Thursday, July 31, 2008

अशोक चक्रधर जी की हास्य कविता

अंतरार्ष्ट्रीय हिन्दी सम्मलेन में श्री अशोक चक्रधर जी से मुलाकात हुई थी उस वक्त इस चित्र में , अशोक जी, मैं, श्री अनूप भार्गव (कवि तथा "ई कविता ग्रुप के संचालक) और दीपक , मेरे पति --

आलपिन कांड / अशोक चक्रधर
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बंधुओ, उस बढ़ई ने चक्कू तो ख़ैर नहीं लगाया
पर, आलपिनें लगाने से बाज़ नहीं आया।
ऊपर चिकनी-चिकनी रेक्सीन, अन्दर ढेर सारे आलपीन।
तैयार कुर्सी नेताजी से पहले दफ़्तर में आ गई,
नेताजी आएतो देखते ही भा गई।
और,बैठने से पहले एक ठसक, एक शान के साथ
मुस्कान बिखेरते हुए उन्होंने टोपी संभालकर मालाएं उतारीं,
गुलाब की कुछ पत्तियां भी कुर्ते से झाड़ीं,
फिर गहरी उसांस लेकर चैन की सांस लेकर
कुर्सी सरकाईऔर भाई, बैठ गए।
बैठते ही ऐंठ गए।
दबी हुई चीख़ निकली, सह गए पर बैठे-के-बैठे ही रह गए।
उठने की कोशिश कीतो साथ में ,कुर्सी उठ आई
उन्होंने , जोर से आवाज़ लगाई-किसने बनाई है?
चपरासी ने पूछा- क्या?
क्या के बच्चे ! कुर्सी! क्या तेरी शामत आई है?
जाओ फ़ौरन उस बढ़ई को बुलाओ।
बढ़ई बोला- "सर मेरी क्या ग़लती है,
यहां तो ठेकेदार साब की चलती है।"
उन्होंने कहा- कुर्सियों में वेस्ट भर दो
सो भर दीकुर्सी, आलपिनों से लबरेज़ कर दी।
मैंने देखा कि आपके दफ़्तर में
काग़ज़ बिखरे पड़े रहते हैं
कोई भी उनमें
आलपिनें नहीं लगाता है
प्रत्येक बाबू
दिन में कम-से-कम डेढ़ सौ आलपिनें नीचे गिराता है।
और बाबूजी,नीचे गिरने के बाद तो हर चीज़ वेस्ट हो जाती है
कुर्सियों में भरने के ही काम आती है।
तो हुज़ूर,
उसी को सज़ा देंजिसका हो कुसूर।
ठेकेदार साब को बुलाएंवे ही आपको समझाएं।
सज़ा देंजिसका हो कुसूर।
ठेकेदार साब को बुलाएंवे ही आपको समझाएं।
अब ठेकेदार बुलवाया गया, सारा माजरा समझाया गया।
ठेकेदार बोला-
" बढ़ई इज़ सेइंग वैरी करैक्ट सर!
हिज़ ड्यूटी इज़ ऐब्सोल्यूटली परफ़ैक्ट सर!
सरकारी आदेश हैकि सरकारी सम्पत्ति का सदुपयोग करो
इसीलिए हम बढ़ई को बोलाकि वेस्ट भरो।
ब्लंडर मिस्टेक तो आलपिन कंपनी के प्रोपराइटर का है
जिसने वेस्ट जैसा चीज़ कोइतना नुकीली बनाया
और आपकोधरातल पे कष्ट पहुंचाया।वैरी वैरी सॉरी सर। "
अब बुलवाया गयाआलपिन कंपनी का प्रोपराइटरपहले तो वो घबरायासमझ गया तो मुस्कुराया।
बोला-
" श्रीमान,मशीन अगर इंडियन होती तो आपकी हालत ढीली न होती
क्योंकि पिन इतनी नुकीली न होतीपर हमारी मशीनें तो अमरीका से आती हैं
और वे आलपिनों को बहुत ही नुकीला बनाती हैं।
अचानक आलपिन कंपनी के मालिक ने सोचाअब ये अमरीका सेकिसे बुलवाएंगे
ज़ाहिर है मेरी हीचटनी बनवाएंगे।
इसलिए बात बदल दी औरअमरीका से
भिलाई की तरफ डायवर्ट कर दी !
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अशोक चक्रधर जी की हास्य कविता - वाकई लाजवाब होतीं हैं !! :-))

16 comments:

Vinay said...

अशोक साहब का मैं बहुत पुराना प्रशंसक हूँ, कमाल की कवित्ताएँ करते हैं!

pallavi trivedi said...

badi achchi kavita hai...

रंजू भाटिया said...

सुंदर यादगार है यह ...अशोक जी के साथ एक हास्य कवि सम्मलेन में शमिल होने का मौका मिला था .अच्छा लिखते हैं वह बहुत

मीनाक्षी said...

:) बहुत खूब लावण्याजी.. हम भी अशोकजी के पुराने प्रशंसक हैं.. मुस्कुराता चित्र भी बढिया लगा.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

अशोक जी का शब्द-लालित्य और प्रवाह दोनो लाज़वाब होता ही है;कविता में कही गयी बात भी दूर तक असर करती है। ...सच में देश की अमूल्य निधि हैं अशोक जी।
इन्हे यहाँ लाने के लिए साधुवाद स्वीकारें।

दिनेशराय द्विवेदी said...

क्षमा करें। इस कविता में हास्य तो दिखाई नहीं दिया। व्यंग्य भी स्तरीय नहीं है। ऐसी कविता चक्रधर जी को अच्छी नहीं लगती।

विनीत उत्पल said...

जामिया में वे मेरे टीचर रहे है, वाकई वे बेमिशाल हैं.

Pramendra Pratap Singh said...

कमाल का रसास्‍वादन कराया आपने

L.Goswami said...

आपने मन खुस कर दिया .इनकी और कवितायें हो तो लायें हम इनके पुराने भक्त हैं

डॉ .अनुराग said...

unhone in dino apna blog bhi banaya hai shayad.....kavita baantne ke liye shukriya...

Gyan Dutt Pandey said...

वाह, आपने तो अपने ब्लॉग पर विविधता ला दी है। लास एंजेलेस के स्ट्रीट सिंगर से भारतीय हास्य कवि की कविता तक ले गयीं आप हमें! :)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अशोक जी की शैली और उनका अँगाज अलग ही होता है .
दिनेश भाई जी को पसँद ना आयी पर है उनकी ही कविता -
और हाँ अनुराग भाई, जानती हूँ उनका अपना ब्लोग भी है ही
और आज हिन्दी कविता के मँच पे वे बहुत पोप्युलर कवि भी हैँ
- लावण्या

Anita kumar said...

अशोक जी मेरे भी पसंदीदा कवियों में हैं, ये कविता यूँ तो बड़िया है, अंत थोड़ा गड़बड़ा गया है जैसे कविता कहते कहते अशोक जी कहीं उठ के चले गये हों। लेकिन फ़िर भी इस कविता को हमारे साथ बांटने के लिए आभार

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अनिता जी आपका भी देर से ही शुक्रिया
- हाँ कविता के अँत तक लगा जैसे "पँच लाइन" नहीँ थी -
बात को टाला गया है
या ऐसा ही कुछ -
- लावण्या

sacver said...

mai ashok ji ka bahut purana prashansak hoon. kya koi mujhe unki," police chowki ki kavita " aur kaka haathrasi ki hey prabhu anandmaya mujhko yahi uphaar do, sirf mai jeevit rahoon aur sabko mar do " uplabdh kara sakta hai? it would be a gr8 help to me

भारतीय की कलम से.... said...

shandar.................aadarniya ashok ji ko mere or se hardik badhai !!