Tuesday, May 13, 2008

सुनी सुनाई कहानियां

श्री राम व सीता बन मेँ : श्री राम का कैकेयी माँ से मिलन , बड़ा करुण प्रसंग है -- रामायण कथा का ! हर्ष और विषाद दोनों जब् संग - संग चलते हैं तब करुना की पराकाष्ठा हो जाती है । उसीके सन्दर्भ में , आगे की कथा भी याद आ रही है की , बिल्कुल आख़िर में श्री राम , कौशल्या माँ के कक्ष में आए । माँ ने १४ बरसों का लाड अपने सरल , सीधे , सच्चे , एक मात्र , पुत्र , राम पर निछावर कर दिया ---माता कौशल्या , राम जी का हाथ पकड़ कर , उर्मिलाजी के भवन की और ले चली ........लक्ष्मनजी, माता सुमित्राजी के संग थे .......उर्मिलाजी , मौन - थीं ......

उनके कमरे की दीवारों पर हलके से धब्बे देख कर ,

रामजी और सीताजी ने कौशल्याजी से पूछा ,

" ये क्या है माँ ? " तब , कौशल्या माँ ने कहा ,

" ये उर्मिला के सिर पटकने से , दीवारों पर दाग = धब्बे लग गए हैं ! क्योंकि वह अपना दुःख , किसीसे कहती ही थी -

माता कौशल्या का एक और प्रसंग सुना है की , अपने प्रिय पुत्र राम के वन - गमन के समय , माता कौशल्या , अयोध्या पुरी की , अश्वशाला भी , गयीं थी -- जब् उन्हें ये पता चला की , श्री राम के अश्व , भली भाँती उनका खाना , घास और चना इत्यादी नही खाते हैं ! और ये - राम के वियोग में , मूक पशु भी शोकाकुल हैं :-( और माँ कौश्लाया ने उन अश्वों को बहोत प्रेम से, सहलाया था और धीरज बंधाई थी की , " राम लौट आयेंगें , तुम भी उनकी प्रतीक्षा करो ! जैसे मैं करूंगी " -

ऐसे प्रसंग शायद रामायण में हों या नही , लोक - कथा वाली रामकथा हमारे लोक गीतों से जुड़ी , सदियों से , हमारी संस्कृति को मजबूत रखे हुए है --- और ऐसे प्रसंग सुन कर ही , श्री राम या श्री कृष्ण , हमारे लिए , पूजनीय ही नही , हमारे बहोत निकट आ कर हमारे अपने हो जाते हैं और हमारे ह्रदय में समां जाते हैं ----

I believe thisis the Genius of Indian thought !

सुनिये ये गीत :

केहू बन दिहले दोनु राजकुमार -

Yatra - Sucharita Gupta -

( In the context of the 14 years exile given to Ram and Lakshman according to Ramayana, the singer is asking Dashrath, how he could bring himself to do

http://www.beatofindia.com/mainpages/videos-all.htm -

-लावण्या

12 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

सच कहा है-
राम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है।
कोई कवि बन जाये सहज सम्भाव्य है॥

दिनेशराय द्विवेदी said...

एक बार जैनेन्द्र का एक भाषण सुनने का अवसर मिला। सिर्फ एक बात याद रही कि हनुमान चालीसा पढ़ने से भूत,पिशाच और सभी प्रकार के भय भाग जाते हैं। यह कविता की ताकत है। जिन कवियों लोकगीतकारों ने राम और रामकथा को महान बनाया उन्हें नमन।

राज भाटिय़ा said...

आप का बहुत धन्यवाद, इन बातो से हमे बहुत सी शिक्षा मिलती हे, ओर जब भी हम से कुछ गलत होने लगे तो यही बाते याद आ जाती हे, ओर हम उस समय वह गलत काम करने से पहले कई बार सोचते हे, जिसे आत्मा की आवाज कहते हे, लेकिन यह संस्कार होने जरुरी हे, दिल से आप का धन्यवाद.

Udan Tashtari said...

अच्छा लगा यह प्रसंग पढ़कर. आभार.

Shiv said...

अच्छे प्रसंग हैं. मन की भावनाएं दिखाई देती हैं. फिर चाहे मानव मन की हों या पशु पक्षियों के...राम थे ही ऐसे.

Astrologer Sidharth said...

राम का चरित्र जितना गहरा दिमाग में बैठता है उसके साथ जुडे प्रसंग उतने की शिद्दत से मन में उतरते जाते हैं। किसी एक कोण से राम राम लगते हैं तो दूसरे कोण से पुत्र, भाई, राजा, रावण का वध करने वाले, सीता के पति और लव कुश के पिता। इस तरह जितने रूप उतने भाव एकसाथ भीतर की परतों से उघडकर उभर आते हैं। एक भाव और सही...

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ज्ञान भाई साहब,
वाह !
सुँदर पँक्तियाँ याद दीलायीँ आपने -
आभार !
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

दिनेशभाई साहब,
जैनेन्द्रजी से मैँ , बचपन मेँ मिली थी - वे पापा जी से मिलने आये थे हमारे खार वाले घर पे -
सभी कहते हैँ,हनुमान जी शिव स्वरुप हैँ और सारे भूत गण तो उनके सेवक ही हैँ !
वो भला कैसे ठहरेँगेँ जहाँ हनुमान जी होँ ? साधारण जन ही हैँ जो, श्रध्धा और विश्वास की जोत को अखँड जलाये रखते हैँ ..
अन्यथा,वाद विवाद तो अँतहीन हैँ
है ना ?
आभार !
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

राज भाई,
आपके पिताजी के बारे मैँ सुन्कर दुख हुआ :-(
आशा है, आपको, प्रभु,
इस दुर्गम समय मेँ
सँबल देँगेँ -
आपके परिवार को
हम सभी की साँत्वना -
टिप्पणी के लिये,आभार !
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

समीर भाई,
आपका भी,
टिप्पणी के लिये,
पुन:आभार !
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

शिव भाई,
सही कहा !
आपका भी,
टिप्पणी के लिये,
बहुत आभार !
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सिध्धार्थ भाई,
सही कहा !
श्री राम का चरित्र अति गहन है -
उन्हेँ सरल मन से ही देख सकते हैँ
और हनुमान जी की कृपा से ही उनकी भक्ति के द्वार पर पहुँचा जाता है ..
अन्यथा कदापि नहीँ - और, मानवीय द्रष्टिकोणोँ से भी श्री राम स्तुत्य हैँ!
आपका भी,
टिप्पणी के लिये,
बहुत आभार !
- लावण्या