Tuesday, June 19, 2012

महाराणा मेवाड़ रतनसिंहजी और महारानी पद्मिनी


Rani Padmini
-------------------------------------------------------------
मारे भारत देश के इतिहास में राजस्थान प्रांत शूरवीरों की भूमि कहलाती है और इस पवित्र भूमि का भारत देश में अत्यंत गौरवमय और उज्ज्वल स्थान है। लौह तलवारों के टकराने की झंकार और केसरिया बाना पहने वीर राजपूत जवानों के ' हर हर महादेव ' की पुकार सुन ठन्डे से ठंडा लहू भी गर्म हो उठे ऐसा ओजपूर्ण स्थान है राजस्थान !
राजस्थान की गाथाओं में सती स्त्रियों के जौहर की अग्नि की कथाएँ भी हैं और कलात्मक जीवन जीते साधारण लोगों की जीवनी भी है इन कथाओं से कला , भक्ति एवं ईश्वर साधना के मधुर गीत पुनह पुनह गुंजारित होते रहें हैंऐसी पावन भूमि को हमारे शत शत नमन हैं !
आन और शान की मर्यादा पर अपने सर्वस्व को हँसते - हँसते होम देनेवाले बहादुर राजपूतों ने धार्मिक स्वातंत्र्य को सहजता से अपनाया और सनातन धर्म की सदैव रक्षा करने में वे कृत संकल्प रहे।
सन १३०० का समय : राजपूताना क्षेत्र के चितौड़ गढ़ में आज महाराणा रत्नसिंह के विवाह का मंडप सज रहा है।
' बधावा ' के गीत वातावरण में गूँज रहे हैं। महाराज रतनसिंह अपनी पद्मिनी राणी के संग चितौड़ गढ़ में वर वधु रूप में प्रवेश कर रहे हैं दरबार की एक सुन्दरी का सुरीला स्वर बह निकला ,
' म्हारां कुंवर ज कुल का दिवला , कुल वधु म्हारी दिवला री लोय '
स्त्री कहती है, ' मेरे कुंवर कुल के दीपक समान हैं और हमारे कुल वधु उस दीये की लौ है। वही है जो दीपक को सुन्दरता और प्रकाश प्रदान करती है। दाम्पत्य जीवन का यह रूप जो लोक गीत से उभरता है वह विशाल पट समेटे मनोमुग्धकारी छवि उपस्थित करता है।
रात्रि के तीसरे पहर में रतनसिंह अपनी नव विवाहित दुल्हन महारानी पद्मिनी को एकटक देखते हुए सोच रहे हैं
' यह देवी मेरे महल की शोभा में अभिवृध्धि करेंगीं । ' राज दरबारी गायक के गीत का स्वर उभरा
' राधे फूलन मथुरा छाई , कितने फूल सरग सों उतरें , कितने मालिनी लाईं !
उडि - उडि फूल पड़ें यमुना में, राधे बीनन आई , राधे फूलन मथुरा छाई ! '
रानी पद्मिनी ने अपने हाथ संगमरमर के फव्वारे के संग लगे जल भरे होज में डूबा कर तैरती हुई गुलाब की पंखुड़ीयों को उठाकर अपने उदीप्त गालों से लगा लिया और ठंडक लेने लगीं। गायक का स्वर आगे गाने लगा ,
' चुनि - चुनि कलियाँ मैं हार बनाये ,
श्याम के ऊपर पहराई ,
राधे फूलन मथुरा छाई '
पद्मिनी ने अपने पति राणाजी के गले में गुलाबों से गूंथा हार पहनाया ..गीत आगे बढ़ा
' चन्द्रसखी भजु, बालकृष्ण छिब , हरी चरणन के चित लाई , फूलन मथुरा छाई ..'
राणा जी के राजमहल के कक्ष में रखे माखनचोर बालकृष्ण की छवि देख शुभ सन्देश की प्रतीति होते ही पद्मिनी लजा कर अपना मुख अपनी नर्म हथेलियों में छिपा लेतीं हैं ।
कौन जानता था कि ऐसे सुरम्य वातावरण में दाम्पत्य सुख भोगनेवाले राणा तथा उनकी अनिन्ध्य सुंदर रानी पद्मिनी , शीघ्र काल मुख के ग्रास बनेंगें ! प्रथम मिलन में महाराणा रतनसिंह ने पद्मिनी की छवि देखी तो उन्हें पुरानों में वर्णित अप्सराएं तुच्छ जान पडीं थीं और उन के मुख से उदगार निकले
' धन्य मेवाड़ जो पद्मिनी से नारी रत्न को पा कर आज शुभ लक्षण हुआ ! '
पद्मिनी और रतनसिंह आदर्श पति - पत्नी सिध्ध हुए। वे एक साधारण पति पत्नी होते तब तो सारा जीवन यूं ही अमनो चैन से गुजार देते पर भारत वर्ष पर उस समय काले बादल उमड़ रहे थे।
जलालुद्दीन खिलजी के भतीजे , अल्लाउद्दीन खिलजीने आंधी की तरह उमड़ कर तबाही फैलायी थी और उत्तर भारत को अपने कब्जेमें करना शुरू कर दिया था। पहले उसने भीलसा राज्य जीताफिर देवगिरी के राजा रामचंद्र को हराया। उसके चाचाजान जब बधाई देने पहुंचे तब उन्हें धोखे से मरवा डाला और स्वयम खिलजी नई दिल्ली की गद्दी पे बैठ गया। अब उसकी नजरें गुजरात की ओर उठीं।
गुजरात का राजा कर्ण अपनी पुत्री देवल देवी के साथ भाग निकला परंतु रानी कमला देवी पकड़ी गईं। खिलजी बादशाह के संग उनका निकाह करवाया गया ! रणथम्भौर की लड़ाई खिलजी ने जीती और हमीर देव राणा भी हारे। इसके बाद अब मेवाड़ पर खिलजी की नजरें पडीं।
उसी अरसे में राघव चेतन नामका राज चारण जो मैली तांत्रिक विधाएं आजमाता था और संगीत का ज्ञाता भी था उसने बदसलूकी की तब रावल रतनसिंह जी ने उसका मुख काला कर गधे पर बिठला कर देश निकाला दिया। क्रोधित और अपमानित राघव चेतन दिल्ली जा पहुंचा और मेवाड़ की सुन्दरी रानी पद्मिनी का बढ़ चढ़ कर खिलजी के दरबार में उसने खूब बखान किया यह उक्ति दियों से प्रसिध्ध है कि,
' ताल तो भूपाल ताल, बाकि सब तलैया हैं, रानी तो पद्मावती , बाकि सब ग्धइयां हैं '
अब खिलजी पर मक्कार और कपटी कुटिल राघव चेतन की बातों का ऐसा असर हुआ कि वह दल बल समेत चितौड़ गढ़ की ओर कूच कर चल दिया।
खिलजी ने राणा को प्रस्ताव भेजा कि ' मैं आपकी रानी की सुन्दरता देख़ना चाहता हूँ '
रतनसिंह आग बबूला हो उठे परंतु पद्मिनी ने उन्हें शांत कर समझाया कि,
' हे प्राणनाथ एक मेरे खातिर आप हजारों निर्दोष राजपूत जवानों का लहू क्यों गिरवाना चाहते हो ?
क्यों ना हम कोयी युक्ति करें ? '
खिलजी को भोज का निमंत्रण दिया गया। वह आया। पद्मिनी एक पानी की नहर के सामने खडी हुईं झरोखे से लगे दर्पण में पद्मिनी की छवि झलकने लगी जिसे देखते ही खिलजी में काम वासना भडक उठी और उसने अपने डेरे में जाते हुए राणा को छल द्वारा गिरफ्तार कर लिया। साथ में शाही फरमान भेजा गया कि
' पद्मनी को शाही हुक्म है है कि शाही हरम में दाखिल होने के लिए फौरन तैयार हो ! '
पद्मिनी ने अपने शरीर को अपवित्र मानकर पवित्र जल से स्नान किया और हवन करने बैठ गईं थीं। पद्मिनी ने अपनी छवि जब दर्पण में निहारी तब उन्हें अपनी स्वयम की सुन्दरता से धृणा हो आयीउन्होंने क्रोधित होकर वह दर्पण तोड़ दिया। सोचने लगीं,
' हे देवी माँ , काहे को ये रूप दिया ? यह तो मेरे जीवन का ग्रहण है ! '
राणी पद्मिनी ने खिलजी को संदेशा भेजा कहा
' खिलजी मैं आऊँगी अपनी दासियों के संग , तुम राणा को छोड़ दो ! '
पद्मिनी बड़ी बहादुर थीं। अपने साथ कयी पालकियां लेकर वे दुर्ग से नीचे छावनी तक आ पहुँचीं। चितौडगढ़ से उतरीं ७०० पालकियों में चुनिन्दा , बहादुर राजपूत सवार थे। खिलजी के डेरे पर भयानक युध्ध हुआ। युध्ध की धमा चौकड़ी और रात्रि के समय का लाभ लेकर पद्मिनी और राणा जी अपने दुर्ग में सुरक्षित पहुंचा दिए गये। जब अल्लाउद्दीन ने देखा तो हाथों से तोते उड़ गये और तब तो वह मारे गुस्से के ऐंठ गया !
भयानक युध्ध में १६ - १७ साल के बहादुर चाचा ' गोरां' और भतीजा बादल ने अदभुत पराक्रम दिखलाया। गोरां वीरगति को प्राप्त हुआ और बादल ने अपने महाराज को सुरक्षित गढ़ तक पहुंचाया। इन वीर राजपूत गोरां -बादल की वीरगाथा, एकलिंग जी मंदिर में आज भी देखी जा सकती है
इस घटना से नाराज़ हुए खिलजी ने अपने मंसूबों को और भी अधिक दृढ कर दिया और अब तो वह चितौड़ गढ़ को घेर कर परास्त करने के बाद ही रूकेगा ये बात स्पष्ट हो गयी
तब वीर राजपूत नर केसरिया बाना और पीले फूलों की जयमाला पहन कर वीरगति प्राप्त करने को कटिबद्ध हो गये। महारानी पद्मिनी ने अपने रक्त से महाराज रतनसिंह के भाल पर विजय तिलक लगाया
राणा और राजपूत सेना ' हर - हर महादेव ' के तुमुल नाद के साथ दुर्ग द्वार से आक्रमण करते हुए नर शार्दुलों की भांति निकल पड़ी
भाट - चारण गाते हुए कहते हैं, ' जब सर कट गये तब उन नर वीरों के धड लड़ते रहे ऐसा खून में जुवाल था। '
वहां भीतर राजमहल में पद्मिनी ने अंतिम बार अपनी कुलदेवी को प्रणाम किया महल की स्त्रियों को साथ लिया और चितौड़ गढ़ की संकरी गलियों में अग्नि प्रज्वलित करवा दी
' राणी सती री जै ' म्हारा महाराणा री जै ! अम्बे मात री जै ! '
गगनभेदी पुकार राजपूत रमणियों के कंठ से गूँज उठीं। एक एक कर वीर राजपूत सुहागिनें अग्नि में हँसते हँसते कूद गईं ! आग जलती रही और जौहर पूर्ण हुआ। धू धू करती अग्नि की लपटों में फूल सी कोमल सन्नारियां स्वाहा हो गईं। सर्वनाश छा गया
Ali Gurshap Khan
Sultan Alauddin Khilji
जब अल्लाउद्दीन खिलजी ने देखा कि चिता की लपटें अनगिनत शव तथा चिता से फ़ैली राख , भस्म हुई स्त्रियों के बलिदान की कथा कह रही उसे मानों चिढा रही थी और कह रही थी
' जीत गये ना तुम ? क्या पाया हे क्रूरात्मा ? ' तब दुर्गन्ध से व्यथित होकर वह लौट पड़ा !
परंतु चितौडगढ़ में जो भी जीवित रहा उन्हें मौत के घाट उतारने का फरमान भी देकर ही निकला
अल्लाउद्दीन खिलजी का पूरा नाम अली गुरशपबम खान था उसने सन १२९६ से १३१६ तक देहली से राज किया आज भी देहली शहर में क़ुतुब कोम्प्लेक्स महरौली में मदरसा और अल्लाउद्दीन की कब्र बतौर सुलतान की निशानी के मानिंद खडीं हैं। इतिहास के पात्र अपनी गाथा लिए मौन खड़े रहते हैं और आधुनिक युग में ज़िंदा इंसान उनके बारे में पढ़ कर इतिहास को पुनह दुहराते रहते हैंइसी तरह राणी पद्मिनी के अप्रतिम सौन्दर्य की तथा उनके जौहर की याद को सीने में छिपाए उनका जल महल आज भी राजस्थान की भूमि पर शौर्य और वीरता का पर्याय बना अडीग खड़ा है महाराणी पद्मिनी का जल महल :
File:Rani Padmini's palace.jpg
मलिक मुहम्मद जायसी ने अवधी भाषा में ' पद्मावत ' नामक ग्रन्थ इन्हीं पात्रों को लेकर लिखा है
- लावण्या दीपक शाह

14 comments:

निर्मला कपिला said...

अज तो लगता है कि स्कूल मे इतिहास की कक्षा मे बैठी हूँ। अभी अभी अनुराग जी की पोस्ट पर लक्षमी बाई जी को पढा। लेकिन आपकी पोस्ट मे जो पढा उसकी मुझे पहले जानकारी नही थी। धन्यवाद।

Shilpa Mehta : शिल्पा मेहता said...

ओह - मेरी टिपण्णी स्पैम में चली गयी :(

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

ऐतिहासिक जानकारी देने के लिए आभार!

प्रवीण पाण्डेय said...

रानी पद्मनी ने आतताईयों से संस्कृति को बचाये रखा।

सदा said...

अच्‍छी जानकारी देती हुई उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति।

Delhionlineflorists said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Asha Joglekar said...

रानी पद्मिनि और राणा रत्नसिंह जी की विवाह कथा और पद्मिनि और राजपूतानियों के जोहर की कथा ने मानो इतिहास समक्ष खडा कर दिया ।

Satish Saxena said...

लगा इतिहास सजीव हो गया ...
आभार आपका !

Unknown said...

maine rani padmni ka itihas pahli bar pada

aaaaamit said...

आज हम हमारे देश के सच्चे वीरो को सम्मान न दे राजनैतिक चक्रव्यू में फंस कर इनका अपमान कर रहें हैं।

aaaaamit said...

आज हम हमारे देश के सच्चे वीरो को सम्मान न दे राजनैतिक चक्रव्यू में फंस कर इनका अपमान कर रहें हैं।

Unknown said...

मुझे गर्व है की मैंने इस शक्ति, भक्ति और वीरों की नगरी में जन्म लिया।

Arvind Mishra said...

एक विषाद कथा

Ram khedia said...

Really it's nice