Tuesday, April 28, 2020

५ - अनुवादित कविताएँ ~ लावण्या शाह

 सर्वप्रथम : प्रस्तुत है कवि पाबलो नेरुदा की दो कविताओं का हिंदी अनुवाद
प्रश्न : पाब्लो नेरुदा कौन थे ?

उत्तर : नेफताली रीकर्डो रेइस या पाबलो नेरुदा
 दक़्शिण अमरीका भूखँड के सबसे सुप्रसिध्ध कवि हैं।उन का जन्म पाराल, चीले, आर्जेन्टीना मेँ सं.१९०४ के समय मेँ हुआ।  पाबलो नेरुदा ने, अपने जीवन मेँ कई यात्राएँ कीँ थीं।
रुस, चीन, पूर्वी युरोप की यात्रा कीं।  सन्` १९७३ मेँ निधन हुआ।
भारत के श्री रवींद्रनाथ ठाकुर की भाँति भाषा व साहित्य सर्जन  लिए,
विश्वविख्यात  नोबल इनाम सन्` १९७१ मेँ पाब्लो नेरुदा को मिला ।
कविता के लिये वे कहते हैं कि, " एक कवि को भाइचारे व  एकाकीपन के बीच एवम्` भावुकता व धुर्र कर्मठता के बीच, तथा अपने आप से लगाव के साथ
समूचे विश्व से सौहार्द व कुदरत के उद्घघाटनोँ के मध्य सँतुलित रहते हुए
रचना कर्म करना जरूरी होता है।
वही कविता होती है  "
         (१)
कविता : " दोपहर के अलसाये पल "
" दोपहर के अलसाये पल "
तुम्हारी समँदर -सी गहरी आँखोँ मेँ,

फेँकता पतवार मैँ,
उनीँदी दोपहरी मेँ -
उन जलते क्षणोँ मेँ,
मेरा ऐकाकीपन , घना होकर,
जल उठता है -
डूबते माँझी की तरहा -
लाल दहकती निशानीयाँ,
तुम्हारी खोई आँखोँ मेँ,
जैसे "दीप ~ स्तँभ" के समीप,
मँडराता जल !
मेरे दूर के सजन,
तुम ने अँधेरा ही रखा
तुम्हारे हाव भावोँ मेँ उभरा यातनोँ का किनारा
--- अलसाई दोपहरी मेँ,
मैँ, फिर उदास जाल फेँकता हूँ --
उस दरिया मेँ , जो
तुम्हारे नैया से नयनोँ मेँ कैद है !

रात के पँछी, पहले उगे तारोँ को,
चोँच मारते हैँ -ढर वे,
मेरी आत्मा की ही तरहा,
ढर दहक उठते हैँ !
रात, अपनी परछाईँ की ग़्होडी पर
सवार दौडती है ,
अपनी नीली फुनगी के
रेशम - सी लकीरोँ को छोडती हुई !
२) व्यथा - गीत :
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तुम्हारी याद आसपास फैली रात्रि से उभरती हुई
--नदिया का आक्रँद, जिद्दी बहाव लिये, सागर मेँ समाता हुआ
बँदरगाह पर सूने पडे गोदाम ज्यूँ प्रभात के धुँधलके मेँ
-और यह प्रस्थान - बेला सम्मुख, ओ छोड कर जाने वाले !

भीगे फूलोँके मुखसे बरसता जल, मेरी हृदय कारा पर,
टूटे हुए सामान का तल, भयानक गुफा, टूटी कश्ती की
-तुम्हीँ मेँ तो सारी उडाने, सारी लडाइयाँ, इक्ट्ठा थीँ
-तुम्हीँ से उभरे थे सारे गीत, मधुर गीत गाते पँछीयो के पर
-एक दूरी की तरहा, सब कुछ निगलता यथार्थ --
दरिया की तरह ! समुद्र की तरह ! डूबता सबकुछ, तुम मेँ
वह खुशी का पल, आवेग और चुम्बन का !
दीप - स्तँभ की भाँति प्रकाशित वह जादु - टोना !

उस वायुयान चालक की सी भीति, वाहन चालक का अँधापन,
भँवर का आँदोलित नशा, प्यार भरा, तुम्हीँ मेँ डूबता, सभी कुछ!-

शैशव के धूँधलके मेँ छिपी आत्मा, टूते पँखोँ - सी ,
ओ छूट जानेवाले, खोजनेवाला , है- खोया सा सब कुछ!
दुख की परिधि तुम -- जिजिविषा तुम
-- दुख से स्तँभित - तुम्हीँ मेँ डूब गया , सब कुछ !

परछाइयोँकी दीवारोँ को मैँने पीछे ठेला
--मेरी चाहतोँके आगे, करनी के आगे, और मैँ , चल पडा !
ओ जिस्म ! मेरा ही जिस्म ! सनम! तुझे चाहा और, खो दिया
-- मेरा हुक्म है तुम्हे , भीने लम्होँ मेँ आ जाओ ,
मेरे गीत नवाजते हैँ -बँद मर्तबानोँ मेँ सहेजा हुआ प्यार
- तुम मेँ सँजोया था --
और उस अकथ तबाही ने, तुम्ही को चकनाचूर किया !
वह स्याह घनघोर भयानकता, ऐकाकीपन, द्वीप की तरह
-और वहीँ तुम्हारी बाँहोँने सनम, मुझे, आ घेरा
--वहाँ भूख और प्यास थी और तुम, तृप्ति थीँ !
दुख था और थे पीडा के भग्न अवशेष , पर करिश्मा ,
तुम थीँ !ओ सजन! कैसे झेला था तुमने मुझे, कह दो
-- तुम्हारी आत्मा के मरुस्थल मेँ, तुम्हारी बाँहोँ के घेरे मेँ
-मेरी चाहत का नशा, कितना कम और घना था
कितना दारुण, कितना नशीला, तीव्र और अनिमेष!
वो मेरे बोसोँ के शम्शान, आग - अब भी बाकी है,
कब्र मेँ --फूलोँ से लगदे बाग, अब भी जल रहे हैँ,
परवाज उन्हेँ नोँच रहे हैँ !वह मिलन था
-- तीव्रता का,
अरमानोँ का -जहाँ हम मिलते रहे ,
गमख्वार होते रहे
-और वह पानी और आटे सी महीन चाहत ,
वो होँठोँ पर, लफ्ज्` कुछ, फुसफुसाते गुए
-यही था, अहलो करम्, यही मेरी चाहतोँ का सफर
-तुम्हीँ पे वीरान होती चाहत, तुम्हीँ पे उजडी मुहब्बत !
टूटे हुए, असबाब का सीना, तुम्हीँ मेँ सब कुछ दफन !
किस दर्द से तुनम नागँवारा, किस दर्द से, नावाकिफ ?
किस दर्द के दरिया मेँ तुम, डूबीँ न थीँ ?
इस मौज से, उस माँझी तक, तुम ने पुकारा ,
गीतोँ को सँवारा, कश्ती के सीने पे सवार,
नाखुदा की तरह
-- गुलोँ मेँ वह मुस्कुराना, झरनोँ मेँ बिखर जाना,
तुम्हारा,उस टूटे हुए, सामान के ढेर के नीचे,
खुले दारुण कुँएँ मेँ !
रँगहीन, अँधे, गोताखोर,, कमनसीब, निशानेबाज
भूले भटके, पथ - प्रदर्शक, तुम्हीँ मेँ था सब कुछ, फना !

यात्रा की प्रस्थान बेला मेँ, उस कठिन सर्द क्षण मेँ,
जिसे रात अपनी पाबँदीयोँ मेँ बाँध रखती है
समँदर का खुला पट - किनारोँ को हर ओर से घेरे हुए
और रह जाती हैँ, परछाइयाँ मेरी हथिलियोँ मेँ,
कसमासाती हुईँ --सब से दूर --- सभी से दूर
---इस बिदाई के पल मेँ !
आह ! मेरे, परित्यक्यत्त जीवन !!!
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दो ~ गुजराती गीतों का हिंदी काव्यानुवाद :
(१) कवि  કૃષ્ણ-રાધા / પ્રિયકાન્ત પ્રેમચંદ મણિયાર
(जन्म : २८-१-१९२९मृत्यु : २५-६-१९७६ ) 
कवि प्रियकांत मणियार का जन्म, अमरेली प्राँत के वीरमगाम स्थान मेँ हुआ  !  सुप्रसिध्ध आरती मेँ श्री कृष्ण व राधा के प्रति कवि की भक़्ति अपूर्व लालित्य लिये नये नये उपमा एवं प्रतीकोँ से सुसज्ज पदावली द्वारा अनोखा माधुर्य प्रदान कर रहीं  हैं।  प्रमुख काव्य सँग्रह - प्रतीक, अशब्द -रात्रि, प्रबल -गति, व्योमलिपि इत्यादि
प्रियकाँत  मणियार ~ परिचय : गुजरती भाषा में ~

પ્રિયકાંત મણિયાર (૨૪-૧-૧૯૨૭ થી ૨૫-૬-૧૯૭૬) ની આ અતિપ્રસિદ્ધ આરતી છે.  દરેક કવિસંમેલનના અંતે પ્રિયકાંત આ આરતી સ્વકંઠે અવશ્ય ગાતાં. પ્રિયકાંત જ્યારે ગીત લખે છે ત્યારે ખીલે છે. વિરમગામમાં જન્મ, અમરેલીના વતની અને અમદાવાદમાં વર્ષો સુધી  મણિયારનો વ્યવસાય એમણે કર્યો. સજીવ સૌન્દર્યચિત્રો દોરીને સજાવાયેલા ઘાટીલાં કાવ્યો નવીન પ્રતીકો અને લલિત પદાવલીથી વધુ ધ્યાનાકર્ષક બને છે.
કૃષ્ણ અને રાધા માટેનો એમનો મીરાં જેવો અદકેરો પ્રેમ અમનાં અસંખ્ય ગીતોમાં રજૂ થયો છે.  ‘નભ’થી ઉઘાડ પામીને આ કાવ્ય ‘લોચન’માં વિરમે એ દરમ્યાનમાં પ્રકૃતિથી  માનવ-મન સુધી પ્રેમભાવ અદભૂત રીતે વિસ્તરે છે.
કાવ્યસંગ્રહો : ‘પ્રતીક’, ‘અશબ્દ રાત્રિ’, ‘પ્રબલગતિ’, ‘વ્યોમલિપિ’ વિ.

कवि प्रियकांत मणियार की गुजराती कविता

આ નભ ઝૂક્યું તે કા’નજી ને ચાંદની તે રાધા રે.
આ સરવર જલ તે કા’નજી ને પોયણી તે રાધા રે.
આ બાગ ખીલ્યો તે કા’નજી ને લ્હેરી જતી તે રાધા રે.
આ પરવત શિખર કા’નજી ને કેડી ચડે તે રાધા રે.
આ ચાલ્યાં ચરણ તે કા’નજી ને પગલી પડે તે રાધા રે.
આ કેશ ગૂંથ્યા તે કા’નજી ને સેંથી પૂરી તે રાધા રે.
આ દીપ જલે તે કા’નજી ને આરતી તે રાધા રે.
આ લોચન મારાં કા’નજી ને નજરું જુએ તે રાધા રે.

प्रियकांत मणियार की गुजराती कविता का हिंदी अनुवाद :

"यह झुका हुआ नभ कान्हजी और चाँदनी हैँ राधा रे!
यह सरवर जल हैँ कान्हजी और पद्मपुष्प हैँ राधा रे!
यह खिला बाग है कान्हजी और लहरी बहे वो राधा रे!
यह चले चरण वो कान्हजी और पगछाप दीखे वो राधा रे!
" ये गूँथे केश हैँ कान्हजी और भरी माँग हैँ राधा रे! "
यह जलता दीप हैँ कान्हजी और आरती हैँ राधा रे ~
        ( २ )
गुजरात का सुप्रसिद्ध लोक गीत " मेंहदी रँग लाग्यो रे " ~
 
   हिन्दी अनुवाद ~
" ओ भाभी मोरी महावर रचाई ल्यो"
  मेहन्दी बोई थी मालव मेँ
  उसका रँग गया गुजरात रे,
  भाभी मेरी महावर रचाई लो !
   कुट पीस के भरी कटोरीयाँ,
  ओ भाभी रचालो ना तुम्हारे हाथ रे
    भाभी,  मेहँदी लगा लो !"
      पूरा  लोकगीत ~
तन है रूप की लोरी आंखों में मद अपार
घूंघट में यौवन की ज्वाला, पायल की  झंकार
लंबा आँचल चुनरी का, गजरों की बहार
लटक मटक चाल चलती, देखो गुर्जरी नार !
मेहंदी बोयी मालवे में, इस का रंग निखरा गुजरात
लाडला देवर लाया मेहंदी का बिरवा रे
आहा मेहंदी तेरा रंग लगा रे !
कूट पीस कर भरी कटोरी, भाभी अब रंग लो हाथ
आहा मेहंदी तेरा रंग लगा रे!
लंबा कोट , मूंछें बांकी,सिर पे पगड़ी लाल
एक एक बोल, तौल कर बोले, छैलछबीला गुजराती
तन छोटा पर मन बडा खमीरवन्त है जाति
भले ही लागूँ मै भोला भाला, मैँ हूँ छैलछबीला, गुजराती !
भाभी : इन हाथोँ को रँग के वीराँ क्या करूँ ?
इन्हेँ देखनेवाला गया है रे परदेस रे
हाय  ~ मेहंदी तेरा रंग लगा रे!
गुजराती शब्द ~

તન છે રૂપનું હાલરડું ને આંખે મદનો ભાર
ઘૂંઘટમાં જોબનની જ્વાળા ઝાંઝરનો ઝમકાર
લાંબો છેડો છાયલનો, ને ગજરો ભારો ભાર
લટકમટકની ચાલ ચાલતી જુઓ ગુર્જરી નાર
મેંદી તે વાવી માળવે ને એનો રંગ ગયો ગુજરાત રે
મેંદી રંગ લાગ્યો રે
નાનો દિયરડો લાડકો જે, કંઇ લાવ્યો મેંદીનો છોડ રે
… મેંદી …
વાટી ઘૂંટીને ભર્યો વાટકો ને ભાભી રંગો તમારા હાથ રે …
મેંદી
હે… લાંબો ડગલો, મૂછો વાંકડી, શિરે પાઘડી રાતી
બોલ બોલતો તોળી તોળી છેલછબીલો ગુજરાતી
હે॥ .......
તન છોટુ પણ મન મોટું, છે ખમીરવંતી જાતી
ભલે લાગતો ભોળો, હું છેલછબીલો ગુજરાતી
હાથ રંગીને વીરા શું રે કરું?
રે મેંદી રંગ લાગ્યો રે. more information : 
   ****  श्री रवीन्द्रनाथ टैगौर***********************
 
श्री रवीन्द्रनाथ टैगौर (१८६१ -१९४१ )
श्री रवीन्द्रनाथ टैगौर की मूल बांग्ला कविता जन्मकथा : का अनुवाद ~
श्री रवीन्द्रनाथ टैगौर (१८६१ -१९४१ ) काव्य पुस्तक "गीतांजलि "बांग्ला कवि  गुरूदेव #रवीन्द्रनाथ #टैगोर की सर्वाधिक प्रशंसित और पठित पुस्तक है। सं. १९१० में, विश्व प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार संस्था द्वारा विश्व के सर्वोत्तम साहित्य सृजन के लिए श्री  रवीन्द्रनाथ टैगौर को पुरस्कृत किया गया । तद्पश्चात  अपने समग्र  जीवन काल में वे भारतीय साहित्याकाश पर धूमकेतु सदृश्य छाए रहे। साहित्य की विभिन्न विधाओं, संगीत और चित्र कला में सतत् सृजनरत रहते हुए उन्होंने अन्तिम साँस तक सरस्वती की साधना की तथा भारतवासियों ने उन्हें ' गुरू देव'  के सम्बोधन से सम्मानित किया तो भारतवासियों के अगाध स्नेह स्वरूप वे सदा के लिए प्रतिष्ठित हो गए ।
प्रकृति, प्रेम, ईश्वर के प्रति निष्ठा, एवं  मानवतावादी मूल्यों के प्रति समर्पण भाव से सम्पन्न काव्य पुस्तक "गीतांजलि"  के सभी गीत,  पिछली एक सदी से बांग्लाभाषी जनों की आत्मा में रचे ~ बसे हुए हैं। रवींद्र संगीत इसी से उत्पन्न होकर आज एक सशक्त संगीत विधा कहलाता है। विभिन्न भाषाओं में हुए गीतांजलि के गीतों के
काव्य अनुवादों के माध्यम से, समस्त  विश्व के सह्रदय पाठक  अब गुरुदेव श्री रवीन्द्रनाथ टैगौर जी की के भाव सभार गीतों व कविताओं का रसास्वादन कर संपन्न हो चुके हैं।प्रस्तुत अनुवाद हिंदी में भिन्न है कि इसमें मूल बांग्ला रचनाओं के गीतात्मकता को बरकरार रखा गया है, जो इन गीतों का अभिन्न हिस्सा है, इस गेयता के कारण आप इन गीतों को भलीभाँति याद रख सकते हैं। 

श्री रवीन्द्रनाथ टैगौर की मूल बांग्ला कविता बँगाल के कवि रत्न, साहित्य के लिये, नोबल इनाम से सुशोभित, ख्याति प्राप्त, श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने लिखी कविता ~ जन्मकथा : का काव्यानुवाद ~
           जन्मकथा :
" बच्चे ने पूछा माँ से , मैं कहाँ से आया माँ ? "
माँ ने कहा, " तुम मेरे जीवन के हर पल के संगी साथी हो !"
जब मैं स्वयं शिशु थी, खेलती थी गुडिया के संग, तब भी,
और जब शिवजी की पूजा किया करती थी तब भी,
आँसू  और मुस्कान के बीच बालक को,
कसकर, छाती से लिपटाए हुए, माँ ने कहा,

" जब मैंने देवता पूजे, उस वेदिका पर तुम्हीं  आसीन थे !
मेरे प्रेम, इच्छा और आशाओं में भी तुम्हीं तो थे !
और नानी माँ और अम्मा की भावनाओं में भी, तुम्हीं  थे !
ना जाने कितने समय से तुम छिपे रहे !
हमारी कुलदेवी की पवित्र मूर्ति में ,
हमारे पुरखों  की पुरानी हवेली मेँ तुम छिपे रहे !
जब मेरा यौवन पूर्ण पुष्प सा खिल उठा था,
तुम उसकी मदहोश करनेवाली मधु गँध थे !
मेरे हर अंग प्रत्यंग में तुम बसे हुए थे
 तुम्हीं में हरेक देवता बिराजे हुए थे
तुम, सर्वथा नवीन व प्राचीन हो !
उगते रवि की उम्र है तुम्हारी भी,
आनंद के महासिंधु की लहर पे सवार,
ब्रह्माण्ड के चिरंतन स्वप्न से ,
तुम अवतरित होकर आए थे।
अनिमेष द्रष्टि से देखकर भी
एक अद्भुत रहस्य रहे तुम !
जो मेरे होकर भी समस्त के हो,
एक आलिंगन में बध्ध, सम्बन्ध,
मेरे अपने शिशु , आए इस जग में,
इसी कारण मैं, व्यग्र हो, रो पड़ती हूँ,
जब, तुम मुझ से, दूर हो जाते हो...
कि कहीँ, जो समष्टि का है
उसे खो ना दूँ कहीँ !
कैसे सहेज बाँध रखूँ उसे ?
किस तिलिस्मी धागे से ?
अनुवाद :- लावण्या
Poem  : Birth Story : Original in Bengali
'Janmkatha ' by Rabindranath Tagore ~
Transcreation by : Kumud Biswas :
kid asks his mum,‘From where did I come,
Me where did you find?’
Holding him tight in an embrace
In tears and laughter
The mum replies,‘You were in my mind
As my deepest wish।
You were with me When I was a childA
nd played with my dolls।
When worshiping Shiva in the morning
I made and unmade you every moment।
You were with my deity on the altar
And with him I worshiped you too।
You were in my hopes and desires,
You were in my love,
And in the hearts of my mum and grand mum।
I don’t know how long You kept yourself hiding
In our age old home
In the lap of the goddess of our family
When I bloomed like a flower in my youth
You were in me like its sweet smell
With your softness and sweetness
You were in my every limb।
You are the darling of all gods
You are eternal yet new
You are of the same age as the morning Sun
From a universal dream
To me you came floating On the floods of joy
That eternally flows in this world।
Staring at you in wonder
I fail to unfold your mystery
How could one come only to me Who belongs to all?
Embracing your body with my body You have come
to this world as my kid
So I clasp you tightly in my breast
And cry when you are away for a moment
I always remain in fear I may loose
One who is the darling of the world।
I don’t know how shall I keep you
Binding in what magic bond।’

Tuesday, April 7, 2020

गीतों और गज़लों से सजी हिन्दी चित्रपट की दुनिया का सुरीला सफ़र


ज हम हिंदी सिनेमा जगत में गीत और ग़ज़लों के लिखनेवाले , कुछ जाने पहचाने और कुछ सदाबहार कलाकारों को याद करते हुए चलें , संगीत और सृजन की, एक अनोखी, सुरीली , संगीतमय यात्रा पर !
आपने भी कई बार , इन कलाकारों के रचे, गीतों को गुनगुनाया होगा - ये मेरा विशवास है - जैसा की अकसर होता है, जब भी हमारी जिंदगी में , ऐसे पल आते हैं जिनसे गुजरते हुए,
अनायास ही हमारे जहन में, कोइ भूला - बिसरा गीत,उभर आता है और हम, हमारी संवेदना को उसी गीत में ढालकर , गीत, गुनगुनाने लगते हैं !....ये कितने आश्चर्य की बात है कि, अकसर हमारे मन में चल रही हलचल को, कोइ ना कोइ गीत, या कोइ ग़ज़ल, हूबहू, उसी के अनुरूप, किसी ख़ास अंदाज़ में मिल ही जाती है और अकसर ये गीत साहित्य या हिंदी फिल्मों से सम्बंधित होता है !
आज हम, कई सारे मशहूर कलाकारों को याद करेंगें जिनके गीत और ग़ज़ल हमारे जीवन में ऐसे रच बस गए हैं मानो वे हमारे परिवार और हमारे जीवन का अभिन्न अंग ही हों ! हाँ, कई ऐसे कालाकार और उनके नाम आज हम चाहकर भी न ले पायेंगें क्यूंकि ये असंभव सी बात है सभी का नाम लेना और उनके गीत याद करना ! अगर सभी का नाम लूं, तब तो मेरा आलेख बहुत लंबा हो जाएगा और आपका समय भी तो कीमती है !
आज बस यही समझें , संगीत की बगिया से फूल नहीं, महज कुछ पंखुरियां ही चुन कर, आपके सामने पेश कर रही हूँ --
मुझे याद है बचपन में देखी फिल्म "जागृति " जिसके तकरीबन सारे गीत, हर भारतीय ने बचपन से लेकर, अपनी जीवन यात्रा के हर मुकाम पार करते हुए ,गुनगुनाये होंगें !
" आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झाँकी हिंदुस्तान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम ..."
और
" दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल
साबरमती के सन्त तू ने कर दिया कमाल
आँधी में भी जलती रही गाँधी तेरी मशाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी ..."...और
" हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के
तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के "
इन अमर गीतों के साथ याद कर लें और नमन करें कवि प्रदीप जी की लेखनी को !
ऐसे ही, देश - प्रेम या भारत प्रेम का जज्बा कुछ और गहराता है जब जब हम गाते हैं ,
" सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है

वक़्त आने पर बता देंगे तुझे ओ आसमाँ
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है "
श्री राम प्रसाद "बिस्मिल " के त्याग और बलिदान के रंग में रंगे ये अक्षर समय के दरिया से भी ना धुन्धलायेंगें !
मुगलिया सल्तन के शाही तख्तो ताज के उजड़ने कि कहानी अगर कोइ चाँद लफ्जों में बयान करे तब यही कहेगा
" उम्र-ए-दराज़ माँग के लाये थे चार दिन
लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये दो इंतज़ार में
दो आरज़ू में कट गये
कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिये
दफ़्न के लिये
दो ग़ज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में -
लगता नहीं है जी ..."
और ये बेनूरानी के सबब से ख्यालात थे हिन्दोस्तान के अंतिम मुगलिया बादशाह ,
बहादुर शाह जफर के --
गीत और गज़लों की यही तो खूबी है जो महज चाँद लफ्जों से वे हमारे जहन में उभार देते हैं
एक सदी का पूरा इतिहास !
दरिया की रवानी सी बहती गीत की तर्ज पे हम डूबते उतरते हुए सिन्धु से गंगा और वोल्गा से नाईल पार करते हुए, एमेजोन और मिसिसिपी या तैग्रीस और होआन्ग्हो भी घूम आते हैं  और
श्री भारत व्यास
और हिंदी संगीत निर्देशकों के पितामह
श्री अनिल बिस्वास
द्वारा रचा ये गीत भी नदी किनारे पर सुन लें
"घबराए जब मन अनमोल,
और ह्रदय हो डाँवाडोल,
तब मानव, तू मुख से बोल,
बुद्धम सरणम गच्छामी.....
बुद्धम सरणम गच्छामी,
धम्मम सरणम गच्छामी,
संघम सरणम गच्छामी." फिल्म थी ' अंगुलीमाल "
संत ज्ञानेश्वर फिल्म में ये गीत था~ 
"ज्योत से ज्योत जगाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आए जो दीन दुखी, सबको गले से लगाते चलो "
" हरी भरी वसुंधरा पर नीला नीला ये गगन
   के जिसपे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
    दिशाएं देखो रंग भरी
    दिशाएं देखो रंग भरी चमक रहीं उमंग भरी
   ये किसने फूल फूल से किया श्रृंगार है
    ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार"
फिल्म : " बूँद जो बन गयी मोती " से
प्रकृति के सौन्दर्य की पूजा का गीत है और भारत व्यास जी की लेखनी राजस्थान की रंगोली परोसते हैं ऐसे उत्कृष्ट प्रणय गीत से
फिल्म थी "दुर्गादास " और गीत के शब्द हैं,
" थाणे काजळियो बणालयूं म्हारे नैणा में रमाल्यूं -२
    राज पळकां में बन्द कर राखूँली
    हो हो हो, राज पळकां में बन्द कर राखूँली "
और फिल्म नवरंग का ये सदाबहार गीत
"आधा है चंद्रमा रात आधी
रह न जाए तेरी मेरी बात आधी, मुलाक़ात आधी
आधा है चंद्रमा..."
और तब नयी " परिणीता "( यही शीर्षक भी था ) का मनभावन रूप इन शब्दों में ढलता है ~
" गोरे-गोरे हाथों में मेहंदी रचा के
नयनों में कजरा डाल के
चली दुल्हनिया पिया से मिलने
छोटा सा घूँघट निकाल के -२
गोरे-गोरे हाथों ..में."
फैज़ अहमद फैज़ के लफ्जों पे गौर करें --
" ज्योत से ज्योत जगाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आए जो दीन दुखी, सबको गले से लगाते चलो "
और नूरजहाँ की आवाज़ में "कैदी " फिल्म की ये ग़ज़ल
 क्या खूब है, अल्फाज़ फिर फैज़ साहब के हैं
" लौट जाती है इधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न, मग़र क्या कीजे - २
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझ से पहली सी मोहब्बत, मेरे महबूब, न माँग "
" ख़ूँरेज़ करिश्मा नाज़ सितम
ग़मज़ों की झुकावट वैसी ही
पलकों की झपक पुतली की फिरत
सूरमे की घुलावट वैसी ही"~ 
"हुस्ने ए जाना " प्राइवेट आल्बम से जिस गाया छाया गांगुली ने और तैयार किया मुज़फ्फर अली ने~  शायरी नजीर अकबराबादी साहब के कमाल का ये नमूना क्या खूब है !
अब आगे चलें, सुनते हुए,
" मुझपे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई है
   ऐ मुहब्बत तेरी दुहाई है
    मुझ पे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई है ."
इस ग़ज़ल के बोल लिखे थे, जां निसार अख्तर साहब ने फिल्म 'यास्मीन"  में और संगीत से सजाया था सी. रामचन्द्रने और आवाज़ है  स्वर साम्राज्ञी लता जी की !
जनाब जां निसार अख्तर के साहबजादे जावेद अख्तर साहब, अपने अजीम तरीम वालीद से भी ज्यादह  मशहूर हुए और कई खूबसूरत नगमे उन्होंने हिंदी सिनेमा में अपने हुनर से पेश कीं थीं वे आज भी अपने लेखन में, मसरूफ हैं~ 
" ऐ जाते हुए लम्हों ज़रा ठहरो ज़रा ठहरो
    मैं भी तो चलता हूँ ज़रा उनसे मिलता हूँ
     जो एक बात दिल में है उनसे कहूं
       तो चलूं तो चलूं हूं हूं हूं हूं
        ऐ जाते हुए लम्हों ..."
गायक रूप कुमार राठोड के स्वर, फिल्म - बॉर्डर, संगीत अनु मल्लिक का और फिल्म " सिलसिला" का ये लोकप्रिय गीत
" देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए
   दूर तक निगाहों में हैं गुल खिले हुए
     ये ग़िला है आप की निगाहों का 
     फूल भी हों दर्मियां तो फ़ासले हुए "
जगजीत सिंह जी की आवाज़ में "साथ साथ फिल्म का ये गीत,
संगीत कुलदीप सिंह का, एक अलग सा माहौल उभारता है
" तुम को देखा तो ये ख़याल आया 
  ज़िंदगी धूप तुम घना साया
    तुम को..."
राजा मेहेंदी अली खान साहब के इन दोनों गीतों को जब लता जी का स्वर मिला तो मानो सोने में सुगंध घुल मिल गई  
संगीत मदन मोहन का था और फिल्म  " वह कौन थी ? "
" नैना बरसें, रिमझिम रिमझिम
नैना बरसें, रिमझिम रिमझिम
पिया तोरे आवन की आस
नैना बरसें, रिमझिम रिमझिम
नैना बरसें, बरसें, बरसें "
और अनपढ़ का ये गीत ,
" आप की नज़रों ने समझा, प्यार के काबिल मुझे
दिल की ऐ धड़कन ठहर जा, मिल गई मंज़िल मुझे
आप की नज़रों ने समझा .."
फिल्मों में उर्दू ग़ज़लों की बात चले और शकील बदायूनी और साहीर लुधियानवी साहब का नाम ना आये ये भी कहीं हो सकता है ? साहीर ने कितनी बढिया बात कही ,
" तू हिन्दु बनेगा ना मुसलमान बनेगा
इन्सान की औलाद है इन्सान बनगा "
संगीत एन. दता का  फिल्म "धर्मपुत्र " गायक मुहम्मद रफी -
गीता दत्त का गाया पुरानी देवदास का गीत जिसे संगीत में ढाला सचिन दा ने इस भजन में,
" आन मिलो आन मिलो श्याम सांवरे ... आन मिलो " भी साहीर का लिखा था और " वक्त " का ये रवि के संगीत से सजा सदाबहार नगमा
" ऐ मेरी ज़ोहरा-ज़बीं
  तुझे मालूम नहीं
तू अभी तक है हंसीं
   और मैं जवाँ
तुझ पे क़ुरबान मेरी जान मेरी जान
   ऐ मेरी ..."
" साधना " फिल्म का लता जी के स्वर में, ये नारी शोषण के लिए लिखा गीत
" औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा कुचला मसला, जब जी चाहा दुत्कार दिया "
और
' रेलवे प्लेटफोर्म' का गीत : मनमोहन कृष्ण और रफी के स्वर में मदन मोहन का संगीत
" बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत गाता जाए बंजारा
ले कर दिल का इकतारा
बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत ..." ये सारे गीत और गज़लें ,
साहीर साहब की अनोखी प्रतिभा के बस, नन्हे से नमूने हैं -
शकील बदायूनी की ये पाक इल्तजा फिल्म "मुगल ए आज़म " में लता जी की आवाज़ में सदीयों गूंजती रहेगी
" ऐ मेरे मुश्किल-कुशा, फ़रियाद है, फ़रियाद है
   आपके होते हुए दुनिया मेरी बरबाद है
   बेकस पे करम कीजिये, सर्कार-ए-मदीना
    बेकस पे करम कीजिये
   गर्दिश में है तक़दीर भँवर में है सफ़ीना -२
   बेकस पे करम कीजिये, सर्कार-ए-मदीना
    बेकस पे करम कीजिये "
और उमा देवी ( टुनटुन ) का स्वर और नौशाद का संगीत "दर्द" फिल्म में सुरैया जी की अदाकारी से सजा
" अफ़सान लिख रही हूँ (२) दिल-ए-बेक़रार का
आँखोँ में रंग भर के तेरे इंतज़ार का
अफ़साना लिख रही हूँ "

बैजू बावरा " फिल्म के संगीतकार, नौशाद , शायर शकील ,और गायक रफी ने ये सिध्ध कर दिया की कला और संगीत किसी भी मुल्क , कॉम या जाति बिरादरी में बंधे नहीं रहते वे आजाद हैं - हवा और बादल की तरह और पूरी इंसानियत पे एक सा नेह लुटाते हैं !
" मन तड़पत हरि दरसन को आज
मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज
आ, विनती करत, हूँ, रखियो लाज, मन तड़पत..."

सुरीली गायिका आशा भोसले का स्वर और जयदेव का संगीत,
हिंदी कविता की साक्षात सरस्वती महादेवी जी के गीतों को
नॉन फिल्म गीत देकर , अमर करने का काम कर गयी है -
" मधुर मधुर मेरे दीपक जल !
  युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
   प्रियतम का पथ आलोकित कर !
   सौरभ फैला विपुल धूप बन,
   मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन;
   दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,
     तेरे जीवन का अणु अणु गल !
    पुलक पुलक मेरे दीपक जल ! "
डाक्टर राही मासूम रजा ने कहा जगजीत ने गाया नॉन फिल्म गीत : " हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चांद - २
अपनी रातकी छत पर कितना, तनहा होगा चांद हो  ओ  ओ
हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चांद ..."
और निदा फाजली का लिखा जगजीत का गाया ये भी नॉन फिल्म गीत
" ओ मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की, बिन चिठ्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये, जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है, बाहों भर संसार "
तलत का गाया गालिब का कलाम, भी नॉन फिल्म गीत
" देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाये है
    मैं उसे देखूँ भला कब मुझसे देखा जाये है "
  ये भी एक स्वस्थ परिपाटी की और इशारा करते हैं और हमें ये बतलाते हैं कि, जरुरी नहीं है के हरेक गीत सिनेमा में हो !
परंतु फिल्म से जुड़े कलाकोरों ने, ऐसे कई सुन्दर गीत और कलामों को संजोया है, जो हम श्रोताओं के लिए  नायाब तोहफा ही तो है !
इन्टरनेट पर हिंदी फिल्म में गीत और ग़ज़ल , लिखनेवालों पर , पिछले कुछ समय में , स - विस्तार और काफी महत्वपूर्ण सामग्री दर्ज की गयी है।
मेरे पापा जी, स्व. पण्डित नरेंद्र शर्मा का नाम "न " अक्षर से खोजते समय, मुझे, इतने सारे नाम और भी मिले !
आप भी गर चाहें और अपने प्रिय गीतकार या संगीतकार या गायक पर खोज करना चाहें तब ये देखिये
लिंक :
Pt. Narendra Sharma
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Songs of Pt. Narendra Sharma as a lyricist

baa.Ndh priiti phuul Dor: text, हिंदी,
chhabi terii madhur ... man me.n mere a.ngaare hai.n: text, हिंदी,
gun gun gun gun bole re bha.nwar: text, हिंदी,
hai kahii.n par shaadamaanii aur kahii.n naashaadiyaa.N: text, हिंदी,
ham chaahe.n yaa na chaahe.n: text, हिंदी,
jaa re cha.ndr, jaa re cha.ndr, aur kahii.n jaa re: text, हिंदी,
jo samar me.n ho gae amar - - Lata: text, हिंदी,
jyoti kalash chhalake jyoti kalash chhalake: text, हिंदी,
koii banaa aaj apanaa: text, हिंदी,
mai.n yauvan ban kii kalii: text, हिंदी,
man me.n mere a.ngaare hai.n (chhabi terii madhur): text, हिंदी,
man mor huaa matavaalaa: text, हिंदी,
man sau.np diyaa an_jaane me.n: text, हिंदी,
nain diivaane ik nahii.n maane: text, हिंदी,
raat a.ndhiyaarii hai, maat dukhiyaarii hai: text, हिंदी,
saa.Njh kii belaa pa.nchii akelaa: text, हिंदी,
vo chaa.Nd nahii.n hai dil hai kisii diivaane kaa: text, हिंदी,
ये भी दुसरे कई सारे गीतकार व गज़लकारों पर लिंक हैं --
खुर्शीद हलौरीकुलवंत जानी
कमार जलालाबादीकातिल शफई
एम. जी. हशमतमजरुह सुलतानपुरी
मखदुम मोहिद्दिनमेहबूब
मीर तकी मीरमिर्जा शौक
नक्श लायलपूरीनीरज
निदा फाझलीनूर देवासी
प्रदीपप्रकाश मेहरा
प्रेम धवनपं. नरेन्द्र शर्मा
राहत इंदौरीराजा मेहंदी अली खान
राजेन्द्र कृष्णरानी मलिक
रविन्द्र जैनएस. एच. बिहारी
साहिर लुधियानवीसमीर
संतोष आनंदसावन कुमार
शहरयारशैलेन्द्र
शैली शैलेन्द्रशकिल बदायुनी
शेवान रिझवीवसंत देव
योगेश

आशा है आपको ये गीत व ग़ज़ल कि दुनिया से जुडी दीलचस्प बातें पसंद आयी होंगीं। आप अपने सुझाव तथा प्रश्न, यहां लिख कर भेज सकते हैं। ई मेल : lavnis@gmail.com
फिर मिलेंगें -- आज इतना ही। ..  .. 
" जिंदगी एक सफ़र है सुहाना,
यहां कल क्या हो किसने जाना ! "
स - स्नेह,
- लावण्या

Friday, February 14, 2020

आकाशवाणी के "विविधभारती : का प्रथम प्रसार गीत ~ :नाच रे मयूरा : गीतकार : पँडित नरेन्द्र शर्मा

ऑल इंडिया रेडियो "आकाशवाणी " का सर्व प्रथम गीत भारत सरकार की रेडियो प्रसारण सेवा के लिए बजाया गया उसे  ' प्रसार गीत ' कहा गया !
डा. केसकर जी मँत्री थे सूचना व प्रसारण के ( Information and
Broadcasting Ministry ) डा. केसकर जी मँत्री थे सूचना व प्रसारण के !उन्हेँ उस समय के हिन्दी सिने सँगीत के गीतोँ से भारतवर्ष की समस्त प्रजा के लिए आरम्भ किये जा रहे रेडियो जैसे नये माध्यम द्वारा आम फ़िल्मी बजाएं जाएं यह मामला  कतई पसन्द न था! अब क्या हो ? ऐसा दुविधापूर्ण प्रश्न आयोजकों के समक्ष उपस्थित हो गया। आखिरकार आकाशवाणी रेडियो प्रसारण सेवा के जरिये किस तरह के और कैसे गीत बजाये जायेँ ? ये मुद्दा एक बडा पेचीदा, गँभीर और सँजीदा मसला बन गया ! इस प्रश्न का हल ये निकाला गया कि "शुध्ध ~ साहित्यिक " किस्म के गीतोँ का ही भारतीय सरकार द्वारा प्रेषित रेडियो प्रसारण सेवा के जरिये शुद्ध हिंदीमें साँस्कृतिक   पुट लिए हों ऐसे साहित्यिक  हिन्दी गीतोँ को ही बजाया जाएगा । तद्पश्चात 
ऐसे शुद्ध हिंदी भाषा के गीतकारों  का चयन किया गया।
देहली से श्री भगवती चरण वर्मा जी को आमंत्रित किया गया। उनका  उपन्यास "चित्रलेखा " हिन्दी साहित्य जगत मेँ धूम मचा कर अपना गौरवमय स्थान हासिल किये हुए था। मायानगरी  बँबई से, कवि पँडित नरेब्द्र शर्मा जी को चुना गया। गीतों के संगीत संयोजन के लिए, उन्हें  सँगीत बध्ध करने के लिए मशहूर बँगाली सँगीत निर्देशक श्री अनिल बिस्वास जी को चुना गया वे भारतीय सिनेमा सुगम संगीत पितामह कहलाते हैं !
अब पढ़िए रेडियो उद्घोषक यूनुस खान जी का व्यक्ततव्य ~
लावण्या जी आज लाईं हैं रिफत सरोश के संस्मरण ~
लेकिन उनकी पोस् को पेश करने से पहले मैं कुछ कहने की गुस्ताख़ी  कर रहा हूंजो लोग रिफत साहब को नहीं जानते ये बातें उनके लिए
रिफत
सरोश रेडियो की एक जानी मानी हस्ती रहे हैं
शायरी
और उर्दू ड्रामे में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा हैरिफत रेडियो के उन लोगों में से एक रहे हैं जिनमें कार्यक्रमों को लेकर रचनात्मकता और दूरदर्शिता थीउनकी कई पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैंविविध भारती के आरंभिक दिनों में रिफत सरोश ने भी अपना उल्लेखनीय योगदान दिया थापुराने लोगों से सुन सुनकर जितना जान पाया हूं उसके मुताबिक रिफत साहब उन दिनों आकाशवाणी मुंबई में थे जब विविध भारती को दिल्ली से मुंबई लाया गया थाअब ये नया प्रसंग गया ना, जी हां विविध भारती का आरंभ तीन अक्तूबर सं १९५७ को दिल्ली में हुआफिर थोड़े दिनों बाद विविध भारती को मुंबई लाया गया फिर दिल्ली और फिर अंतत: मुंबई ले आया गया
ख़ैर इस संस्मरण को पढ़कर आप अगले भागों का इंतज़ार ज़रूर करेंगे
रेडियो में काम कर रहे मेरे जैसे बहुत बहुत बाद के लोगों के लिए इसमें बसे हैं पुराने लोगों के किस्से जो आज भी स्टूडियो के गलियारों में गूंजते हैं । ----युनुस चलिये अब आगे सुनें ~ जनाब 'रिफअत सरोश " साहब का  सँस्मरण
इस आलेख मेँ उन्होंने  अनमोल यादेँ साझा कीं हैँ उन से मुखातिब हुआ जाये ...
         
       " इप्टा = माने इन्डियन पीपल्स थियेटर के पहले का स्वरुप क्या था ? जी हाँ इसका पूर्वरुप था " कल्चरल स्क्वाड " जो वह " बाँये बाजू " का कलचरल विँग था! यानी नृत्य,सँगीत, और नाटकोँ के जरीये साम्राज्यित पर चोट की जाती थी ! कुचली हुई जनता को सिर उठाने, अपना हक मनवाने और आज़ादी की जँग मेँ आगे बढने के लिये उसी से तैयार किया जाता था।

" एक ज़माने तक, नाच - गानोँ के प्रोग्रामोँ मेँ हिस्सा लेना तो दरकिनार , मेरे नज़दीक ऐसे प्रोग्राम देखना भी एक तरह से ऐब था। लेकिन १९४५ ई. मेँ, बम्बई पहुँच कर मेरी अखलाकियात ( नैतिकता ) की रस्सी कुछ ढीली हो गई थी और  मैँ  इस तरह के प्रोग्राम कि, जिसमे अश्लील्ता न हो उनसे जुड़ने लगा !
 उन दिनोँ की बात है, कि बँबई के कावसजी जहाँगीर होल मेँ "कलचरल स्क्वाड " का एक प्रोग्राम हुआ।  जिसकी सूचना मुझे, अपने एक दोस्त प्रेमधवन से मिली जो शायर तो हैँ ही, डाँसर भी हैँ।
       
हाल खचाखच भरा हुआ था। परदे के पीछे से एनाउन्सर की आवाज़ और वाक्योँ मेँ साहित्यिक पुट तथा बात से असर पैदा करने का सलीका था। सुननेवालोँ के दिलों पर पकड़ लिए हुए वह आवाज़ मानो प्रोग्राम की बागडोर उस आवाज़ से बँधी थी ! मालूम हुआ कि ऐसे प्रोग्राम का सँचालन कर रहे थे नरेन्द्र जी अपने विशेष रोचक अन्दाज मेँ !
 जब "कल्चरल स्क्वाड " पर उस समय की सरकार ने पाबँदी ला दी थी तो उसकी जगह इप्टा ने ले ली ! इप्टा और उसकी सरगर्मियोँ और कामयाबियोँ से थियेटर की दुनिया खूब वाकिफ थी।
           बँबई मेँ इस के पौधे को अपनी कला से सीँचनेवाले थे नरेन्द्र जी जिन के कई अन्य साथी थे ~ जिनमेँ प्रमुख हैँ ~ लराज साहनी, प्रेम धवन और उनके बाद शैलेन्द्र, हबीब तनवरी, मनी रबाडी, और शौकत व कैफी आज़मी,  ख्वाजा अहमद अब्बास ( जिन्होँने  सुपर स्टार अमिताभ को अपनी फिल्म ~ "सात हिन्दुस्तानी " मे पहली बार फिल्म मेँ काम करने का मौका दिया था )
( यह  टिप्पणी - लावण्या की है )
अवामी ज़िन्दगी से नरेन्द्र जी की कुर्बत देखकर मेरे दिल मेँ उनकी इज्जत पहले ही दिन से पैदा हो गयी थी।  फिर कुछ दिन बाद जब मैँ आल इन्डिया रेडियो मेँ मुलाजिम हुआ तो मालूम हुआ कि किसी मतभेद की वजह से हिन्दी के लेखक और कवि आल इन्डिया रेडियो के कार्यक्रमोँ मेँ भाग ही न लेते थे~ ले दे कर एक गोपाल सिँह नेपाली थे, जो कभी कभी कविता पाठ करने आ जाते थे कोई और प्रसिध्ध साहित्यकार इधर का रुख न करता था ! हाँ डा. मोतीचन्द्र जी वे,  प्रिन्स ओफ वेल्स म्युझियम के प्रमुख, कर्ता धर्ता थे  और रणछोड लाल ज्ञानी जरुर आते थे। और फिर देश स्वतँत्र हुआ।भाषा सम्बधी आकाशवाणी की नीति मेँ परिवर्तन आया।
अब हम रेडियोवाले, हिन्दी लेखकोँ और कवियोँ की खोज करने लगे।
नीलकँठ तिवारी, रतन लाल जोशी, सरस्वती कुमार दीपक, सत्यकाम विध्यालँकार, वीरेन्द्र कुमार जैन, किशोरी रमण  टँडन, डा. सशि शेखर नैथानी, सी. एल्. प्रभात, के. सी. शर्मा भिक्खु, भीष्म साहनी, 
हिन्दी के अच्छे खासे लोग रेडियो के प्रोग्रामोँ मे हिस्सा लेने लगे।
उन्हीँ दिनोँ हम लोगोँ ने पँ. नरेद्र शर्मा को भी आमादा किया कि वे हमारे प्रोग्रामोँ मेँ रुचि लेँ - वे फिल्मोँ के लिये लिखते थे।
एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया,  "कवि और कलाकार" - उसमेँ सँगीत निर्देशक अनिल बिस्वास, अस. डी. बर्मन, नौशाद और सैलेश मुखर्जी ने गीतोँ और गज़लोँ की धुनेँ बनाईँ ~ शकील, साहिर और शायर डाक्टर सफ्दर "आह" सीतापुरी के अलावा नरेन्द्र जी के एक अनूठे गीत की धुन अनिल बिस्वास ने बनाई थी, जिसे लता मँगेशकर ने गाया था ~
" युग की सँध्या कृषक वधु सी, किस का  पँथ निहार रही "
पहले यह गीत कवि ने स्वयम्` पढ़ा, फिर उसे गायिका ने गाया।
उन दिनोँ आम चलते हुए गीतोँ का रिवाज़ हो गया था और गज़ल के चमकते -दमकते लफ्ज़ोँ को गीतोँ मेँ पिरो कर अनगिनत फिल्मी गीत लिखे जा रहे थे।  ऐसे माहौल मेँ नरेन्द्र जी का ये गीत सभी को अच्छा लगा, जिसमेँ, साहित्य के रँग के साथ, भारत भूमि की सुगँध भी बसी हुई थी और फिर हमारे हिन्दी विभाग के कार्यक्रमोँ मेँ नरेन्द्र जी स्वेच्छा से, आने जाने लगे।
एक बार नरेन्द्र जी ने, एक रुपक लिखा - " चाँद मेरा साथी " ~~
चाँद के बारे मेँ अपनी कई कवितायेँ, जो वभिन्न मूड की थीँ, को रुपक की लडी मेँ इस प्रकार पिरोई थी कि मनिष्य की मनोस्थिति सामने आ जाती थी।  वह सूत्र रुपक की जान था ! मुझे रुपक रचने का यह विचित्र ढँग बहुत पसँद आया और आगे भी इस का प्रयोग किया गया।  मैँ, बम्बई रेडियो पर हिन्दी विभाग मेँ स्टाफ आर्टिस्ट था अब्दुल गनी फारुकी प्रोग्राम असिस्टेँट ! "

उन दिनों आकशवाणी के कुछ गिने चुने केंद्र ही थे और उन सभी में शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों की अधिकता थी जिसकी वजह से आम जनता के रेडियो की सूइयां, रेडियो सीलोन को ही ढूंडा करती थी। आकाशवाणी के कार्यकर्ताओं को एक विविध रंगी चैनल की ज़रुरत महसूस हुयी जिसके लिए,पं. नरेन्द्र शर्मा को राजधानी दिल्ली बुलाया गया।  कभी वेदव्यास को भी राजधानी बुलाया गया था जिसके बाद रचना हुयी " महाभारत महाकाव्य की ! पं. नरेन्द्र शर्मा ने भी मनोरंजन की ऐसी महाभारत रची की रेडियो जगत में,एक मिसाल बनकर रह गयी ! इस महाभारत का नाम है ~~ " विविध भारती " ~~
अक्टूबर १९५७ को सुबह १० बजे जन्म हुआ विविध भारती का और पं. नरेन्द्र शर्मा को बनाया गया इसके चीफ प्रोड्यूसर !!
इस तरह आकाशवाणी मेँ "विविधभारती " का एक स्वतँत्र इकाई के स्वरुप मेँ जनम हुआ आखिरकार भारतीय प्रजा के आशा भरे स्वप्नों को वाणी मिली प्रथम प्रसार गीत तैयार हुआ जिसके  गीतकार थे कवि पँडित नरेन्द्र शर्मा जी, सँगीत से स्वर बध्ध किया  श्री अनिल बिस्वास जी थे और स्वर दिया  गायक श्री मन्नाडे जी ने! गीत के बोल हैं ~
"नाच रे मयूरा!
खोल कर सहस्त्र नयन,
देख सघन गगन मगन
देख सरस स्वप्न, जो कि
आज हुआ पूरा !
नाच रे मयूरा !

गूँजे दिशि-दिशि मृदंग,
प्रतिपल नव राग-रंग,
रिमझिम के सरगम पर
छिड़े तानपूरा !
नाच रे मयूरा !

सम पर सम, सा पर सा,
उमड़-घुमड़ घन बरसा,
सागर का सजल गान
क्यों रहे अधूरा ?
नाच रे मयूरा "

 सँगीतकार श्री अनिल बिस्वास जी की जीवनी के लेखक श्री शरद दत्त जी ने इस गीत से जुडे कई रोचक तथ्य लिखे हैँ। 
जैसे इस गीत की पहली दो पँक्तियाँ फिल्म "सुजाता " मेँ मशहूर सिने कलाकार सुनील दत्त जी गुनगुनाते हैँ ~ फिल्म सुजाता सं.१९५९  नूतन और सुनील दत्त द्वारा अभिनीत, निर्माता, निर्देशक बिमल रोय की मर्मस्पर्शी पेशकश थी। इस घटना का ज़िक्र आप अनिल दा की वेब साइट पर भी पढ सकते हैँ।  The Innaugeral Song for Vividh -Bharti
http://anilbiswas.com/ RE : NAACH RE MAYURA

उस ऐतिहासिक प्रथम सँगीत प्रसारण के शुभ अवसर पर नरेन्द्र शर्मा जी ने
अनिल बिस्वास को यह चार गीत दीये और उन गीतों के लिये सुमधुर धुन बनाने का अनुरोध किया था।  सभी गीतोँ का स्वर सँयोजन अनिल दा ने किया जिसका प्रसारण देढ घँटे के प्रथम ऐतिहासिक कार्यक्र्म मेँ भारत सरकार ने भारत की जनता को नये माध्यम "रेडिय़ो " प्रसारण के श्री गणेश  स्वरुप मेँ, इस अनोखे गीतों के उपहार से किया।  संगीतमय   "प्रसार ~ गीत " कार्यक्रम से " आकाशवाणी " के विविधभारती कार्यक्रम प्रसारण का जन्म हुआ !!
निम्न  चार  गीत तैयार किये गए थे ~~
१)  "नाच रे मयूरा, खोल कर सहस्त्र नयन,
देख सघन, गगन मगन,
देख सरस स्वप्न जो कि आज हुआ पूरा,
नाच रे मयूरा ...."
( गायक : श्री मन्ना डे जी )
२ ) चौमुख दीवला बार धरुँगी, चौबारे पे आज,
जाने कौन दिसा से आयेँ, मेरे राजकुमार
( गायिका थीँ श्री मीना कपूर जी )
३  ) 'रख दिया नभ शून्य मेँ किसने तुम्हेँ मेरे ह्र्दय ?
इन्दु कहलाते, सुधा से विश्व नहलाते,
फिर भी न जग ने न जाना तुम्हेँ, मेरे ह्रदय "
( गायिका थीँ श्री मीना कपूर जी )
४ ) "युग की सँध्या कृषक वधु सी,
किसका पँथ निहार रही ?
उलझी हुई, सम्स्याओँ की,
बिखरी लटेँ, सँवार रही "
( गायिका थीँ सुश्री लता मँगेशकर जी )
चित्र : स्वर साम्राज्ञी सुश्री लता मंगेशकर दीदी जी पं. नरेंद्र शर्मा
षष्ठिपूर्ति पर माल्यार्पण व  कविवर को स्नेह ~ अभिनन्दन देते हुए ~ 
   
"युग की सँध्या " गीत के बारे में  एक दुखद घटना जुडी है ~
"युग की सँध्या " गीत, इस प्रथम प्रसारण के बाद, न जाने कैसे, मिट गया ! इसलिए, उस गीत की रेकोर्डीँग ~ अब कहीं  भी उपलब्ध नहीँ है !
भारत कोकिला, स्वर साम्राज्ञी श्री लता मँगेशकर यदि उसे अगर गा देँ ,
पूरा गीत नहीँ तो बस,  कुछ पँक्तियाँ ही गए दें तो सारे भारत के तथा सम्पूर्ण विश्व के साहित्य रसिक व संगीत प्रेमी  लोग, एक बार पुनः  इस गीत का
 आनँद ले पायेगेँ ! आज  उस गीत को सुमधुर सँगीत से सजानेवाले अनिल दा जीवित नहीँ हैँ और ना ही गीत के शब्द लिखने वाले कवि पँडितनरेन्द्र शर्मा ( मेरे पापा ) भी हमारे बीच उपस्थित नहीँ हैँ ! हाँ, मेरी आदरणीया लता दीदी हैँ और उनकी साल गिरह २८ सितम्बर के दिन मैँ प्रत्येक वर्ष उनके दीर्घायु होने की कामना करती हूँ !
" शतम्` जीवेन्` शरद: " की परम कृपालु ईश्वर से , विनम्र प्रार्थना करती
हूँ और ३ अक्तूबर को "विविध भारती " के जन्म दीवस पर अपार खुशी और सँतोष का अनुभव करते हुए, निरँतर यशस्वी, भविष्य के स स्नेह आशिष भेज रही हूँ ...आशा करती हूँ कि " रेडियो" से निकली आवाज़,  हर भारतीय श्रोता के मन की आवाज़ हो, सुनहरे और उज्वल भविष्य के सपने सच मेँ बदल देनेवाली ताकत हो जो रेडियो की स्वर ~ लहरी ही नहीँ किँतु, "विश्व व्यापी आनँद की लहर " बन कर मनुष्य को मनुष्य से जोडे रखे और भाएचारे और अमन का पैगाम फैला दे, जिस से हरेक रुह को सुकुन मिले।
    
पंडित नरेंद्र शर्मा ने विविध भारती के बचपन को ऐसा संवारा की दिन ब दिन उसकी निखार बढती चली गयी।  आज पृथ्वी पर विविध भारती , सबसे बड़ा रेडियो नेटवर्क है जिसके करीब ३५ करोड़ श्रोता हैं।  अवकाश प्राप्ति तक पं नरेन्द्र शर्मा, विविध भारती के संरक्षक बने रहे।
युग की सँध्या

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युग की सँध्या कृषक वधू सी किस का पँथ निहार रही ?
उलझी हुई समस्याओँ की बिखरी लटेँ सँवार रही ...
युग की सँध्या कृषक वधू सी ....

धूलि धूसरित, अस्त ~ व्यस्त वस्त्रोँ की,
शोभा मन मोहे, माथे पर रक्ताभ चँद्रमा की सुहाग बिँदिया सोहे,

उचक उचक, ऊँची कोटी का नया सिँगार उतार रही
उलझी हुई समस्याओँ की बिखरी लटेँ सँवार रही
युग की सँध्या कृषक वधू सी किस का पँथ निहार रही ?

रँभा रहा है बछडा, बाहर के आँगन मेँ,
गूँज रही अनुगूँज, दुख की, युग की सँध्या के मन मेँ,
जँगल से आती, सुमँगला धेनू, सुर पुकार रही ..
उलझी हुई समस्याओँ की बिखरी लटेँ सँवार रही
युग की सँध्या कृषक वधू सी किस का पँथ निहार रही ?

जाने कब आयेगा मालिक, मनोभूमि का हलवाहा ?
कब आयेगा युग प्रभात ? जिसको सँध्या ने चाहा ?
सूनी छाया, पथ पर सँध्या, लोचन तारक बाल रही ...
उलझी हुई समस्याओँ की बिखरी लटेँ सँवार रही
युग की सँध्या कृषक वधू सी किस का पँथ निहार रही ?

मेरी विनम्र अँजलि स्वीकारेँ ........शुभँ भवति ...
सादर ~ स
-लावण्‍या शाह