Saturday, July 5, 2008

हमारे पडौसी : सिने कलाकार : जयराज अंकल

जयराज अंकल हमारे पडौसी रहे जब से हम खार रहने आए। जयराज अंकल और सावित्री आंटी से मिला प्यार हमारे बचपन में रोज के भोजन के साथ मिली, मिठाई सा था !

जयराज जी का जन्म सितम्बर २८ , १९०९ निजाम स्टेट के करीमनगर जिल्ले में हुआ था। वे सरोजिनी नाइडु , पद्मा जा नाइडु ( जो बंगाल की गवर्नर थीं ) उनके भतीजे थे - पाइदीपाटी जैरुला नाइडु उनका आन्ध्रीय नाम था --

उनके पिताजी सरकारी दफ्तर में लेखाजोखा देखा करते थे - उनकी जिंदगी हिन्दी सिने जगत के इतिहास के साथ साथ चलती हुई , एक सिनेमा की कहानी जैसी है।

उनकी माताजी बड़े भाई को ज्यादा प्यार देतीं थीं और उनकी इच्छा थी इंग्लैंड जाकर पढाई करने की जिसका परिवार ने विरोध किया जिससे नाराज होकर, युवा जयराज , बंबई चले आए ! समंदर के साथ पहले से बहुत लगाव था सो, डोक यार्ड में काम करने लगे ! वहाँ उनका एक दोस्त था जिसका नाम "रंग्या " था उसने सहायता की ...और तब , पोस्टर को रंगने का काम भी मिला जिससे स्टूडियो पहुंचे -

वहाँ , उनकी मजबूत कद काठी ने जल्द ही उन्हें निर्माता की आंखों में , चढ़ा दिया - महावीर फोटोप्लेज़ में काम मिला --

उस समय चित्रपट मूक थे ! कई काम , ऐक्टर के बदले खड़े डबल का मिला - पर बाद मुख्य भूमिकाएं भी मिलने लगीं -

जयराज जी की प्रथम फ़िल्म " जगमगती जवानी " १९२९ जिसके मुख्य कलाकार माधव केले के स्टंट सीन भी उन्हींने किए थे ! उसके बाद यँग इन्डीया पिक्चर्स ने , ३ रुपया माह , २ वक्त का भोजन और ४ अन्य लोगों के साथ गिरगाम बंबई में रहने की सुविधा वाला काम दिया - अब जीवन की गाडी चल निकली ! १९३० में "रसीली रानी " फ़िल्म बनी ! माधुरी उनकी , हेरोइन थीं -

उसके बाद शारदा फ़िल्म कम्पनी से जुड़े -- ३५ रुपया से ७५ रुपये मिलने लगे जेबुनिस्सा हिरोइन थीं जो हिन्दुस्तानी ग्रेटा , के नाम से मशहूर थीं -- और जयराज जी गिल्बर्ट थे हिन्दोस्तान के ! (Anthony Hope's The प्रिज़नर ऑफ़ जेंडा : ही "रसीली रानी " हिन्दी फ़िल्म के रूप में बनी थी )

जयराज जी कहते हैं, " हम सभी साथ साथ हमारा काम सीख रहे थे - शारिरीक पैंतरेबाजी , तलवार चलाना , मुंह के हावभाव , दर्शकों को हंसाना , जिसकी चार्ली चेपलिन, सबसे उत्तम मिसाल हैं ..वो हम पहले बातचीत करके तय किया करते थे और फ़िर , शूटिंग करते थे - सूरज की रोशनी में ही सारा काम निपटाना होता जिसे हम सुबह ७ से शाम ५ बजे तक पूरा करते थे -- हम गलती करके सुधारते हुए सीखते थे और सिनेमा विझुअल मीडीयम है , मूक फ़िल्म आज भी वैसी ही समझ में आतीं हैं बजाय के बोलतीं फिल्मों के जो अपने समय का प्रतिबिम्ब और प्रतिनिधित्त्व करतीं दीखालायीं देतीं हैं -- १९३१ से भारतीय सिनेमा बोलने लगा उस समय सिने कलाकारों को , नीची द्रष्टि से देखा जाता था और जयराज जी के भाई और परिवार ने उनसे सम्बन्ध तोड़ दिए -- १९३२ में बनी फ़िल्म शिकारी में उन्होंने सांप , बाघ, शेर जैसे हिंसक जानवरों के साथ लड़ने के द्रश्य दिए और बहादुरी का किरदार किया था -- हैदराबाद में पले बड़े हुए जिससे उर्दू भाषा पे पकड़ अच्छी थी वो काम आयी - बोलती फ़िल्म के साथ संगीत शुरू हुआ कई कलाकार , अब , प्ले बेक भी देने लगे पर १९३५ से , दूसरे गाते और कलाकार सिर्फ़ , ओंठ हिलाते , जिससे आसानी हो गयी -- अब ,

सिनेमा संगीतमय हो गया !

हमजोली का बहुत पुराना गीत : नूर जहाँ और जयराज जी ने काम किया था
http://www.musicplug.in/songs.php?movieid=2132


राइफल गर्ल , भाभी , हमारी बात ये फ़िल्म मिलीं जहाँ , हमारी बात से , उनकी मुलाक़ात मेरे पापा जी से हुई -

तब आयीं स्वामी जिसमें सितारा देवी थीं - हातिम ताई, तमन्ना, उस समय के सिनेमा थे - मराठी, गुजराती फ़िल्म भी कीं -

दिलीप कुमार की पहली फ़िल्म " प्रतिमा " का निर्देशन भी जयराज जी ने किया

मीना कुमारी , मधुबाला और सुरैया के साथ भी उन्होंने काम किया था -बिब्बो (१९३४ ), महताब (लेधर फेस १९३९ ), Devika Rani : हमारी बात -- ये उनकी अन्य फिल्में हैं -- Nargis अंजुमन १९४८ जैसी अदाकाराओं के साथ काम करते हुए ३० , ४० ५०, और ६० के दशक पार करते हुए अब , नयी उभरती अदाकारों के साथ भी जयराज जी ने काम किया जैसे के, मासूम बहुत बाद में, १९८८ में , रेखा की खून भरी मांग में भी उनका काम था -

Rifle Girl १९३८ , भाभी १९३९ , खिलौना १९४२ , मेरा गाँव १९४२ , तमन्ना नाम नाम कहानी '१९४३, बादबान १९५४ , मुन्ना १९५४ , अमरसिंह राठोड १९५६ , हातिमताई १९५६ , परदेसी १९५७ , चार दिल चार राहें १९५९ , रजिया सुलतान १९६२ ।

एक फ़िल्म जयराज जी ने बनाना शुरू किया था जिसके रंगीन पोस्टर हमने , बरसों बाद घर पे , देखे थे जिसमें नर्गिस , भारत भूषन और ख़ुद वे काम कर रहे थे नाम था सागर -- राज कपूर उन्हें हमेशा " पौपी " के प्यारभरे नाम से पुकारते थे -

बंबई शहर में कुश्ती कम्पीटीशन के वे जज बनते और दारा सिंघ जी उनके घर मेहमान बनकर आए थे तब, पूरे २ बकरे, ६ मुर्गियां १२ अंडे और बहुत सारी दाल सब्जियाँ बना था वह मुझे अब भी याद है ! हम बच्चों के लिए वो "भीम भाई का भोज " ही लगा था ! उनके घर बंजारे झोलियाँ ले कर आते जिसमें बटेर पक्षी , फडफडाते रहते , जिन्हें उनके बागीचे में , स्वर्ग लोक पहुंचाया गया था रात के भोज के लिए -- वे लोग मांसाहारी थे और हम लोग शुध्ध शाकाहारी ..पर हर दसहरे की सुबह आयुध पूजा के बाद, नाश्ते पे हम हर साल उनके घर पर मौजूद होते और बहुत बढिया खाना मिलता - जिसका आरम्भ नीम के पानी को पी कर किया जाता ..ये बचपन की यादें हैं .

..पहलवानों सा डील डौल होने से जयराज अंकल ने , टीपू सुलतान, हैदर अली, अमर सिंघ राठौड़ ,पृथ्वी राज चौहान ,शाह जहाँ जैसे ऐतिहासिक किरदारों को उन्होंने रजत परदे पे बखूबी जिया और यादगार बनाया --

उनका बहुत नाम था सिने जगत में और कई सारे निर्माता , निर्देशक, कलाकार उन्हें जन्म दिन की बधाई देने सुबह से उनके घर पहुँचते थे - उन सभी को हमने देखा पर तब ये समझ नहीं थी के ये कौन लोग हैं ! मशहूर थे - हमें उनसे क्या ? हमें मस्ती और खेल कूद ही सुहाते थे !

फ़िल्म फेयर अवार्ड्स भी वही नियोजित करते थे -

१९५१ में सागर फ़िल्म बनायी -- जो लोर्ड टेनिसन की " इनोच आर्डेन पे आधारित कथा थी वह निष्फल हुई क्यूँकि जयराज जी ने अपना खुद का पैसा लगाया था और उन्होने कुबुल किया था कि व्यवासायिक समझ उन्मेँ नहीँ थी जिससे सिनेमा के व्यापारीक पहलू पे वे ध्यान नहीँ दे पाये और असफल हुए " ५० के दशक में उन्हें लाइफ टाइम अचिएवेमेंट से नवाजा गया -

१९६० से वे सह कलाकार की भूमिका लेने लगे - १९६३ मेँ नाइन आवर्स टू रामा मार्क रोब्सन निर्मित फिल्म मेँ काम किया जो आज तक हिन्दुस्तान मेँ प्रदर्शित नहीँ होने दी गयी है माया फिल्म मेँ आई एस जोहर के साथ काम किया ये दोनोँ अमरीकी फिल्मेँ हैँ।

१९८२ में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिला

जयराज जी का निधन : लीलावती अस्पताल बंबई में, अगस्त की ११ तारीख , सन २००० को हुआ और हिन्दी सिने संसार का मूक फिल्मों से , आज तक का मानो एक सेतु , ही टूट कर अद्रश्य हो गया ! ११ मूक चित्रपट और २०० बोलती फिल्मों से हमारा मनोरंजन करनेवाले एक समर्थ कलाकार ने इस दुनिया से बिदा ले ली और रह गयीं यादें .....
उनके ५ संतान थीं। सबसे बड़े दिलीप राज जो ऐक्टर बने ..के ऐ अब्बास की " शहर और सपना " को राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था पर घर पे हम सब उन्हें गुज्जू भैया कहा करते थे उनका विवाह दिल्ली की अनु भाभी से हुआ उनके २ बेटे , ankur = बिम्बू और अनुज हैं -

सभी बच्चोँ को हमने खूब प्यार से गोदी खिलाये हैँ

दूसरी बिटिया थी जयश्री जिसे हम , बिज्जी दीदी कहते थे और उनका ब्याह हुआ था राज कपूर की पत्नी कृष्णा जी के छोटे भाई भूपेन्द्र नाथ के साथ जिन्हें हम टिल्लू भैया कहा करते थे। उनके प्रिया, प्रीती २ बिटिया और रमण ३ बच्चे हैं।

फ़िर थीं दीपा जिसे सब टिम्मी हते थे ! उनके बेटा बेटी हैं देहली ब्याही थी - फ़िर बेटा जे तिलक जो शिकागो रहता है और जर्मन मूल की कन्या से ब्याहा है -

फ़िर थी मेरी सहेली गीतू ..सबसे छोटी ॥

ये देखिये ...गीतू और अंकल जी पे आलेख : अवश्य देखें : ~~~

http://www.rediff.com/entertai/2000/jul/24jai.htm

http://www.upperstall.com/jairaj.html








22 comments:

डा० अमर कुमार said...

लावण्या जी,
अब तो मैं आग्रह करूँगा इसको पुस्तकाकार रूप में लाने का !
या पी०डी०एफ़० के रूप में ई-बुक लाइये ।

सतीश पंचम said...

बहुत अच्छी जानकारी मिल रही है, अमर जी के बात से सहमत हूं कि किताब निकलनी चाहिए।

दिनेशराय द्विवेदी said...

मैं भी डाक्टर अमर कुमार जी के प्रस्ताव से सहमत हूँ। वास्तव में पुस्तक अविस्मरणीय होगी।

Harshad Jangla said...

Lavanyaji

I have already suggested few days back to compile your writings on your tours of various parts of USA.
Now today I am also joining these comments makers.
Rgds.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आप सभी का धन्यवाद !
अब बचपन से लेकर आजतक
इतनी सारी जबर्दस्त हस्तियोँ से मुलाकात हुई है
उन पे लिखते हुए
फिर ढेर सी बातेँ
और मेरा बचपन
और युवावस्था याद आ रहीँ हैँ - कोशिश यहीँ जारी रहेगी :)
प्रोत्साहन देने के लिये पुन: आभार !

रंजू भाटिया said...

लावण्या जी आप के पास तो न भूलने वाली यादो का बातो खजाना है .. इनको पढ़ना बहुत अच्छा लगता है ..लिखती रहे यदि किताब का विचार बनाए तो जरुर बताये क्यूंकि यह तो बार बार पढने लायक है शुक्रिया इन सबको यहाँ शेयर करने के लिए

Gyan Dutt Pandey said...

आप तो मुझे इस विषय में जानकारी दे रही हैं, जिसमें मेरा ज्ञान लगभग शून्य था। यह पाकर प्रसन्नता तो है ही, समय के सही उपयोग का संतोष भी है।

Yunus Khan said...

सौभाग्‍यशाली हूं कि जयराज जी से विविध भारती में मिलने का सौभाग्‍य मिला था । वो इतनी उम्र में भी जवान और जोशीले लगे थे । और हिंदी और उर्दू पर उनका जो अधिकार था वो तो वाक़ई कमाल का था । और आवाज़ बैरीटोन ।
आज के हीरो उनके आगे फेमिनिन लगते हैं ।

डॉ .अनुराग said...

हर युग का एक हीरो ओर हर युग का एक अतीत ....उनके युग में तो नही थे पर हाँ ...आपसे पढ़कर अच्छा लगा

sanjay patel said...

यूनुस भाई ने आवाज़ की बात बड़ी उम्दा कही.कई क़ामयाब सितारों की आवाज़ स्त्रीवत रही हैं लेकिन जयराज जी तो जैसे पाताल-लोक से आने वाली आवाज़ के मालिक थे.अमरसिंह राठौड़ तो उनकी अदभुत तस्वीर थी.डाक साब ने ठीक कहा लावण्या बेन की आपको अपनी स्मृतियों को पुस्तकाकार में लाना चाहिये...इन सारी बातों का दस्तावेज़ीकरण ज़रूरी है.

राज भाटिय़ा said...

लावण्या जी,क्या बात हे आप की लेखनी मे लगता हे आप सब से सच मे मिलावा रही हे, ओर हम सब सामने खडे हे,हम ने इन सब को फ़िल्मो मे तो देखा हे इस लिये यह बेगाने से नही लगते, बाकी डा० अमर कुमार जी की बात भी उचित लगी,
धन्यवाद

आभा said...

जयराज जी से मिला स्नेह और विरासत मे मिली लेखनी जिसे उठाया और चल पड़ी सटासट यहाँ मौजूद है....अमर जी की बात पर अमल करे ,अच्छा होगा ,सादर ।

Abhishek Ojha said...

ek aur achchi mulakaat !

Ashok Pandey said...

सचमुच आप की स्‍मृतियां इतनी समृद्ध हैं कि इनको सहेजने वाली किताब बहुत सुंदर होगी।

Tarun said...

bari achhi jaankari di hai, mene bhi inkki kaafi pictures dekhin hai, shayad sabhi color thi.

MV said...

Lavanyaji,a book by you is a must.You have so many sweet memories of some outstanding personalties.We know very little about some of them.
MV

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

जयराज जी के बारे में जानकर अच्छा लगा। आपने उनका परिचय देकर बहुत अच्छा काम किया है क्योंकि आजकी पीढी के लिए इसी बहाने उनसे परिचित तो हो गये।

admin said...

जयराज जी के बारे में आपने जानकारी देकर अच्छा काम किया है। इसी बहाने हमें उनके बारे में जानकारी तो मिली।

art said...

bahut saari yaaden.....aur sabhi bahut avismaraniya

art said...

bahut saari yaaden.....aur sabhi bahut avismaraniya

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

बहुत सुंदर आलेख कई यादों को ताजा कर लिया आपने

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आप सभी का धन्यवाद !

प्रोत्साहन देने के लिये पुन: आभार !