Saturday, May 10, 2008

भारतीय धर्म, सँस्कार की खुशबु,आज विश्वव्यापी बन पाई है


को क्या कोइ सिर्फ़ एक दिन ही याद करता है ? या पिता को ? या गुरु को ? नहीं ..जी ।

ये तो, महज बहाना है वेस्टर्न सभ्यता का , अगर यहां ऐसे दिन ना रखते तब, व्यस्त , मशीनी जिन्दगी र हे लोग , शायद , इस एक दिन के लिए भी समय निकाल न पाते ..ऐसा भी नही लोग अपने माता , पिता को याद नही करते , करते भी हैं और जीवन की आपाधापी में समय अभाव में , या अन्य कारणों से व्यस्त हो जाते हैं ॥

आज, " माता ओं के ख़ास दिवस पर

" मेरी जन्मभूमि, मेरी , भारत माता को मेरे सलाम "

नरसिँह मेहता भी कह गये,

"गोळ विना सुनो कँसार्,

मात् विना सुनो सँसार

मात विना ते शो अवतार ? "

आपके आसपास की हर माँ को , अवश्य कहियेगा, " ओ माँ तुझे सलाम " !

http://www।indianera.com/slideshow/april/08041001/index.asp महात्मा गाँधी की जीवनी आज , भारत ही नही विदेश मेँ भी, हर किसी को प्रेरित करती है. न्यू योर्क शहर मेँ " टमारीन्ड कला दीर्घा " के सौजन्य से, गाँधी जी की विरासत क्या है उस से जुडे चित्रोँ की प्रदर्शनी लगायी गयी . जिस मेँ गाँधी बापू उपवास मेँ , दुर्बल अवस्था मेँ भी प्रसन्न मुद्रा मेँ लेटे हुए हैँ ये देखकर , दर्शकोँ के विस्मय ने तुरन्त गौरव व स्वाभिमान की भावना का स्थान ले लिया. कई भारतीय तथा विदेशी अतिथि गण गाँधी के प्रति श्रध्धा वचन कहते हुए अपने को धन्य महसूस कर रहे थे. ये देखेँ : ~~ http://www.indianera.com/slideshow/april/08041001/index.asp भारतीय धर्म, सँस्कार की खुशबु, हर प्राँत से निकलकर आज विश्वव्यापी बन पाई है जिसका आधार है भारतीयोँ का देशाटन तथा अपने सँस्कारोँ की धरोहर को हर भौगोलिक भूखँड पर बसते हुए भी, अपने देश से जो सौगात लेकर चले हैँ उस उद्दात परँपराओँ को सहेजे रखना ! कार्य क्षमता मेँ दक्ष भारतीय, चाहे युरोपीय देशोँ मेँ रहेँ या औस्ट्रेलिया, न्यूझीलैन्ड जैसे पूर्वीय छोर के द्वीपीय महाखँडोँ मेँ जा पहुँचे या कि, उत्तर अमरीका के कनाडा या अमरीका के ही क्योँ ना नागरीक बनेँ, हर परिस्थिती मेँ, भारतीय मूल के स्त्री व पुरुष, एक सफल कार्यकर्ता होने के साथ, आदर्श नागरीक तथाअपने मूल वतन भारत के प्रतिनिधि भी बन ही जाते हैँ. भारत के प्रति प्रेम, सदभाव, भारत के अतीत से जुडे सँस्कारोँ की विरासत को भी ये भारतीय जन अपने ह्र्दय से लगाये रखते हैँ . दोहरी भूमिका, दोहरा बोझ, अनेक विषम परिस्थितीयोँ मेँ भी हँसते हुए , द्रढ मनोबल से उठाये रखते हैँ और भारत के ज्वलँत प्रश्नोँ व समस्याओँ के प्रति भी सदा जागरुक रहते हैँ. जो धन कमाया उसका सद्` उपयोग भी कई प्रकार अपने नये अपनाये देश के अन्य नागरिकोँ के हित मेँ करते हुए, अपनी जिम्मेदारीयाँ उठाते हुए, भारत के करोडोँ भाई बहनो के लिये भी , अमरीका हो या इन्ग्लैँड या कि सिँगापोर या खाडी के अन्य मुल्क, वहाँ से हर भारत माँ का सच्चा सपूत या सुपुत्री भारत माँ के लिये अपने श्रम की बूँदोँ की कतरेँ , सेवा भाव से , चरण कमलोँ पर निछावर करती आयी है. ये देखेँ तेलेगु कौम का " सर्वधारी उगादी पर्व महोत्सव " : http://www.indianera.com/slideshow/april/08042102/index.asp तेलेगु भाई बहन उगादी मनाते हैँ तो गुजराती कौम सोत्साह स्वामीनारायण सँस्था से जुडकर , कच्छ के भूकँप की तबाही जैसे दारुण कुदरती हादसोँ के वक्त अपना श्रम दान्, धन दान करते नजर आते हैँ http://www.indianera.com/slideshow/april/08040501/index.asp ये चित्रमय लोकापर्ण है श्री बाल्मिकी प्रसाद सिँह की पुस्तक " बहुधा और " ९ / ११ के बाद " पुस्तक के बारे मेँ : और भारत से दूर रहते हुए भी अगली पीढी को होली के रँग भरे मस्ती के आनँद से भी इस तरह अवगत कराया गया देखिये लिन्क http://www.indianera.com/slideshow/08032405/index.asp

केरल से कई भारतीय खाडी मुल्कोँ मेँ काम करने जाते हैँ उनकी कार्य स्थिति के बारे मेँ बहारीन के श्रम मँत्री मजिद अल अलावी से परदेश मँत्री वायलार रवि जी ने (जो भारतीय कार्योँ से सँबँधित हैँ) उन्होँने, कई नये मुद्दोँ पर करार स्थापित किया -- करीब २८०, ००० भारतीय केरल से बहारीन मेँ काम कर रहे हैँ - व्यापार और वाणिज्य मँत्री कमल नाथ जी का तो ये कहना है कि अगर आफ्रीकी पिछडे और अकाल व युध्ध की दोहरी मार से व्यथित प्राँतोँ को अगर खाडी के देश , अरब गण राज्य और भारत मिलकर सहायता करते हैँ तब अफ्रीका मेँ राहत जो मिल सकती है और स्थिती पलट सकती है। ऐसी बातेँ सुनकर भविष्य के प्रति आशा बँधती है कि अगर विश्व अगर सचमुच एक ईकाई बनता जा रहा है और भूमँडलीकरण और वैश्वीकरण बाजार के साथ साथ विश्व बँधुत्व की भावना का प्रेणेता बनता जाये तब , २१ वीँ सदी मेँ, मनुष्य अनेक समस्याओँ के साथ जूझते हुए भी शायद , एक सँतोषकारक दिशा की ओर अग्रसर हो पायेगा। शायद मैँ आशावान हूँ, इसलिये, अनेक विडँबना और वर्जनाओँ के मध्य भी , आशा की हल्की किरण देखने की आदी हूँ ! चूँकि, सूरज वहीँ उस किरण के पीछे ही तो कुहासे से ढँका हुआ, एक नई सुबह का इँतज़ार कर रहा है! जहाँ से एक नया सुनहरा " मानव दिवस" अवश्य प्रकट होगा
-- लावण्या

8 comments:

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया विचार है आपके विचारो से सहमत हूँ धन्यवाद

राज भाटिय़ा said...

लावण्यम् जी संस्कार तो सभी के अपने अपने होते हे, लेकिन भारतीय धर्म ओर संस्कार सच मे विश्व मे अलग ही स्थान रखते हे, ओर फ़िर इन संस्कारो को अपने बच्चो मे भी पनपने देते ही .
ओर हमारे बच्चे भी अपने संस्कार नही भुलते. आप का लेख सच मे बहुत अच्छा लगा, बहुत बहुत धन्यवाद

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर विचार. पूर्णतः सहमत हूँ. आभार इन विचारों के लिए.


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आप हिन्दी में लिखती हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
यह एक अभियान है. इस संदेश को अधिकाधिक प्रसार देकर आप भी इस अभियान का हिस्सा बनें.
शुभकामनाऐं.
समीर लाल
(उड़न तश्तरी)

Gyan Dutt Pandey said...

देश के बाहर - देश प्रेम से ओतप्रोत पोस्ट। बहुत अच्छा जी।

mamta said...

चूँकि, सूरज वहीँ उस किरण के पीछे ही तो कुहासे से ढँका हुआ, एक नई सुबह का इँतज़ार कर रहा है! जहाँ से एक नया सुनहरा " मानव दिवस" अवश्य प्रकट होगा ।

आपसे सहमत है।

डॉ .अनुराग said...

aap jaise log jab tak hai ,ham sunishchit hai.....desh se bahar bhi hamari sanskriti apne nishan chod rahi hai.

Abhishek Ojha said...

utaam vichaar !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आपकी टिप्पणीयोँ के लिये धन्यवाद !

विजय भाई,
महेश भाई साहब्,
राज भाई,
ज्ञान भाई साहब,
समीर भाई ,
ममता जी,
अनुराग भाई
और
अभिषेक जी !
स स्नेह,
- लावण्या