Sunday, April 27, 2008

कोकिला ओ कोकिला


कोकिला ओ कोकिला
ऋतु वसंत ने पहने गहने- झूम रहीं वल्लरियाँ
मधु गंध उड़ रही चहुँ दिशी बहे मीठे जल की निर्झरियाँ
आ गया आ गया वसंत , कूक उठी है कोकिला शतदल-शतदल खिली कमलिनी
मधुकर से है गुंजित नलिनी ,
केसर का ले अंगराग,नाच रही चंचल तितली ,
रति - अनंग का गीत प्रस्फुटीत,
कूक उठी है कोकिला।

झूल रहीं बाला उपवन मेंबजती पग में किँकिणीयाँ,
चपल चाल से , मृदुल ताल से, हँसती खिलती हैं कलियाँ
नाच रहा जग नाच रहा में मन , झूम उठी है कोकिला।

13 - Udd Jaa Re Kaaga.mp33564K Play Download

13 comments:

Alpana Verma said...

kokila ke madhuur swar sach mein mohak hota hain..aisee hi madhur yah kavita bhi lagi .

राजीव रंजन प्रसाद said...

बेहद प्रभावी शब्द चयन, बहुत अच्छी रचना।

*** राजीव रंजन प्रसाद

राजीव रंजन प्रसाद said...

बेहद प्रभावी शब्द चयन, बहुत अच्छी रचना।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Harshad Jangla said...

Lavanyaji

Very nice poem.
What is Vallariyan?

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

In Gujrati Vel = in Hindi Bel , meaning Creeper ...the plant that grows in string form.
Hope you understood now harshad bhai .
A friend of mine had this name, Vallaree ..& American name Valerie also sounds similer :)
Rgds,
L

Gyan Dutt Pandey said...

सुन्दर, आपके देश में कोयलें आती हैं बतौर माइग्रेटरी बर्ड? या नहीं?

mamta said...

मीठी कविता बिल्कुल कोयल की कूक जैसी।

आभा said...

सुन्दर ....

डॉ .अनुराग said...

अच्छा लगता है जब देश से दूर लोग इतनी शुद्ध हिन्दी मे अपने भाव प्रकट करते है ....लावण्या जी मैंने गुजरती लिखनी तो नही सीखी पर हाँ पढ़ ओर सुन कर समझ सब लेता हूँ....

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ज्ञान भाइ सहब्,
कोयल जहाँ मैँ रेह्ती हूँ वहाँ तो देखी नहीँ
दूसरे कई रँगोँ के पक्शी अक्सर मेरी बेलकनी मेँ
दाना चुनते हैँ चूँकि, दीपक रोज़ ही,उनके लिये
बर्ड फीड परोसते हैँ !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

शुक्रिया ममता जी
..टिप्पणी के लिये !:)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आभा जी ,
आप आयीँ,
तो अच्छा लगा ~~
धन्यवाद !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अनुराग भाई,
आपका भी धन्यवाद !
मैँ गुजराती माध्यम से पढी हूँ
परँतु, पापा जी के साथ हमेशा शुध्ध हिन्दी मेँ ही सारी बातचीत होती थी, क्योँकि वे कभी खिचडी भाषा का प्रयोग नही किया करते थे.
उर्दु भी पढ , बोल लेते थे और उनकी अँग्रेज़ी तो खैर ओक्स्फोर्ड स्टेन्डर्ड की थी ही
सो, एक तरह से हिन्दी भाषा के सुन्दर शब्दोँ का प्रयोग अक्सर करती हूँ और हाँ "बम्बइया हिन्दी "
और अब,
" stereo-typical अमरीकन " रोजमर्र्रा की बोली भी
इस्तेमाल करती हूँ !:)
खुशी हुई सुनकर कि आप गुजराती समझ लेते हो !
स्नेह,-लावण्या