडियों  को ' ब्लू - रीज़ ' माउंटन ' कहते हैं।
चित्र में -- बिल्टमोर एस्टेट के प्रवेश द्वार पर हम --













बाहर आपके स्वागत के लिए फूल मुस्कुरा रहे हैं। 

Lagoonview winter snow

अब भीतरी कक्ष का दृश्य : सुंदर लकड़ी का काम और भित्ती चित्र भी देखें - 
Chair in front of the fireplace
अधिक जानकारी के लिए , कृपया देखें यह लिंक : 
http://www.biltmore.com/
आगे क्रमश : ~~ 

Saturday, January 17, 2015

मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई

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मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई 
रूठ कर रात बन्नो भी नींद में खोई हुई 

उसने कहा था ' आ जाऊंगा ईद को  
माहताब जी भर देखूंगा, कसम से।'
 फीकी रह गई ईद, हाय, वो न आये 
सूनी  हवेली,सिवईयें  रह गईं अनछुई !

नई दुल्हन का सिंगार फीका बोझिल गलहार  
डूबते आफताब सी वीरां,फीकी, ईद की साँझ। 
अश्क सूखे इंतज़ार करते नैन दीप अकुलाए थे 
मोगरे के फूल पर सोई हुई थी चांदनी उस रात !
- लावण्या