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अगर आप अरबी समुँदर मेँ सैर पर निकल चलेँ तो , मुम्बई से ९ समुद्री मील दूर एक पुरातन टापु है जिसका नाम है, ऐलिफ़न्टा !
हाँ वही मुम्बई जहाँ की लोकल ट्रेन पीक आवर माने ओफिस पहुँचने की हडबडी वाले समय मेँ , लोगोँ से भरी हुई, दनदनाती, मुम्बई को चीरती हुई निकलती है , खुले दरवाजोँ से लोग, हैन्डल पकड कर, जीने और मरने के बीच, झूलते दीखाई देते होँ , जब, बसेँ, केपेसीटी से ज्यादा, लोगोँ का बोझ उठाये, रेँगतीँ हुईँ, मुम्बई शहर की मुख्य सडकोँ पे , आप , देखेँ और रिक्षा और टेक्सी के साथ अपार जन समुदाय का कभी न थमनेवाला दरिया आपका दिल दहला दे, ऐसे नज़ारोँ के आगे ये सोचना शायद जहन मेँ आता ही नहीँ के , इससे परे भी, कुछ है जो इसी महानगरी मुम्बई का एक अभिन्न अँग भी हो सकता है !!
तो, यही जगह है , ये एक ऐसी शांत और पुरातन - सी स्थली है ऐलिफ़न्टा आयलैन्ड !! मुम्बई से दूर फिर भी मुम्बई का हिस्सा है , तो वह ऐलिफन्टा का टापु ही है जी हां ,जहां स्कूल की ट्रिप पे भी कई बार घूमने का अवसर मिला और फ़िर, यूँ ही सहेलियों के साथ, भी घूमने गए हैं।
अपोलो बंदर , ताज महल पाँच सितारा होटल के ठीक सामने से, टिकट लेकर, किराये की किसी भी फेरी बोट मेँ आप, दूसरे सैलानियोँ के सँग, सवार हो जाइये, नाव हिचकोले लेती हुई, शोर करती हुई, अरब सागर के सलेटी पानी पे चल पडेगी ॥
धूप, सुफेद, कबूतरोँ जैसे सी - गल, आपके साथ साथ नीले आसमान पे उडते दीखेँगेँ और ९ समुद्री मीलोँ का फासला तै करते ही आप ऐलिफन्टा आयलैन्ड के नज़दीक पहुँच जायेँगेँ। सडक के मील और दरिया के मीलोँ मेँ भी अँतर रहता है । ऐसा सुना है तो ये दूरी ज्यादा नही --
ऐलिफ़न्टा की गुफा २ री और ६ वीं , शताब्दी में अस्तित्व में आयीं थीं । यूनेस्को ने इन को " वर्ल्ड हेरिटेज साईट " = 'विश्व विरासत स्थल " का दर्जा दिया हुआ है।
हर वर्ष , यहां , खुले आकाश के नीचे, टिमटिमाते तारों के साथ , नृत्य , संगीत के समारोह किए जाते हैं । जिन्हें देखकर एक सुखदाई अनूभूति होती है और एहसास होता है इस बात का , " ये मुम्बई , महज , एक मशीनी शहर नहीं है! इसकी आत्मा भी है !
जहां ऐसे कला और संगीत के आयोजन होते हैं।
आप मुम्बई के वासी हों या प्रवासी या अ - प्रवासी ..... एक बार अवश्य घूमने जाईयेगा , देखियेगा ...और , ऐलिफ़न्टा के टापू पे , शिवजी की प्रतिमा के दर्शन भी करियेगा !
-- लावण्या
11 comments:
हमने तो यहीं बैठे-बैठे आपकी पोस्ट पढ़कर एलीफेंटा की सैर कर ली. धन्यवाद!
कोई तीस बरस पहले जा चुका हूँ। वाकई मुम्बई के कंक्रीट के जंगल में एक उपवन की तरह है एलिफेण्टा।
हा हा अच्छा याद दिलाया आप ने फिर फेरी मारने को मन हो आया.....
बहुत साल बीते एलिफेन्टा गये-शायद २७-२८ साल. आपने यादें ताजा कर दीं.
अच्छी सैर कराई आपने, मैं जरूर कोशिश करूँगा जाने की :-)
वर्णन पढ़कर जाने की इच्छा हो आई...जरूर जायेंगे कभी.
badhiya.n jaankari di
आज से ८ साल पहले जब मुम्बई बोम्बे हुआ करता था ओर हम नानावती हॉस्पिटल मे वडा-पाव खाया करते थे तब हमने भी दर्शन किए थे पर आप जैसा कैमरा हमारे पास नही था....
एलिेफेण्टा देखते समय मैं भी अपनी इस धरोहर से विस्मृत रह गया था।
विजय भाई, दिनेश भाई साहब,
आभा जी, समीर भाई ,
अभिषेक जी,पल्लवी जी,
कँचन जी,अनुराग भाई
और ज्ञान भाई साहब -
आपकी यादेँ, " ऐलिफण्टा "
के सँग जुडी हुईँ ,
यहाँ बाँटने का
बहोत बहोत शुक्रिया-
- लावण्या
Bahut hi ruchikar sanvaad v prastuti lavanya ji
Barson pahle gai ab to bas yaadein hain
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