Wednesday, March 12, 2008

प्रश्न मेरा


प्रश्न मेरा

क्या तुम्हे एहसास है , अनगिनत उन आंसूओं का ?

क्या तुम्हे एहसास है , सड़ते हुए , नर कंकालों का ?

क्या तुम्हे आती नही आवाज़ , रोते , नन्हें , मासूमों की ?

क्या नही जलता ह्रदय , देखके, भूखे - प्यासे पीडितों को ?

अफ्रीका , एशिया के शोषित , बीमार , बेघर, शोषित , कोटी मनुज !

अनाथ बालकों को , उन की सूनी , लाचार आँखें देख , देख कर

क्या नहीं दुखता दिल तुम्हारा ? आँख भर आती नही क्या ?

क्यों मिला उनको ये मुकद्दर खौफनाक , दर्द से भरा ?

कितने भूखे प्यासे , बिलखते रोगिष्ट , आधारहीन जन

छिन्न भिन्न अस्त्तित्व के बदनुमा दाग से ये तन !

लाचार आँखें पीछा करती हुईं , जो न रो सके

ये कैसे दृश्य देख रही हूँ मार कर , मेरा मन !! :-((

एहसास तो है इनकी सभी विवशताओं का मुझे भी पर हाय !

नही कर पाते कुछ ज्यादा , ये हाथ मेरे !

लाघवता मनुज की , ये असाधारण विवशता , ढेर सी ,

भ्रमित करतीं मेरे मन की पीड़ा, मेरे ही ह्रदय को !

ये वसुंधरा कब स्वर्ग सी सुंदर सजेगी , देव मेरे ?

कब धरा पर हर जीव सुख की साँस लेगा, देव मेरे ?

कब न कोई भूखा प्यासा रहेगा, ओ देव मेरे ?

कब मनुज उत्थान के सोपान का नव - सूर्योदय उगेगा ?

4 comments:

अफ़लातून said...

इस स्वप्न को सहेज कर रखना होगा ।

Harshad Jangla said...

Lavanyaji

Wish these dreams come true sometime!
Nice poem.
Rgds.

Anonymous said...
This comment has been removed by a blog administrator.
लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Aflatoon ji, Harshad bhai -- Thank you so much for your comments & visit here ...
warm rgds,
L