![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjoJ-sOUxvhBbBzKoi28DLWGwCy8f8Iz3xp5yVQVUWxdYquOJlSxz79jL7KhCg8wwFC_7gxi6O3cqD8aNFld0b68htPv89nGkUpggV5z5oXb5_ooK_PDkOjAfFujy3AUjg6jmIzQILHktE/s400/sunderee.jpg)
'बरखा ~ बहार' से जुड़े कुछ , नगमे, कुछ गीत , ग़ज़ल और नज़्म पेश करेंगें
तारीख याद रखें , जुलाई - १५ !! उनके ब्लॉग पर आजकल एक बढिया
आत्म कथ्य या संस्मरण लिखा देखें --
" यादों की वादियों में…"
महावीर शर्मा http://mahavir.wordpress.com/2008/07/08/yadon-ki-vadiyon-mein/
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5P9hkMQYPhwZChyphenhyphenRge6NdHurldJIISxPaX74KxzfOK_Yb0GQdF2MJMZjXeOFjBQ9_FEmbuEoEmBXdatJ94RxJfAGPUPf8k17QbxbGfKxo7CMbVf2TQ4Q8Kwm_FHucpznoplimbDgFEbQ/s400/ret+pe+likha+tha+naam.jpg)
हवा का एक झोंका आया
आ कर , उसको मिटा गया !
हवाओं पे लिख दूँ हलके हाथों से दुबारा , क्या मैं, उनका नाम ?
ओ पवन , तू ही ले जा !
यह संदेसा मेरा उन तक , पहुंचा आ !
कह देना जा कर उनसे
तुम आए हो वहीँ से जो था , उनका गाँव !
तेरी भी तो कुछ खता , अरी बावरी पवन
कुछ पल को रूक जा !
रेतों से अठखेली कर , लुटाये तुने ,
मुझ बिरहन के पैगाम !
तू वापिस लौट के आना
मेरा भी पता बताना ,
हाँ , साथ उन्हें भी लाना !
अब , इन्तेज़ार रहेगा तेरा ,
चूड़ी को , झूमर को ,पायल को और बिंदी को !
मेरे जियरा से छाए बादलों के संग संग
सहमी हुई है आस !
- लावण्या
10 comments:
Lavanyaji
Paygaam- Nice and meaningful poem.
To see the mushaira of Mahaveerji, we have to visit the blog on 15th July?
लावण्या जी सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिए बधाई। इस तरह की कविताएँ अब कहाँ। दुनियाँ बहुत बदल गई है। लोग इसे ओल्ड फैशन कहेंगे।
पैगाम सुंदर है ...
दिनेश भाई भी सही कह रहे हैं पर यह भी तो है ओल्ड इज़ गोल्ड ,सुन्दर ...
तू वापिस लौट के आना
मेरा भी पता बताना ,
हाँ , साथ उन्हें भी लाना !
अब , इन्तेज़ार रहेगा तेरा ,
चूड़ी को , झूमर को ,पायल को और बिंदी को !
मेरे जियरा से छाए बादलों के संग संग
सहमी हुई है आस !
वाह....बहुत खूब...
मन को छू गई आपकी कविता...बहुत सुंदर...
आपके पैगाम का शुक्रिया.....आपका हुक्म सर आँखों पर.....इस तरह की कविता का भी एक अलग लुत्फ़ है...ओर इसे लिखना भी मुश्किल....ओर पढने को मिलेगी......उम्मीद है.....
कवि सम्मलेन का तो अब इंतज़ार होने लगा उधर समीर जी ने कहा, रंजनाजी ने भी और अब आपने भी... अब तो सुनना एक तरह से मजबूरी हो गई है, अभी से ताली बजाने का मन करने लगा है.
अच्छी लगी ये कविता...ऐसा लगा जैसे कोई पुराणी फिल्म का गीत हो! कुछ कुछ " हवाओं पे लिख दो हवाओं के नाम" जैसा.
सुन्दर लिखा जी।
अच्छा है !
Post a Comment