श्री राम कृष्ण परम हंस भगवान् :बंगाल की आत्मा थे और देवी महाकाली के परम भक्त।
मुक्ति सनातन धर्म के सन्दर्भ में उसी को कहते हैं
जो जन्म , मरण के फेर का अंत करे !
उसे निर्वाण या मोक्ष भी कहते हैं। जीव मुक्त तभी होता है जब आत्मा , सदा के लिए परमात्मा में विलीन हो जाए ।
अद्वैत , जैनी , बुध्ध धर्म , सीख जैसे भारतीय मूल के धर्म भी मोक्ष या मुक्ति को समय, काल और कर्मानुबंध का लोप होकर, आत्मा की मुक्ति को मानते हैं। विश्व के दुसरे धर्मों में, आत्मा का लम्बी अवधि तक, एक शांत , स्वर्गीय लोक में वास होता है ऐसा मानते हैं। उस अवस्था में , व्यक्ति का परिचय या नाम तथा रूप का अंत हो जाता है और कर्म की अच्छी या बुरी पकड़ से पर की अवस्था ही मुक्ति कहलाती है। जहाँ व्यक्ति के अहम् का नाश हो जाता है। वही अहम् से परम की यात्रा है ।
यूँ , सभी को स्वतंत्रता प्रिय है। फ़िर भी , आत्मा को कर्म के बंधन से मुक्त करना ये कार्य दुसाध्य लगता है - इस ग्रंथि को तोड़ना और विलग होकर, मुक्त होना यही प्रथम , कदम है ।
मनुष्य की बुध्धि , प्रज्ञा, कविता , गीत संगीत तथा वाचा की अधिष्ठात्री देवी हैं ।
सुनिए गीत : सत्यम शिवं सुंदरम: शब्द : पण्डित नरेंद्र शर्मा : स्वर: लातादी
http://www.videogeet.com/view_video.php?viewkey=5be01a996dc560274708&page=16&viewtype=&category=mr
अपने आपको स्थिर करके, मन , बुध्धि तथा विचार को मौन करने के बाद, अपने में स्थित आत्मा की पहचान होती है। तथा प्रणव नाद का स्वर प्रखर होता है और समस्त सृष्टि से, व्योम के आर पार से , प्रकाश , प्रवाहित होकर, आत्मा के साथ ऐक्य स्थापित करता है और भेद नही रहता , अहम् का तथा परब्रह्म का और उस क्षण आत्मा स्थिर हो जाती है।
भजन, श्लोक, स्तुति तथा अनेक वाद्यों द्वारा संगीत से भी ईश्वर की आराधना की जाती है । मनुष्य , ईश्वर से जो माँगता है, ईश्वर उसे वही देते हैं । ये उनकी कृपा है। परंतु , जो भक्त , ईश्वर को , अपना सर्वस्व दे देते हैं और शरणागति अपना लेते हैं और ईश्वर में दृढ आस्था और विश्वास स्थापित करते हैं, उन्हें ईश्वर, अपना प्रेम प्रदान करते हैं । भक्ति का स्वीकार और ईश्वर की अनुकम्पा का प्रसाद , तभी प्राप्त होता है। ईश्वर भक्त को सर्वस्व मिल जाता है।
श्री रमन महर्षि : अरुणाचल गिरी पुन्य धाम जिनका प्रिय आवास रहा जिनकी जीवनी आज भी पढ़नेवालों को चकित कर देती है किस तरह साधारण मनुष्य , आत्मा की मुक्ति प्राप्त करता है।
उसके लिए किन प्रयासों की आवश्यकता होती है ?
उनके नेत्रों से और उन्होंने केदार राग गा कर अपने शामालिया ( सांवरिया श्री कृष्ण जी को ) रीझाया ....
ईश्वर क्या हैं ? वे बाल मुकुंद हैं । एक पर्ण पर , बिराजित, माया का खेल खेलते ,आनंद में लीन , मुस्कुराते बाल शिशु । वही हर आत्मा का पूर्ण स्वरूप हैं ।
- लावण्या

25 comments:
बहुत सुंदर जानकारीपूर्ण धार्मिक पोस्ट. आभार
नरसिंह ने अन्तिम बार प्रभू के लिए भजन गाया और अनाज लेकर घर चले गए ...
कई माह बीते परन्तु नरसिंह ने केदार राग ना गाया
तब स्वयं कृष्ण भगवान् अधीर हो गए ॥
लावण्यम् जी आप ने मुक्ति का मार्ग खुद बता दिया, ओर फ़िर हम से प्रश्न केसा? जी अगर हमे मुक्ति चाहिये तो हमे भी नर सिंह की तरह से वचन के पक्के, ओर भगवान से सच्चा प्यार होना चाहिये, ओर यह सच्चा प्यार उस की बात मानने से होगा, ना कि सिर्फ़ उसे ही मानने से होगा, जेसे नर सिंह ने अपने ईष्ट को गिरवी रख दिया, यानि वचन का पालान किया, ओर बिना ईष्ट के भजन किस के लिये गाये, किसे पुजे??
बहुत सी सुंदर शिक्षा दी है आप के इस सुंदर लेख ने.
धन्यवाद
बहुत अच्छी जानकारियां...मुक्ति-भक्ति की बातें। आप काफी इत्मीनान से लिखती है, यह महत्वपूर्ण हैं।
इस धार्मिक जानकारी से सजी-धजी पोस्ट के लिए आपको मेरा नमन!
आप जितना सहेज कर लिखती हैं मय सुन्दर चित्र..हमें तो इसे पढ़ते रहना ही मुक्ति का मार्ग लगता है. एक भक्ति भाव पैदा होता है. ठीक वैसा ही जैसे भजन कीर्तन में लीन होकर व्यक्ति अनुभव करता है.
जय हो आपकी.
बहुत सुन्दर आलेख-ढ़ेरों जानकारी.
"मुक्ति ना मांगूं, स्वर्ग ना मांगूं, मांगूं, मनुज अवतार रे ....." पढ़कर संस्कृत का च्यवन ऋषि का कहा माना जाने वाला एक लगभग समानार्थी वाक्य याद आ गया:
न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नाऽपुनर्भवम् ।
कामये दु:खतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम्।।
संभाल के रखने योग्य पोस्ट...आपकी जानकारी कमाल की है...नमन है आपको...
नीरज
Lavanya Di
Extra fine lekh.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
आनन्द - रामकृष्ण परमहन्स से रमण महर्षि होते नरसी भगत।
और यह सत्यम शिवम का गीत का लिंक! बहुत सुन्दर।
मनुष्य , ईश्वर से जो माँगता है, ईश्वर उसे वही देते हैं । ये उनकी कृपा है। परंतु , जो भक्त , ईश्वर को , अपना सर्वस्व दे देते हैं और शरणागति अपना लेते हैं और ईश्वर में दृढ आस्था और विश्वास स्थापित करते हैं, उन्हें ईश्वर, अपना प्रेम प्रदान करते हैं । भक्ति का स्वीकार और ईश्वर की अनुकम्पा का प्रसाद , तभी प्राप्त होता है। ईश्वर भक्त को सर्वस्व मिल जाता है।
इससे बढ़ा ज्ञान भला क्या होगा ।
शुक्रिया ।
बस इतना ही कहूंगा कि ये आपकी शैली मे एक अनमोल पोस्ट है. ये भी कह सकते हैं कि भक्ती मार्ग के अनमोल हीरे-मोती आपने दिखा दिये हैं.
बहुत श्बुभकामनाएं.
रामराम.
आज पहली बार आप का ब्लॉग देखा, यूँ तो बहुत ब्लोग्स पर आपके कमेन्ट पढता रहता था, और उनको पढ़ कर लगता था की एक उच्च प्रतिभाशाली की टिप्पणी पढ़ रहा हूँ, आज उस बात को सत्य रूप में देख लिया, आप के ब्लॉग पर. हिन्दी में, उर्दू में, इंग्लिश में, सभी तरह के विषयों पर आपके लेख, कविता आपके शुद्ध विचार और सोम्य व्यवहार को दर्शाते हैं.
धर्म और संस्कृति पर आपका लेखन संजो कर रखने वाला है, इस बात पर कोई दो राय हो ही नही सकती. आध्यात्मिक जीवन को इतने गहन रूप खुबसुरातागल अपने जीवन दर्शन में उतारने वाला ही इतनी मोहक चर्चा कर सकता है.
नमन है आपकी लेखनी को
बहुत सुंदर और ज्ञानवर्द्धक पोस्ट...
आज कल आप भक्तिमय हो रही है .ओर इस बहाने हम में भी बहुत कुछ बाँट रही है.....अच्छा लगता है
इन महान आत्मा संतों के बारे में बताने के लिए आभार. बहुत अच्छी लगी ये पोस्ट. एक से बढ़कर एक अनुकरणीय व्यक्तित्व !
आप सभी का बहुत बहुत आभार जो आपने इन महानुभावोँ पर लिखा सराहा
ये सँत विभूतियाँ हैँ ही ऐसी विरल कि उनके जीवन दर्शन से हमेँ सत्सँग मिले
यह होना ही है -
आदरणीय महावीर जी के सुझाव पर और ज्ञान भाई साहब के कहने पर पिछली पोस्ट को आगे बढाते हुए "मुक्ति" पर भी लिखा -
अनुराग भाई,
आपने जो श्लोक लिखा है
उसी पर विस्तार से लिखियेगा -
महेन्द्र भाई साहब,
राज भाई साहब,
अजित भाई,
विनय भाई,
समीर भाई,
नीरज भाई साहब,
हर्षद भाई,
ममता जी,
ताऊ जी,
सँगीता जी,
डा. अनुराग भाई,
अभिषेक भाई
आप सभी का आभार -
आद्यात्म, इतिहास,सँस्कृति,कला,दर्शन,साहित्य , समाज शास्त्र, मनोविज्ञान ये सभी मुझे प्रिय हैँ --
आप सभी से कुछ दिनोँ का
अवकाश ले रही हूँ -
पुत्र सोपान के पास जा रही हूँ - वेस्ट कोस्ट / West Coast
अभी वो यहीँ आया हुआ है -
९ तारीख से यात्रा पर रहूँगी -
नियमित टीप्पणी ना कर पाऊँ तो,
अग्रिम क्षमा ...
कुछ नई बातेँ और चित्र लेकर फिर हाज़िर हो जाऊँगी ..
दीगम्बर जी,
आपके स्नेह के लिये बहुत बहुत आभार !
आते रहीयेगा ..
आपका ब्लोग भी देखती हूँ ..
स - स्नेह,
-- लावण्या
आप बड़ी आध्यात्मिक पोस्ट लिखती हैं....मेरे हिसाब से अच्छे कर्म करते रहना ही मुक्ति का सबसे आसान मार्ग है!
बेहतरीन पोस्ट....
इन विभूतियों से साक्षात्कार करवाने के लिए आभार. हम उस परमेश्वर की प्रशंशा में एक गीत या भजन गा नहीं सकते. दूसरों का गाया तो सुन सकते हैं. कुछ को शायद ऐसे भी मुक्ति प्राप्त हो सकती है. मात्र पठन या श्रवण से!
जब इन्हे पढ़ती हूँ, तो ये ही सच लगने लगते हैं ......!
avkaash par jaane se pahle bahut hi sundar aur anmol tohfa is post ke ruup mein de rahi hain aap ..-aap ki vacation khuub maje mein bitey.. shubhkamnayen
आपके ब्लॉग को पढ़ना
एक तीरथ यात्रा सा महसूस होता है ....
अच्छे विचार लिखना, बांटना, और पढ़ना
सचमुच अपने अन्दर दिव्या प्रकाश करने जैसा ही है ....
नमन और साधुवाद . . . . . .
---मुफलिस---
कई बार पढ़ने और दूसरों को पढ़वाने
और संदर्भित करने योग्य लिखा है, आपने !
यह पोस्ट पृष्ठांकित कर लिया है, दीदी ।
कँचन ये बातेँ सच ही हैँ !
कोई शक नहीँ !
आशा श्रध्धा और विश्वास ही
भक्ति की नीँव है-
और अमर भाई ,
धन्यवाद
आपकी सराहना के लिये ..
स्नेह सहित
- लावण्या
मुक्ति, अगर हम मुक्ति की जगह सत्य को ढूंढे तो सबसे अच्छा होगा। क्योंकि सत्य के बिना अपने बुद्धि और भावना से मुक्ति शब्द को परिभाषित करे तो वह गलत होगा।
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