| "ॐ  पूर्णमदः  पूर्णमिदमपूर्णात  पूर्णमुदच्यते  ,
 पूर्णस्य  पूर्णमादाय
 
 पूर्णमेवावशिष्यते ." 
  विश्वव्यापी चक्रवात के मध्य में , समन्वय और सुख शांति की खोज ! 
२१ वीं सदी के आरम्भ का काल है और आम इंसान का जीवन आजकल तेज रफ़्तार से  भागा जा रहा है जहां नित नये अनुभव होते हैं और तकनीकी माध्यमों के जरिए या कहें  विश्वव्यापी वेब के जरिए  , अब पूरा विश्व मानों संचार - सूचना की हलचल से आंदोलित हुआ, करीब आ गया है और सूचना, समाचार और अभिगम ये सारे  आज  बड़ी  तेजी से  घूम रहे  हैं .. ये  एक आम अनुभव हो चला  है .  व्यक्ति , समाज , विश्व , समाचार, विचार -- > हर तरफ बस,  तेजी है ..  चक्रवात से इस उफान के मध्य , इस मंथन के  आवेग के मध्य में , व्यक्ति ,  अपनी तटस्थता साधे रखना चाहता है ... ये भी एक विरोधाभासी सत्य है !   भारतीय मन ,  सदा,  विरो धाभासों के मध्य  भी , द्वंद्व + उद्वेलन के रहते , समन्वय और सुख शांति की खोज में  संलग्न रहा है ... भारत का सनातन धर्म , हमारा सम्पूर्ण वांग्मय, हमारी विचारधारा ,  सदा ही अंतर्मुखी रही है ...  इसे कई विभूतियों ने बाह्य से आंतरिक  की ओर चलनेवाली  इस  यात्रा को  , आत्मा से परमात्मा की ओर आमुख , करवाती प्रक्रिया को ,  हमारी इस  मनोदशा को,  कई प्रबुध्ध, चैतन्य आन्दोलनों के स्वरों ने , सदियों  से सहेज रखा है और संवारा है .... | 
 
| हमारी इस अंतर्मुखी यात्रा को , मार्गदर्शन देते हुए गुरु परंपरा ने इस आत्मिक आन्दोलनों को  बढ़ावा दिया है . प्राचीन ऋषि  मुनि से लेकर,  भारत के संत महात्मा तथा  संत - कवि,   सभी ने  अपना अपना अभूतपूर्व योगदान इस अदभुत यात्रा में  दिया है और इस तथ्य का  स्वयं  इतिहास साक्षी  रहा है ... भारतीय स्वतंत्रता के साथ और उसके पूर्व भी भारतीय संत परम्परा के संवाहक ज्योति पुरुषों ने भारत से दूर यात्राएं की थीं जिनमे प्रमुख नाम याद आ रहा है स्वामी विवेकानंद जी का  !   स्वामी विवेकानन्द स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो नगर में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासम्मेलन में सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था । भारत का वेदान्त अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानंद की वक्तृता के कारण ही पँहुचा। वे श्री रामकृष्ण परमहंस जी के सुयोग्य शिष्य थे। उन्होंने अपने गुरू श्री रामकृष्ण परमहंस के नाम से रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। विवेकानन्द में, अपने मत से पूरे विश्व को हिला देने की शक्ति थी । उन्होंने दुनिया भर में सनातन धर्म का डंका बजाया।
जिनके शिकागो अन्तराष्ट्रीय धार्मिक सभा में दीये भाषण ने अमरीका के पढ़े लिखे व्यक्तियों को चौंका कर , भारतीय धर्म के प्रति देखने को बाध्य कर दिया था .  कुछ ऐसे भी विरले व्यक्ति  हुए हैं जो पले  बड़े विदेश में परंतु जैसे ही भारतीय भूमि पर  उनके कदम पड़े , भारतीय माटी के चमत्कार ने , उनको पूर्ण चैतन्य से जोड़ कर ऊर्ध्वगामी , उन्नति के पथ पर ,चलने का प्रसाद दिया   ऐसे ही अनुभव रहे श्रीअरविन्द के !    | 
 श्री अरविंदो का जन्म 15 अगस्त 1872 को कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता के.ड़ी जी नास्तिक थे और चाहते थे कि उनका बेटा पाश्च्यात संसकृति में पले बढ़े। इसलिए उन्होंने सात वर्ष की आयु में अरबिंदो को इंग्लैंड भेज दिया। अरबिंदो ने इंग्लैंड में सफलता पूर्वक अपनी शिक्षा पूरी की और अपने पिता के कहने पर वहाँ होने वाली भार्तीय सिविल सेवा की परीक्षा मे हिस्सा लिया लेकिन ये घुड़सवारी परीक्षण में असफल हो गए और 1893 में वापिस भारत आ गए। यहां आ कर उन्होंने बड़ौदा स्टेट सर्विस ज्वाइन कर ली, जहां ये अगले 15 वषों तक विभिन्न पदों पर कार्य करते रहे। इस दौरान इनमे भार्तीय संसकृति, राष्ट्रवाद और योग के प्रति प्यार व सम्मान का भाव जागृत हुआ। इन्होंने कुछ उपनिषदों का अनुवाद किया तथा गीता व दो अन्य महाकाव्य कालीदास और भवभूति पर भी कार्य किया। 1906 में ये कलकत्ता से बढ़ौदा आ गए और यहां नैशनल कॉलेज के प्रधानाचार्य बन गए। ये लगातार योग व ध्यान का अभ्यास करते रहे। 
इनको क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण एक साल की जेल हो गई। जेल के दौरान ही इन्होंने भगवान कृष्ण की व्यापक अदृश्य शक्ति को अनुभव किया। जेल से रिहा होने के बाद ये पांडेचेरी चले गए जहां इन्होंने अपने जीवन का ज़्यादातर समय विभिन्न तरह की साधना के विस्तार में लगाया। इन्होंने कई किताबे लिखीं। जीवन के अंतिम समय में मां ने इनकी बहुत सहायता की जो कि मूल रूप से फ्रांस की थीं। 5 दिसंबर 1950 को अरबिंदो इस संसार को छोड़ कर चले गए।
|  उनके बाद आये स्वामी  भक्तिवेदांत - (1896 – 1977) जिन्होंने श्री कृष्ण संकीर्तन की अलख अमरीका में जगाई और " इस्कोन " नामक बहुत बड़ी संस्था की नींव रखी जिसने बड़े ही भव्य मंदिर , दुनियाभर में बनाए हैं रजनीश भी अमरीका आये............. और उनके आश्रम में फैले व्याभिचार  जैसे नशीले पदार्थों का सेवन मुक्त यौन आचरण वगैरह बातों ने  उन्हें मीडीया की सुर्ख़ियों के केंद्र में रखा  - तद्पश्चात आये - योगानंद जी !  उन के महत्वपूर्ण कार्य ने ,  क्रिया - योग प्रणाली को अमरीकी प्रजा में स्थापित किया सन १८९३, ५ जनवरी गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में मुकुंद लाल घोष के नाम से जन्मे बालक ने आद्यात्मिक प्रगति के सोपान सरलता व तीव्र गति से पार किये १७ वर्ष की युवावस्था में श्री श्री युक्तेश्वर्गिरी के चरणों में शरण लेते ही , लहरी महाशय की प्रणाली के प्रखर आचार्य गुरु युक्तेश्वर जी की कृपा से महाअवतार  बाबाजी  जिन्होंने    " क्रिया योग पध्धति का सूत्रपात किया और जगत के अनेक व्यक्ति को मुक्ति मार्ग की ओर अग्रसर होने का प्रसाद दिया उन्ही यशस्वी परम्परा के श्री योगानंद संवाहक बने   जो आज भी असंख्य देसी एवं परदेसी शिष्यों द्वारा , एक व्यवस्थित संस्था के रूप में चल रही सफल संस्था  है --  महर्षि महेश योगीमहर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गाँव में हुआ था। [१] उनका मूल नाम महेश प्रसाद वर्मा था। उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक की उपाधि अर्जित की। उन्होने तेरह वर्ष तक ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के सानिध्य में शिक्षा ग्रहण की। महर्षि महेश योगी ने शंकराचार्य की मौजूदगी में रामेश्वरम में 10 हजार बाल ब्रह्मचारियों को आध्यात्मिक योग और साधना की दीक्षा दी। हिमालय क्षेत्र में दो वर्ष का मौन व्रत करने के बाद सन् 1955 में उन्होने टीएम तकनीक की शिक्षा देना आरम्भ की। सन् 1957 में उनने टीएम आन्दोलन आरम्भ किया और इसके लिये विश्व के विभिन्न भागों का भ्रमण किया। महर्षि महेश योगी द्वारा चलाया गए आंदोलन ने उस समय जोर पकड़ा जब रॉक ग्रुप 'बीटल्स' ने 1968 में उनके आश्रम का दौरा किया। इसके बाद गुरुजी का ट्रेसडेंशल मेडिटेशन पूरी पश्चिमी दुनिया में लोकप्रिय हुआ। [२] उनके शिष्यों में पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी से लेकर आध्यात्मिक गुरू दीपक चोपड़ा तक शामिल रहे।[स्वामी मुक्तानंद जी ,  यू एस . ए . माने उत्तर अमरीका  में सन  १९७० में आये और  सिद्ध  योग  धाम को प्रतिष्ठित किया  सन १९७६ तक , सिद्ध  योग की अस्सी = ८० शाखाएं  ध्यान व योग सीखातीं हुईं  जम गयीं थीं और ५ आश्रम भी बन गये थे जहां हजारों की संख्या में अमरीकी मेंबर बने थे -- सन १९७४ से   १९७६ तक सिध्ध योग ध्यान संस्था एक फाऊंडेशन का स्वरूप ले चुकी थी --  आज मुक्तानंद जी की पट्ट शिष्या  गुरुमायी   चिद्विलासनान्द  जो भारत में जन्मी महिला हैं  वही दक्षिण फाल्स बर्ग , न्यू योर्क  प्रांत में सिद्ध आश्रम का संचालन करतीं हैं  
  आज आपको  स्वामी मुक्तानंद जी के समीप ले चलते हुए,  हर्ष हो रहा है  शायद, आप ने इनका नाम , आज से पहले भी सुन रखा हो !  आपको  परम आदरणीय गुरु जी  के शिष्य बनाने का मेरा कोइ आशय नहीं है ... महज , इन के बारे में , कुछ पल अपने मन की पूर्व अवधारणाओं को एक ओर हटाकर ,  इन के जीवन पर द्रष्टि डालें यही मेरा , विनम्र अनुरोध है ...-  [ आजकल  कई धर्गुरुओं के प्रति अंध श्रध्धा व आश्रम में पाखण्ड के चर्चे भी मीडीया में अकसर चर्चा में रहते हैं ... हरेक व्यक्ति अपनी सोच समझ के अनुसार ही अपना जीवन जीता है  अत: किसी को  धर्मांध  , धर्मभीरु या पोंगापंथी बनाना ऐसा कोइ आशय इस लेख का  नहीं है ] तो  आईये  और मिलिए बाबा नित्यानंद जी से ..... वे , मुक्तानंद जी के गुरु थे ....अगर आप इस गुरु परम्परा के बारे में सुनना चाहें तो आगे पढीये .. चित्र में , हैं स्वामी  चिन्मयानन्द जी , जिनके अनेकों आश्रम तथा संस्थाएं आज जगत के हर देश में बसी हुई हैं ,वे  यहां भक्ति भाव से बड़े  बाबा , परमहंस नित्यानंद जी के दर्शन करते हुए ,बाबा के  चरण छूते हुए दीखलाई दे रहे हैं '. महायोगी नित्यानंद जी पर अधिक जानकारी इस लिंक पर प्राप्त करीए   परम आदरणीय गुरु  श्री   नित्यानंद  जी ने  गणेशपुरी  आश्रम में   अगस्त  ८ , १९६१  के दिन , महासमाधि ली थी और उनका सन्देश है कि ,  निर्मल  भक्ति ही  ईश्वर प्राप्ति का सबसे सरल रास्ता है  ........चित्र में  पवित्र  शिव  लिंग  भीमेश्वर मंदिर  , गणेशपुरी आश्रम मुम्बई के समीप 
 बाबा नित्यानंद जी की वाणी : 
 " ना  कस्ते विद्यते  देवो  ना  पाषाणे ना  कर्दमे   भावेसू  वर्तते  देवास -तस्माद -भावं  ना  संत्यजेत  "   ईश्वर नाही पत्थरों में हैं ना ही मिट्टी में ..ना काष्ट में .. ईश्वर तो भक्त के  भक्ति भाव में बसते हैं   इस कारण , भक्ति को अपनाओ अपने ईश्वर के प्रति  श्रध्धा और भक्ति ,  विश्वास को कभी त्यागो नहीं  प्रेम, भक्ति और दृढ आस्था अपने ईष्ट के प्रति तथा गुरु के लिए ही अनेक आद्यात्मिक जागृति के सोपान पार करवा कर हर इंसान में बसी आत्म शक्ति को  चैतन्य से परब्रह्म की ओर अग्रसर करने में सहायक होती है .. भक्ति और भाव , श्रध्धा और विश्वास ही गूढ़ और अद्रश्य  परमतत्त्व को उजागर करती है  और तब  ईश्वर स्वयं भक्त के समीप आ पहुँचते हैं और मुक्ति का मार्ग बस, उसी के आगेहै  परम आदरणीय महायोगी नित्यानंद जी के एक शिष्य मुक्तानंद जी  जग प्रसिध्ध हुए हैं  और वे अपने परम श्रध्धेय गुरु भगवान् नित्यानंद जी के लिए  कहा करते थे कि,  " गुरुदेव, जन्म  सिद्ध विभूति  हैं  ...."
 | ![[ photo ]](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_tX1huESYVo1vipkm-efLqR8noFUXmVvsi43s46SeOIutFmB5VWGWHwXEewT7P1_MEp5UFYvDLtF_dRGXsfsbCVBmLaCc97BSypxrKYmA1jm9Hv=s0-d) | 
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 मेरा परम सौभाग्य रहा है कि मैंने मुक्तानंद जी के दर्शन कीये हैं - स्वामी मुक्तानंद जी के अमरीका प्रवास के बाद , बंबई हवाई स्थल पर स्वागत हुआ था अपार वदेशी शिष्यों तथा कई भारतीय भक्तों ने बाबा की वापसी को उत्सव की तरह मनाया था -बाबा स्वयं , एक ऊंचे आसन से उतरकर , समुदाय में खड़े लोगों के बीच विचरण करने लगे थे - मेरे नजदीक से जब् वे गुजरे तब उन्होंने हलके से माथे पर हाथ रखते हुए कहा, ' माँ, आ गया तुम ! " और आगे बढ़ गये थे ..पर मेरा अपना अनुभव है कि उस सहज स्पर्श के बाद ,कई पलों तक मेरा सर चकराने लगा था और मैं एक स्तम्भ को पकड़ कर ही संतुलन बनाए , वहां स्थिर  खडी हो पायी थी . . ना मैं   अपने आपको कोइ साधिका समझती हूँ ना मैं किसी योग - प्रणाली से सीधा सम्बन्ध रखती हूँ  परंतु भारतीय योग परम्परा तथा नाथ व सिध्ध प्रथा के सभी गुरु व उनसे सम्बंधित विभूतियाँ, भारत के  अन्य सभी संत - कवि जैसे ज्ञानेश्वर महाराज, नरसिंह मेहता, तुकाराम, नामदेव, संत मीरां ,सूरदास, नानक देव, कबीर , बाबा तुलसीदास , रैदास ,  रमण महर्षि परमहंस रामकृष्ण तथा अरविंदो से लेकर प्राचीन आदिकवि वाल्मीकि व शुकदेव व्यास जैसे सभी के प्रति, मेरे ह्रदय में अपार श्रध्धा व सन्मान की भावना है ....  मेरी श्रध्धा और मेरा विश्वास ईश्वर के प्रति अडीग व अचल है और इस सरल  भक्ति भाव के बीज मेरे पिता स्व. पण्डित नरेद्र शर्मा के समस्त जीवन को देखने से , उनकी बातों को यथामति समझने के प्रयासों से तथा उनके बतलाये हुए रास्तों पर यथासंभव चलने के बाद , परिमार्जित व प्रबल होती गयी मेरी भावना के कारण हीआज मैं जिस मनोभूमि में हूँ, वहां ईश्वर कृपा ईश्वर भक्ति मुझे हर सुगम या कठिन परिस्थिती के मध्य भी संबल प्रदान करती है    गुरुमायी चिद्विलासनान्द
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| | अन्य गुरु जैसे मोरारी बापू स्वामी श्री रामदेव जी | | श्री श्री रविशंकर जी दलाई लामा तथा दीपक चोपरा भी सनातन धर्म के आख्याता व गुरु के रूप में पूजनीय व प्रसिध्धहैं 
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12 comments:
बहुत अच्छा लगा यह चिंतन ।
सुन्दर लेखन, जो हमारे लिए दिगन्तर का कार्य करेगा! बायोग्राफ़ी ऑफ़ योगी पढ़ने की कोशिश कर रहा हूं और आनन्दित भी हो रहा हूं
वाह, यह तो एक सन्दर्भ संकलन बन गया।
दीदी
आपके द्वारा दिया गया अध्यात्मिक गुरु ,महान विभूतियों का परिचय संग्रहणीय है |
बहुत बहुत आभार |
आपके आलेख को पढ़कर उसमे कुछ जोड़ना सूरज को चिराग दिखने जैसा ही है |
इसमें मै दक्षिण की माँ अम्रतानंद मयी का उल्लेख करना चाहूंगी |
माँ amratanandmayi जो अम्मा के नाम से सारे विश्व में प्रसिद्ध है ,और सबको गले लगाती hai
जिनका लिंक है| http://www.amritapuri.org/
भारत की इन विभूतियों को प्रणाम करता हूँ!
जबरदस्त और शानदार संकलित करने योग्य जानकारी. आपका आभार.
धर्मगुरु इतिहास प्रस्तुतिकरण बड़ा ही सम्पूर्ण रहा।
धर्म और दर्शन का अनूठा संकलन।
..आभार।
Great collection.
-Harshad Jangla
Atlanta USA
इन विभूतियों को नमन करते हुए मैं आपको भी नमन करती हूँ कि आपने ,जीवन को संपूर्णता की ओर ले जाने की दिशा में, एक और खिड़की खोल दी .
please visit www.the-comforter.org
for Spirtual Evolution & Holistic Healing
Bahut Sundar lekh...aabhar...
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