Friday, May 9, 2008

ग्रीष्म की एक रात

रात उतर आयी गहरी कालिमा
साथ उमस लाई पीली नीलिमा
विवश थकान भरे तन मन मेरे,
अश्रु सुषुप्त मन बालू में
मन जगा , भागे अविरल चेतक सा -
नेत्र खींच ले पलक बिछोना,
हे मन, होंगें, ऐसे कितने प्राणी
बोझ लिए मंथन का !
हर तरफ़ ग्रीष्म जलन फ़ैली,
पीली तपन बिखरती,
गहरी सुनहरी, दिन भर ,
फ़िर, रात उतर आयी थकी बुझी ,
चाँद मुरझाया ,
गगन पे मैली सी चांदनी,
रात उतर आयी गहरी कालिमा
आज रात ...
-- लावण्या

10 comments:

mehek said...

bahut hi sundar

राज भाटिय़ा said...

अश्रु सुषुप्त मन बालू में
मन जगा , भागे अविरल चेतक सा -
नेत्र खींच ले पलक बिछोना,
हे मन, होंगें, ऐसे कितने प्राणी
बोझ लिए मंथन का !
अति सुन्दर भाव.... बोझ लिये मंथन का...
धन्यवाद

राकेश खंडेलवाल said...

सुन्दर अभिव्यक्ति है

Gyan Dutt Pandey said...

महादेवी वर्मा की कवितायें याद आ रही हैं। चित्र और पोस्ट दोनो आकर्षक हैं।

Harshad Jangla said...

Lavanyaji
Nice expressions.
Rgds.

mamta said...

सुंदर अभिव्यक्ति !!

राजीव रंजन प्रसाद said...

जैसी अभिव्यक्ति वैसे ही मोतियों से शब्द...

***राजीव रंजन प्रसाद

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आप सभी ने इस प्रविष्टी को पढा और अपनी बातेँ शेर कीँ
उसके लिये,
आप सभी का शुक्रिया !
-- लावण्या

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण. बधाई.

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आप हिन्दी में लिखती हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
यह एक अभियान है. इस संदेश को अधिकाधिक प्रसार देकर आप भी इस अभियान का हिस्सा बनें.
शुभकामनाऐं.
समीर लाल
(उड़न तश्तरी)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

समीर भाई,
शुक्रिया -
आपका प्रयास अच्छा लगा -
मैँ अक्सर ,
नये एवँ पुराने ,
हिन्दी ब्लोगरोँ को
प्रोत्साहित करती रहती हूँ :)
-- लावण्या