Wednesday, November 19, 2008

शरद सुहावन, मधु मन भावन

चाँद उग आया पूनम का !
शरद ऋतु के स्वच्छ गगन पर,
चाँद उग आया पूनम का !
सरस युगल सारस - सारसी का,

तैर रहा, झिलमिल जल पर !
खेत खलिहानोँ मेँ पकी फसल-
मुस्कान रँगे मुख, कृषक - वधू के
व्रत त्योहार - रास युमना तट
रुन झुन , रुन झुन, झाँझर के स्वर!

धरती डोली, हौले हौले, बहे पवन

मुस्काता, बन, शशि, चँचल, हिरने पर !

फैलाती चाँदी सी- शरदिया चाँदनी

मँदिरोँ मेँ बज रहे - शँख ढफ
पखावज, मँजीरे धुन,कीर्तन के सँग!

खनन्` - खनन्` मँजीर बज रहे

धमक -धमक रास की रार मची

-चरर्` चरर्` तैली का बैल चला
-सरर्` सरर्` चुनरी लिपटी रमणी पर -

शक्ति आह्वान करो! माँ भवानी सुमरो !

अम्बिका, वरदायिनी, कल्याणी, कालिका, पूजो!
घर - घर मेँ ज्योत, प्रखर कर लो !
शरद शारदा - वीणापाणि माँ सरस्वती भजो !
हरो तिमिर आवरण माँ, कृपा कर दो !
बिखरा दो, उज्जवल प्रकाश अवनी पर माँ !
शारदीय पूर्ण चन्द्र ज्योत्सना फैला दो माँ !
स्वागत, मँगल आगमन शरद - चँद्रिका माँ !
कृपा सिँधु, कमलिनी, सुमधुर स्मित बिखरा दो माँ !
जग तारिणी, सिँह आसनी ममता का कर, धर दो माँ !
जन - जन - के दु:ख हर, शीतल कर दो माँ!
कात्यायनी नमोस्तुते ! हे अम्बिके, दयामयी नमोस्तुते!

25 comments:

प्रदीप मानोरिया said...

बहुत ही सुंदर लाज़बाब शब्दातीत फ़िर भी बेहतरीन शब्द रचना

MANVINDER BHIMBER said...

बेहतरीन शब्द रचना

अमिताभ मीत said...

क्या बात है. बहुत ही सुंदर रचना.

दिनेशराय द्विवेदी said...

मौसम का रंग कैसे खिलता है इस कविता से कोई सीखे।

siddheshwar singh said...

अच्छी लगी यहा आपकी यह शारदीय अभिव्यक्ति!

अनुपम अग्रवाल said...

शरद सुहावन ,मधु मन भावन
कविता भाव सुगन्धित पावन
चाँद और धरती सब मिल देखें
माँ की स्तुति है मनभावन

राज भाटिय़ा said...

आप का यह पुनम का चांद बहुत अच्छा लगा
धन्यवाद

Ashok Pandey said...

शरद ऋतु के सुहावने मौसम में यह सुंदर कविता और देवी मां का पावन स्‍मरण...यह सब भी मनभावन ही है।

रंजू भाटिया said...

बहुत सुंदर लगी यह रचना

Smart Indian said...

28° तापक्रम में जमने से बचा लिया आपकी इस ऊर्जावान कविता ने, धन्यवाद!

ताऊ रामपुरिया said...

चाँद उग आया पूनम का !
शरद ऋतु के स्वच्छ गगन पर,
चाँद उग आया पूनम का !

बहुत खूबसूरत रचना और शुकुनदायक एहसास लगा यहाँ पर ! शुभकामनाएं !

Gyan Dutt Pandey said...

वाह! आनन्द, परमानन्द!

Abhishek Ojha said...

सच में मन भावन कविता !

makrand said...

bahut sunder kavita
regards

Dr. Nazar Mahmood said...

अच्छा लिखा है।

संगीता-जीवन सफ़र said...

मनभावन अभिव्यक्ती!

महावीर said...

'शरद सुहावन' का इतना सजीव चित्रण और देवी माँ का स्मरण ...., आनंद आया।

Harshad Jangla said...

लावण्या दीदी
सुंदर काव्य के लिए खूब खूब अभिनन्दन |
साथ ही साथ २२ नवम्बर के आप के जन्म दिन पर भी आप को सेंकडो शुभ कामनायें |
परम कृपालु परमात्मा को प्रार्थना करते हैं कि आप सदा खुश और तंदुरस्त रहें और इसी तरह हम सब को सुंदर लेख द्वारा ग्यान वर्धन कराती रहें | पापाजी की तरह ही आप की कीर्ति और यश बढ़ते रहे |
धन्यवाद |
-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए

डॉ. मनोज मिश्र said...

धरती डोली, हौले हौले, बहे पवन

मुस्काता, बन, शशि, चँचल, हिरने पर !

फैलाती चाँदी सी- शरदिया चाँदनी
मँदिरोँ मेँ बज रहे - शँख ढफ.
शरद सुहान पर गोस्वामी जी की भी लाइने हैं-
जनि शरद ऋतु खंजन आए .शहरों की तो मैं नही बता सकता लेकिन गाँव में इसका अलग आनंद है

Smart Indian said...

लावण्या जी,
आप के जन्म दिन के शुभ अवसर पर अनेकों शुभ कामनाएं. मेरी मिठाई आप पर उधार रही!

trader log said...

bahut sundar

कुश said...

प्रणाम स्वीकार करे... आनंदम आनंदम

RADHIKA said...

बहुत ही सुंदर कविता और माँ की आराधना

मीत said...

hosla afjai ka shukriya lavnya ji...
aapki yah maa ke photo ke sath kavita bahut achi hai...
sunder... manmohak...

समय चक्र said...

बहुत ही सुंदर कविता....