Wednesday, August 1, 2007

अथ से इति तक ~~ हिन्दी की गरिमा हम सब के अस्तित्व से जुडी हुई है.



अथ से इति तक - [ आँठवेँ विश्व हिन्दी सम्मेलन की बयानी ] :


तुलसी के श्री राम से लेकर श्रीलाल शुक्ल के एक पात्र " लँगड " तक फैली हिन्दी भाषा का फलक अत्यँत समृध्ध एवँ विशाल है --
दोनोँ ही कालजयी साहित्यिक कृतियोँ मेँ , सत्य की लडाई का वर्णन है -- हिन्दी भाषा को गौरवमय स्थान दीलवाने के सारे उध्यम भी इसी प्रकार, "सत्य" को स्थापित करने की प्रक्रिया ही है -- तुलसी के आराध्य राम सत्य, हैँ, सुँदर हैँ, शिवरुपी मँगलकारी अवतार पुरुष हैँ -- जिन्हेँ बाबा तुलसी मध्य युग मेँ उजागर कर गये. जिन्हेँ बँधुआ मज़दूर सूरीनाम, गियाना, मोरीशश, बाली, जावा सुमात्रा जैसे दूरदराज़ देशोँ तक ले गये .. और जीते रहे...... विशुध्ध भारतीय जीवन शैली को! पसीना बहाते, लहु से परायी खेती मेँ सोना उगाते ! एक आस पर टिके हुए !
इस हिन्दी भाषा भारती की वैतरणी को तुलसीदास बाबा बहा गये थे.
उनके ग्रँथ राम चरित मानस ने, आनेवाले हिन्दी के स्वरुप को जीवित रखा और परदेश मेँ जडे जम गयीँ !

आँठवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन सम्पन्न हुआ है -
- अनेक विरोधाभासोँ के बीच ..
.फिर भी आशा की कीरन को समेटे हुए , भविष्य की ओर दृष्टि गडाये, यहाँ तक कि कई, ऐसे भी प्रश्न उपस्थित हुए कि
अमेरीका जैसे धनाढ्य देश मेँ हिन्दी के लिये ऐसा आयोजन क्यूँ हुआ? कयी हिन्दी प्रेमी और हिन्दी की सच्ची सेवा करने वालोँ का दावा है कि " हिन्दी सेवा के और भी तरीके हैँ "
. बात तो सही है. परँतु, विश्व की सफल आर्थिक व वाणिज्य सरकारोँ मेँ, चीन और भारत की परिस्थिति के बीच जो ऊँच नीच अब भी बाकी हैँ उनमेँ जो कुछ कमी थी उनमेँ से एक बात यह भी थी कि चीन की कम्यूनिस्ट सरकार ने अपनी प्रजा को सीखा पढा के, भाषा सर्वेक्षण के समय ये कहलवा लिया था कि मैन्ड्रीयन भाषा ही चीन मेँ सबसे ज्यादह प्रयुक्त है जिसके आधार पर, सँयुक्त राज्य सँघ परिषद ने मैन्ड्रीयन को हिन्दी भाषा के इस पद को पाने से बहुत पहले, मान्यता दे दी थी जिसके तहत, अधिकारी गण, मैन्ड्रीयन भाषा का प्रयोग करने लगे थे.बल्कि असल बात ये है कि चीन मेँ भी ६० से अधिक भाषाएँ बोली जातीँ हैँ
यही हाल अरबी भाषा के साथ भी हुआ था और उसके पीछे खनिज तैल की उपभोक्तावादी स्थिति जिम्मेदार थी.
पस्चिम के देशोँ को पेट्रोल की सतता आवश्यकता जो थी ! जिसकी वजह से अरबी भाषा को भी हिन्दी से बहुत पहले , मान्यता मिल गयी थी भारतीय दूतावास, भारतीय विध्या भवन तथा भारत सरकार के साझे प्रयासोँ व कई सारे निष्ठावान, स्वयँसेवियोँ द्वारा इस अष्टम हिन्दी सम्मेलन की सफलतापूर्वक आयोजना के साथ हिन्दी भाषा को भी आज सँयुक्त राष्ट्र सँघ परिसर मेँ मान्यता आखिरकार , मिल ही गयी है. विदेश मेँ हिन्दी का प्रसार, प्रचार कितना होगा, इससे ज्यादह, आज ये सोचना जरुरी है कि, भारत मेँ हिन्दी को प्रतिषिठित करने मेँ अब औरकितने वर्ष लगेँगे?
कब भारत का शिक्षित समाज अँग्रेज़ी भले सीखे पर भारत की जन वाणी हिन्दी को भी अपनायेगा और सम्मान दे पायेगा कि जिससे हिन्दी उपेक्षित ना रहेगी ?इस आयोजन मेँ कितना खर्च किया गया, कौन किसकी सिफारीश पर वहाँ गया, कितना व्यय हुआ, कितनी फिजूलखर्ची हुई, किसने कितने भाषण दीये, बेकार मेँ समय बर्बाद किया या कितने वादविवाद किये इन बातोँ पे ध्यान देने के बदले,
जिस किसी को, हिन्दी भाषा के प्रति आदर व स्नेह है,
वे ये सोचेँ तो बेहतर होगा कि,
हर एक व्यक्ति,
खुद क्या कर सकेगा कि जिससे
भारत की भाषा भारती हिंदी की अस्मिता तेजस्वी बने.
हिन्दी की गरिमा हम सब के अस्तित्व से जुडी हुई है.
आप को दूर नहीँ जाना पडेगा.
आइना देख लीजिये, जो तस्वीर सामने है, हिन्दी बस वहीँ है.
हिन्दी का मुकाम आज जहाँ कहीँ भी है और जहाँ इसने अपना सफर तै किया है और आगे जहाँ कहीँ भी हिन्दी पहुँचेगी
उसका आधार, हम और आप पर ही तो है.

हम लोगोँ ने हमारे रहने के लिये होटेल के आरक्षण मेँ देर हो गयी इस के कारण होटेल पेन्सलवेनीया के बजाय होटल मेडीसन मेँ
( जो अच्छी हालत मेँ नहीँ थी ) वहाँ हमेँ कमरा मिला.
सवेरे स्नानादि के बाद,
हम सँयुक्त सँघ के बाहर कतारबध्ध, शिष्टता से खडे हो गये --
-अँतराष्ट्रीय आँठवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन बहुत से अवरोध, प्रति अवरोधोँ के साथ शुरु हुआ पर सँयुक्त राष्ट्र सँघ के मुख्य प्रवेश द्वार पर, लहरा रही हरी,नीली, पीली , लाल, सुफेद व धानी साडीयोँ की आभा ने प्राँगण को भारतीय रुप रँग मेँ डूबो कर ,न्यू योर्क के इस भव्य स्मारक के साथ, हम भारतीय, हिन्दी भाषा बोलने वालोँ के मन मेँ, एक अनोखा अपनापन निर्मित करते हुए, एक नई उर्जा , एक नयी उमँग भर दी थी.
बाहर एक, बँदूक की नली को मोड कर, महात्मा गाँधी के "अहिँसा " के सँदेश को प्रतिपादित करती, प्रतिमा को देखकर, फिर ये विचार मेरे मन मेँ ,आ रहा था कि, विश्व मेँ अहिँसा का प्रचार व प्रसार हो तथा शाँति का सँदेश फैल कर २१ वीँ सदी के समग्र मानव जाति के लिये, एक "शाश्वत सर्वोदय " का सँदेश लाये और वह
'अमर सँदेश ' हमारी "हिंदी भाषा " मेँ ही हो !
मुख्य द्वार के सामने ही,
हमारे कवि शिरोमणि श्री राकेश खँडेलवाल जी से रूबरू मुलाकात हुई -
वो भी सँयुक्त राष्ट्र सँघ के मुख्य द्वार पर उनकी पत्नी के साथ खडे थे.
आखिरकार, अपनी तस्वीर दीखलाकर, या प्रवासी अतिथि, पासपोर्ट दीखला कर, अपने निजी सामान का निरिक्षण करवा कर, सभागार मेँ दाखिल हुए
-व स्थान ग्रहण किया --
भीतर डा. नवीन मेहता (भारतीय विध्या भवन के प्रबँधक) , डा. आनँद शर्मा भारत के विदेश राज्य मँत्री जी के भाषण हुए. डा. मनमोहन सिँह भारतीय प्रधान मँत्री जी के द्रश्य -श्रव्य माध्यम द्वारा अपना उत्साहवर्धक सँदेश, देशी और विदेशी श्रोताओँ तक पहुँचाया -
विदेश मेँ बसे भारतीय साहित्य को भी शैक्षणिक पाठ्य क्रम मेँ मान्यता दीलवाने की घोषणा का, सहर्ष स्वागत किया गया.
उसके बाद, सँयुक्त राष्ट्र सँघ के महासचिव श्रीयुत्` बान की मून्` ने कुछ हिन्दी वाक्योँ को,जब अपने लहजे से बोल कर सुनाया तब, सभागार मेँ बैठे,दूर देशोँ से आये श्रोताओँ के समक्ष अपने हिन्दी के प्रति सजग प्रेम का उदाहरण देते हुए सभी का मन मोह लिया था -
सम्मेलन का कार्यक्रम इस प्रकार रहा :
१३ जुलाई , २००७९.४५ पूर्वाह्न से उद्घाटन स्थल : कोन्फ्रेन्स होल सँयुक्त राष्ट्र मुख्यालय ११ बजे तक११.१५ बजे पूर्वाह्न से शैक्षिक सत्र - १ विषय : सँयुक्त राष्ट्र सँघ मेँ हिन्दी १२ बजे तक (वहीँ ) १२.३० से १.३० प्रतिभागियोँ का स्थाँनातरण
फेशन इन्स्टीट्यूट ओफ टेक्नोलोजी (एफ्. आई टी )
सँयुक्त राष्ट्र परिसर के उद्घाटन समारोह के समापन के बाद बसोँ का इँतज़ाम किया गया था जो प्रतिनिधियोँ को फेशन इन्स्टीट्यूट ओफ अमेरीका तक ले जाने लगीँ. हम लोग पहले प्रस्थान हुई बसोँ मेँ आगे के कार्यक्रमोँ के लिये तथा भोजनालय की तरफ रवाना हुए.
परंतु बाद मेँ वहीँ पहुँचनेवालोँ ने बतलाया कि,
बाद की बसोँ मेँ बहुत धक्कामुक्की हुई.
अराजकता इतनी फैली कि पुरुष वर्ग महिलाओँ को बस मेँ घुसने नहीँ देते थे. जिसके कारण मुँबई से आयीँ एक उच्च पदाधिकारी महिला प्रतिनिधि ने खूब डाँटा
तो कई पुरुष और उनकी पत्नीयाँ उन्हीँ से झगडने लगीँ -
ऐसा क्यूँ होता है हम भारतीयोँ मेँ ?
शिष्टता, शिस्तबध्धता को तोडना हमेँ क्यूँ रास आता है?
खैर!
१.३० से २.३० तक अपराह्न भोजन (एफ्. आई टी )
२.३० से ३.०० प्रदर्शनी उद्`घाटन स्थल" ग्रेट होल (एफ्. आई टी )
डा. अँजना सँधीर जी अमरीकी साहित्यकारोँ की पुस्तक प्रदर्शनी दीखलाने विदेश मँत्रा आनँद शर्मा जी को जबरन नीचे के एक होल तक ले आयीँ चूँकि भारत से लायी गयी पुस्तकोँ के साथ "अप्रवासी " साहित्यकारोँ को स्थान नहीम लिमा था --मेरी कविता की प्रथम पुस्तक "फिर गा उठा प्रवासी " भी वही रखी गयी थी ३.१० से ५.४० अपराह्न शेक्षिक सत्र - २ देश विदेश मेँ हिँदी शिक्षण सम्स्याएँ स्थल :
हेफ्ट ओडीटोरीयम (एफ्. आई टी )
३-१० ससे ५.४० अपराह्न :
शेक्षिक सत्र -३ वैश्वीकरण मीडीया और हिन्दी -केटी मर्फी अम्फीथियेटर ( एफ आई टी )
जलपान के लिये १५ मिनिट और इलायची डली चाय बढिया थी !
६.३० से ८.बजे रात्रि भोज ( एफ आई टी ) ८ से ९.३० कवि सम्मेलन
सँध्या को कवि -सम्मेलन का आयोजन हुआ. प्रख्यात हास्य कवि श्री अशोक चक्रधर जी सँचालक थे. उन्होँने अपनी कविता तो नहीँ सुनाई परँतु, कविता के साथ टिप्पणी के रुप मेँ जोडी गयी पँक्तियाँ सुँदर व कविता के अनुरुप रहीँ. -मैँने भी मेरी कविता सुनायी
- गुलज़ार साहब के सामने! :-)
अन्य महानुभावोँ के सम्मुख !
जिसे ऊँचे स्वर मेँ पढते हुए, सुखद अनुभूति हुई -
- "कोटि कोटि कँठोँ से गूँजे, जय माँ! जय जय भारती"
के घोष से,माननीय प्रबुध्ध श्रोता समुदाय की प्रसन्नता रुपी करतल ध्वनि ने मुझे भी आनँद प्रदान किया.
(सम्पूर्ण कविता यहाँ देखिये)
http://www.hindinest.com /kavita/lavanya/savera.htm
मेरे युवा कवि साथीयोँ का, आँखोँ देखा विवरण भी
यहाँ के २ लिन्कोँ पर अवश्य पढेँ -- रोचक लगेगा -
http://groups. yahoo.com/ group/ekavita/ files/Vishwa% 20Hindi%20Sammel an/20070712_ Sammelan_ Samachar_ Web.pdf http://groups. yahoo.com/ group/ekavita/ files/Vishwa% 20Hindi%20Sammel an/20070713_ Sammelan_ Samachar_ Web.pdf http://groups. yahoo.com/ group/ekavita/ files/Vishwa% 20Hindi%20Sammel an/20070714_ Sammelan_ Samachar_ Web.pdf http://groups. yahoo.com/ group/ekavita/ files/Vishwa% 20Hindi%20Sammel an/20070715_ Sammelan_ Samachar_ Web.pdf
१.- सम्मेलन के पहले दिन की खबरें
१४ जुलाई, २००७१० बजे पूर्वाह्न शेक्षिक सत्र -
-४विदेशोँ मेँ हिन्दी साहित्य सृजन हेफ्ट ओडीटोरीयम ( एफ आई टी )
१० से १२ बजे शेक्षिक सत्र -५ हिन्दी के प्रचार प्रसार मेँ प्रोध्योगिकी की भूमिका -केटी मर्फी अम्फीथियेटर ( एफ आई टी ) १ से २ बजे तक भोजन ( एफ आई टी )
२.३० से ५.०० शेक्षिक सत्र - ६
हिन्दी के प्रचार प्रसार मेँ हिन्दी फिल्मोँ की भूमिका जिसमेँ गुलज़ार जी का भाषण लोकप्रिय रहा
समानान्तर शेक्षिक सत्र -७
हिंदी युवा पीढी और ज्ञान विज्ञान ( जलपान व्यव्सथा )
६ से ८ रात्रि भोज ( एफ आई टी )
८ से ९.३० सितार वादन एवँ भारत नाट्यम हेफ्ट ओडीटोरीयम
( एफ आई टी )
२ - सम्मेलन के दूसरे दिन की ख़बरें
१५ जुलाई, २००७१० से १२ शेक्षिक सत्र - ८ हिन्दी भाषा और साहित्य विभिन्न आयाम हेफ्ट ओडीटोरीयम ( एफ आई टी )
समाताँतर शेक्षिक सत्र -९
(१) साहित्य मेँ अनुवाद की भूमिका ( ५० निनट )
(२) हिन्दी बाल साहित्य (५० मिनट )
(३) देवनागरी लिपि ( ५० मिनट )
स्थल: केटी मर्फी अम्फीथियेटर ( एफ आई टी )
१ से २ मध्याह्न भोजन२.३० से ५ बजे तक समापन सत्र -न्यूयोर्क स्थित भारत के प्रधान कोँसल का भाषण-देश और विदेश के हिन्दी विद्वानोँ का सम्मानसम्मेलन
-रिपोर्ट की प्रस्तुतिसम्मेलन की धोषणाओँ की प्रस्तुतिमुख्य अतिथि का अभिभाषण : ~~
भारतीय साँस्कृतिक सँबँध परिषद के अध्यक्ष जम्मू कश्मीर के नरेश श्री कर्ण सिँह जी का सम्भाषण जानदार रहा जिसमेँ तुलसी के दोहोँ मेँ श्री राम का वर्णन जब वे रावण के सामने रथहीन अवस्था मेँ खडे हैँ तब बाबा जी ने राम के श्री मुख से धर्म रुपीए रथ की व्याख्या की है वे दोहे सुनकर श्रोतागण अभिभूत हो गये - बात तुलसी दास जी से शुरु हुई और समापन पर भी उन्हीँ का नाम आ रहा है. श्री राम हिन्दी भाषा की इस रथ यात्रा को यश्स्वी करेँ ये मेरी विनम्र प्रार्थना है : धन्यवाद ज्ञापन
भोजनालय के बाहर सीनसीनाटी स्थित कवियत्री रेणु राजवँशी गुप्ता के सौजन्य से प्रतीक्षारत कवियोँ द्वारा कविता पाठ जो बिना किसी आयोजन के किया गया वह सबसे शानदार रहा -- ६ से ८ रात्रि भोज८ से ९.२१ प्रख्यात गज़ल गायक श्री पँकज उधास जी का कार्यक्रम
३ - सम्मेलन के अंतिम दिन की ख़बरें अवश्य देखेँ -- http://www.vishwahindi.com /newsletter/14_july_newsletter .pdf
लेखिका : लावण्या शाह
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4 comments:

Udan Tashtari said...

अच्छी रिपोर्ट. आपको बहुत बधाई कि आपने गुलज़ार जी के सम्मुख अपना काव्य पाठ किया. कविता हम पढ़कर ही आनन्द ले रहे हैं. पुनः बधाई.

mamta said...

सम्पूर्ण और विस्तृत जानकारी देने का शुक्रिया।
हम भारतीयों की यही तो कमी है धक्कामुकी की आदत छूटे नही छूटती है।
आपकी कविता बहुत पसंद आयी। और सम्मेलन मे कविता पढने की बधाई।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

समीर भाई,
आपका बहुत बहुत आभार !
स स्नेह,-लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ममता जी,
आपका भी बहुत आभार मानती हूँ

स स्नेह,-लावण्या