![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjS2m9LtvvnL_27G0A3oOqJQTg6uziwzX5_T17MOBHiPMJNaXdY4CyAUkE_HB8GE23mbeB8fuoO6cRXpFzj0M3v1jgOhYq6L-hZpEcmWyBvccEz2U1sb17CLaBrMN1V4ZwKrPxh_MR-eQrg/s400/Mother+Mary+bandra.jpg)
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHrZ3j_3WDPN5YwVsfReXP6N6oz0C6TkW8DV6NUjEnu8ofTascLxOaRplZ8FqC-ZCk8gIKpANznDzBEMQa6GwYfEBEXeSIYvgBLXNnQC8XNlH06Z5imzFRY0_C0gBlrXbWeCPFyTxX2sHp/s400/mumbadevi-temple-mumbai.jpg)
बँबई के माउन्ट मेरी के चर्च,
बान्द्रा मेँ हम अक्सर, घर से पैदल चल कर जाते थे.
अरब समुद्र के सामने छोटी पहाडी
पे बसा ये चर्च बेहद खूबसुरत है
और मेरी आस्था का एक केन्द्र भी है ~
बान्द्रा मेँ हम अक्सर, घर से पैदल चल कर जाते थे.
अरब समुद्र के सामने छोटी पहाडी
पे बसा ये चर्च बेहद खूबसुरत है
और मेरी आस्था का एक केन्द्र भी है ~
~ अन्य, मंदिरों के साथ !
आज ऊम्र के इस पडाव पर आने के बाद, बचपन की मीठी बातोँ मेँ मन बार बार लौट जाने को बैचेन रहता है.मेरे बचपन के ४ वर्ष बँबई महानगर के मध्य मेँ बसे माटुँगा उपनगर के शिवाजी पार्क के इलाके से जुडी यादेँ हैं .....
ये शिवाजी पार्क माटुँगा के बीचोँबीच एक खुला मैदान है जहाँ सुनील गावसकर और सचिन तेँदुलकर जैसे होनहार क्रिकेट खिलाडी भी अपना बल्ला सम्हाले बचपन से जवानी की ओर बढते हुए,
खेल सीखते दीख जाते थे.
हम लोग तैकलवाडी के पहिले मँजिल के १ बड कमरा और एक छोटा कमरा जिसके पीछे एक बडा रसोई घर था वहीं रहते थे.
ये वही घर था जो मेरे प्रख्यात कवि पिता पँडित नरेद्र शर्मा ने बँबई आते ही अपने आवास के रुप मेँ चुना थापापा जी की जीवन यात्रा का सफर ग्राम जहाँगीरपुर, खुर्जा, बुलँद शहर से शुरु होता इलाहाबाद के त्रिवेणी सँगमसे विध्यापन समाप्त करता वाराणसी काशी विश्वविध्यालय मेँ २ साल बीता कर , आनँद भवन मेँ ४ साल बिता कर,फिर देवली डीटेँशन कैँप, आग्रा और राजस्थान की ब्रिटीश जेलोँ मेँ , २ वर्ष बिताने के बाद, फिर गाँव अपनी माता जी, गँगा देवी से मिलने, जहाँगीरपुर पहुँचा ही था कि चित्रलेखा के सुप्रसिध्ध लेखक श्री भगवती चरण वर्मा जी पापा को बँबई, हिन्दी फिल्मोँ मेँ पट कथा व गीत लेखन के लिये बँबई, "बोम्बे टाकीज़ " मेँ श्रीमती देविका रानी के निर्माण सँस्था से
जुडने हेतु बँबई अपने साथ ले आये थे. युवा कवि नरेन्द्र ने तब,
खेल सीखते दीख जाते थे.
हम लोग तैकलवाडी के पहिले मँजिल के १ बड कमरा और एक छोटा कमरा जिसके पीछे एक बडा रसोई घर था वहीं रहते थे.
ये वही घर था जो मेरे प्रख्यात कवि पिता पँडित नरेद्र शर्मा ने बँबई आते ही अपने आवास के रुप मेँ चुना थापापा जी की जीवन यात्रा का सफर ग्राम जहाँगीरपुर, खुर्जा, बुलँद शहर से शुरु होता इलाहाबाद के त्रिवेणी सँगमसे विध्यापन समाप्त करता वाराणसी काशी विश्वविध्यालय मेँ २ साल बीता कर , आनँद भवन मेँ ४ साल बिता कर,फिर देवली डीटेँशन कैँप, आग्रा और राजस्थान की ब्रिटीश जेलोँ मेँ , २ वर्ष बिताने के बाद, फिर गाँव अपनी माता जी, गँगा देवी से मिलने, जहाँगीरपुर पहुँचा ही था कि चित्रलेखा के सुप्रसिध्ध लेखक श्री भगवती चरण वर्मा जी पापा को बँबई, हिन्दी फिल्मोँ मेँ पट कथा व गीत लेखन के लिये बँबई, "बोम्बे टाकीज़ " मेँ श्रीमती देविका रानी के निर्माण सँस्था से
जुडने हेतु बँबई अपने साथ ले आये थे. युवा कवि नरेन्द्र ने तब,
माटुँगा के इसी घर मेँ रहना शुरु किया था और उनके पीछे पीछे,
प्रसिध्ध छायावादी कविश्री सुमित्रानँदन पँत जी दादा जी भी, उन्हीँ के पास रहने आ गये थे.
2 वर्ष तक वह छोटा सा फ्लेट,
हिन्दी साहित्यिक गतिविधियोँ का केन्द्र बिन्दु बना, अनेकविध ,
2 वर्ष तक वह छोटा सा फ्लेट,
हिन्दी साहित्यिक गतिविधियोँ का केन्द्र बिन्दु बना, अनेकविध ,
नित नयी कविता और कहानीयोँ को सुनता रहा ~
~ और पँत जी की अगुवानी मेँ, और उन्हीँ के आग्रह से, यु. पी. के ब्राह्मण युवक मेरे पापा जी का एक गुजराती कन्या
सुशीला से पाणि ग्रहण संस्कारा सँपन्न हुआ था.
सुशीला से पाणि ग्रहण संस्कारा सँपन्न हुआ था.
अब उस छोटे से फ्लेट मेँ ३ प्राणी रहन लगे थे,
1) पँत जी, २ ) पापा जी और ३ ) श्रीमती सौ. सुशीला नरेन्द्र शर्मा !
शादी की खबर सुन कर गाँव से , सास जी ,गँगा देवी, आईँ ! और अपने साथ, ताऊजी की बिटिया गायत्री जो १२, या १३ वर्ष की थीँ
उन्हेँ भी अपने साथ ले आईँ और अपनी नई नवेली बहु को उसे सौँपते हुए कहा कि," जेठ जी,
जिठानी जी तो रहे नहीँ बहू !!
शादी की खबर सुन कर गाँव से , सास जी ,गँगा देवी, आईँ ! और अपने साथ, ताऊजी की बिटिया गायत्री जो १२, या १३ वर्ष की थीँ
उन्हेँ भी अपने साथ ले आईँ और अपनी नई नवेली बहु को उसे सौँपते हुए कहा कि," जेठ जी,
जिठानी जी तो रहे नहीँ बहू !!
२ बेटोँ को तो मैँ पाल लूँगी गाँव मेँ, वे खेती सम्भालेँगे,
इस बिटिया को तू, यहाँ सम्हाल ले .
.और अँग्रेज़ी इस्कूल मेँ ना भेजियो,
ना ही सहरी रीत भात सीखाइयो,
ना ही सहरी रीत भात सीखाइयो,
हाँ सलीका सीखा दीजो ! '
ये हिदायत देकर लाख समझाने पर भी बँबई ना रुकते हुए, अम्मा जी अपने पुत्र की सुखी गृहस्थी को आशिषेँ आखिर देतीँ, आखिरकार , जहाँगीर पुर खुर्जा की ट्रेन पर सवार,
ये हिदायत देकर लाख समझाने पर भी बँबई ना रुकते हुए, अम्मा जी अपने पुत्र की सुखी गृहस्थी को आशिषेँ आखिर देतीँ, आखिरकार , जहाँगीर पुर खुर्जा की ट्रेन पर सवार,
तोहफोँ से लदे, बैगोँ के साथ, फिर लौट गईँ थीँ गाँव !
और गायत्री दीदी समेत अब उस छोटे से फ्लेट मेँ ,
और गायत्री दीदी समेत अब उस छोटे से फ्लेट मेँ ,
४ प्राणी रहने लगे थे और २ चाकर थे -
१ था गोपाल जो शुध्ध शाकाहारी भोजन शर्मा परिवार के लिये बनाया करता था और दूसरा था बहादुर नेपाली जो श्रेध्धेय पँतजी के लिये माँसाहारी खाना अलग चुल्हे पे बनाया करता था ~
~ और , मुझसे बडी मेरी बहन प्रिय वासवी के जन्म होते होते,पँत जी दादा जी इलाहाबाद लौट गये थे उसका विवरण आगे सुनाऊँगी .
.आज , इतना ही .
.अब गायत्री दीदी की यादोँ के साथ ..
.फिर जल्द ही लौटती हूँ ..
.तब तक , के लिये ....आज्ञा....
6 comments:
अच्छा लगा आपका संस्मरण पढ़ कर. पंत जी आपके यहाँ रहे, यह भी एक जानकारी मिली.
आदरणीय मै'म,
अब मुंबई को थोड़ा-2 समझने लगा हूँ कुछ देखा भी है तो सबकुछ ताजा है मन मस्तक में आपका यह लेख सोने पर सुहागा हो गया…॥
Lavanyaji
Reading anything of Mumbai brings memories of my life of which major part I lived there....I can not write any further....
समीर भाई,
हाँ पँत जी दादा जी और पापा जी के बडे घनिष्ट सँबँध रहे हैँ -
आपको ये सँस्मरण पँद आया तो लिखना सफल हो गया ! :)
-- लावण्या
आओ दीव्याभ ! बडे दिनोँ बाद आये तो काम मेँ व्यस्त होगे मेरा शहर (बँबई )
कैसा लग रहा है आपको ? कहाँ कहाँ घूमे ? लिखना ~~
स्नेह,
-- लावण्या
Harshad bhai,
I can understand how sentimental we feel when we remember our Old home coty = Bambay !
I feel the same way ~~~
warm rgds,
L
Post a Comment