Saturday, September 29, 2007

मौन मेँ सँगीत

मौन मेँ सँगीत
कुहासे से ढँक गया सूरज,
आज दिन पूरा, ख्वाबोँ मेँ गुजरेगा!
तनहाइयोँ मेँ बातेँ होँगीँ,
शाखेँ सुनेँगीँ, नगमे, गम के,
गुलोँके सहमते, चुप हो जाते स्वर,
दिल की रोशनी,धुँधलके की चादर,
लिपटी खामोश वादीयाँ, काँपतीँ हुईँ,
देतीँ दिलासा, कुछ और जीने की आशा !
पहाडोँ के पेड नज़र नहीँ आते,
खडे हैँ, चुपचाप, ओढ चादर घनी,
दर्द गहरी वादीयोँ सा,मौन मेँ सँगीत !
तिनकोँ से सजाये नीड, ख्वाबोँ से सजीले,
पलते विहँग जहाँ कोमल परोँ के बीच,
एक एका, आपा अपना, विश्व सपना सुहाना,
ऐसा लगे मानोँ, बाजे मीठी प्राकृत बीन !
ताल मेँ कँवल, अधखिले, मुँदेँ नयन,
तैरते दो श्वेत हँस,जल पर, मुक्ता मणि से,
क्रौँच पक्षी की पुकार, क्षणिक चीरती, फिर,
आते होँगेँ, वाल्मीकि क्या वन पथ से चलकर ?
ह्र्दय का अवसाद, गहन बन फैलता जो,
शून्य तारक से, निशा को चीरता वो,
शुक्र तारक, प्रथम, सँध्या का, उगा है,
रागिनी बनकर बजी मन की निशा है !
चुपचाप, अपलक, सह लूँ, आज,पलछिन,
कल गर बचेगी तो करुँगी .....बात !

-- लावण्या

10 comments:

Unknown said...

बहुत सुंदर....पूरा चित्र खींच दिया है शब्दों ने मौन में संगीत का...।

विकास परिहार said...

आज पहली बर आपकी कविता पढी है परंतु आपकी कविताओं में आपके पिता का थोड़ा सा अंश अवश्य देखने को मिला।
विकास परिहार

रजनी भार्गव said...

बहुत अच्छी लगी.

Udan Tashtari said...

अति सुन्दर!!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

समीर भाई,आप शायद हिन्दी ब्लोग जगत के सबसे ज्यादा उत्साह बढानेवाले टिप्पणीकार हैँ
और कोई न आये पर वे अवश्य आते हैँ और उत्साह बढाते हैँ -- ये बहोत बडी बात है -
अन्यथा, कई लोग तो चुप रहना ही पसँद करते हैँ.
हाँ, हरेक ब्लोग पर टिपणी देना भी असँभव है.
जो भी हो सके, करते रहना चाहीये.
स्नेह सहित,
-- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बेजी,
धन्यवाद और आपके स्नेह के प्रति आभारी हूँ !
"the sound of Silence " says so much, some times, doesn't it ?
स्नेह सहित,
-- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

विकास परिहार जी,
मेरे ब्लोग को आपके निजी पृष्ठ पर स्थान देने का बहुत बहुत आभार !
आपने आज मेरा हैसला और उत्साह द्वीगुणीत कर दिया ये कह कर कि मेरी इस कविता मेँ आपको मेरे पापा जी के अँश दीख गये !
स्नेह सहित,
-- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

रजनी भाभी,
Thank you soooo much ! ;-)

स्नेह सहित,
-- लावण्या

महावीर said...

तिनकोँ से सजाये नीड, ख्वाबोँ से सजीले,
पलते विहँग जहाँ कोमल परोँ के बीच,
एक एका, आपा अपना, विश्व सपना सुहाना,
ऐसा लगे मानोँ, बाजे मीठी प्राकृत बीन !

उत्कृष्ट कलात्मक शैली में उच्च कोटि का शब्द विधान, बहुत ही सुंदर रचना है।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आदरणीय महावीर जी ,
आपका आना और मेरी कविता से ये पँक्तियोँ को आशिष देना मेरे लिये बहुत बडा तोहफा है ~`
ऐसे ही स्नेह व कृपा बनायेँ रखेँ -
सादर ,स - स्नेह,
-- लावण्या