किसने किया किस का इंतज़ार ? क्या पेड़ ने फल फूल का ?
फल ने किया क्या बीज का ?
बीज ने फ़िर, किया पेड़ का ?
हर बार, ज़िंदगी जीत गई ! 
प्रेमी ने पाई परछाईं ,
अपने मस्ताने यौवन की ,
प्रिय की कजरारी आंखों में ,
शिशु मुस्कान चमकती - सी ,
और, उस बार भी ज़िंदगी जीत गई ! 
हर पल परिवर्तित परिद्रश्यों में, 
उगते रवि के फ़िर ढलने में,
चंदा के चंचल चलने में,
भूपाली के उठते स्पंदन में,
रात , यमन तरंगों में ,
हर बार, ज़िंदगी जीत गई ! 
साधक की विशुध्ध साधना में,
तापस की अटल तपस्या में,
मौनी की मौन अवस्था में ,
नि: सीम की निशब्द क्रियाओं में,
मुखरित, हर बार ज़िंदगी जीत गई ! 
- लावण्या 
सूर्य ग्रहण , आया और चला गया । विश्व में , श्रद्धालु, भक्त जन की भीड़ , नदी , सरोवर , समुद्र तथा ईश्वर आराधना के पवित्र स्थलों पर देखी गयी ।
अभी तक, मनुष्य अपने आसपास हो रही विविध घटनाओं को पूरी तरह समझ नही पाया है ।
हाँ , विज्ञान ने , अवश्य , बहुत प्रगति कर ली है ।
तकनीकी आविष्कारों ने दूर संचार के नित नए आविष्कारों की मदद से , पृथ्वी के निवासी ,
बहुल मानव समुदाय के लिए , समाचार संप्रेषण के जरिए , हर नए सूरज के साथ
नवीन गतिविधियों का नज़ारा पेश करने का , काम , द्रुत गति से परोसना जारी रखा हुआ है ।
वेब पर , कई जगह , सूर्य - ग्रहण के रोमांचकारी चित्र देखे ।
सूर्य देव , हमारे सौर मंडल के प्रमुख शक्ति पुंज , अन्धकार और वलय से ग्रसित दिखे ।
राहू - केतु , शायद , अपना जघन्य कृत्य कर रहे थे !
पता नहीं इस का दूरगामी परिणाम क्या होगा ?
जो भी घटेगा , उसका इतिहास , ही साक्षी रहेगा ।
मनुष्य कर्म और मान्यताएं , समय और युग के साथ साथ बदलतीं हैं । 
हमारी पृथ्वी को गर्म होने से रोकने के लिए , ये भी सुझाव दिया गया है के , हर सड़क , हर घर की छतों को , सुफेद रंग से रंग दिया जाए तब प्रकाश कीरने , पुन: व्योम में , चलीं जाएँगीं और इतनी ऊर्जा का संरक्षण होगा की जिससे कई लाख शहरों को बिजली मिल पायेगी । क्या पता , भविष्य में , ये सुझाव कार्यान्वित भी किया जाए ! क्या पता -
बचपन में , याद है जब भी ग्रहण लगता और ख़त्म होता तब ना जाने कहाँ से, दान मांगने वालों के स्वर ,
गलियों में गूँज उठते ,
" दे दान .... छुट्टे ग्रहण ...."
अम्मा , पुराने वस्त्र, अन्न , फल , रुपया इत्यादी तैयार रखती और उन्हें दे देतीं थीं !
आज वो द्रश्य फ़िर , याद आ गया ।
पापा जी के घर पर , साधू, बाबा , पीर फ़कीर , जोगी , ब्राह्मण , पण्डित लोगों का तांता लगा रहता था ।
सभी को श्रध्धानुसार और जो भी बन पड़ता दिया जाता ।
कई साधू , ऐसे भी होते थे जो कुछ ख़ास चीज , भी माँगा करते थे ।
जैसे एक साधू बाबा ने पापा जी से , एक धोती , माँगी थी ॥
और मुझे याद है, पापा जी ने अपनी सात - आठ धोतियाँ उठाईं और उन्हें पुछा , 
" आपको कौन सी पसंद है ? वही ले लीजिये ! "
मानो साधू बाबा की भी अपनी चोइस हो !!
ऐसी कई बातें , आज भी , फुर्सत के पलों में , याद आ जातीं हैं ।
जीवन धारा , बहती जाती है । 
ये शक्ति और ऊर्जा का महासागर है , मंथर गति से , बहता अनेकानेक जीव को अपने ,
जलधारा में समेटे , अबाध गति से बहता रहेगा ।
आना - जाना , जीव - माया का खेल , यूँ ही चलता रहेगा ।
एक लक्षण जो उजागर है वह , सातत्य और जीव का होना है ।
जिसे हम , मनुष्य , हमारी " ज़िंदगी " कहते हैं और जब तलक साँसें चलतीं रहतीं हैं ,
ज़िंदगी के संग हमारा रिश्ता , बंधा रहता है ।
यही धर्म है, यही विज्ञान है और यही है सबसे बड़ा सच !
बाकी जो भी , है, सब डोर हैं इस के संग बंधी हुई ...............
विशाल व्योम के खुले , पट पर, उडती हुई , एक पतंग ...
जिसका साँसों के तार से बंधना और समय के किसी मोड़ पर टूट कर , विलीन हो जाना ..............
अपने रंग की चमक को , एक नन्हे बिन्दु में , समाकर , लोप हो जाना , यही जीवन है ।
जीत सदा से होती है, "ज़िंदगी " की !!
इसी लिए मैंने लिखा --
" हर बार, ज़िंदगी, जीत गई ! " 
- लावण्या