Sunday, July 8, 2007

सँगीत निर्देशक: सज्जाद हुसैन साहब के सुहाने गीत सुनिये

कलाम लिखा है कमर जलालाबादी साहब ने
स्वर दीये हैँ : मन्ना डे, सादत खाँ , मोहम्मद रफी साहब ने
इस गीत की बँदीश, गीत सँयोजन बेहद अनोखा है
.सँगीत शुरु होता है.

..रुकता है और मानो दरिया की मौज,
ज्वार -भाटा मेँ,
आगे पीछे हिलोर लेती हो इस तरह,
फिर बोल उभरते हैँ.

गायकी इतनी उम्दा है मानो गायक इबादत कर रहेँ होँ -
- सुनिये ..


फिल्म: हलचल
कलाकार: लता मँगेशकर
सँगीत निर्देशक: सज्जाद हुसैन
"ऐय दिलरुबा ...नज़रेँ मिला."
.. जाँ निसार अखतर सा'ब के शबनमी अल्फाज़
" भूल जा एय दिल, मुहब्बत का फ़साना"
bhool jaa ae dil muhabbat ka fasaana
Lata Mangeshkar [+]
Sajjad Hussain
लफ्ज़ दिये हैँ इस बेहतरीन गाने को शायर शम्स अज़ीमाबादी सा'ब ने
Khel
" ये हवा ये रात ये चाँदनी .."
तलत साहब को १७ बार गाना पडा था तब कहीँ जाकर गाना फाइनल हुआ था सज्जाद हुसैन साहब, कला के पूजारी थे. जब तक उनके जहन के मुताबिक गाना न सुनायी दे, वे उसे जनता के सामने कैसे ले आने को कैसे राज़ी होते? कला के सूरमा थे सज्जाद साहब. मौसीकी के उस्ताद और सँगीत की दीवानगी इस हद्द तक कि अपने काम के जुनून के सामने किसी को ठहरने न देते थे वे -- मेन्डोलीन का बाजा उनके हाथ मे आ जाये तब उसमे से मानो फरिश्तोँ की आवाज़े , बाहर आने लगतीँ थीँ.जैसे रविशँकर जी का सितार दुनिया मेँ अलग जादू बिखरता है ठीक सज्जाद साहब का मेन्डोलीन वाध्य भी मानो ज़िँदा हो जाता था !
सँगदील का यही गीत -
- मदन मोहन जी के एक गीत मेँ भी दीखलायी दिया , फिल्म थी "आखिरी दाव" गीत के बोल हैँ : "तुझे क्या सुनाऊँ मैँ दिलरुबा "
जिसको सुनकर सज्जाद साहब ने मदन मोहन जी से पूछा था, कि "तुमने मेरा गाना , मेरी धुन को क्योँ चुराया ?
सँगीत निर्देशकोँ के प्र -पितामह श्री अनिल बिस्वास जी का कहना था कि, "सज्जाद ही एक ऐसा सँगीत देनेवाला है हिन्दी फिल्मोँ मेँ जो बेजोड है - उसका कोयी सानी नहीँ -फिर आगे कहा कि "हम सभी कहीँ ना कहीँ से या किसी ना किसी बात से प्ररणा लेते हैँ तर्ज़ बनाने के लिये पर, सज्जाद का सँगीत कहीँ से नहीँ आया - सिवाय खुद सज्जाद के अपने आपे से !"
सज्जाद साहब के सँगीत का सफर शुरु हुआ था फिल्म दोस्त से जिस के लिये सज्जाद सा'ब मियाँ अली बख्श साहब के सहायक सँगीत निर्देशक की हैसियत से काम कर रहे थे. गायिका बेगम नूरजहाँ का गीत था दोस्त के लिये,
" बदनाम मुहब्बत कौन करे, दिल को रुसवा कौन करे " जो सँगीत के प्रेमी श्रोता, आज भी सुन के, याद करके आँहेँ भरते हैँ
जुलाई २१ ७९ साल की अपनी अनोखी सँगीत यात्रा खतम कर सज्जाद साहब सदा के लिये इस दुनिया को खामोश छोड कर उस पार, चले गये. पर उनके नगमोँ के जलवे आज भी बेशकिमती हीरोँ से बेसाखता दमक रहे हैँ !











12 comments:

Udan Tashtari said...

गीतों के जानकारी अच्छी लगी. सज्जाद साहब की याद को नमन.

काकेश said...

सज्जाद जी मेरे प्रिय संगीत निर्देशकों में रह हैं.संगदिल फिल्म के उनके सारे गाने मुझे बहुत पसंद है.उनकी याद दिलाने के लिये शुक्रिया.

सुनीता शानू said...

बहुत अच्छा लगा गाने सुन कर मेरे पसंदीदा गाने हैं सभी...बहुत-बहुत धन्यवाद...

सुनीता(शानू)

Yunus Khan said...

लावण्‍या जी अच्‍छा जिक्र किया आपने सज्‍जाद का । लता दीदी उन्‍हें अपना मनपसंद संगीतकार बताती हैं । हर इंटरव्यू में उनका जिक्र करती हैं । रूस्‍तम सोहराब की इस कव्‍वाली को हिंदी फिल्‍मों की पहली कव्‍वाली माना जाता है । सज्‍जाद बेहद जिद्दी थे और अख्‍खड़ कहे जाते थे । उन्‍होंने नौशाद से कह दिया था कि तुमने आज तक कोई ढंग का गाना बनाया है क्‍या । इसी तरह लता जी से कहा था आज तक तुमने बेकार के गाने गाये आज मैं तुमसे सही गाना गवाता हूं । मध्‍यप्रदेश के रहने वाले थे वो । मेरी जानकारी के मुताबिक़ उनके आखिरी दिन काफी मुफलिसी में कटे । सज्‍जाद खालिस इंसान और खालिस संगीतकार थे ।

Divine India said...

आदरणीय मैम,
बहुत रोचक जानकारी है…संगीत तो बहुत अच्छा है…।
आपको तो और भी ज्यादा गहराई से पता है तो आनंद ज्यादा आता है…।

महावीर said...

रोचकता, जानकारी और पुरानी यादें सब ही इस में हैं। पढ़ने में आनंद आगया।
सज्जाद साहब ने केवल १४ फ़िल्मों का संगीत देकर यह सिद्ध कर दिया कि quantity नहीं,
quality का महत्व है। इसी लिए आज भी लोग उनके संगीत को भुला ना पाए। एक ऐसा संगीतकार जिसने बचपन में ही सितार, वीणा, वायलिन, बांसुरी, मेन्डोलीन, जलतरंग, बैंजो, अकॉर्डियन, स्पेनिश गिटार आदि साज़ों पर महारत कर ली थी। स्वयं जीते जागते आर्केस्ट्रा थे।
इस प्रकार की जानकारी देती रहिए।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

समीर भाई,
धन्यवाद
आप मेरा लिखा पढते रहते हैँ ---
जिसकी मुझे खुशी है
स -स्नेह,
--लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

काकेश जी,
जो भी इन्सान बढिया काम कर गये हैँ , उन्हेँ आज भी सब याद करते हैँ, है ना?
आप की टिप्पणी का शुक्रिया
स -स्नेह,
--लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सुनीता जी, (शानू जी )
आप की टिप्पणी का भी बहुत बहुत, शुक्रिया
आपका ब्लोग भी देखा है और आपकी क्रियात्मक्ता मुझे पसँद है -
स -स्नेह,
--लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

युनूस भाई,
अजीब इत्तिफाक देखिये, मैँने सज्जाद साहब पर ये पोस्ट लिखी और न्यूयोर्क जाते ही उनके बेटे से मुलाकात हो गई -
मैँने नासिर भाई को भी बतलाया कि मैँने उनके पापा पे एक आलेख अभी अभी ब्लोग पे लिखा है -
और सज्ज्जाद साहब के हठी स्वभाव की बात भी हुई तो नासिर भाई मुस्कुराने लगे ;-)
नासिर जी का ४ नँबर है -५ भाई हैँ वे लोग !सभी सँगीतकार हैँ -ऐसा बतलाया --
स -स्नेह,
--लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

दीव्याभ,
आपको गाने पसँद आये उसकी खुशी हुई -
स -स्नेह,
--लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आदरणीय महावीर जी,
प्रणाम !
सही कहा आपने -- वन मेन ओर्केस्टा ही कहलायेँगे सज्ज्जाद साहब -
और आज के युग के गँधर्व - है ना ?
टिप्पणी के लिये धन्यवाद -- यूँ ही स्नेह रखेँ -
स -स्नेह,
--लावण्या