Sunday, June 29, 2008

भीगी भीगी रुत में ,



भीगी भीगी रुत में ,

भीगे भीगे से ये अहसास

भीगी भीगे मौसम में ,

भीगे लम्हों की ये प्यास !

जादू सा छाया है हरसू ,

कोहरे की चादर फ़ैली है ,

धुन्धलाये से नज़ारे ,

गम सुम चाँद तारे हैं !

ऐसे में कैसी ये आहट,

झांझरी रुन झुन करती ,

फिजाओं में तैर जाए

ये किसकी है आहट,?

तुम चलो चल पड़े जहाँ

तुम रुको , थम जाए समा

दिल का धड़कना फ़िर बेवजह ,

आप आए सनम जो अब यहाँ !

मानसून विंड्स

मलयानिल सुगंध आई आली , फ़िर भर आए बदरा काले ~

दक्षिण दिशा से उठते झुक झुक कर कुछ रूकते , महासागर का जल पीते !

लंका - द्वीप निहारे , नारकेलि के वृक्ष पुकारे, पत्तों के मुकुट हिल कर कहते ,

तुम , रूक जाओ बदरा काले ! घन बरसो मुसलाधार !

मंथर गति से आगे बढ़ते , आन्ध्र , कर्णाटक से मुड़ते ,

गोआ से फ़िर ले जीवन संगीत , दक्षिण पठार पर बरसते !

फिर , भर आए बदरा काले !

चल गज्गामिनियों सी चाल , उठाए रोम रोम में ज्वाल

सन - सनसनन सन , सुनवाते , फ़िर महाराष्ट्र पर छाते !

लो , फिर , भर आए बदरा काले !

तृप्त हो आहला रस सब गाते , मयूर भी देखो नृत्य दिखाते ।

गाँव शहर , जन जीवन पर, उमड़ घुमड़ छा जाते ,

सम दर्शी अमृत वर्षा बरसाते !

आली , यूँ काले बदरा घिर आते !
- लावण्या

11 comments:

अबरार अहमद said...

बहुत सुंदर। बधाई।

मीनाक्षी said...

भीगी रुत वहाँ ..यहाँ उमड़ घुमड़ करते ख्याल प्यासे से रेतीले आँचल से बाहर आने को बेताब...!!

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया चित्र और उम्दा भीगी भीगी रचना. बधाई.

दिनेशराय द्विवेदी said...

महाराष्ट्र पर तो मानसून सदा से मेहरबान है। ये मानसून विन्डस् के गीत की अधिक जरूरत राजस्थान को है।

mehek said...

wah barsaat ki tarah hi khubsurat kavita badhai

कुश said...

ओह तो बारिश वहा भी... ये बारीशो पे लिखी गयी बातें वाकई दिल फरेब होती है

Gyan Dutt Pandey said...

मानसून विण्ड तो ज्यादा ही मेहरबान हो गयी यहां। आज तो गरम प्रेस कर कर के कपड़े सुखाने पड़े! :)

Abhishek Ojha said...

ये कमबख्त बारिश तो यहाँ रुकने का नाम ही नहीं ले रही है. :-) अच्छी कविता !

Alpana Verma said...

bahut hi sundar kavita..aur chitra bhi behad akarshak..

lavnya Di maine aap ka comment ranjna ji ke blog par dekha--aap ki kavita ko swar dene mein mujhe bahut harsh hoga magar main kuchh dino ke liye bharat jaa rahi hun..wahan se aane ke baad..jo bhi geet ya gahzal aap chahen---aap mujhe mail kar dijeeyega--main aap ko player code bana kar de dungi aap apni post mein sirf copy-paste kar ke apne hi blog par play kar sakti hain---:)thnx

डॉ .अनुराग said...

खूब ..देखा एक बारिश कितनी कविताएं साथ लाती है.....

Arvind Mishra said...

कविता का विस्तीर्ण फलक अपने में भौगोलिक पृष्ठभूमि भी समेटे हुए है -वाह !
वर्षा पर अनेक कवियों की कवितायें भी मानस पटल पर सहसा कौंध गयीं -घुमड घमंड घटा घन की घनेरे आवे ,बरस गयी थी फेरि बरसन लागी री ....याद आयी !पद्माकर !!