Tuesday, April 1, 2008

माँ



माँ
यह दोनो कविता मुझे प्रिय है ! " माँ "
की ममतामयी लहर जब कविता के रूप मे बहती है तब आधुनिक काल हो या प्राचीन हिन्दी भाषा की अमृत गँगा , यूँ ही , प्रवाहित होती हुई , जन साधारण के ह्र्दय , को भावना के आवेग , मे बहा ले जाती है.
सूरदास जी कान्हा कि अद्भूत लीला का बखान कर रहे है --

http://www.anubhuti-hindi.org/1purane_ank/2004/07_01_04.htmlhttp://www.अनुभूति

क़ान्हा य़शोदा मैया से शिकायात करते है अपने बडे भैया की, शरारत की !
" मैया मोही दाऊ बहुत खिजायो ...
ग़ोरे नन्द जसोदा गोरी ,

तुम कत श्यामल गात , चुटकी दै दै हसत बाल सब सीख देत बलबीर !"
नयनो के सामने पूरा दृश्य उजागर है।

शरारती बालाक की मनोहारी छवि, ममता से लिपटी बोली, मधुर मधुर नुपूर की छनकती किँकिणी समान प्रतीत होती है।

मोहन के मुख को गुस्से से लाल हुआ देख माँ यशुमती , प्रेम - वश रीझ उठतीँ हैँ -- कहती है ,
" सुनहु कान्हा बलभद्र , जनमत ही को धूर्त ,

सुर श्याम मोहे गो - धन कि सौ , हौ माता तू , पुत ! "
अब जब् माँ ने कह दिया कि ,

" मै और तुम एक दूजे के हैँ .. तुम , मेरे बेटे हो ! अपने बदमाश बडे भाई कि बात ना सुनो " एक माँ ही ये ममता समझ सकती है।

मुझे इस छवि ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है।

प्राचीन हिन्दी भाषा, यही से , चलकर आज २१ वी सदी तक आ गई है।

परन्तु मा के प्रति प्रेम - वात्स्ल्य आज भी कुछ ऐसी ही रीत से कविता या दोहो मे कहा गया --

सरदार कल्याण सिन्घ के दोहे भी मर्म कि बात कह रहे है ---

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/mamtamayi/kalyankedohe.हतं

" बच्चे से पुछो जरा , सबसे अचछा कौन ?

उनगली उठे उधर जिधर , माँ , बैठी हो मौन !"
और उस से भी बडी बात इस राज कि बात बताते हुए लिखते ये कहना कि ---
" करना मा को खुश अगर , कहते लोग तमाम ,

रोशनआ अपने काम से, करो पिता का नाम !"
कितनी बडी सीख दे दी है यहा कल्याण जी ने --

- भारत की हर माँ , यही चाहती आयी है कि पाल पोस कर बालक को इस लायक बना दे कि वो बुलन्दीयो को छु ले - ऐसे काम करे , कि जिससे माँ के सुहाग कि लाली सूरज की रोशनी सी जगमागने लगे --

- सपूत हो तब माँ छाया बनी रहती है , दीपक कि बाती बन कर जलती खपती रहती है , अपनी ग्रुहस्थी मे व्यस्त रहती है, किसी अपेक्षा के बिना प्रयास करती है कि, वो आगामी पीढी को सक्षम बनाये --

आज हम जो यहा तक आये है उस के पीछे ऐसी , भारत की कितनी माताओ का परिश्रम , नीव मे पडे फौलाद और इस्पात कि सद्रश्य है।

इसलिये मुझे नयी प्रणाली , नयी पीढी के लिये लिखे गये ये दोहे बहुत प्रभावित कर गये ! है दोहे छोटे छोटे मगर बात समझो तो बडी बात कहते है -

आशा है कि आप सभी को इन से प्रेरणा व सम्बल मिलेगा जैसा मुझ को प्राप्त हुआ है.
भविष्य से आशा और भारतीया वांग्मय से, ममता का अमर - सन्देशा !
सूरदास जी व सरदार कल्याण सिन्घजी दोनो ही हमारे लिये सेतु रच गये है ....
. रास्ता आगे हमे चलते चलते पार करना है !
ईति शुभम

अनुभूति से :~~

http://www.anubhuti-hindi.org/1purane_ank/2004/07_01_04.htmlhttp://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/mamtamayi/kalyankedohe.htm

- लावण्या

7 comments:

मीनाक्षी said...

लावण्या जी, माँ के बारे में पढ़कर अपनी माँ याद आ गई और उड़कर उस तक पहुँचने को जी चाहने लगा फिर अपने माँ होने का एहसास जागा...ऐसे में उलझन कैसे सुलझे...

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सच कहा रहीं हैं आप मीनाक्षी जी ..स्त्री की मर्म व्यथा का इतिहास सदा से , सन्नाटे में

गूंजता है गर, कोई सुनना चाहे उसे तब ..

:-( :-((

आभा said...

लावम्या जी, नीचे की तस्वीर मे बैठी आप की माँ की सुन्दरता तो आप की तरह या ज्यादा ही है साथ
ही वो एसी दिख रही है जैसे आप के बचपन ने उन्हें दौडा दौडा कर थका दिया हो और नो थक कर सोच रही है करने दो शैतानी जी भर .......
आप के पिता नरेद् जी के कई संग्रह है ,कभी छापूगीं

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आभा जी,
मेरी अम्मा तो वाकई बहुत सुंदर थीं ..हम लोग तो बस ऐसे ही हैं ;-) कवि की कल्पना साकार होकर मिली थीं वे पापा जी को ..

मेरे पापा जी को याद करते हुए बहुत से लोगों ने अपने आलेख लिखे हुए एक किताब है - "शेष - अशेष " अगर आप पता भेजेंगी तब, आप तक वह पुस्तक पहुंचाने की व्यवस्था करती हूँ ..समय दीजियेगा ..मेरा ई - मेल है --
lavanis@gmail.com
& please see these links also --
आप ये लिन्क से लता दीदी से सँबँधित कई सारे गीत + बातेँ सुन पायेगेँ ~~
~ बताइयेगा कि कैसा लगा आपको "स्वराँजलि " का कार्यक्रम : Please click
on the Link below to access Music Files :
You will hear plenty of Information concerning My Papa ji ---

http://www.sopanshah.com/lavanya/

ये मेरा रेडियो इन्टर्व्यु है -"अमर गायक श्री मुकेशचँद्र माथुर की याद मेँ "

http://pl216.pairlitesite.com//lavanya/MukeshKiYaadenDeel3-VimlaSoebhaas.mp3

और ये रत्नघर का गीत "ऐसे हैँ सुख सपन हमारे"

http://pl216.pairlitesite.com/lavanya/RATNAGHAR_aise-hain-sukh-sapan-hamaare.

Anonymous said...
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डॉ .अनुराग said...

vah..adhbhut....

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अनुराग जी , धन्यवाद --