Saturday, March 19, 2011

होली की हार्दिक मंगलकामनाएं

होली की हार्दि मंकानाएं
बच्चे वसंत और नव जीवन का रूप हैं
आज मेरी प्यारी अम्मा स्वर्गीय सुशीला नरेंद्र शर्मा को याद करते हुए और मेरी बड़ी बहन स्व. वासवी बकुल मोदी को याद करते हुए मेरा आलेख वसंत ऋतु पर प्रस्तुत कर रही हूँ ...
link :
वसंत ऋतु राज का स्वागत है !
शताब्दियों से भारत के रसिक कवि-मनिषियों के हृदय, ऋतु-चक्र के प्राण सदृश "वसंत" का, भाव-भीने गीतों व पदों से, अभिनंदन करते रहे है। प्रकृति षोडशी, कल्याणी व सुमधुर रूप लिए अठखेलियाँ दिखलाती, कहीं कलिका बन कर मुस्कुराती है तो कहीं आम्र मंजिरी बनी खिल-खिल कर हँसती है और कहीं रसाल ताल तड़ागों में कमलिनी बनी वसंती छटा बिखेरती काले भ्रमर के संग केलि करती जान पड़ती है। वसंत की अनुभूति मानव मन को शृंगार रस में डुबो के ओतप्रोत कर देती है।

भक्त शिरोमणि बाबा सूरदास गाते हैं -
"ऐसो पत्र पठायो नृप वसंत तुम तजहु मान, मानिनी तुरंत!
कागद नव दल अंब पात, द्वात कमल मसि भंवर-गात!
लेखनी काम के बान-चाप, लिखि अनंग, ससि दई छाप!!
मलयानिल पढयो कर विचार, बांचें शुक पिक, तुम सुनौ नार,
"सूरदास" यों बदत बान, तू हरि भज गोपी, तज सयान!!
बसंत ऋतु के छा जाने पर पृथ्वी में नए प्राणो का संचार होता है। ब्रृज भूमि में गोपी दल, अपने सखा श्री कृष्ण से मिलने उतावला-सा निकल पड़ता है। श्री रसेश्वरी राधा रानी अपने मोहन से ऐसी मधुरिम ऋतु में कब तक नाराज़ रह सकती है? प्रभु की लीला वेनु की तान बनी, कदंब के पीले, गोल-गोल फूलों से पराग उड़ती हुई, गऊधन को पुचकारती हुई, ब्रज भूमि को पावन करती हुई, स्वर-गंगा लहरी समान, जन-जन को पुण्यातिरेक का आनंदानुभव करवाने लगती है।
ऐसे अवसर पर, वृंदा नामक गोपी के मुख से परम भगवत श्री परमानंद दास का काव्य मुखरित हो उठता है - "फिर पछतायेगी हो राधा,
कित ते, कित हरि, कित ये औसर, करत-प्रेम-रस-बाधा!
बहुर गोपल भेख कब धरि हैं, कब इन कुंजन, बसि हैं!
यह जड़ता तेरे जिये उपजी, चतुर नार सुनि हँसी हैं!
रसिक गोपाल सुनत सुख उपज्यें आगम, निगम पुकारै,
"परमानन्द" स्वामी पै आवत, को ये नीति विचारै!
गोपी के ठिठोली भरे वचन सुन, राधाजी, अपने प्राणेश्वर, श्री कृष्ण की और अपने कुमकुम रचित चरण कमल लिए, स्वर्ण-नुपूरों को छनकाती हुईं चल पड़ती हैं! वसंत ऋतु पूर्ण काम कला की जीवंत आकृति धरे, चंपक के फूल-सी आभा बिखेरती राधा जी के गौर व कोमल अंगों से सुगंधित हो कर, वृंदावन के निकुंजों में रस प्रवाहित करने लगती है। लाल व नीले कमल के खिले हुये पुष्पों पर काले-काले भँवरे सप्त-सुरों से गुंजार के साथ आनंद व उल्लास की प्रेम-वर्षा करते हुए रसिक जनों के उमंग को चरम सीमा पर ले जाने में सफल होने लगते हैं।
"आई ऋतु चहुँ-दिसि, फूले द्रुम-कानन, कोकिला समूह मिलि गावत वसंत ही,
मधुप गुंजरत मिलत सप्त-सुर भयो है हुलस, तन-मन सब जंत ही!
मुदित रसिक जन, उमंग भरे हैं, नही पावत मन्मथ सुख अंत ही,
"कुंभन-दास" स्वामिनी बेगि चलि, यह समय मिलि गिरिधर नव कंत ही!"
गोपियाँ अब अपने प्राण-वल्लभ, प्रिय सखा गोपाल के संग, फागुन ऋतु की मस्ती में डूबी हुई, उतावले पग भरती हुई, ब्रृज की धूलि को पवन करती हुई, सघन कुंजों में विहार करती हैं। पर हे देव! श्री कृष्ण, आखिर हैं कहाँ? कदंब तले, यमुना किनारे, ब्रृज की कुंज गलियों में श्याम मिलेंगे या कि फिर वे नंद बाबा के आँगन में, माँ यशोदा जी के पवित्र आँचल से, अपना मुख-मंडल पुछवा रहे होंगे? कौन जाने, ब्रृज के प्राण, गोपाल इस समय कहाँ छिपे हैं?
"ललन संग खेलन फाग चली!
चोवा, चंदन, अगस्र्, कुमकुमा, छिरकत घोख-गली!
ऋतु-वसंत आगम नव-नागरि, यौवन भार भरी!
देखन चली, लाल गिरधर कौं,
नंद-जु के द्वार खड़ी!!
आवो वसंत, बधावौ ब्रृज की नार सखी सिंह पौर, ठाढे मुरार!
नौतन सारी कसुभिं पहिरि के, नवसत अभरन सजिये!
नव नव सुख मोहन संग, बिलसत, नव-कान्ह पिय भजिये!
चोवा, चंदन, अगरू, कुमकुमा, उड़त गुलाल अबीरे!
खेलत फाग भाग बड़ गोपी, छिड़कत श्याम शरीरे!
बीना बैन झांझ डफ बाजै, मृदंग उपंगन ताल,
"कृष्णदास" प्रभु गिरधर नागर, रसिक कंुवर गोपाल!

ऋतु राज वसंत के आगमन से, प्रकृति अपने धर्म व कर्म का निर्वाह करती है। हर वर्ष की तरह, यह क्रम अपने पूर्व निर्धारित समय पर असंख्य फूलों के साथ, नई कोपलों और कोमल सुगंधित पवन के साथ मानव हृदय को सुखानुभूति करवाने लगता है। पेड़ की नर्म, हरी-हरी पत्तियाँ, रस भरे पके फलों की प्रतीक्षा में सक्रिय हैं। दिवस कोमल धूप से रंजित गुलाबी आभा बिखेर रहा है तो रात्रि, स्वच्छ, शीतल चाँदनी के आँचल में नदी, सरोवर पर चमक उठती है। प्रेमी युगुलों के हृदय पर अब कामदेव, अनंग का एकचक्र अधिपत्य स्थापित हो उठा है। वसंत ऋतु से आँदोलित रस प्रवाह, वसंत पंचमी का यह भीना-भीना, मादक, मधुर उत्सव, आप सभी के मानस को हर्षोल्लास से पुरित करता हुआ हर वर्ष की तरह सफल रहे यही भारतीय मनीषा का अमर संदेश है -
"आयौ ऋतु-राज साज, पंचमी वसंत आज,
मोरे द्रुप अति, अनूप, अंब रहे फूली,
बेली पटपीत माल, सेत-पीत कुसुम लाल,
उडवत सब श्याम-भाम, भ्रमर रहे झूली!
रजनी अति भई स्वच्छ, सरिता सब विमल पच्छ,
उडगन पत अति अकास, बरखत रस मूली
बजत आवत उपंग, बंसुरी मृदंग चंग,
यह सुख सब " छीत" निरखि इच्छा अनुकूली!!
बसंत ऋतु है, फाग खेलते नटनागर, मनोहर शरीर धारी, श्याम सुंदर मुस्कुरा रहे हैं और प्रेम से बावरी बनी गोपियाँ, उनके अंगों पर बार-बार चंदन मिश्रित गुलाल का छिड़काव कर रही हैं! राधा जी अपने श्याम का मुख तक कर विभोर है। उनका सुहावना मुख मंडल आज गुलाल से रंगे गालों के साथ पूर्ण कमल के विकसित पुष्प-सा सज रहा है। वृंदावन की पुण्य भूमि आज शृंगार-रस के सागर से तृप्त हो रही है।
प्रकृति नूतन रूप संजोये, प्रसन्न है! सब कुछ नया लग रहा है कालिंदी के किनारे नवीन सृष्टि की रचना, सुलभ हुई है "नवल वसंत, नवल वृंदावन, नवल ही फूले फूल!
नवल ही कान्हा, नवल सब गोपी, नृत्यत एक ही तूल!
नवल ही साख, जवाह, कुमकुमा, नवल ही वसन अमूल!
नवल ही छींट बनी केसर की, भेंटत मनमथ शूल!
नवल गुलाल उड़े रंग बांका, नवल पवन के झूल!
नवल ही बाजे बाजैं, "श्री भट" कालिंदी के कूल!
नव किशोर, नव नगरी, नव सब सोंज अरू साज!
नव वृंदावन, नव कुसुम, नव वसंत ऋतु-राज!"

15 comments:

Unknown said...

fanastic!
Lavanya didi!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीया लावण्या दीदी

प्रणाम और
सादर सस्नेह रंगारंग अभिवादन !

वसंत ऋतु से संबद्ध आलेख पढ़ कर हृदय प्रफुल्लित हो गया ।
इतना महत्वपूर्ण आलेख आपकी ही लेखनी द्वारा संभव है …

आप तो स्वयं साक्षात् सरस्वती हैं !

कृपया , समय निकाल कर मेरी निम्नांकित पोस्ट पढ़ कर अपनी राय अवश्य दें ।


प्यारो न्यारो ये बसंत है


संभव हो तो ताज़ा होली की पोस्ट भी देखें … आप-सी विदुषी की राय से मुझे और श्रेष्ठ की प्रेरणा मिलती है ।


♥ होली की शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !♥

होली ऐसी खेलिए , प्रेम का हो विस्तार !
मरुथल मन में बह उठे शीतल जल की धार !!


- राजेन्द्र स्वर्णकार

Smart Indian said...

लावण्या जी,

सपरिवार आपको भी होली की हार्दिक मंगलकामनायें!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

आपको और आपके परिवार को ढेरों शुभकामनाएं। आने वाला समय अपने साथ इस पर्व की ही तरह खुशियां लाए, रंगों के साथ।

प्रवीण पाण्डेय said...

होली की रंगारंग बधाईयाँ आपको, बहुत ही सुन्दर कविता।

राज भाटिय़ा said...

होली की हार्दिक शुभकामनायें ...

ताऊ रामपुरिया said...

परिवार सहित आपको होली पर्व की घणी रामराम,

Harshad Jangla said...

Lavanya Di

Fabulous, Superb...

Happy Holi!!

-Harshad Jangla
Atlanta, USA

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया पोस्ट!
देर से ही सही!
होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

आपको एवं आपके परिवार को होली की बहुत मुबारकबाद एवं शुभकामनाएँ.देरी से बधाई देने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.

Prof. Dr. Shailendra Kumar sharma प्रो. डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा said...

संजय पटेल जी से काफी पहले आपके संबंध में बात हुई थी।श्रद्धेय पं. नरेंद्र शर्मा जी की विरासत को आप आगे बढ़ा रहीं हैं। आपका ब्लॉग सुरुचिपूर्ण है, बधाइयाँ ।

डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा
आचार्य एवं संस्थापक-समन्वयक,विश्व हिंदी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र,हिंदी अध्ययनशाला,विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन [म.प्र.] 456010
निवास : एफ -2/27 ,विक्रम विश्वविद्यालय परिसर ,उज्जैन [म.प्र.]
मोबाईल :098260-47765 , निवास : 0734-2515573 ई मेल : shailendrasharma1966@gmail.com blogs : http://drshailendrasharma.blogspot.com/ http://drshailendrakumarsharma.blogspot.com

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

लावण्या जी नमस्कार बहुत सुन्दर प्रस्तुति सुन्दर संग्रह भक्ति , ज्ञानवर्धक जानकारियां , रोचक ब्लॉग हिंदी के बढ़ावा देने हेतु ढेर सारी शुभ कामनाएं आप कृपया हमारे ब्लॉग पर भी आ अपना स्नेह व् समर्थन दें

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५

Unknown said...

sunder abhivyakti....mann ko chune wali....aapka blog pad kar, aapko apne blog par aane ke liye aamantrit karti hoon.....wid regards...prarthana.

Unknown said...

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