Wednesday, November 25, 2009

http://www.ted.com/talks/hans_rosling_asia_s_rise_how_and_when.html
मेरी पोस्ट इस से आगे की पोस्ट पर कई सालगिरह की शुभकामनाएं मिलीं -- आप सभी का ह्रदय से आभार प्रकट करती हूँ .........
ख़ास तौर से अनुज भाई श्री पंकज 'सुबीर जी ' की कोटिश: आभारी हूँ जिन्होंने मेरे सालगिरह को सार्वजनिक उत्सव बना कर, हिन्दी ब्लॉग जगत के प्रिय साथियों की शुभकामनाओं से मुझे अभिभूत किया । धन्यवाद कहना महज औपचारिकता कहलायेगी मगर फिर भी मैं उन्हें शुक्रिया कह रही हूँ और सभी को पुन: स स्नेह आभार ।
देखिये उनकी ये प्रविष्टी :
कल लावण्य दीदी साहब का जन्‍म दिन है : http://subeerin.blogspot.com/2009/11/22.html
आज ज्यादा बातें ना करते हुए , एक
सीमित प्रविष्टी लिख रही हूँ ।
कई तरह की जानकारी नेट पर बिखरी रहती है ।
बहुत सारा , इसी तरह , इन बॉक्स में भी आ पहुंचता है ।
कई लिनक्स , द्रश्य - श्रव्य माध्यम लिए होते हैं जिनसे , हम , विश्व में होनेवाली , विविध गतिविधियों को , चन्द मिनटों में जान पाते हैं । आधुनिक युगीन आविष्कारों ने वास्तव में , विश्व को , समतल या सपाट कर दिया है । जैसा थोमस फ्रीडमैन नामक प्रसिध्ध [ संवाददाता ने [ वोशींगटन पोस्ट अखबार से जुड़े हुए ] भी अपनी किताब , वर्ल्ड इस फ्लैट में शीर्षक देते हुए कहा था ।
एशिया के 2 महत्त्वपूर्ण प्रदेश, चीन तथा भारत की तेजी से हो रही प्रगति, यूरोप और अमरीका के अर्थतंत्र में छायी मंदी से , विश्व के व्यापार उद्योग का , ध्यान अब चीन और भारत पर

आशा की किरण जगाते हुए, ले चुकी हैं ।
भारत के हर तबक्के के आम आदमी की कर्मठता ,

सचमुच वन्दनीय है । हर मुश्किल परिस्थिति में जीते हुए, लड़ते रहना , अपने आसपास के वातावरण व रोजीन्दी , तकलीफों के बीच भी , एक रास्ता निकाल कर आगे बढना ये भारतीय मानस का एक गुण है ।
जिसे अब दुनिया के लोग भी विस्मय तथा आदर के साथ देखने को मजबूर होने लगे हैं ।
हर समाज में अच्छाईयां और बुराईयाँ होतीं ही हैं ।

पर , इनसे कौन किस ताकत के सहारे झूझता है और इन मुश्किलों को पार करता है, इसी की ये परिक्षा का समाय आज विश्व में जारी है ।-- ऐसी ही कर्मठता की छवि इस डॉसा बनाते इंसान की मुस्कान में मैंने देखी ।

भारत में मुगलकालीन राजवंश की सत्ता का अंत नवाब बहादुर शाह के साथ हुआ था । ये उन्हीं की ग़मगीन तस्वीर है ।
जिसे देखकर , अस्ताचलगामी सूर्य को देखने जैसी अनुभूति हुई --

मुगलिया सल्तनत के एक लम्बे दौर के बाद जो करीब बाबर के आगमन से आरम्भ हुआ १२ वी सदी के बाद १७ वी सदी तक निर्बाध चलता रहा था . अब भारत की बागडोर , एक बार फिर , दूर देश से आये , अंग्रेजों के हाथों में पहुँच रही थी --- अंगेरजी शाशन व्यापारी के भेस में , भारत में घुसा था - ईस्ट इंडिया कंपनी -- के नाम से -- जिसके प्रुष्ठ्बल में , इंग्लैंड के राजपरिवार का समस्त बल भी था ही -- जिसे खदेड़ने के प्रयास , पहले , १८५८ में मुठ्ठीभर राज घरानों ने अवश्य किया जिसमे महारानी लक्ष्मी बाई तथा तात्या टोपे उल्लेखनीय हैं -- मगर वह क्रान्ति निष्फल गयी .
भारत को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद करने के लिए कई स्वतंत्रता सैनानियों ने समय समय पर अपना योगदान दिया । भारत , स्वतन्त्र हुआ १९४७ में और तब तक कई ऐसे वीर देशभक्तों की एक समूची पीढी ने , भारत को भारतवासीयों के लिए , हासिल करने में , अपने घर परिवार की चिंता न करते हुए, एक सामूहिक प्रयास किया -
महात्मा गांधी के नेतृत्त्व में अहिंसक सत्याग्रह की ये विजय यात्रा संसार के इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ है .
जिसके चलते हुए, 2 विश्व युध्ध की दारुण घटना भी विश्वपटल पर घट चुकी थी
भारत आज़ाद होने के लिए व्याकुल था .
भारत माता का सिंगार उतरा हुआ था निरस्त्र , आभूषण विहीन , लज्ज्जित , बेडीयों में बंधी हमारी वीर प्रसूता , वेद जननी भारत माँ का गौरव पुन: जग्मागाने के लिए , असंख्य बहादुर देश प्रेमी , महात्मा गांधी , कस्तूर बा जैसे माता , पिता के पीछे चल पड़े थे . ........
भारत स्वतन्त्र हुआ ।
२००० तक आते आते , हमारी पूरी नस्ल , बहुत जल्दी , देश प्रेम को भूल कर, स्वयं के प्रेम में डूब गयी । राजनेता , पाखण्ड से भरा राजतंत्र , आम जनता के लिए बदहाली, दुश्वारी, महंगाई , भ्रष्टाचार , रिश्वतखोरी, मुनाफाखोरी, अराजकता, संसद सभा में आये दिन मार पीट , गुंडागर्दी , ---और भी ना जाने क्या , क्या, हम सभी ने देखा ।
कभी टेलिविज़न के जरिए तो कभी अपने स्वयं के अनुभव से --

आज का दौर : आज भारत २००९ के अंत तक आ पहुंचा है । अपनी तमाम बुराईयों के साथ भी प्रगति के पथ पर , भारतीय १ बिलियन का आंकड़ा लिए हुए प्रजा , ना जाने क्यूं दुनिया के आकर्षण का केंद्रबिंदु बना हुआ है ।
तो मैं यही कहूंगी , कुछ तो है भारत में -- जो आज भी ,
तथाकथित सभ्य व विक्सित देशों के बीच भी , विकासशील भारत से निकली नई नई बातें , लोग अपनाने लगे हैं ।
संगीत भी एक ऐसा ही जादू है जो किसी सरहद या कौम या सीमा के पहरे में कभी बंद नहीं पाता ।
- लोग मधुर संगीत सुनकर, डोलने लगते हैं, मानों ये --
एक तरह का वशीकरण ही है !! अब देखिये ये लिंक :
http://www.youtube.%20com/watch?
अब देखिये ये लिंक : यहां ब्रिटन की महारानी एलिजाबेथ के निजी आवास , बकीन्घम पेलेस के प्रांगन में , स्कूली बच्चे, संस्कृत के श्लोक से , भारत से आयीं राष्ट्रपति के पद पर आसीन श्रीमती प्रतिभा पाटील का स्वागत करते हुए , गीत गा रहे हैं --
http://www.youtube. com/watch? v=0M652COEqNg
ना जाने आज बापू ज़िंदा होते, तो ऐसा द्रश्य देख कर क्या कहते ? :)
मंद मंद मुस्कुराती बापू की छवि आज सचमुच सजीव लग रही है । लगता है जैसे , उन के द्वारा आरम्भ की गयी " सत्य की साधना " ,
व्यर्थ नहीं गयी ।
चलिए, इतिहास तो हर घड़ी , चुपचाप घटता रहता है ।
भूतकाल से वर्तमान को जोड़ रहे हर पल के मध्य , खडा आज का यथार्थ हमारा वर्तमान , हमारे हाथों में है जिसे या तो हम सहेजें , संवारें या व्यर्थ करें ।
ये भी हमारा फैसला है ।
व्यक्ति की विजय हो - - आत्म बल की जय हो -- -- भारत खुशहाल रहे -- विश्व को अपने संस्कारों से प्राप्त सदगुणों से प्ररित करता हुआ , सम्पूर्ण विश्व का भ्राता बने तभी सर्वोदय का नव विहान उगेगा ।
विश्व्बंधुत्त्व भावना विकसित होगी -- आमीन --
स स्नेह,
- लावण्या



13 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत कुछ है भारत और उस की संस्कृति में। बस अपने लोग पहचाने उसे तो आज भी सिरमौर हैं दुनिया के।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

aapki yeh post bahut bahut achchi lagi......

Smart Indian said...

शुभकामनाएं! जन्मदिन की बधाई की कतार में शायद मैं सबसे पीछे रह गया. लेख तो हमेशा की तरह अच्छा है ही, लिंक देखकर भी आनंद आया.

Anonymous said...

कमाल है!
हमारी बधाईयाँ आपने देखी ही नहीं शायद!! :-)

http://janamdin.blogspot.com/2009/11/blog-post_22.html

Udan Tashtari said...

द्विवेदी जी से सहमत..वाकई सिरमौर तो है ही.

आपको जन्म दिन की एक बार फिर से बधाई.

Gyan Dutt Pandey said...

सालगिरह की बहुत बहुत बधाई जी। इस दौरान बहुत कुछ नहीं पढ़ा नेट पर सो यह भी आज देर से जान पा रहे हैँ।
बाकी, जहां भारत की बात है - अगर भारतीय अपनी वैल्यूज बचाये रखें और मेहनत से काम करें तो यह शती निश्चय ही उनकी है!

मनोज कुमार said...

पढ़कर राहत मिली। बधाई स्वीकारें।

पंकज सुबीर said...

आदरणीय दीदी साहब प्रणाम
पंकज सुबीर को तो मैं पहचानता हूं लेकिन ये पंकज सुबीर जी कौन है । बड़ी बहनें जब छोटे भाइयों के नाम के सामने जी लगाएं तो उसका मतलब ये ही माना जाता है कि या तो नाराजगी है या प्रेम में कुछ कमी है । आशा है मेरे नाम के आगे लग रहा ये जी विलुप्‍त प्राणियों की श्रेणी में आकर गायब हो जायेगा । बहादुर शाह जफर को साक्षात देखना रोमांचक लगा । उनकी शायरी का मैं बहुत प्रशंसक हूं । और जहां तक भारत का सवाल है तो भारत जिस पथ पर है वो पथ निश्चित रूप से विश्‍व को नेतृत्‍व देने वाला पथ है । वैसे भी भारत के पास जो आध्‍यात्मिक ताकत है वो दुनिया के किसी और देश के पास नहीं है ।

ताऊ रामपुरिया said...

आपको जन्मदिन की बहुत २ बधाईयां और शुभकामनाएं. इन दिनों कुछ व्यस्तताओं के चलते अनियमित सा हूं. कृपया देर से ही सही..स्वीकार किजिये और स्नेह बनाए रखिये. सादर


रामराम.

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर पोस्ट है । अपने देश मे जो है वो शायद कहीं नहीं है। देवेदी जी सही कह रहे हैं। आप लिखती भी इतनी सुन्दरता से कि एक साँस मे पढ जाती हूँ। शुभकामनायें

डॉ .अनुराग said...

जफ़र की तस्वीर देखकर दुःख हुआ .उनकी बेबसी की कई कहानी पढ़ी है .पर जाने क्यों तस्वीर ओर विचलित करती लगी....गांधी तो खैर आज़ादी के तुरंत बाद ही अप्रासंगिक हो गए थे . गुजरे जन्म दिन की ढेरो शुभकामनाये ......कही उलझे हुए थे वर्ना फोन करते ....

Alpana Verma said...

1-कर्मठता की छवि डॉसा बनाते इंसान की मुस्कान में .
2-नवाब बहादुर शाह की ग़मगीन तस्वीर है.
3- मंद मंद मुस्कुराती बापू की छवि .
No doubts tasveeren bolti hain...
विश्व्बंधुत्त्व भावना विकसित हो -- आमीन!

Aap ki bhaavanaOn ko naman

निर्मला कपिला said...

बहुत देर से आयी क्षमा चाहती हूँ ।भारत की संस्कृति ही भारत की शान है। बहुत सुन्दर आलेख है शुभकामनायें