Saturday, June 16, 2007

....ज़िँदगी ख्वाब है .... चेप्टर ~ ४


बहारेँ आयेँगीँ, मुझे ले जायेँगीँ, फिर,


उन मस्त अमिया के बागोँ मेँ चुपचाप,


आँख मिचौनी खेला करते थे हम तुम,


आँखोँ मेँ हँसती थी हर मुबारक रात!







समय : २ साल बाद :


उस बात को शायद रोहित भूल ही जाता अगर एक दिन जब वह बँबई के कालबा देवी के भीडभरे इलाके से गुजर रहा न होता और वहीँ प्रकाश भी सामने से आता हुआ दीखाई दे गया -- प्रकाश के मुख पर एक रहस्यमय मुस्कान थी - "क्योँ बर्खुदार, कहाँ की सवारी है ? " शादी क्या कर ली तुम तो इद का चाँद बन गये लाला !! " कैसी हैँ रीना जी ? "


उसने पूछा तो रोहित ने बतला दिया कि अभी अभी वीजा के खास खास डोक्युमेन्ट्स तैयार करने मेँ उसने दिनभर कितनी भागदौड की है !


" अच्छा शाम को घर आ जा साथ खाना खाते हैँ - और ठीक ७ बजे पहुँच जाना -- " " क्या ? ७ बजे डीनर खाते हो ? " रोहितने पूछा -- अब हँसने की बारी प्रकाश की थी -" वो बोला, " अरे ! तु बडा लेट लतीफ है यार !और मेरा महाराज ९ बजे रसोई घर बँद कर देता है ! समझे ? तो आ जाना वक्त पे! "


अब तो रोहित भी उतावला भागा , चूँकि शहर के आफिस के इलाके से उपनगर तक जाते जाते २ घँटे का समय तो लगने ही वाला था - - प्रकाश ने आकर राजश्री को बता दिया कि उसका मित्र रोहित भी आ रहा है ~ तो राजश्री ने कहा ," अरे उससे कहा ना कि जल्दी आये ? वो हमेशा देरी से आता है ! "


तो प्रकाश ने कहा, " मैँने जानबूझकर उसे २ घँटे पहले का समय बतलाया है तुम देख लेना मेरा यार ९ बजे तक आ ही जायेगा ! "और क्या पता अब बीवी के साथ शायद टाइम का पाबँद भी हो गया हो !"मुझे देख लो ! आपके साथ रहकर हम घडी के काँटोँ के साथ साथ साँस लेना सीख गये हैँ !
"अजी जाओ जाओ ..राजश्री ने कहा, " सारा दोष मेरा ही तो है ...अब इस जनम मेँ तो भुगतना ही है भाग्य मेँ ! "


और वही हुआ ! रोहित आया ९ बजे और वह भी रीना के बगैर ! बहाना बना गया -- पर अब दोस्तोँ ने मिलकर खाना खाया -- बडे अर्से बाद रोहित कुछ स्वस्थ हुआ --


रोहित को प्रकाश के महाराज यानी खानसामा साहब के हाथ का बना भोजन बहुत प्रिय था ! सबने छक्क कर खाया. फिर बाग मेँ बँधे बडे से झूले पे तीनोँ सुस्ताने लगे. पँखुरी भी राजश्री की गोद मेँ झूलते झूलते कब सो गई पता भी नहीँ चला


फिर अचानक बातेँ शालिनी की ओर मुड गईँ ......."


कैसी है वो ? " रोहितने पूछा तो


र्राजश्री ने लँबी साँस छोडते हुए कहा, " वो अब यहाँ नहीँ रहती अपनी नानी जी के यहाँ कालिज के फाइनल यर मेँ है --


" उसके पापा कहाँ हैँ ? " उसने प्रश्न किया
-- तब प्रकाश ने समझाते हुए कहा, " शालिनी के मम्मी पापा का तलाक हो चुका है . मगर शालिनी अपनी दादी और काकी याने के मेरी दीदी वसुँधरा के साथ ही रहना चाहती थी और रह रही थी -- इँटर पास किया -- बडी काबिल और नेक लडकी है " उसने भूमिका बाँधते हुए कहा -


अब राजश्री ने आगे बात बढायी " क्या कहते हो ? इतनी सारी लडकियोँ को तो देख चुके थे -- पर आखिर रईसजादी रीना जी पर हमारे रोहित का दिल आ गया ! क्योँ आईँ नहीँ हमारे यहाँ खाने पे ? "
उसने यूँ ही मजाक किया तो रोहित सँजीदा हो गया
--


--" मेरी मानते तो शालिनी ही तुम्हारे लिये सही जीवन साथी बनने की क्षमता रखती थी ! "


"राजश्री -- अब रहने दो ये बातेँ " प्रकाश ने डाँट लगायी तो राजश्री को रोहित के उदास चेहरे का ध्यान हो आया


रोहित ने एक कोशिश की और अपने आपको सहज करते हुए हँसते हुए पूछा,


" अरे बाबा ! मुझे मिलाने मेँ कोयी कसर नहीं रखी थी तुमने पर उपरवाले की रज़ा न थी -- "


राजश्री बोली, " जब उसे कोयी आपत्ति नहीँ थी पर, आज तुम क्यूँ ये सारी बातोँ को इतना तूल दे रहे हो ! "


" चलो छोडो बेकार की बातोँ मे कहीँ बित न जाये रैना __ "


प्रकाश ने कहा तो रोहित भी उठ खडा हुआ -


" तुमसे मिलने के लिये अब कब का अपोइन्टमेन्ट दे रहे हो ? उसने पूछा तो


" अच्छा तब तो लँच पक्का रहा -- आ जाऊँगा -"


इतना कह कर रोहित चला गया --


-- वह प्रकाश और राजश्री के साथ उसी नियत किये रेस्तराँ मेँ मिला था -- कुछ खास बातेँ तो नहीँ हुई पर उस बार रोहीत उखडा उखडा सा रहा सारा वक्त ! बास १० मिन्टोँ तक एक औपचारिक सी मुलाकात हुई थी उन दोनोँ से !


यह थी उनकी दूसरी भेँट ! रोहित सोचता रहा, " हम अचानक क्यूँ मिलते हैँ किन खास व्यक्तियोँ से ? "


फिर बात आयी गयी हो गई --
उसे फिर अमरीका जाना पडा था - काम बढ रहा था ---


रोहित को मानोँ अपने जीवन के बारे मेँ उस वक्त सोचने का समय नहीँ था -- आज अचानक उसे ये सारी बातेँ अतीत के पन्नोँ से निकल कर याद आ रही थीँ .....


शालिनी .....
अपने से, उसे मानोँ अपने जीवन से, कहीँ दूर करके उसने रीना से नाता जोड तो लिया पर एक दबी चिनगारी सी उसे शालिनी याद आ जाती -- कभी उसे पूरी दुनिया से नाराजगी हो जाती ----


वह सोचने लगा -- किस तरह सब अचानक हुआ था --. माता पिता की एकमात्र सँतान !! बहोत समृध्ध परिवार की कन्या के बारे मेँ सँदेशा आया -- देखते देखते बात तै हो गई - शादी भी हो गई और उसके बाद के ३ वर्ष रोहित के जीवन के सबसे कठोर, ह्रदयविदारक, आघात जन्य साबित हुए !


ना तो कन्या का कसूर था ना उसके घरवालोँ का !


पर लाड प्यार मेँ बडी हुई रीना को रोहित के मित्रोँ से कितनी चिढ थी -- ये उसका अहम्` भाव ही था -- superiority Complex of stupid amount !


- वो किसी को खाने पे बुलाता तो वह बहाना बना कर मैके चली जाती.ये भी कोई बात हुई ? वो सोचता रहा


की बार बार उसे अपने माता पिता से झूठ बोलना पडा था जब वे पूछते, बेटे खाना खा लिया ? कैसे हो तुम लोग ? "


" ठीक हैँ हम " इतना ही कह पाता खाली पेट, दुविधा मेँ रोहित ये कैसे बतलाता कि उसका वैवाहिक जीवन नर्क यातना से गुजर रहा है ? "
आख़िर कब तक ऐसे चलता ?


बात इतनी पटरी से उतरती गई की रीना ने ही तलाक के कागज़ भेजे --


रोहित ने पहली फीयाट पद्मिनी गाडी खरीदी थी उसे भी रीना मैके लेकर चली गई -- उसे अपना पति जो धीरे धीरे मेहनत करके अपना नया कारोबार जमा रहा था वह अत्यँत नापसँद था -- तलाक के कागज़ात मेँ रीना ने उससे ५० लाख रुपये का हर्जाना भी माँगा था जिसे देखकर रोहित को आघात लगा -- ये कैसी अजीब लडकी है ? क्या करूँ ? उसके माता पिता को भी भनक आ गयी तो उन्होँने बेटे को अमरीका फोन किया और चिँता व्यक्त की -एकबारगी रोहित को लगा कि वह सो रहा है और ये सारी घटनाएँ एक बुरे स्वप्न की तरह चलती जा रहीँ हैँ जिनपर उसका कोयी जोर नहीँ -- पर वास्तविकता दूसरे क्षण उसे ठोस धरातल पर ला पटकती.
उसने भी वकील रख लिया -- और सँदेशा भेजा कि भारत आने पर आगे की कार्यवाही होगी -- तब तक रीना को मिसेज दवे यानी रोहित की पत्नी का तमगा लगाये ही समाज मेँ घूमना पडेगा जिसका उसे खेद है -- परँतु रोहित इस वक्त काम मेँ ऐसा उलझके रह गया था कि, उसे इतने समय की मोहलत माँगनी पड रही थी. -- भारत जाकर अपने वृध्ध माता पिता से क्या कहेगा वह ? ये सोच सोच कर रोहित का क्षोभ बढता जा रहा था --
जैसे तैसे काम निपटा कर उसने अपनी डाक्टर बडी बहन जो केन्सास रहती थीँ उन्हेँ फोन करके सारी बातेँ बतलयीँ -- दीदी चुप सुनतीँ रहीँ अपने प्यारे छोटे भाई के साथ हुए इस मूर्खतापूर्ण कटु व्यवहार के बारे मेँ सुनकर प्रियँका को पहली बार विचार आया -- ये कैसी कन्या है रीना ? डाक्टर तो मैँ भी हूँ !!--


अपने माता पिता के डाक्टर होने का इतना घमँड ? क्या सीख दी है इसे ?


दीदी ने ढाढस बँधाया तब रोहित के आँसू निकल आये -- अपने को सँयत कर के अब रोहित ने भारत यात्रा के लिये भारी मन से प्लेन का टीकट लिया और लौट पडा ...घर की ओर ..पर घर कहाँ था ? ...कौन इँतज़ार कर रहा था उसका ? तलाक ? ये सोच भी नहीँ सका था वो कि ऐसा भी सुनेगा ...पर अब ऊखल मेँ सर रख दिया तो चोट की क्या परवाह ..ये सोचते हुए ..प्लने की खिडकी से सुफेद घने बादलोँ को देखता रहा ..रोहित
पथराई आँखोँ से ...


भारत जा कर रोहित से रीना कहाँ मिली ? .


..पढियेगा आगे ...








2 comments:

Divine India said...

सचमुच जिंदगी ख्वाब ही है… बहुत अच्छा लग रहा है यह पुरा सीरिज…लिखते रहें।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

दीव्याभ,
प्रोत्साहन के लिये बहुत आभारी हूँ
स्नेह सहित,
लावण्या