Wednesday, February 27, 2008

अछूत कन्या

अछूत कन्या
अछूत कन्या / THE UNTOUCHABLE GIRL हिन्दी /१९३६ /B&W/१४२ मिनिट Production Co:निर्माता Bombay Talkies :
दिग्दर्शक : हिमांशु राय : Franz Osten: कहानीकार

संवाद : निरंजन पाल गीत : जे।।एस । कश्यप

संगीत : सरस्वती देवी

चित्रांकन : जोसेफ विर्स्चिंग स्वर : सवक वाचा

पात्र : अशोक कुमार , देविका रानी , अनवर ,

पी ।ऍफ़।पिथावाला , प्रमिला , कुसुम कुमारी

अछूत कन्या बोम्बे टाकीज़ निर्माण संस्था की एक मशहूर और ख्याति प्राप्त फ़िल्म थी जो सामाजिक प्रश्न पर बनायी गयी थी।

दलित समाज के एक बड़े , हिस्से का आज भी भारत में , जो अस्तित्व है, उनके जीवन यापन के ज्वलंत मुद्दों से जुड़े जो पहलू हैं, उनकी समस्याओं के प्रति जो सरकार का रवैया है ओर सामान्य जनता का उससे , उभरते सवालों को सामने रख कर ये फ़िल्म १९३६ की साल में बनायी गयी थी ।

क्या आज भी 'दलित - वर्ग ' के इन प्रश्नों से , उनकी समस्याओं से, कोई भी भारतीय , अनजान है ? जी नही ...हम सब जानते हैं , के कैसे कैसे प्रश्न हैं, क्या क्या समस्याएँ हैं , दलित वर्ग के साथ !

परंतु एक विशाल वर्ग ऐसा भी है जो सिर्फ़ बाबा साहेब आम्बेडकर के नाम तक ही , अपनी सोच को सीमित रखे हुए है । अगर , किसी को समस्या हो तब , क्यूं न वो , उनसे ख़ुद ही निपट लें ? अकसर ऐसा ही मानसिक ढर्रा देखा गया है। जब भारतीय फिल्मों ने , पहली बार, " बोलना " शुरू किया , उस समय, इस चलचित्र ने भी दलित विमर्श को लेकर , कथानक से जोड़ कर,एक साहसिक कदम उठाया था।

बोम्बे टाकीज़ की , अन्य फिल्मों में भी

कई सारे सामाजिक मुद्दों को लेकर , सफल चलचित्रों का निर्माण किया गया।

रुढीवादी हिंदू सोच को सुधारने का ये एक नया प्रयोग ही था।

सनातन धर्म के ऐसे भी पक्ष हैं जिनमें सुधार की प्रबल आवश्यकता थी। परम्परा के नाम पर , समाज के एक विशाल जनसमुदाय को दमित अवस्था में रखना , स्वतंत्रता की तरफ अग्रसर हो रहे भारत के लिए लाजमी नही था।

१९३६ के भारत वर्ष में, एक तरफ़ , ब्रितानी साम्राज्य, अन्तिम साँसे ले रहा था तो दूसरी ओर , कायदे -- क़ानून के तहत, अंतर्जातीय विवाह का कडा विरोध किया जाता था और यही नही, अछूत या दलित वर्ग को , अन्य सवर्ण जातियों से अलग रहन सहन की व्यवस्था भी उस समय के समाज की वास्तविकता थी , ये एक , आम- सी, साधारण सी , बात हुआ करती थी।

महात्मा गांधी, नेहरू तथा अन्य कोंग्रेसी जन नायकों ने, इस दकियानूसी रवैये के ख़िलाफ़ कडा विरोध दर्ज तो किया था , हर हफ्ते इस दलित दमन प्रथा का विरोध किया जाता और इस बात पर जोर दिया जाता के सिर्फ़ स्वाधीनता ही भारत के लिए जरुरी नही है ! भारतीय समाज को, अंदरुनी सफाई की और काफी बदलाव की भी आवश्यकता है!!

अगर भारत भविष्य का एक सफल, उज्जवल देश बनकर विश्व पटल पर अपनी गरिमा को, अपने अस्तित्व को अगर सिध्ध करना चाहता है तब, सुधार होना नितांत जरुरी , ही है !

जाति प्रथा का विरोध , सवर्ण - अस्पृश्य की खाई का विरोध , अछूतोध्धार , विधवा विवाह, सती प्रथा का कडा विरोध , दहेज़ का अस्वीकार, नाबालिग़ कन्या विवाह का विरोध, ऐसे कई गंभीर मुद्दों पर, कोंग्रेस के प्रतिनिधि विचार विमर्श करते थे.
चित्रपट , इन्ही ज्वलंत प्रश्नों को आसानी से, सहजता से एक विशाल जन समुदाय के सामने , रोचक रीति से रख पाने में, सफल हो सकते थे

ये सत्य उजागर हुआ जब "अछूत कन्या " जैसी फिल्में बनीं ।

आज २००८ के वर्ष में, पुरानी सदी से जब हम नई सदी में आ गए हैं,

इस वक्त भी इस चित्र का कथानक, उतना ही सशक्त जान पड़ता है।

दलित वर्ग का उत्थान , आज भी अनिवार्य है।

हालांकि काफी सुधार हुआ है , होता भी रहेगा , परंतु आज भी ये मुद्दा उतना ही सामयिक जान पड़ता है जितना के वहसन १९३६ के पराधीन भारत का प्रश्न था।

यह् फ़िल्म आज भी एक सच्ची व प्रेरणा दायक कथा लिए, सफल फ़िल्म , साबित होती है जो एक लम्बी कालावधि के परे सी जान पड़ती है।

फिल्मांकन इतना सशक्त है जहाँ शब्दों के बदले, द्रश्य ही एक मनोभाव, तथा भावनाओं को प्रतिबिम्बित करने में सफल हुए हैं ।

कथानक के महत्त्वपूर्ण मोड़, बखूबी चित्रों के माध्यम से खुलकर सामने आए हैं

क्रमश: अगली कड़ी में बोम्बे टाकीज़ की दूसरी फिल्मों के बारे में : ~~



Sunday, February 24, 2008

आस्कॅर, हिन्दी और बॉलीवुड


आस्कॅर, हिन्दी और बॉलीवुड
http://en.wikipedia.org/wiki/Oscars-

हमारे असफल रहने की वजह क्या है ?? ये प्रश्न अनुगूंज में भी एक बार पूछा गया है या यूँ क्यूं न कहें कि, भारतीय सिनेमा की धूम , माने " बोलीवुड " आज भी , होलीवुड में , प्रख्यात क्यों नही है ? जब के आम जनता और खास कर एन। आर। आई । प्रजा , बोलीवुड को , चाहती है।

इस उत्तर को आप सुधिजनोँ के सामने लाते , सबसे पहले, ये स्पष्ट कर दूँ कि, मैँ-" उत्तर अमरीका" मेँ रहती अवश्य हूँ परँतु, फिर भी मेरा अवलोकन व मत सर्वथा, "निष्पक्ष " है --चूँकि, "ओस्कर" अमरीकन चयन प्रणाली है , हम ये भी समझ लेँ कि,अमरीका की सोच , उसकी आधारित पृष्ठभूमि है।

अमरीका हमेशा "लोक -तँत्र " को फैलाने के प्रचार, प्रसार से अपने आप को जुडा दीखाता हो पर वास्तव मेँ, जो एक राष्ट्र प्रमुख ने कहा वही मूलभूत विचार धारा, कई सारे मुद्दोँ पर भी लागु होती है -याद है क्या आपको, जो " गौ-बालक " [ COW -BOY ] टेक्सास के निवासी, राष्ट्रपति ने कहा था ?

" अगर आप हमारे साथ नहीँ हैँ, तब आप, हमारे, विपक्ष मेँ हैँ"

यही बात " ओस्कर" के साथ भी है - हमारे अभिनेता / निर्माता निर्देशकोँ/ सँगीतज्ञ / इत्यादी का कुसूर कम मात्रा मेँ है - बोलीवुड को क्यों , मान्यता आज भी होलीवुड की अपेक्षा में, कम मिली दीखालाई देती है उसके अगर हम कारण तलाशें तो , पायेंगे के, कई अभिनेता हिन्दी के बजाय, अँग्रेजी मेँ बोलते नजर आते हैँ -सार्वजनिक माध्यमोँ के उपकरणोँ से प्रसारित होनेवाले ,उनके साक्षात्कारोँ मेँ !! हाँ, हिन्दी का आग्रह, उचित है

( & Now -- Regarding this observation ) :" भाषा की इज्जत नही करना है जिस भाषा में वो फिल्म बनी है। अगर हिन्दी फिल्मों के कलाकार ही फिल्म के डायलॉग भर बोल के इति समझ लेंगे तो हम कैसे दूसरे विदेशियों से ये आशा करें की वो इन फिल्मो को देखेंगे ही। "(तरुण) -पर ये ना भूलेँ हम की, भारत की राष्ट्र भाषा अवशय हिन्दी हो, दूसरे प्राँतोँ की भाषाएँ भी अपना उतना ही महत्त्व रखतीँ हैँ - जैसे, बाँग्ला, तमिल, कन्नड, या फिर मराठी या गुजराती ---" ऑस्कर" व उसके " तमगे " या "तोहफे" = "Awarda" - अमरीकन वर्चस्व को कायम रखने मेँ कोई कसर बाकी नहीँ रखता --

-अगर भारतीय फिल्म ऐसी हो, जो भारत को दकियानूसी, रुढीवादी , पुरातनपँथी बता रही हो, जैसे दीपा मेहता जी की,"वोटर" या (सत्यजीत रे की पुरानी फील्म," पाथेर पँचाली" तो, उसे अवश्य "तेज केँद्र मेँ चुँधियाती रोशनी " = मतलब " लाइम लाईट" मेँ खडा कर के ऐवोर्ड से नवाजा जाता रहा है --" देवदास" = नई , उसके गीत सँगीत, आम अमरीकी " मस्तिक्ष प्रवाह" = " वेव लेन्थ" से अलग है -

- भारतीय सँस्कृति, हमारी जड से फूली, कोँपलोँ से सिँचित वृक्ष है -जिसकी छाया भारतीय, मानस के अनुरुप है -

उसी तरह, अमरीका का अपना अलग रोजमर्रा का जीवन है जिस के आयाम, उसके सँगीत, रहन सहन, प्रथाएँ , त्योहार, जीवन शैली सभी मेँ प्रत्यक्ष होते हैँ -- ये कहना, शायद उन सभी को बुरा भी लग सकता है कि, जब तक आप अमरीका आकर, एक लँबी अवधि तक ना रहेँ, आप इस देश को अच्छी तरह पहचान नहीँ पाते !- पर मैँ जो कह रही हूँ वो है बिलकुल सच! अमरीकन " छाया चित्रोँ " = ( फिल्मोँ ) पर यहूदी कौम की गहरी पकड है - दूसरी यूरोप की कई नस्लेँ, जातियाँ भी प्रतिनिधित्व रखतीँ हैँ -ज्यादातर, वे जुडाओ, क्रिस्चीयन, ऐँग्लो ~ सेक्सकन, प्रोटेस्टेँट प्रणाली से सँबँधित होते हैँ -और उन्हीँ का वर्चस्व रहे, उनके विचारोँ का बाहुल्य, व बहुमत रहे उस बारे मेँ वे सजग व, प्रयत्नशील रहते हैँ -इस दशा मेँ " भारत को बहोत ज्यादा ऊँचाई मिले " = ग्लैमरस " वैसी छवि दीखलाने मेँ उन्हेँ क्यूँ रस रहेगा?

भारत के साथ १ अबज भारतीय हैँ - विदेश मेँ बसे भी असँख्य भारतीय मूल के दर्शक हैँ जो बडे ही चाव से, आजकल बन रही नई , आधुनिक फिल्मेँ देखते हैँ --कम मात्रा मेँ विदेशी भी, कौतुहल या जिज्ञासा वश , कभी कभार , भारतीय फिल्मेँ देख लेते हैँ -

अच्छी फिल्मेँ जैसे किसी भारतीय को पसँद आतीँ हैँ उसी तरह, विदेशी शख्स को भी पसँद आतीँ हैँ - परँतु, आज भी उतनी लोक प्रियता विशुध्ध हिन्दी फिल्मोँ को नहीँ मिलती जितना कि, होलीवुड प्रेषित फिल्मोँ को ! -

- ये होलीवुड का व्यावसायिक सफल तँत्र , प्रचार -प्रसार की सशक्त विधा, किसी भी आयु के दर्शक को जिसे दर्शक पसँद करे उसी को परोस कर, मँत्र मुग्ध करने की परम चेष्टा, प्रबल आकर्षण पैदा करने के सारे हथकँडे अपनाने का रवैया ये कई बातेँ "खाद= फर्टीलाइजर" सा काम करतीँ हैँ -

- इन सारी , बातों मेँ " होलीवुड" सिध्ध हस्त" है -

बिलकुल उसी तरह जैसे - भारत , सदीयोँ से, कई सारे शुध्ध इत्तर का निकास करता आया है परँतु, जो वित्तीय व व्यापारीक सफलता फ्रान्स ने हासिल की है, परफ्यूम बन्नने व उन्हेँ बेचकर अबजोँ की तादाद मेँ नफा कमाने की, वो भारत क्यूँ हासिल नहीँ कर पाया आज तक? पेरिस मेँ बनी इत्र की शीशीयोँ मेँ नकली इत्र भरकर बेचने से मुनाफा कमाने की नकलची बँदर वाली हमारी सोच हम क्यूँ नहीँ बदल सके ??

शायद, आज भारत जाग गया है -- कई सफल व्यापार आज आगे आ रहे हैँ तो भविष्य मेँ हम सभी इस तरह की चुनौतीयोँ को स्वीकार के, अपने को सफल सिध्ध कर पायेँगे -

दूसरा मुद्दा है कि, " फैशन की गुडियों की दौड में बहुत कुछ हासिल कर लिया। " "(तरुण) ~~~उसके बारे मेँ यूँ सोचिये कि, सबसे ज्यादा सिगरेट का उत्पादन करने वाला अमरीका " देश , खुद अपने शहेरोँ मेँ + जीवन मेँ " धूम्रपान" के विरुध्ध --- > प्रचार करता है - अपने मकानोँ से "धूम्रपान" हटाकर , कानूनन अवैध घोषित कर, अपने मकानोँ, रेस्तराँ, दफ्तरोँ को धूम्रपान से मुक्त कर उन्हेँ " ग्रीन ज़ोन" कहलाने मेँ फख्र महसूस करता है --तो दूसरी तरफ, इँडोनेशिया, भारत या चीन इत्यादी मेँ जोश खरोश के साथ, इसी दूषण को फैलाने मेँ बिलकुल सँकोच नहीँ इनके व्यापारीयोँ को ..... जिसे सरकार भी अनदेखा कर देती है !!-

खैर! समूचे विश्व को सुधारने की जिम्मेवारी भला अमरीका क्यूँ अपने माथे ले ?? क्या इतना कम नहीँ कि सारी दुनिया की "पुलिस" बन कर वह "सुरक्षा " के सामान मुहैया करवाती है ?? ;-) इसी भाँति, "रेवेलोन" "ऐवोन" -- "ऐस्टी लोडर" जैसी सौँदर्य उत्पादन सँस्थाएँ करोडोँ डोलर का मुनाफा करतीँ हैँ बल्के, उसे द्वीगुणीत करतीँ हैँ -- चारगुना बढातीँ हैँ --- जब भारत्त्य सुँदरी, " विश्व सुँदरी" घोषित होती हैँ !!

भारत के बडे शहरोँ , से विस्तरीत , होकर सौँदर्य प्रसाधनोँ की लालसा और माँग छोटे शहरोँ की बस्तीयोँ को पार कर, कस्बोँ या गाँवोँ तक फैल जाती है और तब भी कहा जाता है कि, "भारत का मध्यम वर्ग" जाग गया हैऔर आय बढने से खर्च की क्षमता बढी है !!--तो अमरीकी सौँदर्य प्रसाधन बनानेवाली कँपनी भी क्यूँ ना हिस्सा लेँ ?? और सौँदर्य प्रतियोगिता आयोजनोँ से क्यूँ ना मुनाफा व सेँध लगाकर प्रवेश किया जाये उन बाजारोँ मेँ व प्रदेशोँ मेँ, जहाँ आज तक प्रवेश नहीँ मिला ?? मुझे अचरज इसी बात का है कि, भारत का हर क्षेत्र क्यूँ "अमरीकन समाज प्रणाली " का अँधा अनुकरण कर, अपने को " आधुनिक" कहलवाने की कोशिश मेँ लगा, ये भूल रहा है कि, भारत दुनिया के पूर्वी गोलार्ध मेँ है जहाँ से सूर्य पस्चिम गोलार्ध को प्रकाशित करता है-

एक काल , एक फूल, एक समय नहीँ खिलता !!-

हर देश की सँस्क़ृति उसे अपनी जड से जोडे रखे तभी वह मजबूत होकर पनपती है-- ना कि दूसरे से उधार ली गई सोच या समझ !!

इसलिये, भारत की समझदार , शिक्षित प्रजा से मैँ विनम्र प्रार्थना करुँगी कि,वे अपना योगदान देते रहेँ -- अपनी जडोँ के प्रति निष्ठा से , अपना "जल रुपी " " अर्घ्य " चढाते रहेँ ! जिससे एक शक्तिशाली भारत, विश्व के सामने, अपनी प्राचीन सँस्कृति के साथ साथ, आधुनिक कार्य क्षमता के बूते पर, एक सशक्त व सफल राष्ट्र का उज्ज्वल दृष्टाँत बन कर दीखला सके !!

यही मेरे सपनोँ का भावी भारत होगा !! जिसे मेरे कोटी कोटी प्रणाम !!

-लावण्या

http://antarman-antarman.blogspot.com/2007/03/23.html





Friday, February 22, 2008

तुम सँध्याके रँगोँ मेँ आतीँ, हे सुँदरी, साँध्य रानी ..

(१)
तुम सँध्याके रँगोँ मेँ आतीँ
और आकर मँडरातीँ,
बुलबुल बन, मनके बन को,
कर देतीँ आलोडित !
फिर पुकार बिरहा के बैन नशीले,
बुलबुल तू, दिल को तडपा जातीँ !
बुलबुल, जो तू, मैँ होती...
बनी बावरी जो तू आती-
मेरे जीवन के सूने आँगन को,
भर दे जाती री ~ सुहाग राग!
(२)
अलसायी रेत झीनी, किनारे की,मानोँ किसी मानिनी का आँचल ~
फैला बिखर कर, उन पर पडी
हैँ सीपी - मोती की,
झिलमिलाती कशीदाकारी !
फैला भूरा गगन है वह अलसाया बदन विशाल
भाल क्षितिज, सूर्य कुमकुम, लाल गाल,
ढले लोचन !
हे सुँदरी, साँध्य रानी ..
तुम्हेँ मेरे नमन !
(३)
कौन है वह ?
कौन वह दबे पाँव आती ?
गगन विहारिणी , सुन्दरी ,
मधुहास् का सौरभ
कुम कुम कण बरसाती ?
कौन है वह सुन्दरी ?

उषा की लजाई लाली लिए ,
कर पाश में , अमृत घट लिए
छलकाती अम्बर पे रागिनी
अल्हड़ प्रीती - सी , उन्मादिनी
कौन है वह सुन्दरी ?

संध्या की सजीली सेज पे ,
ह्रदय वीणा को झंकृत किए
ह्रदय के पाश आ कर खोलती
मधु भार मुझ पर डालती
कौन ....... वह सम्मोहिनी ?

- लावण्या

Wednesday, February 20, 2008

लोक नृत्य की समृध्धि

भारत के अलग अलग प्रान्तों से लोक गीत पर थिरकते, जन समुदाय का आनंद
सदीयों से , अबाध गति से , ऐसा ही , चंचल, मन भावन रहा है -- अन्तिम नृत्य
समोरोह पर आयोजित किया गया , पुराना गीत नयी साज सज्जा के साथ है
देखियेगा, अवश्य पसंद आयेंगें ये links : ~~~
1) http://www.youtube.com/watch?v=Moi6w7zT39o&feature=related
2)http://www.youtube.com/watch?v=ZW7sAMTLDas&feature=related

3)
http://www.youtube.com/watch?v=n-z6IT3EE5Y&feature=related
4 )
http://www.youtube.com/watch?v=TRCG5QnS8RE&feature=related
५)
http://www.youtube.com/watch?v=GFpZIzdcqAI&feature=related
६)
http://www.youtube.com/watch?v=9iB0UCnCVh0&feature=related

Saturday, February 16, 2008

आधुनिक विषय पर "पहेलियाँ

हेल्लो भारत !
पृथ्वी की आबादी सीमा के बाहर

मेरी कोशिश - आजकल जो प्रचलित हैं वैसे आधुनिक विषय पर

"पहेलियाँ " बनानेकी ;-) जैसे

(१) एक गोला उठता आगका ले जाता नभ के पार

सोम मॅगल, गुरु, शनिपर हो जाता हूँ, सवार!

बताओ मैँ, कौन हूँ ?

उत्तर: रोकेट ! [ अँतरिक्ष यान ]
२ ) नित नूतन परिधान पहन कर

इठलाती ,बलखाती रेम्प पर ,

झूठी हँसी, झलकाती घूमुँ ,मैँ,

फ्लेश बल्ब के सुहाने सँग!
बताओ मैँ, कौन हूँ

उत्तर: फेशन मोडल
( ३)
है खिडकी खुलती शान से,

जिसका विश्व्यव्यापी व्यवहार,

न टिकट लगे, ना डाकिया
एक खत हो जाता उस पार !
बताओ मैँ, कौन हूँ ?
उत्तर: ई ~ मेल :)
लावण्या

Friday, February 15, 2008

मलिका पुखराज ...मलिका - ऐ तरन्नुम


लिका पुखराज ...मलिका - ऐ -- तरन्नुम को सुनिए लो फ़िर बसंत आयी

http://www.youtube.com/watch?v=jq3bb33sElU&feature=related

लो फ़िर बसंत आयी --- सुनिए ये नगमा , मलिका जी, ताहीरा की आवाज़ में
मलिका पुखराज ओर ताहीरा सैयद उनकी बिटिया -- लाइव -- अभी तो मैं , जवान हूँ

http://www.youtube.com/watch?v=GUuXAHfQz7k&feature=related
रीम झीम रीम झीम पड़े फुहार http://members.tripod.com/oldies_club/malika_pukhraj.htm
जन्म: १९२१ - जम्मू कश्मीर में हुआ ओर देहांत -- २००४ लाहौर पाकिस्तान में हुआ
उस्ताद अल्लाह बख्श साहब ने मलिका पुखराज को संगीत शिक्षा दी।
कश्मीर के महाराजा हरी सिंहजी के राज दरबार में ८ साल की उम्र में , मलिका ने गीत गा कर सभी को रीझाया तभी से वे , राज दरबार से जुड़ गयीं -उसके बाद, ८ दशक तक वे, ठुमरी, गजल, भजन, लोक गीत व पहाडी गीतों में उनके हुन्नर ओर महारथ की वजह से , मशहूर हुईं ओर पाकिस्तान जाकर बस गयीं। सैयद शब्बीर हुसैन खान साहब से ब्याह रचाया ओर ६ संतानों की माँ बनी -

साथ ही संगीत का सफर जारी रहा। Song Sung True उन्होंने अपनी आत्म कहानी लिखी है - जिस हाल, मैं, पढ़ रही हूँ जिसके कारण , उनके बारे में जानकारी हासिल करने की उत्सुकता हुई ओर इस प्रविष्टी का आगाज़ हुआ -
इसी किताब में एक जगह वे लिखतीं हैं " देहली में , मैं, २ बहनों से मिली : चवन्नी ओर दुअन्नी , जितनी चवन्नी , बदसूरत थी उतनी ही दुअन्नी बला की खुबसुरत थी पर, दोनों गातीं बहुत अच्छा थीं " उस पुराने समय की देहली शेहेर की बातें , कश्मीर के जम्मू इलाके की कई बातें तथा उनकी तालीम के बारे में , फ़िर कश्मीर के महाराजा हरी सिंह जी के , राज्याभिषेक के बारे में जितनी बातें मलिका जी ने बयान की है , वाकई , यादगार है जो हमें गुज़रे हुए जमाने के तौर तरीकों से, रूबरू , करवाती दिलचस्प बातें हैं .... पढने लायक है ये उपन्यास के रूप में लिखी हुई आत्मकथा , अपने अंदर , एक गुजरे हुए जमाने के बारे में , बहुत सारा , समेटे हुए ...

Thursday, February 14, 2008

झूमता मौसम मस्त महीना : हैप्पी वैलेंटाइन'स डे

Jhoomta Mausam - Hindi Version
Jhoomta Mausam - Adaptation in Greek
पुरूष स्वर: झूमता मौसम मस्त महीना
चाँद सी गोरी , एक हसीना,
आँख में काजल, प्यार का मौसम,
मुंह पे पसीना याल्ला याल्ला दील ले गयी
स्त्री स्वर : कोई रंगीला सपनों में आके,
एक नजर से अपना बना के,
प्यार का जादू, हम पे चला के,
याल्ला याल्ला, दील ले गया !

हम से मिले तुम सजन , तुम से मिले हम , बरसात में

प्यार कर लो ...इस दुनिया में आए हो , बस इकरार कर लो ...

Wednesday, February 13, 2008

"कवितांजलि" : आदित्य प्रकाशजी -"रेडियो सलाम-नमस्ते" :

आदित्य प्रकाश
Monday, 11 February २००८ http://www।hindimedia.in/content/view/1189/141/
dallas.jpgहमारे देश में फिल्म और टीवी दुनिया के लोग हिन्दी के नाम पर करोड़ों अरबों रुपये की कमाई करते हैं, मगर किसी भी मौकै पर हमारे फिल्मी सितारों, निर्देशकों और इससे जुड़े हर शख्स को हिन्दी बोलने में मानो शर्म महसूस होती है। अब तो फिल्म समारोहों में जाकर दो दो कौड़ी के विदूषक, जिन्हें अभिनेता की बजाय जोकर कहना ज्यादा बेहतर होगा हिन्दी के शब्दों की खिल्ली उड़ाते हैं और उस समारोह में भाजपा के नेता और हिन्दी की कमाई खाने वाले शत्रुघ्न सिन्हा तालियाँ बजाकर उन जोकरों की बातों पर वाहवाही करते हैं। दूसरी ओर हमारे देश से हजारों मील दूर ऐसे लोग हैं जो जिन्होंने अपने वतन, मिट्टी और भाषा और साहित्य को जिंदा ही नहीं रखा है बल्कि निःस्वार्थ सेवा कर इसे और समृध्द बना रहे हैं। पेश है अमरीका के डैलास से श्री आदित्य प्रकाश की यह रपट कि किस तरह एक रेडिओ कार्यक्रम से पाकिस्तानी, बंगलादेशी और भारतीय का भेद मिट गया है और सभी लोग अपने आपको एक ही देश से जुड़ा महसूस करने लगे हैं।
विदेश में भीड़ में अकेले खो ना जाएं, इसके लिये सामाजिक संस्थाएं, मंदिर, देशी पर्व त्यौहार पर उत्सव अकेलेपन को अवश्य दूर करता है और व्यक्ति अपने देश से जुडा़ महसूस करता है। सामुदायिक रेडियो जहाँ भारत पाकिस्तान और बांगलादेश के लोग एक मंच पर "देसी" बन कर अमेरिका में अपनी पहचान बना पाने में सक्षम हो पाते हैं। दो वर्ष पहले, अमेरिका के डैलस शहर में एक नया रेडियो स्टेशन स्थापित हुआ, "रेडियो सलाम-नमस्ते" जिसे हर भारतीय और पाकिस्तानी अपना रेडियो समझता है। आज इस रेडियो से हिन्दी, उर्दु, तेलुगु, तमिल, गुज्रराती, पंजाबी और नेपाली भाषा में एक एक घन्टे के कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते है। यह अमेरिका का पहला एफ़-एम (104.9 fm) रेडियो स्टेशन है जो सातों दिन, चौबीसो घंटे अपना कार्यक्रम प्रसारित करने के लिये चर्चित है। वैसे तो इस रेडियो स्टेशन से कई कार्यक्रम प्रस्तुत किये जातें हैं, पर हिंदी कविता पर विशेष कार्यक्रम "कवितांजलि" अपने आप में विश्व में अनूठा बन गया है।

हर रविवार रात्रि 9 बजे से यह कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है जिसके लिये अमेरिका के हिंदी प्रेमी आतुरता से प्रतीक्षा करते हैं। "कवितांजलि" ने कविता के माध्यम से दुनिया भर के कविता प्रेमियों को एक साथ लाने का जो प्रयास किया है, उसे दुनिया भर के रसिक श्रोताओं ने सराहा है। इस मंच पर भारत के कई लोकप्रिय कवि पाठ कर चुके हैं जिनको सुन कर अमेरिका में बसे भारतीयों को हजारों मील दूर भी अपने वतन की मिट्टी की महक मिलती रहती है और वे अपने आपको इस माटी से जुड़ा महसूस करते हैं। इस कार्यक्रम से अमेरिका में हिंदी कि दशा और दिशा, दोनो का पता चलता है। इस रेडिओ के माध्यम से जय शंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की छंद बद्ध कविताओं को सस्वर को प्रस्तुत कर उन्हे पुनर्जीवित किया गया है।

भारत में से जिन कवियों ने इस रेडियो कार्यक्रम से अपना काव्य पाठ किया, उनमे कुमार विश्वास, सुनील जोगी, राजेश चेतन, ओम व्यास, पवन दीक्षित, मनोज कुमार मनोज, दीपक गुप्ता, अर्जुन सिसोदिया, मनीषा कुलश्रेष्ठ, डाँ कविता वाचकनवी आदि प्रमुख हैं। जबकि प्रवासी कवियों में: अंजना संधीर, लावण्या शाह (लावण्याजी जाने माने गीतकार स्वर्गीय पं. नरेंद्र शर्मा की पुत्री है), इला प्रसाद, अभिनव शुक्ल, रेखा मैत्र, प्रियदर्शिनी, कुसुम सिन्हा, देवेन्द्र सिंह, अर्चना पांडा, रेणुका भटनागर, सुधा धिंगरा, हरिशंकर आदेश, डाँ ज्ञान प्रकाश, शशि पाधा, कल्पना सिंह चिटनिस आदि ने काव्य पाठ कर अमरीका में बसी भारत की नई पीढ़ी और भारतीयों की पुरानी पीढ़ी को अपनी भाषा और साहित्य के सौंदर्य से परिचित ही नहीं कराया है बल्कि हमारी साहित्य और संस्कृति को एक नया आयाम दिया है। साहित्यकारों में इंटरनेट के माध्यम से हिन्दी के नवोदित रचनाकरों को मंच देने में सक्रिय भूमिका निभाने वाले रापयुर के श्री जयप्रकाश मानस (सॄजनगाथा) का भी इस आयोजन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

आज स्थिति यह हो गई है कि कविता के इस कार्यक्रम के लिए अमरीका में बसे भारतीय बेसब्री से इंतजार करते हैं। अभी हाल में कवि आदेश जी ने पहली बार इस कार्यक्रम को सुना तो अपना अनुभव काव्य में ही भेज दिया (कुछ पंक्तियाँ यहाँ प्रस्तुत हैं)-
"गीत में नव प्राण भरता कार्यक्रम कवितांजलि,
विश्व में हर ओर से, हर छोर से कवि जुड़े रहें।
रच रहा इतिहास नूतन कार्यक्रम कवितांजलि॥
पुनर्जीवित हो उठे हैं "पंत", "जय शंकर प्रसाद",
नव दिशा दिखला रहा है कार्यक्रम कवितांजलि॥


खुशी कि बात है कि इस रेडियो को ऑनलाइन विश्व भर में कहीं भी कभी भी सुना जा सकता है। आप चाहें तो अपने घर में बैठकर भी इस कार्यक्रम का मजा ले सकते हैं। www.radiosalaamnamaste.com और अगर कार्यक्रम सुनते-सुनते आपके अंदर किसी कविता का जन्म हो जाए तो तो फोन उठाएं और काल करें: 972-401-1049. इसी माह "कवितांजलि" अमेरिका में अपना एक वर्ष पूरा कर रही है।

(लेखक इस कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता हैं और वे अपने हिन्दी प्रेम के कारण इसके लिए निःशुल्क सेवाएं देते हैं)

Friday, February 8, 2008

ही इझ नो मोर ! ११ फरवरी पापा की पुण्य तिथि --

(ये चित्रों का कोलाज़ मेरी दीदी श्री लता मंगेशकर जी ने बना कर भेजा है सभी चित्र लता दीदी ने ही खींचे हैं )
११ फरवरी करीब आ रही है और पापा जी की फिर याद, बार बार् , मन को मसोस जाती है -१९८९ की काल रात्रि थी ९ बजे थे और हम चारोँ, मैँ,मँझली, बडी बहन वासवी, मुझसे छोटी बाँधवीहमारे पति, (सबसे छोटा परितोष पूना गया था ) और अम्मा पापा जी के इन्टेन्सीव वोर्ड मेँ, खडे थे , जब्, अम्मा , पापा जी के,पैरोँ को सहला रहीँ थीँ और पापा अनवरत "प्रभु ...प्रभु " कुछ रुक रुक कर बोल रहे थे।
हल्की लकीर मुस्कान की भी थी उनके पान से रँगे होँठेँ पर ..
.हाँ पान, जो आखिरी बार टहलते हुएशाम के करीब ४.३० बजे , उसे, रास्ता पार करके, नुक्कड की दुकान से लाये थे -
अम्मा
से कहा था,'सुशीला , तुम चाय बनादो , मैँ तुम्हारे लिये पान ले आता हूँ "
पिछले ७ दिनोँसे, पापा ने, अपना भोजन नहीवत्` कर दिया था -
सिर्फ सँतरा मुसम्बी का जुसही पीते थे !
वो
भी दिन मेँ बस २ बार , शाम ढलने से पहले ! अम्मा भी परेशान थीँ -मुझसे ३ दिन पूरे हुए तब शिकायत भी की थी, " लावणी पापा न जाने क्यूँ सिर्फ जूस ही पी रहे हैँ और बेटे, फल भी खत्म् हो गये हैँ !"
मैँने फौरन बात काटते हुए कहा,
"अम्मा, मैँ हमारे महराज जी को अभीभेजती हूँ ..कुछ तो मेरे पास हैँ उनका जूस पीला देना और वे और बाज़ार से लेते आयेँगेँ मैँ समझा दूँगीँ "
'खैर ! बात आई गई हो गई ..
पापा
निर्माता निर्देशक श्री बी. आर. चोपडा जी की "महाभारत " टी.वी.सीरीझ के निर्माण से जुडे हुए थे और सारी प्रक्रिया मेँ आकँठ डूबे हुए थे॥
रोजाना मीटीँग्स्, सुबह ९ बजे से तैयार , निकलते और शाम देरी से लौटते !
फल
भिजवाने के दूसरे दिन, मैं, शाम को अम्मा पापा जी के घर पहुँच गई
-देखा , पापा चाय सामने रखे,गुमसुम से पालथी लगाये, डाइनीँग टेबल की क्रीम नर्म चमड़े से बनी कुर्सी पर बैठे हैँ
-ये बिलकुल साधु सँतोँ जैसा उनका पोज रहताथा सूती मलमल की , धोती, उनके पैरोँसे लिपटी रहती थी,वो पैर जो हमेशा चलते रहे ..काम का बोझ सरलता से उठाये ॥
अम्मा किचन से आयीँ और छोटी स्टील और ताँबे की कडाही मेँ
गेहूँ का शीरा तभी बना के लाईं थीं -
जिसे १ निवाले जितना पापा ने मुझे दिया , खुद खाया और बस्! खत्म हो गया !!
-अम्मा को नहीँ दिया गया !
शायद वो मेरे "परम योगी" पिता का अँतिम प्रसाद था ॥
३ दिन गुजरे इस बात को और पान लेकर पापा लौटे तब तक उन्हेँ बैचेन देख अम्मा ने मुझे फोन किया मैँ चप्पलेँ पैरोँ मेँ डालकर भागी ॥
पता नही क्या सोचकर रुपयोँका बँडल भी पर्स मेँ जल्दी से डाल दिया ! मुझसे छोटी बाँधवी अपने पति दीलिप के सँग डाक्टर को लेकर आ पहुँची
-पापा ने बडी विनम्रता से उठकर सब का स्वागत नमस्ते से किया परँतु उन्हेँ दिल का सीवीयर दौरा पडा है ऐसा डाक्टर ने कहा तब हम सभी, कुछ घबडाये
-तुरँत कार मेँ अस्पताल जाने को निकले ॥
अम्मा पीछे की सीट पे मेरे साथ बैठीँ थीँ और पापा जी ने अम्मा का हाथ अपने सीने से लगा रख था और वे "प्रभु " प्रभु " बोल रहे थे !
मैँने सोचा, अगर मामला सीरीयस होता तब वे अवश्य "राम राम" बोलते ॥
गाँधी बापू की तरह !! ॥
मेरे पापा जी को कुछ नही होनेका ..वे स्वस्थ हो जायेँग़े ..
.अरे, परितोष को , उसकी ज़िद्द पे ही, कितने प्रेम से, पीठ सहला कर
नयी गाडी लाने भेजा था उन्होँने !
परितोष कहता, "पापा आप भी नयी कार मेँ काम पर जाया करिये ना, सभी जाते हैँ !" और पापा मुस्कुरा के रह जाते ॥
वे तो अक्सर, दूरदर्शन, आकाशवाणी,अन्य शैक्षिकणिक सँस्थानोँ के आमंत्रणों पर, ट्रैन, बस या अक्सर पैदल ही मीलोँ बम्बई मेँ घुम आत थे !
इतनी
सहजता से, मानोँ ये कोई मुशिकल काम ही नहीँ !!
और
पापा के असँख्य प्रसँशक, मित्र, सहकर्मी, बडे बडे कलाकार, साहित्यकारोँ का
घर पर ताँता लगा रहता -
ऐसे
पापा अस्पताल पहुँचे तब हार्ट स्पेशीयालीस्ट१ घम्टे विलम्ब से आये !
:-(और, अम्म नो हाथ फेरा तो पापा ने उनकी ओर देखा और आहिस्ता से आँखेँ मूँद लीँ ! बस्स ! क्या हुआ इसका किसी को भान न था :-((॥
एक मेरे पति दीपक के सिवा ..
उसने
अम्मा को प्यार से कहा,
" चलिये अब घर जाकर थोडा, सुस्ता लेँ अम्मा आप भी थक गयीँ होँगीँ "
और अम्मा अनमने ढँग से बाहर आयीँ और दीपक उन्हेँ बाँद्रा से, खार के घर ले गये. हम तब भी वहीँ खडे थे पापा को घेरे हुए ...
और
एकदूजे से कह रहे थे ,आज मैँ रात पापा के पास रहूँगी , कल तुम रहना "
--पापा जी की , नर्म हथेली सहलाते वक्त , उन्होँने मुझे ढाढस बँधाया था,
" बेटा, सब ठीक हो जायेगा" जैसे वे हमेशा कहा करते थे ॥
पर ,अम्मा के जाते ही हम पर मानोँ सारा आकाश टूट पडा और धरती खिसक गयी जब नर्स ने रुँआसे स्वर से कहा" ही इझ नो मोर "...

Tuesday, February 5, 2008

विश्व के सर्वोच्च शक्तिमान इन्सान : पोप

प्रभू ईसा मसीह,संत पीटर को चाबी देते हुए
पोप का धर्म प्रतीक
पोप बेनेडिक्ट
चित्र में : माता मरियम को ईसा मसीह की अनुभूति, देवदूत की उपस्थिति में
येरूशालेम चर्च आज भी चर्च समुदाय का मुखिया माना जाता है।
अलेक्ज़ान्द्रिया शहर यहूदी शिक्षा ओर संस्कृति का केन्द्र रहा है.
सन : ३० से लेकर १३० तक वहीं ख्रिस्ती धर्म की नींव राखी गयी थी।
सन १९५ पॉप विक्टर प्रथम ने, रोम शहर , कि जिसे इसा मसीह के शिष्य पीटर ने स्थापित किया था , उसे, अन्य चर्चों में , प्रमुख स्थान दिया।
पोप लीयो ने सन ४५१ में , कोंस्तान्तिनोपाल शहर के बदले,
रोम का वर्चस्व , पुनः मजबूत किया।
पोप हीराक्लास ने सन २३२ में और सीरीसीयस ने भी पोप के रूप में प्रतिष्ठा पायी थी।
बायाजेंटीयम साम्राज्य में , रोम पेपल सता की मुख्य जगह रही।
चार्ल्समेंगने प्रथम राज पुरुष रहा जिसे सम्राट के पद पर ,
पोप ने , धार्मिक विधि से पदासीन किया था।

पोप का चुनाव कार्डिनेल , करते हैं जो सदस्यों के मध्य से ही करने की प्रथा है।
सन ११७९ में हर कार्डिनेल को समान दर्जा दिया गया।
सन १३७८ में पोप अर्बन , का चुनाव, बाहर से किया गया जों एक अपवाद था।
सन १२७४ की ७ मई को ये निर्णय लिया गया की पोप के देहांत होने पर १० दिन के भीतर , ८० वर्ष की उम्र के नीचे के सभी कार्डिनेल, पेपल कोंक्क्लेव में , बंद होकर , गुप्त मत विधि से , नये पोप का चुनाव करेंगें ।
इस का तरीका था , अपने स्वर से या माथा हिलाकर किया जाना
सन १६२१ में पोप जोन पोल द्वितीय ने , मतपत्र ओर बक्से द्वारा मतदान आरंभ करवाया जो सीस्तीन चेपल में किया जाता है -
- जीहाँ वही जगह जो वेटिकन सिटी , पोप का आवास है जहां , माइकल एन्जेलो द्वारा , विश्व की , सबसे कलात्मक चित्रकारी , गुम्बद नुमा , चर्च की भींतों पर और छत पे उकेरी गयीं हें। Sistin Chapel की रचना , यहूदी सम्राट सोलोमन के पुराने मंदिर के अनुपात से की गयी है जिसका विवरण पुराने टेस्टामेंट में मौजूद है ।
राफेल नामक कलाकार की बनी टेपेस्ट्री भी
संत पीटर एवं पोल के जीवन के विषय पर आधारित हें।
देखें लिंक :
http://mv.vatican.va/3_EN/pages/CSN/CSN_Main.html
सनातन धर्म से ख्रिस्ती धर्म कयी मामलोँ मेँ भिन्न है
- पोप बेनेडीक्ट बीयर शौक से पीते हैँ !
देखिए http://www।thehimalayantimes.com/fullstory.asp?filename=aFanata0scqzpba8a8a3pa.axamal&folder=aHaoamW&Name=Home&dtSiteDate=20080130
जब् कि हिन्दु धर्म के सँत मदिरापान नही करते -
अन्य सभी धर्म के ऐसे कई मसले हें जो उन्हें एक दुसरे के
रीति रिवाजों से अलग करते हें --
सर्वधर्म समभाव मेरी मान्यता है और रहेगी -
हर धर्म के मूल में निहित अच्छाइयों को ही ग्रहण करने से ,
आत्मोध्धार मिलता है -

Monday, February 4, 2008

"लाराज़ थीम " : डाक्टर जीवागो से + डॉ.नो-- होलीवुड़ से

अब सुनिए ये धुन : ~~और पहचानिए ज़रा, किस किरदार पर इसे फिल्माया गया है ?
http://music.barnesandnoble.com/search/mediaplayer.asp?ean=826663976458&disc=1&track=7
हां....ये हैं विश्व के सबसे प्रख्यात, गुनेह्गारों को पकड़ने में जिनकी महारत है वैसे खुफिया एजेंट श्रीमान ००७ याने के, 007 'डबल ओ सेवेन माने जेम्स बोंड की फिल्म का शुरुआती संगीत , इस संगीत के चलते ही आप , बंदूक, रहस्य, खुफ़िया गातिविधियां, विभिन्न सरकारों के जालसाजी के गोरखधंधे, crime, एस्पिओनाज
दुनियाभर पर राज करने के मनसूबे लिए, शक्तिशाली, खलनायक, विष , सोना, अस्त्र, हिंसक पशु से भीन्ड़्त के सनसनीखेज कारनामों की रोमांचक दुनिया में कदम रखते हैं जहां ,
कौभांड , सुनियोजित प्लान के जिससे , पूरे विश्व की तबाही हो जाये ऐसे मनसूबे लिए, खतरनाक और शक्तिशाली मुजरिम , जिन्हें ये , ब्रिटीश खुफिया एजेंट जेम्स बोंड , समय रहते नाकामयाब कर देते हैं उस की कथा ," इयान फ़्लेमींग " ने लिखी -- और ब्रितानी सर्वोच्च सुरक्षा संस्था एम. के के अंतर्गत , इस जासूसों के बादशाह को काम करते दीखालाया -- फिल्म के जरिये कई दील दहलाने वाले, द्रश्यो में, तीव्र गति से चलती उजागर होती कथा आप देखते हैं आज तक , जेम्स बोंड की फिल्मों ने , अटूट धन सम्पति का इजाफा किया है


इस तरह का प्रमुख संगीत एक पूरी फिल्म की पहचान बन जाती है और चित्रपट के द्रश्य, संगीत, कलाकारों का अभिनय इत्यादी , दर्शकों के मन पर बरसों तक छाए रहतें है ! क्या आप को ऐसी "मुख्य धुन " लिए कोइ हिन्दी फिल्म याद आ रही हैं ?
जहां कहीं भी ये धुन बजी नहीं के आपको फिल्म , उसके पात्र, कथा , सीनेमोटोग्रफी , कहानी के घुमावदार मोड़ , आपने कब और किस सिनेमा होल में ये फिल्म देखी थी,
कौन था साथ, ? आप की उम्र क्या थी ? आप शादी शुदा थे या कुंवारे थे ?
ये सारी बातें याद आ जातीं हैं इतनी सशक्त होतीं हैं ये शीर्ष धुन !

ये जो लिंक आप के लिए , ऊपर दी है उसे सुनिए .......... कुछ याद आया ?

ये होलीवुड की रशियन परिद्रश्य पे बनी अमरीकी फिल्म है ..चित्रण इतना प्रभावशाली है के देखते समय आप महसूस करेंगें मानो आप रशिया पहुंच गए हैं ...
ये लेख़क बोरिस पेस्तार्नाक की कहानी है
डाक्टर जीवागो
की जीवनी पर बनी फिल्म की मुख्य धुन है !
होलीवुड की फिल्मों की ऐसी कई धुनों में , ये सबसे प्रिय धुन है मेरी !

...ये मेरा मानना है और भी कई लोगों की ये चहेती धुन है।
इसे "लाराज़ थीम " कहा जाता है --

- हाल ही में, फिल्म की नायिका जुली क्रीस्टी ने भारत आ कर उनकी
साल६६ की उम्र में , पहली बार एक पत्रकार से शादी की --
लारा को, इस धुन को, और जुली को लारा के रूप में , हमेशा याद रखा जाएगा।
डाक्टर जीवागो इजिप्ट देश के ओमर शरीफ नायक बने थे। ये एक प्रेम कथा है - रशिया में बोल्शेवीक क्रांति के समय, कई अमीर घरानों के , लोग विस्थापित हुए थे। ऐसे ही समय के और इतिहास के चलते चक्रों के बीच, लारा और जीवागो, कई बार मिलते रहे और अलग होते रहे ...फिल्म के अन्तिम द्रश्य में, लारा बस में बैठ कर चली जाती है और रास्ते पर खडे डाक्टर जीवागो, उसे पुकार भी नहीं पाते ..भावावेश में उनका स्वर रुंध जाता है -

जब जब उन्हें लारा की याद आती है और उनके प्रेम की, तब तब, ये धुन बजती रहती है पार्श्व में.... जो उनके विरह को सजीव , साकार करने में सफल हुई है।
....फिल्म देख पायें तब चुकियेगा नहीं ...ये एक ऐसी चित्र कथा है जिसको मूल कहानी के करीब रखकर , बनाने में , सफलता मिली है।