Wednesday, November 28, 2007

(" पँडित नरेन्द्र शर्मा की " षष्ठिपूर्ति " के अवसर पर डा. हरिवँश राय बच्चन के भाषण से साभार उद्`धृत )

स्वर कोकिला सुश्री लता मंगेशकर
पँडित नरेन्द्र शर्मा की " षष्ठिपूर्ति " के अवसर पर , माल्यार्पण करते हुए
कविवर श्री सुमित्रानँदन पँत ,पँडित नरेन्द्र शर्मा ,डा. हरिवँश राय बच्चन

" छायावाद के जितने कवि थे वे हमारे लिये एक प्रकार से आदर्श रहे और इस समय मैँ बडे आदर के साथ श्री सुमित्रानँदन पँत का नाम लेना चाहूँगा,बल्कि हम दोनोँ ही नरेन्द्रजी और मैँ, दोनोँ ही ...हम दोनोँ ही पँतजी की कविता के बडे प्रेमी थे. वे हमारे आदर्श थे.कविके रुप मेँ भी वे हमारे आदर्श थे और उनको आदर्श बनाकर उनसे कुछ सीख कर हम लोग कुछ आगे बढे! ..जब हम लोग आये, तो हमे ऐसा मालूम हुआ, शायद हिन्दी कविता को मनीषा की आवश्यकता थी, कि हम इस कविता मेँ जीवन के सँपर्क को लायेँ और मैँ इस समय स्मरण करता हूँ कि नरेन्द्र और अँचल ये दो, ऐसे कवि हमारे समकालीन हैँ....हम लोगोँने कविता को एक नयी भूमि पर, जीवन के अधिक निकट लाने का प्रयत्न किया. योँ तो नरेन्द्र जी इन चालीस वर्षोँ मेँ हमारी हिन्दी कविता जितने सोपानोँ से होकर निकली है, उन सब पर बराबर पाँव रखते हुए चले हैँ. शायद प्रारम्भिक छायावादी, उसके बाद जीवन के सँपर्क माँसलता लेते हुए ऐसी कविताएँ, प्रगतिशील कविताएँ, दार्शनिक कविताएँ, सब सोपानोँ मेँ इनकी अपनी छाप है. ...मैँ आपसे यह कहना चाहता हूँ कि प्रेमानुभूति के कवि के रुप मेँ नरेँद्रजी मेँ जितनी सूक्षमताएँ हैँ और जितना उद्`बोधन है , मैँ कोई एक्जाज़्रेशन ( अतिशयोक्ति ) नहीँ कर रहा हूँ , वह आपको हिन्दी के किसी कवि मेँ नहीँ मिलेँगीँ उस समय को जब मैँ याद करता हूँ , तो मुझे ऐसा लगता है , भाषाओँ से हमारी कविता ने एक ऐसी भूमि छूई थी और एक ऐसा साहस दिखलाया था, जो साहस छायावादी कवियोँ मेँ नहीँ है ! वह जीवन से निकट अनुभूतियोँ से ऊपर उठकर ऊपर चला जाता था, यानी उसको छिपाने के लिये , छिपाने के लिये तो नहँ, कमसे कम शायद वह परम्परा नहीँ थी ! इस वास्ते उस भूमि को वे छूते ही नहीँ थे , लेकिन जन नरेन्द्र आये, तो उन्होँने जीवन की ऐसी अनुभूतियोँ को वाणी दी, जिनको छूने का साहस, जिनको कहने का साहस, लोगोँमेँ नहीँ था. यह केवल अभिव्यक्ति नहीँ थी, यह केवल प्रेषण नहीँ था, यह उद्`बोधन यानी जिन अनुभूतोयोँ से कवि गुजरा था, उहेँ औरोँ से अनुभूत करा देना था ! नरेन्द्र जी की कविताएँ प्रकृति - सँबँधी भी हैँ ..एक बात मेँ मुझे नरेन्द्रजी से ईर्ष्या थी, वह यह कि जब मैँ केवल गीत ही लिख सका, ये खँडकाव्य भी लिखते रहे और कथाकाव्य मेँ भी इनकी रुचि प्रारम्भ से रही है. मैँ अपनी शुभकामनाएँ इनको देता हूँ , आशीर्वाद देता हूँ और उनसे स्वयम्` , ब्राह्मण ठहरे, आशीर्वाद चाहता हूँ कि भई, मुझे भी ऐसी उम्र दो कि तुम्हारा वैभव और तुम्हारी उन्नति देखता रहूँ !

(" पँडित नरेन्द्र शर्मा की " षष्ठिपूर्ति " के अवसर पर

डा. हरिवँश राय बच्चन के भाषण से साभार उद्`धृत )

9 comments:

Prem Piyush said...

लावण्या,
बच्चन जी का भाव प्रकाश सही मायने में पंडितजी के व्यक्तित्व और विलक्षण प्रतिभा को उजागर करता है ।

भाषण के इस उद्घरण के लिए अनेकों धन्यवाद ।

कंचन सिंह चौहान said...

हमसे ये दुर्लभ भाषण बाँटने के लिये धन्यवाद

महावीर said...

"जब नरेन्द्र आये, तो उन्होँने जीवन की ऐसी अनुभूतियोँ को वाणी दी, जिनको छूने का साहस,जिनको कहने का साहस, लोगोँ मेँ नहीँ था".
स्व.पण्डित नरेन्द्र शर्मा जी के काव्य में "सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम्" का पूर्ण
सामंजस्य देखा जा सकता है। उन महान प्रतिभाशाली व्यक्ति के संग संग छायावादी
कवियों के सिरमौर श्री सुमित्रानन्दन पंत जी और आदरणीय डा. हरिवंश राय
बच्चन जी को बार बार नमन!
लावण्या, अगर विकीपीडिया पर श्री नरेन्द्र जी के विषय में पूर्ण रूप से नहीं
लिखा हो तो इस कार्य को पूरा जरूर करना क्योंकि इस में तुम ही सक्षम हो।
महावीर शर्मा

पारुल "पुखराज" said...

बहुत बहुत आभार ……

मीनाक्षी said...

आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

पारुल जी, मीनाक्षी जी व प्रेम पीयूष ,
आप सभी का विनम्रता से आभार मानती हूँ -
ऐसे ही स्नेह बनाये रखियेगा --
स -स्नेह,
-- लावण्या.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

कँचन जी आप ये जानकारी भी एकत्र कर लीजियेगा "श्री बच्चन जी चाचाजी की कही बात है ये !
स -स्नेह,
-- लावण्या.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

मेरे आदरणीय महावीर जी,
आपका कथ्य सही है -
आपकी आज्ञा सदैव सँबल बनी है -
- आज एक खुशी भरे समाचार बताते अपार हर्ष हो रहा है कि, मेरा छोटा भाई
चि. परितोष नरेन्द्र शर्मा,
"पँडित नरेन्द्र शर्मा : सम्पूर्ण रचनावली:
नित प्रियम्` भारत भारतम्` "
के नाम से तैयार करवा रहा है -- जिस के ४० ग्रँथ होँगेँ - - कार्य शुरु हो चुका है - उसके आते ही आप सभी को सूचित करुँगी -- ऐसे ही स्नेह बनाये रखियेगा --
सादर, स -स्नेह, -
- लावण्या

Smart Indian said...

बहुत अच्छा लगा यह सब पढ़कर, धन्यवाद!