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सूनी साँझ ...कुछ यूं बिताई हमने ...... [ Flashback ]
गौरी कुंड से कुछ मिटटी लेकर हाथों में ,
एक अकेली साँझ को , सोच रहीं माँ पारबती ,
" कब आयेंगे घर , मेरे , शिव ~ सुंदर ? "
केशर मिश्रित उबटन लेकर हाथों में तब, खूब उसे मल मल कर
उतारा फ़िर अपने अंग से खेल - खेल में॥
बना दी आकृति एक बालक की और हलके से ,
फूंक दिए प्राण अपनी सांसों के ....और कहा ,
" ऊ हो ... ये मेरा पुत्र , विनायक है ! "
सूनी साँझ कहाँ फ़िर रहती सूनी सूनी ?
हुआ आगमन , श्री गणेश का जग में !
पारबती के प्यारे पुत्र तब आए जग में !
शिवजी लौट रहे थे छोड़ कैलाश और तपस्या
द्वार के पहरेदार बन खड़े हो गए बाल गणेश ,
माता के बन के रक्षक !
" फ़िर आगे क्या हुआ माँ ? कहो न ..."।
पूछने लगी बिटिया मेरी , मुझसे !
एक सूनी साँझ के समय , सुन रही थी वह,
मुझसे यह कथा पुरानी और मैं , उसे करती जा रही थी तैयार ~
रात्रि - भोज के पहले , ये भी करना था !
बस , अब , आते ही होंगें , मेहमान !
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-- लावण्या
4 comments:
विनायक की वह कथा भी रोचक है और यह कथा सुनने का संस्मरण भी।
बहुत खूब संस्मरण है. इस तरह तैयार करते वक्त ऐसी कथायें सुना कर बहुत सुन्दर संस्कार दिये जा रहे हैं..बहुत बढ़िया.
bahut khoob........katha vakai rochak hai.aor ye do sundar balak bhi....
ज्ञान भाई साहब, समीर भाई व डा. अनुराग भाई
आप सभी का धन्यवाद ..इस कविता के बिम्ब को पसण्द करने के लिये.
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