Wednesday, July 2, 2008

अमेरिका में क्या देखा ?

शहर है : Columbus OHIO
जी हाँ देखी गगनचुँबी विशाल इमारतेँ ,
तेज रफ्तार से ६०, ७० मील की रफ्तार से दौडती,
हर प्रकार की आधुनिक मोटर कारेँ ,

और विशाल स्मारक जैसे कि ये ! जो हर शहर मेँ दीख पडता है और ये पानी को सँग्रह करने के लिये है और चौडी सडकेँ जहाँ यातायात व्यवस्थित, रेले की तरह , दिन रात, बस बहता रहता है
अमेरिका में क्या देखा ? 'अमेरिका की धरती से' :
नामक कॉलम - संपादक

अमरीका की छवि कुछ हद्द तक एक क्लास के बुली या गुंडे की तरह है !

यहाँ रहते हुए ये भी देख पायी हूँ कि, कई बड़ी-बड़ी शैक्षणिक संस्थाओं में, धनिक वर्ग और अन्य नागरिक भी अपना धन दान करते हैं । जहाँ उच्च शिक्षा सुलभ और सुव्यवस्थित है। शोध और विकास पर भी बहुत जोर दिया जाता है और हर उद्योग तथा संस्था में ये एक बहुत बड़ा अंग होता है। ये ना सिर्फ़ वैज्ञानिक शोध के साथ ही नहीं कई अन्य विषय से जुडी संस्था में भी प्रमुख कार्यवाही की जाती हुई, अनेक किस्म की मजबूत व्यवस्था है। राजनीति के लिए कई "थिंक टेन्क " है, जिनमें हर आनेवाले या वर्तमान के प्रश्नों पर सामग्री इकट्ठा की जाती है और प्रसार-प्रचार भी किया जाता है । विमर्श के बाद इनकी दी हुई सलाह को तवज्जो दी जाती है।

दूसरी तरफ़ ऐसा हिस्सा भी है, यहाँ एक ऐसा वर्ग भी है जहाँ, शराब, हर तरह की नशा, धूम्रपान जैसे शौक , जीवन को धुंधला और बीमार बनानेवाला नाना प्रकार का रोग लगा हुआ है - क्या ये सिर्फ़ यहीं पर होता है ? नहीं ना ! ये तो लगभग हर देश की सभ्यता का हिस्सा बन गया है । वर्तमान समाज की यह सामाजिक व्याधि है, जिससे कोई खंड अछूता नहीं रह गया ।

एड्स हर जगह फ़ैल चुका है । कोकेन लेती अशादीशुदा माता के गर्भ में पडी संतान, जन्म से ही बीमारी का अभिशाप लेकर पैदा होती है । अशिक्षित व बेरोजगार आबादी, एकल अभिभावाक वाले परिवार में पनपती आगामी नस्ल, समलैंगिक जोड़े और तलाक लेकर दोनों तरफ़ बहु पतियों और पत्नियों से बसे परिवार में पल रहे बच्चे, भूतपूर्व पति और भूतपूर्व पत्नी के रिश्तों में उलझते समाज व उनकी संतानें क्या आज सिर्फ़ अमरीकन समाज की पहचान हैं या ये दृश्य किसी भी मुल्क में अब दिखाई देने लगा है ?

अमरीका में ३० साल पहले टीवी पर एक शो आया करता था । पति, पत्नी और उनका प्यार और सुखी कुटुंब की छवि को पूरा करते बच्चे । आज ये धुंधलाती हुई छवि है । सच नहीं, किसी परिकथा की मनगढ़ंत कथा जैसी लगती है ।

शायद भारत की वह छवि आज भी कायम है । छोटे कस्बो में, गाँवों और शहरों में अभी आधुनिकता का ये सैलाब दाखिल नहीं हुआ या हुआ भी हो तब उसकी गति धीमी है । वहाँ आज भी जीवित हैं हमारे पीढियों से संचित सुसंस्कार और सुरक्षित है सामाजिक मूल्यों की धरोहर, परन्तु इन संस्कारों पर आज हर क्षेत्र से आक्रमण जारी है, नुकीले तीर और मिसाइल अपना निशाना खोजते हुए आ रहे हैं । कब तक बच्चा रहेगा हमारा आदर्शवाद ? यह सोचनेवाली बात है !

अमरीका में भारत से आकर बसे परिवार आज भी इन्हीं अमूल्य मूल्यों की धरोहर को बचाए रखने की कड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं -

कईयों को आशिंक सफलता मिली है, परंतु कुछ मुद्दे आज भी परेशान करते हैं और कई जगह असफलता भी हाथ लगी है ।
कहने की ज़रुरत नहीं -
आना ही बहुत है, इस दर पे तेरा, शीश झुकाना ही बहुत है ।
कुछ है तेरे दिल में उसको ये ख़बर है,
बंदे तेरे हर हाल पर मालिक की नज़र है,
आना है तो आ, राह में कुछ फेर नहीं है,
भगवान के घर देर है अँधेर नहीं है !

-- lavanya

सृजनगाथा से : ~~ देखिये लिंक : ~~
http://www.srijangatha.com/2008-09/july/usa%20ki%20dharti%20se%20-%20lshahji.htm
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14 comments:

Udan Tashtari said...

अच्छे चित्र, बढ़िया विवरण और बेहतरीन विश्लेषण. बस बधाई!!

कुश said...

आपके ब्लॉग की ये बात हमे बड़ी अच्छी लगती है.. की यहा की तस्वीरे बड़ी सुंदर होती है.. बधाई

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

शुक्रिया समीर भाई और कुश भाई - आजकल मैँ केमेरा हर ट्रीप पर साथ लेकर चलती हूँ -
ये सभी चित्र मैँने ही लिये हैँ पसँद आये उसकी खुशी है :)
-लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

और एक बात बतला दूँ -
फोटो पे क्लीक करने से
आप कई चित्रोँ को
बडी साइज़ मेँ देख पायेँगे -
-लावण्या

नीरज गोस्वामी said...

वाह...मुझे अपना कोलंबस से सिनसिनाटी तक किया पहला कार का सफर याद दिला दिया.. ओहाईयो नदी और उसपर बना पर्पल ब्रिज सब घूम गया दिमाग में. अमेरिका की विशेषताओं और खराबियों का अच्छा वर्णन किया है आपने. बुराईयाँ अब देश में नहीं लोगों में रच बस गयी हैं...और लोग तो हर देश में होते हैं...नहीं?
नीरज

Harshad Jangla said...

Lavanyaji

Your intersting description of various places in USA should be compiled in a book/booklet which we all can use to visit them.
Nice pictures and writings too.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

दिनेशराय द्विवेदी said...

हाँ भारत भी धीरे धीरे उधर ही बढ़ रहा है।

mehek said...

bahut achhe pics aur jankari rahi.

Gyan Dutt Pandey said...

आपके लेखन से यह अहसास पुख्ता हुआ कि अन्तत: सब देश अच्छाई-बुराई में एक समान हो जायेंगे। यही ग्लोबलाइजेशन का गन्तव्य है।

Abhishek Ojha said...

सुंदर जानकारी !

राज भाटिय़ा said...

लावण्यम् जी धन्यवाद

डॉ .अनुराग said...

लावण्या जी ..अब भारत में भी परिवार घटन टूट रहा है...यदिपी अमरीका सी स्तिथि आने में कई साल लगेगे ..हाँ जब आबादी कम होती है तो दूसरी सहूलियत ओर बढ़ जाती है....आपके चित्र वाकई खूब है

रंजू भाटिया said...

आपके लफ्ज़ ऐसे होते हैं की बाँध लेते हैं बहुत सुंदर जानकारी दी है आपने चित्र भी सुंदर है

Manish Kumar said...

behad sundar chitra...aur sath hi wahan ke halaaton ke bare mein jaankar achcha laga.