Saturday, January 1, 2011

काल तस्मै नमः

"काल तस्मै नमः "
अर्जुन ने ईश्वर का विश्वरुप दर्शन, कुरुक्षेत्र के युध्ध मैदान मेँ किया
जो ऐसे असंख्य अणु विस्फोटोँ से भी ज्यादा कई गुणा प्रखर था ऐसी मान्यता है
तपती हुई धरती से, ठहरे हुए सहरा से, मुश्किल हर लम्हे से,
इन्सा ही बनाता है हर राह नई नई
जिन पर चलकर, आई हैँ, पीढीयाँ, इतिहास नया रचने,
सेतु समय पर रखने इस २१ वीँ सदी मेँ !
जब् हम समय की धारा मे बहते हुए, आगे बढ़ रहे हैं तब हमे इतिहास का अवलोकन अवश्य कर लेना चाहीये और विगत सदीयों से कुछ सीख लेते हुए आगामी सदी मे , मानवता से हुई भूलों को हम पुनः न दुहरायें उस पर ध्यान केन्द्रीत करना चाहीये . नव वर्ष आ अगया ! सन २०११ ! तो यही कहेंगें , " स्वागत नव - वर्ष है अपार हर्ष है अपार हर्ष ! " ये नया साल २०११ , आप सब के लिए भरपूर खुशहाली लेकर आये ये कामना है आईये इस नव वर्ष के द्वार पर हम ऊर्जावान बनें ! प्राणवान बने ये प्रण करें .
उर्जा क्या है ? तो हम यही , कहेंगें, ऊर्जा , चैतन्य शक्ति का वह स्वरूप्प है जिसे हम अग्नि मे तथा प्रकृति के पञ्च महाभूत मे देख सकते हैं ...
हम इंसान भी इसी चेतना या ऊर्जा को धारण किये हुए रहते हैं जब् तक हम प्राणवान रहते हैं . इस ऊर्जा तत्त्व का दुर उपयोग मानव इतिहास काल मे हमने अणु विस्फोट मेँ देखा है . जब् एक धमाका हुआ था ! आग को गोला अपनी चपेट मे जो भी मार्ग मे आया उसे लील गया फिर आसमान मे छा गया और ऐसा बिखरा के संस्कृति और सभ्यता के स्थापत्य को खंडहर मे बदल कर , अपना विनाशकारी स्वरूप दीखला कर सब कुछ भस्म करने पर ही शांत हुआ ! सर्व विनाश के पश्चात ही वह खामोश हुआ ! भूकम्पोँ से भी ज्यादा भीषण था यह ऊर्जा से उपजा आतंक ! उसके बाद आकाश पर उठता जहरीला गुबार कुछ यूं फैला कि जिसमे अनेक इंसानों को मौत से जीते जी , साक्षात्कार हुआ ! अणुबम फटने के बाद , आकाश मे छा गया एक महाज्वाल बनकर , जिसका आकार , मशरुम के आकार जैसा था !
भयानक अणु बम और उसके विस्फोट के बाद , जापान के २ शहर , नागासाकी और हिरोशीमा शहर की हस्ती नहीँ रही ! चूंकि , इन २ शहरों पर ये अणुबम फेंका गया था जिस से हरेक रुह की मौत से भेँट हो गई और उस समय मानव सभ्यता की नीँव हील गई थी और इस अणुबम का आविष्कार अमरीकी सत्ता ने जर्मनी के प्रमुख हिटलर को विश्व युध्ध मे पराजित करने के हेतु से किया था .हमला जापान पर हुआ था क्यों के जापान भी जर्मनी के साथ मिलकर विश्व युध्ध मे अमरीका के खिलाफ उतर पडा था

" हवाई " नाम के टापू पर , अमरीका का अधिकार था , हवाई टापू के ' पर्ल हार्बर ' पर, जापानी सता ने अचानक हमला किया - हवाई पर आक्रमण हुआ हवाई जहाज़ों से बमबारी आरम्भ की गयी तब अमरीकी सता को युध्ध मे मजबूरन दाखिल होना पडा था .

अमरीका उस वक्त तक , विश्व युध्ध मे शामिल न होकर, तटस्थ रहा था - यूरोप मे विश्व युध्ध जोरों से जारी था . जर्मनी के सतासीन राष्ट्र प्रमुख हिटलर के निर्देश मे जर्मनी , हिटलर की नाजी सत्ता के नेतृत्त्व मे , एक के बाद एक राज्यों को परास्त कर , हथिया रहा था .ख़ास तौर से, यहूदी प्रजा पर तो जुल्मों की पराकाष्टा हो रही थी . युध्ध बंदीयों को गेस चेंबर मे नग्न कर के ज़िंदा जला दिया जा रहा था.

इन बंदीगृहों को कंसंट्रेशन केम्प कहते हैं जो नारकीय यातना के केंद्र थे. पोलैंड , आस्ट्रिया, फ्रांस परास्त हो चुके थे - इंग्लैंड , रशिया , जर्मनी से टक्कर लेने की नाकाम कोशिशें कर रहे थे. भारत पराधीन था इंग्लैण्ड के अधीनस्थ भारत मे भी विषम परिस्थितीयाँ फ़ैल रहीं थीं. ये ऊर्जा का तांडव था . आग, हिंसा मृत्यु जहां महाकाली के मर्दन व अट्टहास मे , चहुँओर विनाश लीला मे निमग्न थीं . अमरीका ने अपने बचाव मे , युध्ध मे मर्जी न होते हुए भी , दाखिल होकर , योजनाबध्ध तरीके से , इस विश्व्युध्ध मे भाग लिया और जापान को रोकने के लिए विश्व मे सब से पहली बार अणुबम का उपयोग व प्रयोग किया था. जापान ने हार कबूल करते हुए आत्म समर्पण किया और जर्मनी को भी हार माननी पडी थी. ये था ऊर्जा से जुडा अमरीकी आविष्कार जिसने विश्व की दशा और दिशा बदल दी.

जब प्रकाश या ऊर्जा , नियँत्रित साधनोँ मेँ दीखलाई पडती है जैसे कि दीपक मेँ , तब यही उर्जा व प्रकाश सुख समृध्धि और खुशहाली के सँदेश लाता है.

अर्जुन ने ईश्वर का विश्वरुप दर्शन, कुरुक्षेत्र के युध्ध मैदान मेँ किया जो ऐसे असम्ख्य अणु विस्फोटोँ से भी ज्यादा कई गुणा प्रखर था ऐसी मान्यता है

अमेरीकी पाती के अंतर्गत २०१० को विदा देते हुए , अमरीकी ऊर्जा पर केन्द्रीत २ मुख्य आविष्कारों पर आपका ध्यान केन्द्रीत करना चाहूंगी --
१ है अणु विस्फोट और २ रे के अंतर्गत है , अंतरीक्ष शोध व यात्रा का आविष्कार है
दूसरा आविष्कार अंतरीक्ष या व्योम सम्बंधित :

सौर ऊर्जा से ही मानव जीवन संभव है जो व्योम से प्राप्त होती है। अकटूबर 4 , सन 1957 को सोविएत संघ ने सफलता पूर्वक स्पुतनिक-1 व्योम में लौंच किया ।

जिसका आकार बहुत लघु था। यह विश्व का प्रथम कृत्रिम सेटेलाईट था। यह सागर किनारे माने बीच पर खेलनेवाली बड़ी फूट बोल के जितना ही था । इस बोल का अनुपात 58 सेंटीमीटर या 22 .8 इंच का घेरा लिए हुए था जिसका वज़न महज़ 83.6 किलोग्राम था या 18३.9 पौंड़ था , जिसे पृथ्वी का चक्कर काटने में 98 मिनट लगे थे । इस लौंच के बाद ऐतिहासिक, पोलिटिकल, सैनिक, तकनीकी और वैज्ञानिक आविष्कारों का शुभारम्भ हुआ । स्पुतनिक के आगमन ने 2 महादेशों के बीच विश्व पटल पर अपनी सत्ता व प्रभुता के प्रदर्शन की होड़ भी शुरू करवा दी

उस समय की 2 महासत्ताएँ , सोवियत संघ तथा उत्तर अमरीका ने इस रेस में, अपना वर्चस्व ज़माने की बाज़ी लगा दी और राष्ट्र धन को अंतरिक्ष विज्ञान तथा तकनीकी आविष्कारों के नये क्षेत्र में लगाया और पानी की तरह पैसा बहाना भी शुरू किया था ।

नासा संस्थान इसी प्रतिस्पर्धा से उत्पन्न हुई और शनैः-शनैः विकसित होती गयी और यह प्रतिस्पर्धा तब तलक नहीं थमी कि जब तक अमरीकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्म स्ट्रोंग ने चंद्रमा की धरती पर पहला क़दम रख नहीं दिया । समस्त विश्व को यह ज्ञात हो गया कि अंतरिक्ष-वर्चस्व की इस प्रतिस्पर्धा में सोवियत संघ हार चुका था और सदा-सदा के लिए अमरीका की विजय स्थापित हो चुकी थी।

रात और चाँद : देखिये इस लिंक में, चंद्रमा तक की उड़ान की तैयारी के दृश्य हैं और साथ राष्ट्रपति जोन केनेडी का स्वर भी है

व्योम से, हमारी पृथ्वी एक नील ग्रह सी सुन्दर दीखलाई पड़ती है जहाँ रहनेवाले हम सारे मनुष्य

एक साथ जीयेंगें और एक साथ मरेंगें ...

http://history.nasa.gov/ap11-35ann/apolloMusicComp.MOV

एक पग उठा था मेरा परंतु, मानवता की थी एक लम्बी छलाँग !
रात थी, चाँद था, और सन्नाटे में, श्वेत सरंक्षक वस्त्र में
काँच की खिड़की से, पृथ्वी को देखता, "मैं!
(अंतरिक्ष यात्री : श्री नील आर्मस्ट्रोंग के उदगार काव्य रूप में )

अमरीका के भूत पूर्व राष्ट्रपति जोन ऍफ़. केनेडी शायद अमरीकी राजनीति के सबसे सफल तथा प्रजा के सर्व प्रिय नेता रहे हैं तथा 60 के दशक में वे विश्वपटल पर एक प्रभावशाली खिलाड़ी के रूप में पहचाने जाते हैं । उन्हीं के नाम पर अंतरिक्ष संस्थान फ्लोरिडा प्रांत में नासा स्पेस सेंटर के नाम से सन 1958 में स्थापित किया गया था नासा एक अन्त्रीक्स विज्ञान व तकनीकी संस्थान है । जिसका प्रमुख ध्येय अंतरिक्ष विज्ञान तथा अंतरिक्ष में शोध करना तथा पृथ्वी ग्रह को भविष्य में सुरक्षित किस तरह रखना मानव जाति, मानव सभ्यता को आकाश तथा व्योम में बहुत दूर तक ले चलना यही रहा है । नासा संस्थान में कई तकनीकी आविष्कार किये गये हैं जिनका उपयोग आम इंसानों की ज़िंदगी में भी व्याप्त हुआ है । अंतरिक्ष यात्री को तैयार करना, अंतरिक्ष की अधिकाधिक जानकारी एकत्र करना गृह नक्षत्र तारों से सम्बंधित हमारे सौर मंड़ल में स्थित हर ग्रह का सटीक ज्ञान दर्ज करने से लेकर भावी-पीढी को अंतरिक्ष यात्रा तथा व्योम के प्रति आकर्षित करना ये भी नासा का कार्य क्षेत्र है ।

नासा में निहित 4 अक्षर हैं "एन ए एस ए" इनका बृहत अर्थ है =

नेशनल एरोनॉटिक्स और स्पेस ऐड्मिनीस्त्ट्रेशन (NASA)।

कुछ सचित्र झलकियाँ देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

http://history.nasa.gov/ap11-35ann/kippsphotos/apollo.html

यह चित्र देखें : डिस्कवरी अंतरिक्ष वायु यान को एसेम्बली प्लांट में एक एक कल पूर्जा लगाकर जोड़-जोड़ कर खड़ा किया जा रहा है चित्र को आप बड़ा कर के देख सकते हैं और तब नीचे खड़े इंसानों को देखकर अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ये वास्तव में, कितना विशाल यान है -

चलते चलते हमारी यही दुआ है "एक विश्व, एक स्वप्न" साकार हो !

मा धरती तुम्हें शत शत प्रणाम !

USA

lavnis@gmail.com

ये चित्र डेटन शहर के उड्डयन विज्ञान व अनुसंधान के म्युझीयम संस्थान के हैं

DSC01539.JPGगर्म हवा से भरा विशाल गुब्बारा जिससे मनुष्य के उड़ान का शुभारम्भ हुआ
DSC01542.JPGवैज्ञानिक जिसने हवाई यात्रा पर खोज की थी
DSC01570.JPGपुराने ढंग के चमड़े से बने कपडे हवाई जहाज उड़ानेवाले जो पायलट पहनते थे
DSC01582.JPGICARUS -GREEK GOD of FLIGHT in Lobby
" इकारस " ग्रीक मिथकों के देवता की मूर्ति

9 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

मशरूमी ध्वंस।

डॉ. मनोज मिश्र said...

जब प्रकाश या ऊर्जा , नियँत्रित साधनोँ मेँ दीखलाई पडती है जैसे कि दीपक मेँ , तब यही उर्जा व प्रकाश सुख समृध्धि और खुशहाली के सँदेश लाता है.

अर्जुन ने ईश्वर का विश्वरुप दर्शन, कुरुक्षेत्र के युध्ध मैदान मेँ किया जो ऐसे असम्ख्य अणु विस्फोटोँ से भी ज्यादा कई गुणा प्रखर था ऐसी मान्यता है.

और

चलते चलते हमारी यही दुआ है "एक विश्व, एक स्वप्न" साकार हो

मा धरती तुम्हें शत शत प्रणाम !


बहुत ही सुंदर पोस्ट --अध्यात्म भी-विज्ञानं भी .

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

लावण्या जी, आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

आपकी पोस्ट में अनेक विचारणीय मुद्दे हैं। समय की मांग है कि उनपर गंभीर चिंतन किया जाय।

अजित गुप्ता का कोना said...

विचारणीय पोस्‍ट। वैज्ञानिक ऊर्जा चराचर जगत के संरक्षण हित काम आए यही कामना है।

अजित वडनेरकर said...

नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं

P.N. Subramanian said...

ल हम थोरियम के अपन भण्डार के बारे पढ़ ही रहे थे. इन्सा ही बनाता है हर राह नई नई. सुन्दर एवं सार्थक पोस्ट. नव वर्ष आपको और आपके परिवार के लिए मंगलमय हो.

वाणी गीत said...

उर्जा नियंत्रित होती है तो विकास के साधन के रूप में कार्य करती है ...बस यही उर्जा संतुलित और सही हाथों में नियंत्रित रहे ...वर्ना विध्वंस कहाँ दूर है ..

दर्शन और विज्ञानं दोनों का अच्छा सम्मिश्रण...
आभार !

नव वर्ष की ढेरों शुभकामनायें !

डॉ .अनुराग said...

विचारणीय पोस्ट !!!!!!

समयचक्र said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति सुंदर पोस्ट प्रस्तुति ...आभार