Monday, August 6, 2007

बावरी मीराँ नाची पग घूँघरु बाँध......

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आज भई बावरी मीराँ नाची पग घूँघरु बाँध,
थम्म्` तिरकट त्राँग निनाद,रुनझुन, नाद.
यश अपयश ना लोक लाज नाहि डरावे हाँसी
मन मँदिर मेँ,बिराज्यो स्याम मिल जावै,
तो थाऊँ मैँ, जनम जनम री ,थारी दासी
नट नागर म्हाराँ प्रियतम,मैँ,बिलखूँ, बिरहली,
दरसन द्यो,हे, अविनासी,मीराँ,दरस री,प्यासी -
असुवन जल सँग,जहर को प्यालो पी गयी,
करत जग म्हारी,निसदिन,फिर भी हाँसी -
साँवरा...साँवरा, म्हारी प्रीत निभाजो जी,
मीराँ,थारी स्याम, चरण कँवल री दासी !
--लावण्या

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