Saturday, July 7, 2007

...ज़िँदगी ख्वाब है..चेप्टर -- ९ * सपनों का संसार *

*सपनोँ का सन्सार*
अंतर मनसे उपजी मधुरारागिनीयों सा,
होता है दम्पतियोँ का सुभग सँसार ,
परस्पर, प्रीत,सदा सत्कार, होसाकार,
कुल वैभव से सिँचित, सुसँस्कार !
तब होता नहीँ, दूषित जीवन का,
कोई भी, लघु - गुरु, व्यवहार...
नहीँ उठती दारुण व्यथा हृदयमें,
बँधते हैँ प्राणोँ से तब प्राण !
कौन देता नाम शिशु को ?
कौन भरता सौरभ भँडार ?
कौन सीखलाता रीत जगत की ?
कौन पढाता, दुर्गम ये पाठ ?
माता और, पिता दोनोँ हैँ,
एक यान के दो आधार,
जिससे चलता रहता है,
जीवन का ये कारोबार !
सभी व्यवस्था पूर्ण रही तो,
स्वर्ग ना होगा क्या सँसार ?
ये धरती है इँसानोँ की,
नहीँ दिव्य, सारे उपचार!
एक दिया,सौ दीप जलाये,
प्रण लो, करो,आज,पुकार!
बदलेँगेँ हम, बदलेगा जग,
नहीँ रहेँगे, हम लाचार!
कोरी बातोँ से नहीँ सजेगा,
ये अपने सपनोँका सँसार!
तो चलिये ...
फिर एक बार, रोहित दवे और मिसिज़ शालिनी दवे की दुनिया की ओर चलेँ..

रोहित ने शालिनी से देर -सबेर शादी की, पर मानोँ , दुनिया के सारे आनँद एक साथ अपनी नन्ही सी, सिमटी -सी, उनकी प्यार के दायरे मेँ उलझी , उलझी -सी दुनिया मेँ समेटने की होड लगा दी थी उसने -- सारी दुनिया की खुशी एक तरफ रह गयी और रोहित , शालिनी की खुशीयोँ का पलडा,सब से भारी हो चला था..
..
प्रकाश और राजश्री, ई -मेल से, अपने दोस्त, रोहित के, सतत, सँपर्क मेँ, रहने लगे थे.शालिनी भी खुश रहने लगी थी. वे दोनोँ डावोस शहर, स्वीटज़रलैन्ड "गणमान्य" , कोदोबारा ऐवोर्ड मिला था ,उसे लेने, साथ साथ गये थे और वहाँ आल्प्स पर्वत शृँखला के कईदर्शनीय स्थलोँ की सैर कर आये. उनके ई -पत्र मेँ भी, सुखद यात्रा विवरण उनकी खुशीयों की तरहछलका बिखरा,झलक रहा था ! राजश्री सबसे ज्यादह प्रसन्न थी !
बार बार कहती ," देखा !मैँ न कहती थी कि शालू ही रोहित के लिये बिलकुल सही है ! पर अफसोस ! हमारी बात , मानता ही कौन है ? "
तो प्रकाश हँस कर कह देता, " मैँ ने सारी बातेँ मानीँ हैँ आपकी, महारानी साहिबा ! पर हम तो अब भी, आपकी कृपा के पात्र नहीँ बने ! "
"अरे, जाओ जाओ ...आप जैसा झूठोँ का सरदार और कोयी नहीँ ! " कहकर राजश्री भी मुस्कुराने लगती -
-फिर, रोहित ने फोन किया और बहुत आग्रह करके कहा कि, " आप दोनोँ यहाँ हमारे मेहमान बन कर आइये - "
रोहित ने अपने वृध्ध माता, पिता, दीदी डा. प्रियँका, का पूरा परिवार, सभी को अपने नये घर के उद्`घाटन के अवसर पर न्योता भेजा था और सभी की हवाई यात्रा के टीकट भी साथ भेजे थे ..सो उनके परिवार के इस खुशी के मौके पर, रोहित, राजश्री और परिवार को भी स -परिवार आमँत्रित कर रहा था -
- प्रकाशने आभार प्रकट करते हुए कहा, " इस बार नहीँ आ पायेँगे हम लोग ..पर हमारा आना उधार रहा ! जल्दी ही आयेँगे और तुमसे मिलेँगे भी -- "
उसके बाद कुछ माह बीते ही नहीँ थे कि फिर रोहित का फोन आ गया - कहने लगा," मैँ और शालिनी, अटलान्टिक महासागर मेँ, वैभवशाली सुविधा से सजी [Cruise ]- "क्रूज़ "की यात्रा पे जाने का प्लान बना रहे हैँ -- आप लोग भी आ जाइये हमारे साथ - -- इन्फोसीस के नारायण मूर्ति जी भी साथ होँगेँ -- हम साथ साथ समय बीतायेँगे -- बडा मज़ा आयेगा -- आ जाओ -- "
इस बार भी प्रकाश को मनाही करनी पडी -- अरे ! रोहित उदारह्रदय से बुला रहा था पर ऐसे दोस्त के पैसे से घूमने जाना क्या ठीक होता है ? नहीँ जी ..
उसने राजश्री से कहा, " हम भी जायेँगे ..पर इस साल मुझे काम बहुत है, अभी तो छुट्टी नहीँ ले सकुँगा -- "
फिर सुना शालिनी और रोहित पूरे १ महीने तक क्रूज़ लेकर, बहामा, कैरेबीयन, वर्जीन आइलैन्ड, वेस्ट इन्डीज़ के छोटे छोटे द्वीपोँ की सैर करते रहे ~
~मानोँ पीछले कुछ सालोँ के कडुवे अनुभवो को , मन से निकालने का भरसक प्रयास जारी था
-- शालिनी के मृदु व्यवहार से रोहित रीना के साथ गुजारे ३ वर्षोँ के कटु अनुभव मानोँ भूलने की प्रक्रिया मेँ व्यस्त था .
उनकी खुशी और जीवने के बारे मेँ सुनकर प्रकाश ,
राजश्री भी बहोत खुश रहने लगे थे -
- झवर भाई सा , वसुँधरा दीदी इत्यादी से भी, हर हफ्ते, उनकी बातेँ होने लगीँ थीँ, सभी यही कहते,चलो, देर आये दुरुस्त आये ! खुश रहेँ दोनोँ , और क्या !
2 साल बाद:
एक रात शालू का फोन आया ................
क्रमश: ~~

4 comments:

Divine India said...

आदरणीय मैम,
मुझे तो आपकी कविता पढ़कर मजा आगया…भाव ही भाव बह रहे है मानो कपोलों से…
कहानी में संबद्धता है…परस्पर ताल है…बहुत खुब।

Satyendra Prasad Srivastava said...

बहुत अच्छी। कविता भी, कहानी का वर्णन भी और प्रस्तुति भी

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

दीव्याभ,
अपका स्नेह ही है जो मेरा लिखा हुआ आप को अच्छा लगता है -
टिप्पणी के लिये भी शुक्रिया व स्नह के लिये विशेष आभार.
यहा आने के बाद मेरी मुलाकात
कुछ ऐसे ही अविस्मरणीय व्यक्तोयोँ से हुई है
जिन्हेँ अपनी कथा, मेँ जीवित करने की महत्ती इच्छा है -
ये भी उसी के अँतर्गत मेरा विनम्र प्रयास है
-- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सत्येँद्र भाई ,
आपका जाल घर भी देखा और जाना कि आप पत्रकारिता क्षेत्र से हैँ
नमस्कार !
मेरे प्रयास को देखने व आपकी बहुमूल्य टिप्पणी के लिये, सहर्ष धन्यवाद!
देखते रहियेगा मेरे जाल घर को भी और आप को कैसा लगा ये बतलाइयेगा
स स्नेह,
-- लावण्या