(१)
तुम सँध्याके रँगोँ मेँ आतीँ
और आकर मँडरातीँ,
बुलबुल बन, मनके बन को,
कर देतीँ आलोडित !
फिर पुकार बिरहा के बैन नशीले,
तुम सँध्याके रँगोँ मेँ आतीँ
और आकर मँडरातीँ,
बुलबुल बन, मनके बन को,
कर देतीँ आलोडित !
फिर पुकार बिरहा के बैन नशीले,
बुलबुल तू, दिल को तडपा जातीँ !
बुलबुल, जो तू, मैँ होती...
बनी बावरी जो तू आती-
मेरे जीवन के सूने आँगन को,
भर दे जाती री ~ सुहाग राग!
(२)
बुलबुल, जो तू, मैँ होती...
बनी बावरी जो तू आती-
मेरे जीवन के सूने आँगन को,
भर दे जाती री ~ सुहाग राग!
(२)
अलसायी रेत झीनी, किनारे की,मानोँ किसी मानिनी का आँचल ~
फैला बिखर कर, उन पर पडी हैँ सीपी - मोती की,
झिलमिलाती कशीदाकारी !
फैला भूरा गगन है वह अलसाया बदन विशाल
भाल क्षितिज, सूर्य कुमकुम, लाल गाल,
ढले लोचन ! हे सुँदरी, साँध्य रानी ..
तुम्हेँ मेरे नमन !
फैला बिखर कर, उन पर पडी हैँ सीपी - मोती की,
झिलमिलाती कशीदाकारी !
फैला भूरा गगन है वह अलसाया बदन विशाल
भाल क्षितिज, सूर्य कुमकुम, लाल गाल,
ढले लोचन ! हे सुँदरी, साँध्य रानी ..
तुम्हेँ मेरे नमन !
(३)
कौन है वह ?
कौन वह दबे पाँव आती ?
गगन विहारिणी , सुन्दरी ,
मधुहास् का सौरभ
कुम कुम कण बरसाती ?
कौन है वह सुन्दरी ?
उषा की लजाई लाली लिए ,
कर पाश में , अमृत घट लिए
छलकाती अम्बर पे रागिनी
अल्हड़ प्रीती - सी , उन्मादिनी
कौन है वह सुन्दरी ?
संध्या की सजीली सेज पे ,
ह्रदय वीणा को झंकृत किए
ह्रदय के पाश आ कर खोलती
मधु भार मुझ पर डालती
कौन ....... वह सम्मोहिनी ?
कौन वह दबे पाँव आती ?
गगन विहारिणी , सुन्दरी ,
मधुहास् का सौरभ
कुम कुम कण बरसाती ?
कौन है वह सुन्दरी ?
उषा की लजाई लाली लिए ,
कर पाश में , अमृत घट लिए
छलकाती अम्बर पे रागिनी
अल्हड़ प्रीती - सी , उन्मादिनी
कौन है वह सुन्दरी ?
संध्या की सजीली सेज पे ,
ह्रदय वीणा को झंकृत किए
ह्रदय के पाश आ कर खोलती
मधु भार मुझ पर डालती
कौन ....... वह सम्मोहिनी ?
- लावण्या
14 comments:
Lavanyaji
Nice poem.
What is meaning of Alsaayee & Alodit?
Rgds.
Alsayee = lazy ( from Alaas )
Alodit = vibarating (Spandit )
Rgds,
L
फैला भूरा गगन है वह अलसाया बदन विशाल
भाल क्षितिज, सूर्य कुमकुम, लाल गाल,
लावण्यजी
सुन्दर चित्र खींचा है आपने.
sandhya ke rroop mujhe bhi behad pasand hai shukriya inhein kavita ke madhyam se hum tak pahuchane ke liye
प्रकृति का मानवीकरण मन को मोह लेता है. बहुत प्यारी सी सन्ध्या रानी सी कविता.. !
वाह, महादेवी वर्मा की याद आ गयी। बहुत सुन्दर लिखा है।
बहुत सुंदर कविता ।
सुंदर चित्रण।
अरे वाह !! - प्रेम की संध्या या संध्या का प्रेम ? - [ :-)] - मनीष
आए कविवर, बिखरा गए , काव्य - माधुरी
विनत भाव से , करें स्वीकार हम रस अंजुरी !
Manish bhai,
maine aapke kalatmak Chaya chitra Sandhya vishay per dekhe hain --
Khushee huee ki aapko ye Kavya geet , pasand aaye !
sneh ,
Lavanya
मीनाक्षी जी, प्रकृति का मानवीय स्वरूप अपना - सा लगता है तभी तो, भाता है !
धन्यवाद !
स्नेह,
- लावण्या
ज्ञान भाई साहब,
मुझे इतनी इज्जत बख्शने के लिए,
आपकी रुणी हूँ !
स्नेह,
-- लावण्या
ममता जी ,
बहुत बहुत आभार आपका !
स्नेह,
--लावण्या
मनीष जी,
" संध्या " - तो वही. शांताराम जी की -
और
" प्रेम " = राजश्री के फिल्मों के हीरो हुए ,
हाँ दोनों साथ यहाँ,
हम और आपके हुए !! ;-)
बहुत बहुत आभार आपका !
स्नेह,-- लावण्या
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