त्तारीख : ६ , जनवरी ,२०१० ,
दक्षिण अमरीका के तालाहास्सी फ्लोरीडा में , यहां का एक गरीब इंसान , पूरा कम्बल ओढ़ कर , कडाके की ठण्ड से अपनी सुरक्षा करने का प्रयत्न कर रहा है -- ध्यान से देखिये , उसने स्नीकर माने जूते पहन रखे हैं , जींस भी पहनी है और सूरत दीख रही है और बतला रही है वह राष्ट्रपति ओबामा और मिसेज ओबामा , मिशेल की तरह यहां की , अश्वेत प्रजा में से एक, इंसान है --
उत्तर अमरीका के आयोवा , नब्रेसका और उत्तर डकोटा प्रांत, भारी बर्फबारी की चपेट में आ कर रोजमर्रा की जीवन के लिए जरूरी , परिस्थितियों से जूझ रहे हैं .........
ऐसा पहली बार हुआ है, १७, १८ सालों में ............
-- ५० * तापमान .........बा बा रे .... !!!!
नतीजन, बर्फ हटाकर . वाहन व्यवहार फिर कुछ कुछ सामान्य हो उसके लिए ,
बर्फ हटानेवाली ट्रक , बड़े बड़े फावड़ों से लैस , काम कर रहीं हैं
- मुख्य सड़कों पर नमक के साथ कंकड़ पत्त्थर मिलाकर, उस मिश्रण का छिडकाव किया जाता है ...
ताकि मार्ग पर दौड़ रहे वाहन , फिसले नहीं
अब, यह कार्य हरेक प्रांत की जिम्मेवारी रहने से , खर्चा भी बहुत बढ़ जाता है और अमरीकी मंदी की मार से त्रस्त कई प्रान्तों के बजेट , ऐसे भी , लाल रंग दिखला रहे हैं
[- माने उनके पास धनराशि का अभाव है] --
स्थिति गंभीर है ..परंतु , केन्द्रीय सरकार , ऐसे वक्त , मदद करती है और उबार लेती है ताकि परिस्थितियाँ सामान्य बनीं रहें और जन जीवन चलता रहे -- "
" जीवन चलने का नाम, चलते रहो, सुबहो शाम " ................
Beach buddies
A woman plays with a dog at the beach as a container ship sails past near in the northern German city of Cuxhaven.
ऐसे विशाल जहाजी सामान से लैस बेड़ों से दुनिया का व्यापार विनिमय संपन्न होता है
न्यू - योर्क , जिसे बीग एप्पल कहते हैं , उसके ऊपर , गगन में , निश्चिंत उड़ता हुआ कपोत ...
अब सोवियत संघ / रशिया की बात करें तो वहां से भी , ये समाचार आ रहे हैं ..........
भारी बर्फबारी की चपेट में आकर रोजमर्रा की जीवन के लिए जरूरी , परिस्थितियों से जूझ रहे हैं ये निरीह और मूक पशु ....
अब भारत की बात करें तो वहां से भी , ये समाचार आ रहे हैं .........
North India -- 100 PPL died due to severe cold ......makes me SAD :-((
कोपन हेगन में , दुनियाभर के वरिष्ठ नेता इकत्रित हुए ,
ग्लोबल वोर्मींग " पर विचार विमर्श किये गये .
हम लोग समाचार पढ़ते हैं और गंभीर होते हैं फिर हमारी दिनचर्या में लगे रहते हैं .
जीवन चलता रहता है
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परंतु जो सबसे कमजोर वर्ग है, गरीबी की रेखा के नीचे जिनका अस्तित्त्व है
उन्हीं को कठिनाईयों का सामना कर कष्ट उठाना पड़ता है
ये एक कटु सत्य है . जिससे हम मुंह नहीं मोड़ सकते -
- कई संस्थाएं , मदद करतीं हैं - कई दयालु लोग , अपने अपने तरीके से , मदद करते हैं
कई लोग इतने ज्यादह , अपने उद्देश्यों को लेकर , गुस्सा हो जाते हैं कि, राजनेताओं की मंत्रणा हो रही हो वहां पहुँच कर , उग्र प्रदर्शन भी करते हैं
जैसे पर्यावरण [ enviornment ] के प्रति सजग कुछ व्यक्तियों ने , जापानी व्हेल मछली का शिकार कर रहे जहाजी बेड़े का समुद के मध्य में पीछा किया -- और उस जापानी जहाजी बेड़े ने , अपनी गतिविधि छिपाने की चेष्टा करते हुए, पलट वार करते हुए, समुद्र में , घूम कर , समुद्र की उताल तरंगों के मध्य में उन पर जवाबी हमला किया - और पर्यावरण के सजग रक्षकों की नाव को , जो तेजी से उनका पीछा कर रही थी , २ टुकड़ों में , काट कर चीर कर रख दिया --
शायद ये समाचार आपने भी देखा हो --
ऐसे ही संघर्ष , आधुनिक जीवन में दो खेमों में बंटे , विरोधी विचार धारा को , [कस कर थामे हुए , गुटों के बीच , हो रहे संघर्षों के समाचार ] , नित्य घटित होते हम , देखते हैं --
आम इंसान क्या करे ?
ये प्रश्न हमारे लिए, आज भी प्रश्न ही बना रहता है ---
 | This handout photo received and taken on January 6, 2010 from the Sea Shepherd Conservation Society shows the Sea Shepherd's ship Ady Gil (bottom), a wave-piercing boat formerly known as "Earthrace", after it was rammed by Japanese whaling vessel Shonan Maru No. 2 (background) in Antarctic waters. The space-age powerboat sent to harass Japanese whalers was rammed and sliced in two in its very first clash, activists said, dramatically escalating hostilities in icy Antarctic seas.
one more news -- click below to read it --- |
23 comments:
आप के आलेख सोचने पर विवश कर देते हैं। क्यों है दुनिया में इतनी आर्थिक, सामाजिक असमानताएँ। क्या इन्हें मिटाया नहीं जा सकता। क्या कोई विकल्प ही नहीं है। इस बार शीत के जो नजारे देखने को मिले हैं। उन से लगता है प्रकृति भी ग्लोबल वार्मिंग का उत्तर दे रही है। कहीं वार्मिंग के उपरांत कोई शीत युग तो भविष्य के गर्भ में नहीं है?
विचारणीय आलेख है आपका///ग्लोबल वोर्मींग...इसका खमिज़याना तो भुगतना ही होगा...सब मौसम अस्त व्यस्त-उलट पलट...कैसे झेलेगा इन्सान अपनी ही गलती की मार!!
सामयिक आलेख और प्रभावी चित्र! ठण्ड में कांपते हुए मैं भी यही सोच रहा था कि ग्लोबल वार्मिंग के पीछे पड़े हुए हमारे वैज्ञानिक अगर इस साल की विश्वव्यापी रिकोर्ड तोड़ ठण्ड के बारे में जान पाते तो लोगों की कठिनाई कुछ तो कम हो जाती.
और हाँ, कबूतर का फोटो बहुत अच्छा लगा.
हम तो अपनी सुनायें जी। कोहरा इतना घना है कि टेने छितराई हुयी हैं। हमारी प्रयारिटी उन्हे चलाने की बजाय उनकी सेफ्टी को ले कर ज्यादा है। दिन रात उनकी सलामती की फिक्र में निकल रहे हैं।
अगर ट्रेन चलाने में थ्रू-पुट को प्राडक्ट माना जाये तो वह आधा हो गया है।
पता नहीं कब तक चलेगी यह दशा!
मुझे तो पढ़कर ही सिहरन हो रही है;
यह तो सत्य है कि मौसम की मार निर्धन वर्ग को ही
सबसे अधिक झेलनी पड़ती है।
वाकई टीवी पर यह सब देख-देखकर हमारी तबियत खराब हो गई, सोचिये कितनी ठंड पड़ रही है, परंतु ग्लोबल वार्मिंग से सब हो रहा है ? यह शोचनीय विषय है।
मुंबई में भी अब सुबह और रात को ठंडी हवाएँ चल रही हैं, बिना पंखे के सोया जा सकता है।
यहाँ भी ठंड से जन -जीवन बेहाल है.
जीवंत तस्वीरों नें पोस्ट पर भी ठंड का एहसास करा दिया.
आज जरूरी आवश्यकताओं की पूर्ति न कर पाने की कमर तोड महंगाई के मध्य हर हाथ में एक नहीं कई कई मोबाइल .. मोबाइल की सस्ती होती जाती एक से एक स्कीमों से होती दिन रात लोगों की बातचीत .. कंप्यूटर और इंटरनेट का अधिक से अधिक प्रयोग .. इतने कम सुविधाभोगियों के कारण पूरी दुनिया के लोग कष्ट झेलने को विवश हैं !!
बाप रे ,इत्ती ठंड.गरीबों की तो आफत है.
मनुष्य ऐसे ही दुर्धर्ष कुदरती स्थितियों को परास्त कर धरती जेता बना है न ? आपकी यह पोस्ट तो हमारी जिजीविषा को ही जगाती है -सादर !
हमारे यहाँ तो ५ में ही जान निकली जा रही है..
तस्वीरे हमेशा की तरह शानदार और शब्दों ने तो उनमे जान डाल दी है..
बताइये भला हम तो इधर केवल सात डिग्री होने पर ही ठिठुरे जा रहे हैं । माइनस पचास का तो सोच ही नहीं सकते । बहुत ही सुंदर तरीके से आपने वहां का वर्णन किया है । शीत पर पंडित जी की कोई कविता भी हो जाती तो आनंद आ जाता ।
खुश किस्मत है कि अमेरिका में है और पहनने को उसे प्रयाप्त कपडे और ओढने को कम्बल तो मिली है !
सचमुच, इस बार ठंड सभी जगह जानलेवा साबित हो रही है।
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सुरक्षा के नाम पर इज्जत को तार-तार...
बारिश की वो सोंधी खुश्बू क्या कहती है ?
आलेख बहुत कुछ कहता है .यहाँ इतनी ठंड में ही जान निकल रही है ..वहां का हाल देख कर और अधिक लग रही है ..
कल ही यु के में रहने वाली दोस्त ओर न्यूयार्क वाले दोस्त का फोन आया था ....वाकई सूरज नाराज है ..
प्राकृति के साथ खिलवाड़ करने का नतीजा है.....यह ठंड....। लेकिन अंतत; भुगतना गरीबो को ही ज्यादा पड़ रहा है.......।
बहुत बढ़िया व सामयिक पोस्ट है।धन्यवाद।
ऐसी ठंड की तो कल्पना ही सिहरा देती है। बहुत बढ़िया फोटो हैं।
घुघूती बासूती
Lavanya Di
There is a mild snowfall here in Atlanta and OHO!! everything is closed! Enjoying staying home today.
Nice article and pic.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
LAVANYA JEE,
CHITRA SABHEE KAHANI KAH RAHE
HAIN.AAPKEE LEKHNEE KHOOB CHALEE HAI.GAREEB KO AMIR KEE KYA KUDRAT
KEE BHEE MAAR PADTEE HAI-- BADAA
AJEEB LAGTA HAI.GREEB INSAAN JHEL
RAHAA HAI YAH SAB KUCHH---
DOORIYAN ASMAANTAA KEE
DOOR HO SAKTEE NAHIN HAIN
AADMEE KE SAAMNE JAB
AADMEE JHUK KAR KHADAA HAI
ठण्ड देखकर सिहरन हो गई ऐसे में जो लोग खुले आसमान के नीचे रहते है और ठण्ड के साथ साथ कभी कभी बारिश भी हो जाती है तब अपने सुख बेमानी लगते है |
सबकी तरह मेरे भी मन में यही आ रहा है कि हम तो यहाँ ४ डिग्री में ही हलकान हैं... मन होता है कि बस छुट्टी लगा कर घर बैठ जायें।
सच कहा ऐसे में जब सुबह सुबह साढ़े छइ धोबी ने आवाज़ दी तो लगा कि मजबूरी क्या न कराये वरना इस कोहरे में कौन पानी में हाथ डालना चाहता है।
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